My Gov स्त्री, संतान,परिवार संरक्षण व्यवस्था
स्त्री, संतान एवं परिवार संरक्षण व्यवस्था विधेयक
विधेयक
स्त्रियों, संतानों एवं वरिष्ठ नागरिकों के संरक्षण, कल्याण तथा अधिकारों की सुनिश्चितता, परिवार कार्ड के माध्यम से पारिवारिक अभिलेखों के विनियमन, संपत्ति के वैध उत्तराधिकार की व्यवस्था तथा उनसे संबंधित या उनसे अनुषंगिक विषयों के लिए।
अध्याय – I
प्रारंभिक प्रावधान
धारा 1: संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ।
(1) इस अधिनियम को “स्त्री, संतान एवं परिवार संरक्षण अधिनियम,.........” कहा जाएगा।
(2) यह सम्पूर्ण भारत में विस्तृत होगा।
(3) यह अधिनियम भारत सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशित होने की तिथि से प्रवृत्त होगा।
धारा 2: परिभाषाएँ।
इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से भिन्न अभिप्राय न हो—
(a) “स्त्री” से आशय प्रत्येक महिला से है, जो जन्म से अथवा विधिक मान्यता से स्त्री है;
(b) “वरिष्ठ नागरिक” से आशय प्रत्येक पुरुष अथवा महिला एवं अन्य से है, जिसकी आयु साठ वर्ष या उससे अधिक है;
(c) “उत्तराधिकारी” से आशय उन व्यक्तियों से है जिन्हें उत्तराधिकार अधिनियम अथवा अन्य किसी विधि द्वारा मान्यता प्राप्त है;
(d) “परिवार कार्ड” से आशय इस अधिनियम के अंतर्गत निर्गत प्रमाणित दस्तावेज से है, जिसमें परिवार के सभी सदस्यों का विवरण अंकित होगा;
(e) “संतान” से आशय ऐसे प्रत्येक व्यक्ति से है जिसकी आयु पच्चीस वर्ष से कम हो।
अध्याय – II
स्त्रियों का संरक्षण
धारा 3: निवास एवं संरक्षण का अधिकार।
(1) कोई भी स्त्री किसी भी परिस्थिति में—
(i) घर से निष्कासित नहीं की जाएगी,
(ii) भोजन या जल से वंचित नहीं की जाएगी,
(iii) आवश्यक उपचार से वंचित नहीं की जाएगी,
(iv) शारीरिक, मानसिक अथवा आर्थिक हिंसा का शिकार नहीं होगी।
(2) प्रत्येक स्त्री को अपने पिता के घर में, स्वयं की मृत्यु तक निवास का अधिकार होगा।
(3) प्रत्येक स्त्री को अपने पति के घर में , स्वयं की मृत्यु तक निवास का अधिकार होगा।
(4) प्रत्येक स्त्री का जिन लोगों के संरक्षण में जहां लालन पालन शिक्षण आदि हुआ है, उसे विवाह तक़ उस स्थान पर निवास का अधिकार होगा।
धारा 4: स्त्रियों को घर से निकालने का दंड।
(1) कोई भाई, देवर अथवा अन्य संबंधी यदि स्त्री को उसके घर से निष्कासित करने का प्रयास करता है तो—
(i) उसे बिना जमानत हिरासत में लिया जाएगा,
(ii) उसे न्यूनतम सात वर्ष का कारावास दिया जाएगा,
(iii) उसकी जमानत याचिका की सुनवाई तीन माह से पूर्व नहीं होगी।
(v) तथा विस्थापित की गईं स्त्री को ततक्षण पुनः उसी निवास में स्थापित किया जावेगा। यह अनिवार्यतः उस क्षेत्र के पुलिस अधिकक्ष की जबाबदेही होगी।
धारा 5: विधि की प्रधानता।
स्त्रियों के संरक्षण संबंधी विषयों में किसी भी धर्म, पंथ अथवा परंपरा की मान्यता इस अधिनियम पर प्रभावी नहीं होगी। यह अधिकार सर्वोच्च और प्रथम हैँ।
अध्याय – III
संतान एवं अभिभावक की उत्तरदायित्व
धारा 6: माता-पिता का दायित्व।
प्रत्येक माता-पिता अपनी संतान के पालन-पोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं संरक्षण हेतु संतान की आयु पच्चीस वर्ष तक उत्तरदायी होंगे।
धारा 7: संतान की स्वतंत्रता।
संतान की आयु पच्चीस वर्ष पूर्ण होने पर वह विधिक दृष्टि से स्वतंत्र मानी जाएगी। यह परिवार व्यवस्था एवं कुटुंब व्यवस्था का अनिवार्य अंग होगा।
अध्याय – IV
वरिष्ठ नागरिकों का संरक्षण
धारा 8: दायित्व।
(1) प्रत्येक संतान अपने माता-पिता अथवा अभिभावक, जिनकी आयु साठ वर्ष या अधिक है, की देखभाल एवं संरक्षण हेतु बाध्य होगी।
(2) इस दायित्व का विशेष भार पुरुष संतान पर होगा।
धारा 9: उपेक्षा का दंड।
वरिष्ठ नागरिक की उपेक्षा अथवा परित्याग की स्थिति में संतान को न्यूनतम सात वर्ष का कारावास एवं आर्थिक दंड भुगतना होगा। जिसे क्रूरता के आधार पर आजीवन कारावास तक़ बढ़ाया जा सकता है। इसमें राहत न्यायालय तभी दे सकता है जब उसे उचित लगे।
अध्याय – V
विवाह एवं विवाह विच्छेद
धारा 10: विवाह का पंजीकरण।
(1) विवाह करने के लिये दोनों पक्षो के अविभावकों को कम से कम एक माह पूर्व सूचना अपने जिला कलेक्टर, उपखण्ड अधिकारी, पुलिस थाना और ग्राम पंचायत को आन लाईन देनी अनिवार्य होगी। पुलिस किसी भी तरह के अपराध आदि की सूचना दूसरे पक्ष को देगा। इस तरह की सूचना में वर वधु की फोटो, जन्मतिथी, शिक्षा, संपत्ति और आपराधिक रिकार्ड की जानकारी देना अनिवार्य होगा। ताकी धोखाधड़ी से पूर्व बचाव हो सकें।
(2) प्रत्येक विवाह का पंजीकरण विवाह सम्पन्न होने के सात दिनों के भीतर संबंधित जिला कलेक्टर कार्यालय में कराना अनिवार्य होगा। दोनों ही पक्षो को यह अनिवार्य होगा।
(3) विवाह पंजीकरण के समय दहेज अथवा उपहारों का संपूर्ण विवरण प्रस्तुत किया जाएगा, जिस पर दोनों पक्षों के कम से कम पाँच-पाँच गवाहों के हस्ताक्षर होंगे। यह भविष्य के झगड़ों के नींबटान के लिये अहम दस्तावेज होगा।
(4) विवाह का विधिवत पंजीकरण न होने पर विवाह अवैध माना जाएगा और इस तरह के व्यक्ती पर पांच लाख रूपये तक़ अर्थ दंड एवं 3 माह तक़ की सजा दी जा सकेगी।
धारा 11: विवाह विच्छेद पर प्रतिबंध।
(1) विवाह के प्रथम दस वर्षों तक विवाह विच्छेद अमान्य होगा।
(2) विवाह के तीन वर्ष पश्चात पति-पत्नी एवं उनके माता-पिता की पारस्परिक सहमति से, न्यायालय की अनुमति द्वारा विवाह विच्छेद किया जा सकेगा। किन्तु संतान होनें की दशा में यह भी नहीं किया जा सकेगा।
धारा 12: संतान की अभिरक्षा।
(1) विवाह विच्छेद की स्थिति में संतान को अपने साथ रखने का प्रथम अधिकार माता को होगा।
(2) संतान के वयस्क होने पर उसे यह अधिकार होगा कि वह किसके साथ रहना चाहता है।
(3) माता की सहमति होने पर संतान की अभिरक्षा पिता को दी जा सकती है। किन्तु यह संभलाई न्यायलय के समझ ही होगी।
(4) सभी परिस्थितियों में संतान के भरण-पोषण एवं शिक्षा का दायित्व पिता पर होगा।
अध्याय – VI
संपत्ति एवं उत्तराधिकार
धारा 13: संपत्ति का वैध बंटवारा।
प्रत्येक व्यक्ति की संपत्ति का बंटवारा केवल विधि सम्मत प्रक्रिया से किया जाएगा और परिवार का मुखिया मनमाना बंटवारा नहीं कर सकेगा।
धारा 14: वसीयत की सीमा।
कोई भी व्यक्ति अपनी कुल संपत्ति का पचास प्रतिशत भाग ही वसीयत कर सकेगा। वह भी रजिस्टर्ड वसीयत से जिसमें पांच गवाह होना अनिवार्य होगा। शेष पचास प्रतिशत संपत्ति वैध उत्तराधिकारियों में समान रूप से विभाजित होगी।
अध्याय – VII
परिवार कार्ड
धारा 15: निर्गमन।
(1) प्रत्येक परिवार को परिवार कार्ड जारी किया जाएगा जिसमें निम्न विवरण अंकित होंगे—
(i) नाम, उपनाम एवं अन्य नाम,
(ii) जाति,
(iii) आयु,
(iv) स्थायी एवं वर्तमान पता।
(v) माता पिता / पति का नाम
(vii) संतानों के नाम व पूरा विवरण
(vii) भाई बहनों के नाम व पूरा विवरण
(2) परिवार कार्ड आधार कार्ड के समकक्ष वैध पहचान पत्र माना जाएगा, जो उसमें मौजूद समस्त जानकारी का प्रमाणित अभिलेख होगा।
धारा 16: वित्तीय संस्थाओं से संबद्धता।
(1) प्रत्येक बैंक एवं वित्तीय संस्था यह सुनिश्चित करेगी कि खाताधारक का परिवार कार्ड विवरण उसके खाते से संलग्न रहे।
(2) यदि कोई देन-लेन लंबी अवधि तक अप्राप्त रहे, तो बैंक परिवार कार्ड में दर्ज परिजनों से संपर्क करेगा।
धारा 17: जन्म एवं मृत्यु सूचना।
(1) प्रत्येक जन्म एवं मृत्यु की सूचना संबंधित प्राधिकारी द्वारा परिवार कार्ड प्राधिकरण को दी जाएगी।
(2) प्राप्त सूचना के अनुसार परिवार कार्ड में आवश्यक परिवर्तन किए जाएंगे और यह परिवर्तन सभी विभागों में वैध माने जाएंगे, जैसे बैंक, बीमा, पेंशन, संपत्ति रिकार्ड इत्यादि।
अध्याय – VIII
दंडात्मक प्रावधान
धारा 18: सामान्य दंड।
इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान के उल्लंघन पर, जहाँ कोई विशिष्ट दंड निर्दिष्ट नहीं है, अभियुक्त को न्यूनतम तीन वर्ष का कारावास तथा आर्थिक दंड दिया जाएगा।
धारा 19: प्रधानता।
इस अधिनियम के प्रावधान किसी भी अन्य विधि, परंपरा या प्रथा के विपरीत होने पर भी प्रभावी एवं बाध्यकारी होंगे।
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