My Gov अदालतों की टालू प्रक्रिया को रोकना होगा
न्यायालय प्रक्रिया सुधार की रूपरेखा
1. वकीलों की अनुपलब्धता पर नियंत्रण
- सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू करना: वकील की अनुपस्थिति के कारण स्थगन (adjournment) न दिया जाए, सिवाय शोक या गंभीर स्वास्थ्य कारणों के।
- ई-पैनल वकील व्यवस्था: यदि मुख्य वकील अनुपलब्ध हों, तो अदालतों में “स्टैंड-बाय वकील पैनल” से प्रतिनिधित्व कराया जाए।
- बार काउंसिल जिम्मेदारी: अनुपस्थित वकीलों के खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई तय की जाए।
2. आरोपी और गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित करना
- डिजिटल समन और नोटिस: समन, वारंट और नोटिस इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (SMS, WhatsApp, ईमेल) से भेजे जाएं ताकि देरी न हो।
- गवाह सुरक्षा व प्रोत्साहन: गवाहों की सुरक्षा और समय पर उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए गवाहों को उचित भत्ता, यात्रा सुविधा और कानूनी संरक्षण दिया जाए।
- यदि गवाह उपस्थित है तो उसके बयान आवश्यक रूप से लिए जाएँ, यदि अधिवक्ता उपलब्ध नहीं है तो कोर्ट खुद प्रति प्रश्न कर गवाह से अधिकतम जानकारी दर्ज कर सकता है।
- फरार आरोपियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई: आरोपी के फरार होने पर उनकी जमानत तुरंत रद्द हो और संपत्ति जब्ती जैसी कठोर कार्रवाई हो।
3. स्टे ऑर्डर (Stay Orders) पर समीक्षा व्यवस्था
- अधिकतम समय सीमा: हाई कोर्ट के स्टे ऑर्डर दो तरह के होंगे एक स्थाई जो प्रश्न के निर्णय तक़ के लिए, दूसरा अगली पेशी तक़ के लिए ताकी उसे समीझा के बाद ही बढ़ाया जाये।
- सुप्रीम कोर्ट : सुप्रीम कोर्ट स्टे आर्डर पर भी बहस सुने तभी उसकी उस कंडीशन में व्यवस्था दे।
- स्वचालित समीक्षा : हर स्टे ऑर्डर स्वतः समीक्षा प्रत्येक पेशी पर होनी चाहिए ।
4. प्रशासनिक सुधार
- अदालतों का डिजिटलीकरण: सभी केस फाइलें और दस्तावेज़ ई-फॉर्मेट में हों ताकि “दस्तावेज़ों का इंतज़ार” वाली समस्या खत्म हो।
- केस ट्रैकिंग पोर्टल: पक्षकार और वकील ऑनलाइन देख सकें कि केस क्यों अटका है।
- रिकॉर्ड मैनेजमेंट: रिकॉर्ड को डिजिटल सुरक्षित संग्रह (Digital Safe Custody) में रखा जाए।
5. निचली अदालतों की जवाबदेही
- सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू: गवाह की उपस्थिति होने पर बिना कारण सुनवाई स्थगित न हो।
- जजों के मूल्यांकन में देरी का आंकड़ा शामिल: जिला व सत्र न्यायाधीशों की वार्षिक समीक्षा में यह देखा जाए कि उन्होंने कितनी बार बेवजह स्थगन दिया।
6. केस मैनेजमेंट प्रणाली
- मासिक प्रगति रिपोर्ट: हर केस का “टाइमलाइन चार्ट” बने जिसमें तय तारीख़ तक की सुनवाई और गवाहों की सूची पहले से तय हो।
- फास्ट ट्रैक श्रेणियां:
- 10 साल से अधिक पुराने मामलों को फास्ट-ट्रैक सुनवाई में डाला जाए।
- संवेदनशील आपराधिक मामले (महिला, बच्चे, बुजुर्ग से जुड़े अपराध) प्राथमिकता से निपटाए जाएं।
7. कानूनी प्रतिनिधित्व और उत्तराधिकारी का रिकॉर्ड
- मृत पक्षकारों के वारिसों का रिकॉर्ड तुरंत अपडेट करने के लिए ऑनलाइन वारिस पंजीकरण प्रणाली बने।
8. जन-जागरूकता और प्रशिक्षण
- वकीलों, गवाहों और आम जनता को “तेज न्याय” के अधिकार और प्रक्रिया के बारे में जागरूक करना।
- जजों और न्यायिक कर्मचारियों के लिए नियमित प्रशिक्षण ताकि अनावश्यक स्थगन और देरी कम हो।
- निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने सही कहा कि तेज सुनवाई जीवन के अधिकार का हिस्सा है। यदि ऊपर बताए गए सुधार लागू किए जाएं, तो लंबित मामलों की संख्या तेजी से घट सकती है। विशेष रूप से डिजिटलीकरण, जवाबदेही और समय-सीमा आधारित स्टे ऑर्डर सबसे प्रभावी कदम होंगे।
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Supreme Court Concerned Why Are 5 Crore Cases Pending In Indian Courts Lawyers Witnesses And Stays Are Major रीज़न्स
वकील और गवाह गायब, स्टे पर स्टे... भारतीय अदालतों में 5.3 करोड़ मामले क्यों लंबित हैं?
Supreme Court Order On Pending Cases: सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों में 5.34 करोड़ लंबित मामलों पर गहरी चिंता व्यक्त की है, इसे जीवन के अधिकार का महत्वपूर्ण हिस्सा बताया। कोर्ट ने 22 सितंबर को आदेश दिया कि वकीलों की अनुपलब्धता पर सुनवाई स्थगित न हो।
नई दिल्ली :
पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों में बेवजह की देरी पर सुनवाई की। कोर्ट ने इस गंभीर मुद्दे पर अपनी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि 'तेज सुनवाई' हर नागरिक के जीवन के अधिकार का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। देश की अदालतों में कुल 5.34 करोड़ से ज़्यादा मामले लंबित हैं। इनमें वकीलों का उपलब्ध न होना, आरोपी का फरार होना और गवाहों का गायब होना जैसे कई बड़े कारण शामिल हैं।
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इन समस्याओं को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने 22 सितंबर को एक अहम आदेश जारी किया। इस आदेश में हाई कोर्ट्स को निर्देश दिए गए। उनसे कहा गया कि वे जिला न्यायिक अधिकारियों को सर्कुलर भेजें। इन सर्कुलर में साफ कहा गया कि वकीलों की अनुपलब्धता के कारण सुनवाई को स्थगित नहीं किया जा सकता। सिर्फ शोक की स्थिति में ही ऐसा हो सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर आरोपी और उनके वकील मिलकर कार्यवाही में देरी कर रहे हैं, तो उनकी जमानत रद्द करने पर विचार किया जाना चाहिए।
चौंकाने वाले आंकड़े
देश की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बहुत ज्यादा है। यह एक बड़ी चिंता का विषय है। 25 सितंबर तक के आंकड़ों के अनुसार, कुल 5.34 करोड़ मामले लंबित थे। इन मामलों में से एक बड़ा हिस्सा जिला और निचली अदालतों में है। जिला और निचली अदालतों में 4.7 करोड़ मामले लंबित हैं।
हाई कोर्ट्स में भी बड़ी संख्या में मामले अटके हुए हैं। हाई कोर्ट्स में 63.8 लाख मामले लंबित हैं। देश की सबसे बड़ी अदालत, सुप्रीम कोर्ट में भी मामले लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट में 88,251 मामले लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस स्थिति पर गहरी चिंता जताई है। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि तेज सुनवाई हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। यह अधिकार जीवन के अधिकार का एक अटूट हिस्सा है। इसका मतलब है कि हर किसी को जल्द न्याय मिलना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स में लंबित मामलों में देरी के कारणों की पूरी जानकारी अभी उपलब्ध नहीं है। लेकिन नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (NJDG) ने निचली अदालतों के लिए कुछ आंकड़े दिए हैं। NJDG ने निचली अदालतों के 1.78 करोड़ मामलों में देरी के 15 मुख्य कारण बताए हैं। निचली अदालतों में कुल 4.7 करोड़ मामले लंबित हैं। जिन मामलों के कारणों की जानकारी NJDG के पास है, उनमें से ज़्यादातर आपराधिक मामले हैं। इन मामलों में 81% आपराधिक मामले हैं। बाकी 19% सिविल मामले हैं। यह दिखाता है कि आपराधिक मामलों में देरी ज्यादा हो रही है। हालांकि, एक बड़ी संख्या ऐसे मामलों की भी है जिनके कारणों का पता नहीं है। लगभग 3 करोड़ मामलों के लिए देरी का कोई कारण नहीं बताया गया है। यह अपने आप में एक बड़ी समस्या है।
कहां है दिक्कत?
NJDG ने देरी के कुछ खास कारण बताए हैं। ये कारण न्याय प्रक्रिया को धीमा कर रहे हैं। सबसे बड़ा कारण वकीलों का उपलब्ध न होना है। 62 लाख से ज्यादा मामलों में वकील मौजूद नहीं होते। इससे सुनवाई आगे नहीं बढ़ पाती।
दूसरा बड़ा कारण आरोपी का फरार होना है। 35 लाख से ज्यादा मामलों में आरोपी फरार हैं। जब आरोपी ही नहीं होता, तो केस कैसे चलेगा?
लगभग 27 लाख मामलों में गवाह गायब हैं। गवाहों के बिना सबूत पेश करना मुश्किल हो जाता है।
23 लाख से ज्यादा मामलों पर अलग-अलग अदालतों ने रोक लगा रखी है। यह रोक भी मामलों को आगे बढ़ने से रोकती है।
14 लाख से ज्यादा मामलों में 'दस्तावेजों का इंतजार' होता है। जरूरी कागजात न मिलने से भी देरी होती है। और लगभग 8 लाख मामलों में 'पार्टियों का दिलचस्पी न लेना' शामिल है। जब पक्षकार ही रुचि नहीं दिखाते, तो मामला कैसे सुलझेगा? ये सभी कारण मिलकर न्याय में देरी करते हैं।
NJDG ने देरी के कुछ और भी कारण बताए हैं। इनमें बार-बार अपील करना शामिल है। लोग एक ही मामले में बार-बार अपील करते रहते हैं। इससे भी सुनवाई में लंबा समय लगता है।
रिकॉर्ड का उपलब्ध न होना भी एक समस्या है। जब जरूरी रिकॉर्ड नहीं मिलते, तो कार्यवाही रुक जाती है।
सुनवाई को रोकने वाले विविध आवेदन भी देरी का कारण बनते हैं। पार्टियां अक्सर सुनवाई रोकने के लिए अलग-अलग तरह के आवेदन देती रहती हैं। पार्टियां द्वारा अतिरिक्त गवाहों की मांग करना भी एक कारण है। इससे भी केस लंबा खिंचता है।
मृत पार्टियों के कानूनी प्रतिनिधियों का कोर्ट रिकॉर्ड में न होना भी एक बड़ी बाधा है। जब किसी पक्षकार की मृत्यु हो जाती है और उसके कानूनी वारिसों का पता नहीं होता, तो मामला अटक जाता है। इन सभी कारणों से न्याय मिलने में बहुत देर होती है।
जस्टिस पारदीवाला और विश्वनाथन की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने इस स्थिति पर गहरी चिंता जताई। बेंच ने कहा, 'यह लगभग एक सामान्य प्रथा और नियमित घटना है कि ट्रायल कोर्ट इस आदेश का खुलेआम उल्लंघन करते हैं। यहां तक कि जब गवाह मौजूद होते हैं, तब भी मामलों को बहुत कम गंभीर कारणों या मामूली आधारों पर स्थगित कर दिया जाता है।'
कटघरे में निचली अदालतें!
यह टिप्पणी दिखाती है कि निचली अदालतें अक्सर इस नियम का पालन नहीं करती हैं। वे छोटे-मोटे कारणों पर भी सुनवाई टाल देती हैं। ऐसा तब भी होता है जब गवाह मौजूद होते हैं और सुनवाई के लिए तैयार होते हैं। यह स्थिति न्याय प्रणाली की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है। सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि निचली अदालतें इस आदेश का सख्ती से पालन करें। इससे लंबित मामलों की संख्या कम होगी और लोगों को समय पर न्याय मिल पाएगा।
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