भरण-पोषण के दायित्व का उल्लंघन होने पर बच्चे को माता-पिता की संपत्ति से बेदखल किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट sc bharan poshan



सुप्रीम कोर्ट/भरण-पोषण के दायित्व का उल्लंघन होने... 

भरण-पोषण के दायित्व का उल्लंघन होने पर बच्चे को माता-पिता की संपत्ति से बेदखल किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट 

25 Sept 2025 

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 के अंतर्गत न्यायाधिकरण को सीनियर सिटीजन की संपत्ति से बच्चे को बेदखल करने का आदेश देने का अधिकार है, यदि सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण के दायित्व का उल्लंघन होता है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने 80 वर्षीय व्यक्ति और उनकी 78 वर्षीय पत्नी द्वारा दायर अपील स्वीकार की और बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें उनके बड़े बेटे के खिलाफ पारित बेदखली के निर्देश को अमान्य कर दिया गया था। 

Also Read - नीलामी नोटिस में संपत्ति के भार का खुलासा न करने पर बैंक की विफलता बिक्री को अमान्य करती है: सुप्रीम कोर्ट ने नीलामी खरीदार को धन वापसी का आदेश दिया अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह अधिनियम सीनियर सिटीजन की देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित करके उनकी दुर्दशा को दूर करने के लिए बनाया गया था। इसलिए इसके प्रावधानों की व्याख्या इस तरह से की जानी चाहिए, जो इसके कल्याणकारी उद्देश्य को बढ़ावा दे। अदालत ने कहा, "अधिनियम की रूपरेखा स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि यह कानून वृद्ध व्यक्तियों की दुर्दशा को दूर करने, उनकी देखभाल और सुरक्षा के लिए बनाया गया था। कल्याणकारी कानून होने के नाते इसके प्रावधानों की व्याख्या उदारतापूर्वक की जानी चाहिए ताकि इसके लाभकारी उद्देश्य को आगे बढ़ाया जा सके।" 

Also Read - 'प्रमाणित प्रति में निर्णय सुरक्षित रखने, सुनाने और अपलोड करने की तिथियों का उल्लेख करें': सुप्रीम कोर्ट का सभी हाईकोर्ट को निर्देश पूर्ववर्ती उदाहरणों को दोहराते हुए न्यायालय ने इस बात की पुष्टि की कि भरण-पोषण न्यायाधिकरणों को किसी बच्चे या रिश्तेदार को बेदखल करने का आदेश देने का अधिकार है, जब वे सीनियर सिटीजन के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करने में विफल रहते हैं। अदालत ने एस. वनिता बनाम उपायुक्त बेंगलुरु शहरी जिला एवं अन्य (2021) 15 एससीसी 730 के निर्णय का संदर्भ देते हुए कहा, "इस न्यायालय ने कई अवसरों पर यह टिप्पणी की है कि न्यायाधिकरण को किसी सीनियर सिटीजन की संपत्ति से किसी बच्चे या रिश्तेदार को बेदखल करने का आदेश देने का पूरा अधिकार है, जब सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण के दायित्व का उल्लंघन होता है।" 

Also Read - BREAKING| 'संवेदनशील मामलों में डे-टू-डे ट्रायल की प्रथा पुनर्जीवित की जानी चाहिए': सुप्रीम कोर्ट ने फास्ट ट्रायल के लिए दिशा-निर्देश दिए सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि सबसे बड़े बेटे (प्रतिवादी नंबर 3) आर्थिक रूप से सक्षम है और व्यवसाय चलाता है। उसने अपीलकर्ता और उसकी पत्नी की मुंबई में दो संपत्तियों पर कब्ज़ा कर लिया और उत्तर प्रदेश चले जाने के बाद बुजुर्ग माता-पिता को उनमें रहने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बेटे ने अपने माता-पिता को उनकी संपत्ति तक पहुंचने से रोककर "अपने वैधानिक दायित्वों का उल्लंघन" किया। इस प्रकार "अधिनियम के मूल उद्देश्य को विफल" किया। Also Read - BREAKING| S.138 NI Act - ₹20,000 से अधिक के नकद लोन पर भी चेक बाउंस का मामला सुनवाई योग्य: सुप्रीम कोर्ट 

अपीलकर्ता 80 वर्षीय सीनियर सिटीजन कमलाकांत मिश्रा ने अपनी 78 वर्षीय पत्नी के साथ अपने बड़े बेटे द्वारा उनकी संपत्तियों (कमरा नंबर 6, नगीना यादव चॉल, और राजू स्टेट, बंगाली चॉ, मुंबई में एक कमरा) पर कब्जा करने के बाद राहत की मांग की। 12 जुलाई, 2023 को माता-पिता ने अधिनियम की धारा 22, 23 और 24 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें भरण-पोषण और बेदखली की मांग की गई। इस मामले में न्यायाधिकरण ने 5 जून, 2024 को माता-पिता के पक्ष में बेदखली और ₹3,000 प्रति माह भरण-पोषण का आदेश दिया, जिसे बाद में अपीलीय प्राधिकारी ने 11 सितंबर, 2024 को बरकरार रखा। हाईकोर्ट ने इन आदेशों में यह माना गया कि न्यायाधिकरण के पास बेटे के खिलाफ बेदखली का आदेश देने का अधिकार नहीं है, क्योंकि वह भी अधिनियम के तहत सीनियर सिटीजन के रूप में योग्य है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह तर्क गलत था। कानूनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए इसने फैसला सुनाया कि यह निर्धारित करने के लिए कि कोई व्यक्ति सीनियर सिटीजन है या नहीं, प्रासंगिक तिथि वह है जिस दिन न्यायाधिकरण के समक्ष आवेदन दायर किया जाता है। चूंकि आवेदन 12 जुलाई, 2023 को दायर किया गया था, जब बेटा 59 वर्ष का था, इसलिए उसे अधिनियम की धारा 2(एच) के तहत वरिष्ठ नागरिक नहीं माना जा सकता था। परिणामस्वरूप, सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार कर लिया, हाईकोर्ट का फैसला रद्द किया और बेटे द्वारा दायर रिट याचिका खारिज की। खंडपीठ ने उसे 30 नवंबर, 2025 को या उससे पहले परिसर खाली करने का वचन देने के लिए दो सप्ताह का समय दिया, ऐसा न करने पर न्यायाधिकरण के मूल आदेश पर तुरंत अमल किया जा सकता है।
 Case : Kamalakant Mishra v. Additional Collector and others Tags Maintain CaseSenior Citizen Maintain CaseSupreme Court Next Story नीलामी नोटिस में संपत्ति के भार का खुलासा न करने पर बैंक की विफलता बिक्री को अमान्य करती है: सुप्रीम कोर्ट ने नीलामी खरीदार को धन वापसी का आदेश दिया Shahadat 26 Sept 2025 10:31 AM (4 mins read ) Share this सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (25 सितंबर) को कॉर्पोरेशन बैंक द्वारा दिल्ली स्थित प्रमुख संपत्ति की नीलामी को रद्द कर दिया, क्योंकि बैंक ई-नीलामी में संपत्ति से जुड़ी देनदारियों का खुलासा करने में विफल रहा। जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की खंडपीठ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ऋण वसूली प्रणाली की अखंडता सुनिश्चित करने और अदालत द्वारा अनिवार्य बिक्री में जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए सार्वजनिक नीलामी में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का कड़ाई से पालन अनिवार्य है। यह मामला दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा निजी क्लब को सुविधाओं के निर्माण के लिए भूमि आवंटित करने के मामले का है। इसके बाद क्लब ने उपराज्यपाल की सहमति प्राप्त किए बिना प्रतिवादी-कॉर्पोरेशन बैंक के माध्यम से भूमि को बैंक के पास गिरवी रखते हुए लोन प्राप्त किया। बैंक द्वारा गिरवी रखी गई भूमि की बिक्री के लिए ई-नीलामी नोटिस जारी किया गया, लेकिन इसमें भार सहित सभी महत्वपूर्ण विवरण नहीं दिए गए। भूमि से जुड़े दायित्वों, जिनमें DDA को मूल्य में अनर्जित वृद्धि का भुगतान भी शामिल है, उसके बारे में अनभिज्ञ होने के कारण नीलामी क्रेता ने इस दायित्व की जानकारी के बिना ही ई-नीलामी के माध्यम से भूमि खरीद ली। DDA ने दावा किया कि इस चूक ने आयकर अधिनियम, 1961 की दूसरी अनुसूची के नियम 53 का उल्लंघन किया, जिसके बाद उसने नीलामी को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। हालांकि, हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की, जिसके बाद DDA ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। आयकर अधिनियम, 1961 की दूसरी और तीसरी अनुसूचियां तथा आयकर (प्रमाणपत्र कार्यवाही) नियम, धारा 29 के अनुसार बैंकों को देय ऋण वसूली अधिनियम, 1993 के अंतर्गत नीलामी कार्यवाही पर आवश्यक संशोधनों के साथ लागू होते हैं। 1961 अधिनियम की दूसरी अनुसूची का नियम 53 बिक्री की घोषणा की विषय-वस्तु से संबंधित है। हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए जस्टिस अराधे द्वारा लिखित फैसले में कहा गया कि ई-नीलामी भ्रामक और अधूरी है, क्योंकि 'ई-नीलामी बिक्री को कोई पवित्रता नहीं दी जा सकती', क्योंकि बोलीदाताओं को महत्वपूर्ण दायित्व के बारे में जानकारी नहीं थी, जो संपत्ति के मूल्य को भारी रूप से प्रभावित कर सकता था। सफल बोलीदाता ने इस दायित्व की जानकारी के बिना ₹13.15 करोड़ की पेशकश की, जो स्वाभाविक रूप से अनुचित था। 27.09.2012 को ई-नीलामी नोटिस जारी किया गया। उक्त ई-नीलामी नोटिस में बिक्री मूल्य 8.85 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया। हालांकि, यह तथ्य कि DDA के पास एन्कम्ब्रेन्स है, अर्थात विषय भूखंड के संबंध में अनर्जित वृद्धि की राशि का दावा ई-नीलामी में प्रकट नहीं किया गया। बैंक DDA और क्लब के बीच निष्पादित पट्टे की शर्तों का खुलासा वसूली अधिकारी को करने में भी विफल रहा, जो कि हाईकोर्ट के समक्ष उसके द्वारा दिए गए बयान के मद्देनजर ऐसा करने के लिए बाध्य था, जैसा कि डब्ल्यू.पी. (सी) संख्या 6972/2012 में पारित आदेश दिनांक 05.11.2012 में दर्ज है। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि ई-नीलामी नोटिस 1961 अधिनियम की दूसरी अनुसूची के नियम 53 के साथ-साथ नियम 1962 के नियम 16 ​​का उल्लंघन करते हुए जारी किया गया। अदालत ने कहा, "यह स्पष्ट है कि नीलामी क्रेता के पक्ष में क्रमशः 27.09.2012 की बिक्री की घोषणा और 08.07.2013 तथा 12.07.2013 को जारी बिक्री की पुष्टि और बिक्री प्रमाणपत्र जारी किए गए।" परिणामस्वरूप, अपील स्वीकार कर ली गई और अदालत ने प्रतिवादी-बैंक को निर्देश दिया कि वह पूरी ई-नीलामी को शून्य घोषित करके नीलामी क्रेता द्वारा जमा की गई पूरी राशि वापस करे और अन्यायपूर्ण संवर्धन के सिद्धांत को लागू करके उसे उसकी मूल स्थिति में बहाल करे। अदालत ने कहा, "प्रतिपूर्ति का सिद्धांत न्याय के मूल में निहित है कि कोई भी व्यक्ति किसी अन्य के कहने पर अन्यायपूर्ण रूप से खुद को समृद्ध नहीं करेगा, जो लोग बिना किसी गलती के पीड़ित हुए हैं, उन्हें जहां तक धन से संभव हो, उस स्थिति में बहाल किया जाना चाहिए, जिस पर वे पहले है। प्रतिपूर्ति करने का अधिकार प्रत्येक अदालत में निहित है और जहां भी मामले का न्याय अपेक्षित होगा, इसका प्रयोग किया जाएगा।" बैंक को नीलामी-खरीदार को पैसा लौटाने का निर्देश देते हुए अदालत ने कहा: "बैंक ने एक अवैध बंधक की राशि अग्रिम रूप से ली है और उस संपत्ति की नीलामी करने का निर्णय लिया, जो उसके पास कभी वैध रूप से नहीं थी, इसलिए इसके परिणामों की ज़िम्मेदारी बैंक की है।" Cause Title: DELHI DEVELOPMENT AUTHORITY Versus CORPORATION BANK & ORS. Tags BankPropertyAuction NoticeSupreme CourtAuction CaseAuction Purchaser Similar Posts नीलामी नोटिस में संपत्ति के भार का खुलासा न करने पर बैंक की विफलता बिक्री को अमान्य करती है: सुप्रीम कोर्ट ने नीलामी खरीदार को धन वापसी का आदेश दिया सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (25 सितंबर) को कॉर्पोरेशन बैंक द्वारा दिल्ली स्थित प्रमुख संपत्ति की नीलामी को रद्द कर दिया, क्योंकि बैंक ई-नीलामी में संपत्ति से जुड़ी देनदारियों का खुलासा करने में विफल रहा।जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की खंडपीठ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ऋण वसूली प्रणाली की अखंडता सुनिश्चित करने और अदालत द्वारा अनिवार्य बिक्री... 'प्रमाणित प्रति में निर्णय सुरक्षित रखने, सुनाने और अपलोड करने की तिथियों का उल्लेख करें': सुप्रीम कोर्ट का सभी हाईकोर्ट को निर्देश सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के अनुसार, देश भर के हाईकोर्ट को अब अपने निर्णयों की प्रमाणित प्रति में निर्णय सुरक्षित रखने की तिथि, सुनाए जाने की तिथि और हाईकोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किए जाने की तिथि का उल्लेख करना होगा।जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने आदेश पारित करते हुए सभी हाईकोर्ट्स को उपरोक्त के अनुपालन में 4 सप्ताह के... BREAKING| 'संवेदनशील मामलों में डे-टू-डे ट्रायल की प्रथा पुनर्जीवित की जानी चाहिए': सुप्रीम कोर्ट ने फास्ट ट्रायल के लिए दिशा-निर्देश दिए सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण या संवेदनशील मामलों में डे-टू-डे ट्रायल की प्रथा को बंद किए जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की। साथ ही कहा कि तीन दशक पहले की परंपरा अब "पूरी तरह से समाप्त" हो गई है।खंडपीठ ने कहा,"हमारा मानना ​​है कि अब समय आ गया कि अदालतें उस प्रथा को अपनाएं।"उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि न्याय प्रदान करने के लिए, विशेष रूप से गंभीर... BREAKING| S.138 NI Act - ₹20,000 से अधिक के नकद लोन पर भी चेक बाउंस का मामला सुनवाई योग्य: सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (25 सितंबर) को केरल हाईकोर्ट का फैसला खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि आयकर अधिनियम, 1961 (IT Act) का उल्लंघन करते हुए बीस हज़ार रुपये से अधिक के नकद लेनदेन से उत्पन्न ऋण को परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत "कानूनी रूप से प्रवर्तनीय ऋण" नहीं माना जा सकता।जस्टिस मनमोहन और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने... BREAKING | NI Act की धारा 138 मामले में अभियुक्तों को पूर्व-संज्ञान समन की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए निर्देश जारी किए एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के अनुसार, चेक अनादर के लिए दायर शिकायतों के पूर्व-संज्ञान चरण में अभियुक्त की सुनवाई आवश्यक नहीं है।अदालत ने अशोक बनाम फैयाज अहमद मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से सहमति व्यक्त की कि एनआई अधिनियम की शिकायतों के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा... बिल्डर द्वारा लिया गया ब्याज खरीदार को दिया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट ने फ्लैट के विलंबित हस्तांतरण पर देय ब्याज बढ़ाया सुप्रीम कोर्ट ने एक दिलचस्प आदेश में प्लॉट के विलंबित हस्तांतरण (Delayed Handover) पर ब्याज दर को 9% से बढ़ाकर 18% करके घर खरीदारों को राहत प्रदान की। साथ ही कोर्ट ने कहा कि जो बिल्डर विलंबित भुगतान के लिए खरीदारों पर 18% ब्याज लगाता है, वह उपभोक्ता को समय पर कब्जा न देने पर उसी दायित्व से बच नहीं सकता।अदालत ने कहा,"कानून का कोई सिद्धांत नहीं है कि... मुख्य सुर्खियां ताजा खबरें स्तंभ साक्षात्कार आरटीआई जानिए हमारा कानून वेबिनार वीडियो Who We Are | Contact Us | Advertise with us Careers | Privacy Policy | T&C 2025 © All Rights Reserved @LiveLaw Powered By Hocalwire सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कथित तौर पर आरोपी को हिरासत से भागने में मदद करने वाले बर्खास्त पुलिसकर्मी को अंतरिम जमानत दी

https://hindi.livelaw.in/supreme-court/child-can-be-evicted-from-senior-citizen-parents-property-if-theres-breach-of-obligation-to-maintain-parents-supreme-court-305081

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

कण कण सूं गूंजे, जय जय राजस्थान

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

‘‘भूरेटिया नी मानू रे’’: अंग्रेजों तुम्हारी नहीं मानूंगा - गोविन्द गुरू

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

चुनाव आयोग को धमकाना, लोकतंत्र को नष्ट करने की कोशिश है - अरविन्द सिसोदिया

एकात्म मानववाद :आधुनिक बनाम प्राचीन [02]

My Gov स्त्री, संतान,परिवार संरक्षण व्यवस्था