सुप्रीम कोर्ट और उसके जज

दो दिन पहले, भाजपा सांसद डॉ. निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट में एक गंभीर आरोप लगाया था, जिसमें उन्होंने कहा था:
> "अगर इस देश में धार्मिक हिंसा भड़काने के लिए कोई ज़िम्मेदार है, तो वो सुप्रीम कोर्ट और उसके जज हैं!"

उनके इस बयान से काफ़ी विवाद हुआ और विपक्षी दलों ने इसकी कड़ी आलोचना की। हालाँकि, प्रसिद्ध वैज्ञानिक, लेखक और वक्ता आनंद रंगनाथन ने दुबे के पूर्ण समर्थन में एक वीडियो बयान जारी किया। धाराप्रवाह अंग्रेज़ी में, रंगनाथन ने सुप्रीम कोर्ट से 9 तीखे सवाल पूछे। ये सवाल बेहद अहम हैं। नीचे हिंदी में एक संक्षिप्त सारांश दिया गया है, जिसका अब अंग्रेज़ी में अनुवाद किया गया है ताकि सभी इसे आसानी से समझ सकें:

*आनंद रंगनाथन के सुप्रीम कोर्ट से 9 सवाल:*

1. "कश्मीर मुद्दे पर दोहरा मापदंड:" सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के ख़िलाफ़ विपक्षी दलों की याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई की। लेकिन जब 1990 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं पर हुए अत्याचारों - जैसे जबरन विस्थापन, घरों पर कब्ज़ा, मंदिरों को तोड़ना, हत्या, बलात्कार और सामूहिक पलायन - के बारे में याचिकाएँ दायर की गईं, तो अदालत ने उन्हें यह कहते हुए खारिज कर दिया कि, "यह बहुत पहले हुआ था।" *क्या यह दोहरा मापदंड नहीं है? क्या इससे हिंदुओं में आक्रोश नहीं पैदा होता? क्या इससे धार्मिक संघर्ष नहीं होता?*

2. 'वक्फ बोर्ड के दुर्व्यवहारों पर मौन:' सर्वोच्च न्यायालय अब वक्फ बोर्ड के सुधारों को लेकर चिंतित है। लेकिन पिछले 30 वर्षों में, वक्फ बोर्ड ने अवैध रूप से संपत्ति ज़ब्त की है, करों की चोरी की है और समानांतर न्यायपालिका चलाई है - फिर भी अदालत चुप रही है। अगर सुधारों को इस्लाम के लिए ख़तरा माना जाता है, तो हिंदुओं की ज़मीन पर मस्जिदें और दरगाहें बनाना कैसे स्वीकार्य था? वक्फ बोर्ड ने 20 लाख से ज़्यादा हिंदुओं की संपत्ति ज़ब्त कर ली। सर्वोच्च न्यायालय चुप रहा। *अगर यह धार्मिक पक्षपात नहीं है, तो और क्या है?*

3. `मंदिरों का धन कहीं और खर्च, हिंदुओं पर प्रतिबंध:` हिंदू मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण है। उनकी आय का उपयोग मदरसों, हज यात्राओं, वक्फ बोर्डों, इफ्तार पार्टियों और ऋणों के लिए किया जाता है। लेकिन हिंदुओं की धार्मिक गतिविधियों पर प्रतिबंध हैं। हिंदुओं के अधिकारों से जुड़ी याचिकाएँ अक्सर खारिज कर दी जाती हैं। अल्पसंख्यकों को हमेशा विशेष वरीयता दी जाती है। *क्या यह उचित है? या यह हिंदुओं के गुस्से को भड़काने का एक तरीका है?*

4. `हिंदुओं के खिलाफ शिक्षा में भेदभाव:` शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत, हिंदू स्कूलों में 25% सीटें अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित होनी चाहिए। लेकिन मुस्लिम और ईसाई संस्थानों को इस नियम से छूट दी गई है। हज़ारों हिंदू स्कूल बंद करने पड़े और अब हिंदू बच्चे गैर-हिंदू संस्थानों में पढ़ते हैं। *क्या यह धर्मांतरण को बढ़ावा नहीं देता? सुप्रीम कोर्ट इस एकतरफा नियम को क्यों नहीं देखता?*

5. `अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दिखावा:` जब हिंदू बोलते हैं, तो उसे "घृणास्पद भाषण" कहा जाता है। जब दूसरे बोलते हैं, तो उसे "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" कहा जाता है। नूपुर शर्मा सिर्फ़ हदीस का हवाला देती हैं और अदालत ने उसे नफ़रत भरा भाषण करार दिया। लेकिन जब स्टालिन और अन्य नेताओं ने सनातन धर्म को "बीमारी" कहा, तो अदालत चुप रही। *क्या यह न्याय है?*

6. 'हिंदू परंपराओं पर पक्षपातपूर्ण प्रतिबंध:' सर्वोच्च न्यायालय ने दशहरे के दौरान पशुबलि जैसी हिंदू प्रथाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। लेकिन ईद के दौरान हलाल जानवरों के सामूहिक वध पर कोई सवाल नहीं उठाया जाता। जन्माष्टमी के दौरान, दही हांडी उत्सव के दौरान ऊँचाई पर प्रतिबंध हैं। लेकिन मुहर्रम से जुड़ी हिंसा पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती। दिवाली के पटाखों को पर्यावरण के लिए हानिकारक बताया जाता है, लेकिन क्रिसमस के पटाखों की आलोचना नहीं की जाती। *क्या यह भेदभाव नहीं है?*

7. 'पूजा स्थल अधिनियम हिंदू पुनर्स्थापना में बाधा डालता है:' 1991 के पूजा स्थल अधिनियम में कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 से पहले के स्थानों के धार्मिक स्वरूप में बदलाव नहीं किया जाना चाहिए। यह कानून हिंदुओं को उन प्राचीन मंदिरों को पुनः प्राप्त करने से रोकता है जिन्हें नष्ट कर दिया गया है या परिवर्तित कर दिया गया है। राम मंदिर के लिए दशकों तक संघर्ष करना पड़ा। कई अन्य मंदिरों पर अतिक्रमण किया गया है। *क्या यह ऐतिहासिक अन्याय नहीं है?*

8. `सिर्फ़ हिंदू परंपराओं को निशाना बनाना:` सबरीमाला मामले में, अदालत ने हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुँचाई। कुछ हिंदू मंदिरों में केवल पुरुष या केवल महिलाओं के रीति-रिवाज़ों का पालन किया जाता है। लेकिन अदालत ने सिर्फ़ हिंदू परंपराओं पर ही सवाल उठाया। इस्लाम में, महिलाएँ मस्जिदों में प्रवेश नहीं कर सकतीं या कुछ जगहों पर कुरान नहीं पढ़ सकतीं। ईसाई धर्म में, महिलाएँ धार्मिक नेता नहीं बन सकतीं। *अदालत ने उन धर्मों पर सवाल क्यों नहीं उठाया?*

9. `सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान निष्क्रियता:` शाहीन बाग़ विरोध प्रदर्शनों और सीएए विरोधी दंगों के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। प्रदर्शनकारियों ने सार्वजनिक सड़कें जाम कर दीं, लेकिन अदालत ने उन्हें नहीं रोका। *क्या यह क़ानून का मज़ाक नहीं है? क्या इससे हिंदुओं का गुस्सा नहीं बढ़ा है?*

यह शक्तिशाली संदेश सभी तक पहुँचना चाहिए। इसीलिए इसे यहाँ साझा किया जा रहा है।

आपके समर्थन के लिए धन्यवाद। कृपया शेयर करें या कॉपी-पेस्ट करें।

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

कण कण सूं गूंजे, जय जय राजस्थान

God’s Creation and Our Existence - Arvind Sisodia

Sanatan thought, festivals and celebrations

‘‘भूरेटिया नी मानू रे’’: अंग्रेजों तुम्हारी नहीं मानूंगा - गोविन्द गुरू

कविता - संघर्ष और परिवर्तन

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

My Gov केदियों से रक्षा बंधन, करबा चौथ और होली की भाई दौज पर मिलनी

My Gov अनिवार्य नागरिक आर्थिक सर्वेक्षण