‘डिस्मेंटलिंग हिन्दुत्व’ जैसे अभियानों को गंभीरतापूर्वक रोकना चाहिये - अरविन्द सिसौदिया
6/9/2023 अपडेट
अमेरिका - यूरोप के लोग हिन्दू संस्कृति को, हिन्दू धर्म को, एक मरती हुई संस्कृति या एक मरता हुआ धर्म मानते हैं अथवा इस तरह का विचार रखते हैं। इसका कारण यही है कि विश्व के सबसे अधिक शांतिप्रिय एवं भोले एवं भाले लोगों का समाज, भारत के लोगों का समाज हैं। इसके अलावा अन्य कारण या कारक तत्व इस तरह के हैं जिससे हिन्दू धर्म को समाप्त किये जानें की योजनाओं के द्वारा हिन्दूओं को समाप्त कर दिया जायेगा। इसलिए स्वयं हिंदुओं को वास्तव में जागना ही पडेगा। सतर्क भी होना पडेगा, सुरक्षा भी करनी होगी।
1- इसाई पंथ के लोगों नें पहली सहस्त्राब्दी अर्थात पहले 1000 वर्ष में सम्पूर्ण यूरोप को ईसा के विश्वास के नीचे लानें में सफलता प्राप्त की , दूसरी सहस्त्राब्दी में अर्थात 1001 से प्रारम्भ कर 2000 तक के कालखंड में दोनों अमेरिकन महादीप, अस्ट्रेलिया, अफ्रिका एवं एसिया के कुछ - कुछ हिस्सों को ईसा के विश्वास के नीचे लाया गया । अर्थात उन्हे इसाई बनाया गया ।
यह भी एक सत्य है कि इस दौर में इसाई और इस्लाम के बीच कई धर्म युद्ध हुये जो क्रूसेड कहलाते हैं।
अब 2001 से 3000 तक के लिए प्रारम्भ हुई सहस्त्राब्दी में पृथ्वी पर एशिया सहित समस्त भूभाग को ईसा के विश्वास के नीचे लाना है। माना जाता है कि यह अधिकृत लक्ष्य ईसाई पंथ के सबसे बडे धर्म गुरू के द्वारा तय किया गया है और उसके क्रम में कार्यवाहियां कार्यक्रम, गतिविधियां प्रारम्भ हो चुकी है। इस हेतु भारत को सबसे पहले इसाई बना कर यहां से समस्त एसिया महादीप को इसाई बनाना है। भारत को एसिया रूपी ताले की चाबी माना जा रहा है।
भारत को इसाई बनानें में इस्लाम का सक्रीय सहयोग लेनें और सहयोग देनें की नीति ब्रिटिश काल से ही बनी हुई है जिस पर ब्रिटेन और अमरीका समान रूप से चलते है। इनकी रणनीति का अंतिम दौर इस्लाम के ईसाइयत में कन्वर्जन का होगा, क्यों कि तब कोई अन्य नहीं होगा । सब दूर इसाई साम्राज्य ही होंगे।
भारत को कभी व्यवहारिक रूप से आजाद नहीं किया गया, भारत में परोक्ष रूप से ब्रिटिश एजेण्डे पर चलने वाली सरकारें ही बिठाई गई , अटलजी की सरकार पहली बार ब्रिटिश एजेण्ड से बाहर रहने वाली सरकार रही, 2014 से ब्रिटिश एजेण्डे से पूर्ण मुक्त मोदी सरकार भारत पर राज कर रही है।
जब से मोदी सरकार आई है तब से ही उसको बाधित करनें में विदेशी ताकतों नें पूरी ताकत लगा रखी है। हिन्दुत्व की एकता के विखण्डन के लिये, जो कुछ हो सकता है, वह सब कुछ हो रहा है। 2021 से ही " डिस्मेंटलिंग ग्लोवल हिन्दुत्व " अभियान चल रहा है। बडे - बडे विश्वविद्यालय और मीडिया हाउस इसमें सम्मिलित भी रहे है। इसी की मात्र एक झांकी तमिलनाडू में हमारे सामनें आ गई। राजनैतिक कारणों से इसका विरोध हुआ और हमारी आंखे खुल गई । कांग्रेस पर गंभीरता से अध्ययन करेंगे तो इसे सबसे अधिक, इससे जुडा पायेंगे। भारत सरकार का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह भारत के बहू संख्यक सौ करोड लोगों के विरूद्ध चल रहे षडयंत्र को पूरी तरह से उजागर करे, रोके व देश को बताये।
उदयनिधि स्टालिन ने जिस कार्यक्रम में हिन्दुओं को समाप्त करनें की बात कही, उसका नाम ही " सनातन उन्मूलन सम्मेलन " था। इसी से समझ जाना चाहिये कि सब कुछ तयसुदा एजेण्डे पर आधारित एवं पूर्व नियोजित था।
उदयनिधि स्टालिन, तमिलनाडु सरकार में युवा मामलों के मंत्री हैं। चेन्नई में तमिलनाडु प्रोग्रेसिव राइटर्स आर्टिस्ट्स एसोसिएशन द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। जहां वह शिरकत के लिए पहुंचे थे। “सनातन का उन्मूलन“ थीम पर आधारित कार्यक्रम में पहुंचे उदयनिधि ने ऑर्गेनाइजर की सराहना भी की। उन्होंने कहा कि आपने, ऑर्गेनाइजर ने , सम्मेलन का नाम “सनातन विरोधी सम्मेलन“ के बजाय “सनातन उन्मूलन सम्मेलन“ रखा है, “मैं इसकी सराहना करता हूं।“ ये शब्द ये नाम हेट स्पीच के दायरे में आते हैं।
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदय ने कहा कि “कुछ चीज़ों का विरोध नहीं किया जा सकता। उन्हें खत्म ही किया जा सकता है“ हम डेंगू, मच्छर, मलेरिया या कोरोना का विरोध नहीं कर सकते। हमें इसे मिटाना होगा, ऐसे ही हमें सनातन को मिटाना है, सनातन का विरोध करने के बजाय इसका खात्मा करने देना चाहिए।“ उन्होंने कहा कि “सनातन नाम संस्कृत से लिया गया है। यह सोशल जस्टिस और बराबरी का खिलाफ है।“ मेरा अनुभव और समझ की क्षमता बताती है कि यह परोक्ष अपरोक्ष " हिन्दू ग्लोबल डिस्मेंटल " अभियान का ही हिस्सा है।
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अमेरिका में “डिसमेंटल ग्लोबल हिंदुत्व” अभियान चलाने वाली सुनीता विश्वनाथन
भारत विरोधी जार्ज सोरोस से संबंध रखने वालों से अमेरिका में क्यों मिले राहुल गांधी? सुनीता विश्वनाथ ने किया था पीएम मोदी के दौरे का विरोध
June 29, 2023
राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा एक बार फिर से विवादों में है। बीजेपी ने अमेरिका यात्रा के दौरान संसद से अयोग्य घोषित हो चुके राहुल गांधी की भारत विरोधी अमेरिकी अरबपति जार्ज सोरोस की करीबी सुनीता विश्वनाथ और जमात-ए-इस्लामी से जुड़े तजीम अंसारी के साथ बैठक पर सवाल उठाए हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि कई दस्तावेज प्रमाण दे रहे हैं कि भारत की लोकतांत्रिक सरकार को हटाने की बात डंके की चोट पर कहने वाले जार्ज सोरोस द्वारा वित्त पोषित महिला सुनीता विश्वनाथ और जमात-ए-इस्लामी से जुड़े तजीम अंसारी के साथ अमेरिका में राहुल ने बैठक की। सोरोस के ही संस्थान ओपन सोसाइटी के ग्लोबल उपाध्यक्ष सलिल शेट्टी ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी हिस्सा लिया था। इससे साफ जाहिर है कि सत्ता के लिए कांग्रेस आज इतना नीचे गिर गई है कि वह देशविरोधी लोगों से भी हाथ मिलाने से गुरेज नहीं कर रही। सत्ता के लिए राहुल गांधी देश को कमजोर करने और देश को नीचा तक दिखाने के लिए तैयार हैं।
जार्ज सोरोस के सहयोगी से मिलने की राहुल की क्या है मजबूरी?
भाजपा मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत में स्मृति ईरानी ने कहा कि भाजपा ने इस विषय को पहले भी उठाया था कि कैसे जार्ज सोरोस भारत में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को हटाना चाहते हैं। सोरोस के इरादे हर भारतवासी को पता थे, तब भी ऐसी क्या मजबूरी थी कि राहुल गांधी ने जार्ज सोरोस के एक सहयोगी के साथ अमेरिका में बैठक की। ईरानी ने सवाल किया कि राहुल को जवाब देना चाहिए कि वे लोगों के साथ क्या बात कर रहे थे? स्मृति ईरानी ने कहा कि राहुल गांधी अमेरिका दौरे पर 4 जून को जमाते इस्लामी से संबंधित एक इस्लामी संगठन से मिले थे। इस मुलाकात पर सवाल उठाते हुए स्मृति ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर चर्चा करते हुए कहा कि इस दौरान भी सोरोस के ओपन सोसायटी के मेंबर सलिल सेठी भी राहुल गांधी के साथ दिखाई दिए थे। उन्होंने कहा कि इतने गंभीर मुद्दे को उठाने पर बीजेपी नेता के खिलाफ FIR दर्ज कराई गई है। यह सच को दबाने की कोशिश है। उन्होंने पूछा कि जो भारत की सरकार को गिराना चाहता है उसके साथ राहुल गांधी आखिर क्या कर रहे हैं। उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में फोटो भी शेयर किए।
अमित मालवीय ने राहुल की सच्चाई दिखाई तो कांग्रेस को मिर्ची लगी
दरअसल, कर्नाटक में भाजपा के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) विभाग के प्रमुख अमित मालवीय के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के सदस्य रमेश बाबू ने यह शिकायत दर्ज कराई है। कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया है कि मालवीय ने कांग्रेस और राहुल गांधी का मजाक उड़ाते हुए सोशल मीडिया पर वीडियो साझा कर माहौल बिगाड़ने और लोगों को उकसाने का काम किया। जबकि इस वीडियो इसमें उन्हीं बातों को दिखाया गया है जो कि राहुल गांधी अपने ब्रिटेन और अमेरिकी दौरे पर कहते रहे हैं। इसमें दिखाया गया है कि वे भारत के विरोधी हैं। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाने के लिए विदेशों में भारत को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
सुनीता विश्वनाथ ने किया था पीएम मोदी के दौरे का विरोध
सुनीता विश्वनाथ हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स (एचएफएचआर) की कोफाउंडर हैं। वह अमेरिका में इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल के साथ कई कार्यक्रमों में शिरकत करती हैं। यह एक कट्टर संगटन है। खबरों के अनुसार इस संगठन का पश्चिम में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के साथ सांठगांठ है। संदिग्ध संगठन ‘हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स’ ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी दौरे का विरोध किया था। इसके खिलाफ प्रोपेगेंडा के लिए विशेष टूलकिट लेकर आया था। संगठन द्वारा जारी टूलकिट उसके मोदी विरोधी अभियान का हिस्सा था। “मोदी प्रोटेस्ट टूलकिट” शीर्षक वाला 24 पेज का दस्तावेज़ एचएफएचआर की वेबसाइट पर खुले तौर पर उपलब्ध था।
अमेरिका में राहुल का जमात, सुनीता विश्वनाथ कनेक्शन, फोटो ने खोल दी पोल
राहुल गांधी पीएम मोदी के अमेरिका दौरे से पहले 30 मई को अमेरिका पहुंचे थे। राहुल गांधी के विदेश दौरे का उद्देश्य भारत को नीचा दिखाना, पीएम मोदी और भाजपा को बदनाम करना और भारत में मुसलमान खतरे हैं, यही बताना रहता है। यह काम वह पिछले कई विदेश दौरे से करते आ रहे हैं। लेकिन जिस तरह सोशल मीडिया पर उनका एक फोटो वायरल हुआ उसने उनकी पोल खोलकर रख दी है। जिस अमेरिकी अरबपति कारोबारी जार्ज सोरोस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जहर उगला था, जिसने पीएम मोदी को सत्ता से हटाने की बात कही थी, जिसने राष्ट्रवाद से लड़ने के लिए 100 अरब डॉलर का फंड देने की बात कही थी, अब राहुल गांधी उसी के करीबी सहयोगी सुनीता विश्वनाथ के साथ बैठते करते देखे गए। आखिर राहुल गांधी देश विरोधी लोगों से क्यों मिल रहे थे? क्या भारत को कमजोर करने की जार्ज सोरोस की साजिश में वे भी शामिल हैं? राहुल गांधी का जमात, ISI और जॉर्ज सोरोस से जुड़े लोगों से मिलना यह साबित करता है कि वे भारत से प्रेम नहीं करते बल्कि सत्ता के लिए देश को कमजोर करने से लेकर किसी भी हथकंडे को अपना सकते हैं।
जॉर्ज सोरोस की प्रतिनिधि हैं सुनीता विश्वनाथ
सुनीता विश्वनाथ जॉर्ज सोरोस की प्रतिनिधि हैं, जिसने विपक्षी नेताओं, थिंक टैंक, पत्रकारों, वकीलों और कार्यकर्ताओं के एक नेटवर्क के माध्यम से भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने के लिए 1 अरब डॉलर देने का वादा किया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राहुल गांधी सत्ता पाने के लिए इस हद तक समझौता कर रहे हैं। अमेरिकी एक्टिविस्ट सुनीता विश्वनाथ वही हैं जिन्हें तीन साल पहले अयोध्या में एंट्री से रोक दिया गया था।
हिंदुओं के विरोध में मुसलमानों के पक्ष में एजेंडा चलाती है सुनीता विश्वनाथ
सुनीता विश्वनाथ हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स (एचएफएचआर) की सह-संस्थापक हैं, इसके जरिये भी वह हिंदुओं के खिलाफ एजेंडा चलाती है और इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (आईएएमसी) जैसे कट्टर संगठनों के साथ कई कार्यक्रमों की सह-मेजबानी करती हैं। पश्चिम में व्यापक जमात-आईएसआई सांठगांठ का हिस्सा हैं और भारत में सामाजिक भेदभाव के मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना उनका काम है। उनके अन्य संगठन वुमन फॉर अफगान वीमेन को सोरोस ओपन सोसाइटी फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित किया जाता है।
मुस्लिम 4 पीस के कार्यक्रम में सुनीता का हिंदू और मोदी-विरोधी भाषण
अमेरिका में “डिसमेंटल ग्लोबल हिंदुत्व” अभियान चलाने वाली सुनीता सोरोस द्वारा वित्तपोषित कई संगठनों के साथ जुड़ी हुई है। मुस्लिम4पीस संगठन द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी में उन्हें हिंदू, मोदी-विरोधी भाषण देते हुए साफ देखा जा सकता है। इससे यह आशंका दृढ़ हो जाती है कि भारत में सत्ता-परिवर्तन की मंशा पाले लोगों द्वारा राहुल गांधी को तैयार किया जा रहा है?
बैठक में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का एजेंट भी शामिल
आपने सुनीता विश्वनाथ के साथ राहुल गांधी की तस्वीर देखी। इस बैठक में और कौन-कौन मौजूद थे? अब्दुल मलिक मुजाहिद द्वारा प्रवर्तित भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद के जिहादी – आईएसआई फ्रंटमैन भी थे। हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स केवल मुजाहिद द्वारा समर्थित संगठन है। राहुल गांधी के कांग्रेस यूएसए इनर सर्कल के कनेक्शन के बारे में जानकर गंभीर चिंताएं होती हैं। एक चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन इंगित करता है कि सर्कल के एक सदस्य को सोरोस द्वारा सीधे वित्त पोषित किया जाता है, जिसका आईएसआई और जमात ए इस्लामी से जुड़े संगठनों से संबंध है, जो आतंकी गतिविधियों के लिए जाना जाता है।
सुनीता विश्वनाथ के पाकिस्तानी जमात-ए-इस्लामी से संबंध
हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स की संस्थापक सुनीता विश्वनाथ एक ऐसी शख्सियत हैं जिनका कथित तौर पर पाकिस्तानी जमात-ए-इस्लामी के एक प्रमुख व्यक्ति अब्दुल मलिक मुजाहिद के साथ करीबी संबंध हैं, जो भारत में आतंकी हमलों में सीधे तौर पर शामिल होने के लिए जाना जाता है। मुजाहिद का भारतीय प्रवासी संगठनों पर प्रभाव स्पष्ट है। उनकी वेबसाइट पर भारत के खिलाफ एजेंडा के रूप में ‘सेव इंडिया फ्रॉम फासिज्म’ और ‘सेव कश्मीर’ आदि के पोस्टर-बैनर देखे जा सकते हैं।
सुनीता विश्वनाथ का आईएसआई और खालिस्तानियों से भी गहरा संबंध
सुनीता विश्वनाथ के बारे में और जानकारी हासिल करने पर पता चलता है उनका आईएसआई और खालिस्तानियों से भी गहरा संबंध है। इसके साथ ही कई अन्य संगठनों से भी संबंध है जो उनके भारत विरोधी होने को उजागर करते हैं। वह अमेरिका में आईएसआई समर्थित खालिस्तानी गुर्गों, भजन सिंह भिंडर और पीटर फ्रेडरिक के साथ एलायंस फॉर जस्टिस एंड अकाउंटेबिलिटी की सह-संस्थापक भी हैं।
भारत विरोधियों का कांग्रेस में सीधी पहुंच का क्या है मतलब?
सुनीता विश्वनाथ का विवादों से नाता यहीं तक नहीं है। सुनीता ने कई कार्यक्रमों का सह-आयोजन किया है और IAMC जैसे संगठनों के साथ सहयोग किया है, जो 2014 से पहले से ही भारत के खिलाफ खुले तौर पर पैरवी कर रहा है, देश के खिलाफ प्रतिबंधों का समर्थन करता रहा है। इन खुलासों से संकेत मिलता है कि अमेरिका में सुनीता विश्वनाथ और राहुल गांधी की बैठक किसी खतरनाक मंसूबे के तहत हुई। वे भारत के खिलाफ किसी एजेंडे पर काम कर रहे हैं। यह सोचना भी परेशान करने वाला है कि इस तरह की सोच वाला कोई व्यक्ति कांग्रेस पार्टी के अमेरिकी संगठन के अंदर तक सीधी पहुंच आखिर कैसे प्राप्त कर सकता है।
सुनीता विश्वनाथ भगवान शिव को बता चुकी ‘चिलमबाज’
हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स नामक संगठन की सह-संस्थापक सुनीता विश्वनाथ हिंदुओं के नाम पर हिंदुओं के खिलाफ झूठ और प्रोपेगेंडा फैलाने का काम करती रही है। ‘हिंदू बनाम हिंदुत्व’ के नैरेटिव का अभियान चलाकर लोगों को भ्रमित करने का काम करती रही है। वहीं सुनीता हिंदू देवी देवताओं को बदनाम करने के लिए उल-जुलूल बातें भी करती है। कभी वह भगवान शिव को चिलमबाज बताती है तो कभी कहती है हिंदुओं में शराब-सिगरेट का निषेध नहीं है, ये देवताओं को भी चढ़ाया जाता है।
क्या राहुल के भाषण की स्क्रिप्ट अमेरिका में लिखी जा रही?
करण थापर के एक शो में सुनीता ने कहा था कि भारत के हिंदुओं के लिए जरूरी है कि वो हिंदुत्व से लड़ें क्योंकि जो आज हो रहा है वो नरसंहार की शुरुआत है। सुनीता की तरह ही राहुल गांधी भी पिछले कुछ समय से हिंदू और हिंदुत्व को अलग बताकर प्रोपेगेंडा फैलाने में जुटे हैं। लेकिन इससे इस बात को बल मिल रहा है कि क्या राहुल के भाषण की स्क्रिप्ट अमेरिका में लिखी जा रही है।
राहुल के आयोजकों के नाम शाहीन बाग की लिस्ट जैसी क्यों?
अमेरिका में राहुल गांधी के कार्यक्रम के आयोजकों में से कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार है- फ़्रैंक इस्लाम, माजिद अली, नियाज़ ख़ान, जावेद सैयद, मोहम्मद असलम, मीनाज़ ख़ान, अकील मोहम्मद आदि। इन नामों को देखने ऐसा लगता है कि गोया यह शाहीन बाग की वोटर लिस्ट हो। लेकिन नहीं, ये उन लोगों के नाम हैं जिन्होंने राहुल गांधी का अमेरिका में प्रोग्राम ऑर्गनाइज़ कराया। इनमें से कई कश्मीर में कट्टरवाद के समर्थक हैं, यानी के आतंकवाद के समर्थक हैं। अब इससे यह समझना आसान हो जाता है कि राहुल गांधी क्यों सनातन संस्कृति का मजाक बना रहे थे और बस मुसलमान परेशान हैं, मुसलमानों को सेकेंड क्लास सिटीजन माना जाता है, भारत में यही सब गाना गा रहे थे।
राहुल गांधी अभी अमेरिका दौरे पर हैं। इससे पहले वह 2022 में ब्रिटेन गए थे तब भी उन्होंने देश को नीचा दिखाया था। इस पर एक नजर-
राहुल गांधी ने कहा था- पूरे भारत में केरोसिन छिड़का जा चुका है, बस एक चिंगारी की जरूरत है
लंदन में 2022 में ‘आइडिया फॉर इंडिया’ कॉन्फ्रेंस में पहुंचे राहुल गांधी ने कहा था- ‘देश में धुव्रीकरण बढ़ता जा रहा है, बेरोजगारी अपने चरम पर है, महंगाई बढ़ती जा रही है। बीजेपी ने देश में हर तरफ़ केरोसीन छिड़क दिया है बस एक चिंगारी से हम सब एक बड़ी समस्या के बीच होंगे।’ यहां समझने की बात है कि राहुल को केरोसीन छिड़कने की बात कहनी थी तो उन्होंने इसमें बीजेपी को लपेट लिया।
राहुल ने लंदन में पाकिस्तानी प्रोफेसर कमल मुनीर के साथ मंच साझा किया
लंदन में भारतीय लोकतंत्र और संस्थानों पर हमला करते हुए राहुल गांधी ने पाकिस्तानी प्रोफेसर कमल मुनीर के साथ मंच साझा किया। राहुल गांधी का परिचय पाकिस्तान में जन्मे कमल मुनीर ने एमबीए दर्शकों से कराया। कमाल मुनीर को पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा दिए जाने वाले राजकीय सम्मान तमगा-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया गया है। मुनीर का पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ संपर्क है। इससे आप समझ सकते हैं कि डीप स्टेट भारत को तबाह करने के लिए किस स्तर पर काम कर रहा है। एक तरफ राहुल गांधी को खड़ा किया गया, लेफ्ट लिबरल गैंग प्रोपेगेंडा फैलाने में जुट जाती है। आईएसआई नेटवर्क के जरिये खालिस्तान मुद्दे को जिंदा किया गया जिससे देश में उथल-पुथल मचे।
राहुल विदेश जाते ही भूल जाते हैं सारी मर्यादा
राहुल गांधी जब विदेश जाते है तो पता नहीं उन्हें क्या हो जाता है? वे सारी मर्यादा, सारी शालीनता, लोकतांत्रिक शर्म… सब भूल जाते हैं। अब जब देश की जनता न उनको सुनती है… न समझती है तो विदेश में जाकर विलाप करते हैं कि भारत का लोकतंत्र खतरे में हैं। राहुल गांधी ने लंदन में अपने भाषणों में भारत के लोकतंत्र, संसद, राजनीतिक व्यवस्था और भारत की जनता समेत न्याय व्यवस्था और सामरिक सुरक्षा सभी का अपमान किया है। राहुल गांधी ने कहा कि यूरोप और अमेरिका को भारत में लोकतंत्र बचाने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। सरकार किसी की भी हो क्या भारतवासी किसी विदेशी ताकत के भारत में आंतरिक हस्तक्षेप को स्वीकार कर सकते हैं? कोई देशवासी इसे स्वीकार नहीं करेगा। यहीं राहुल गांधी मात खा जाते हैं वे ऐसा बयान दे रहे हैं जो देसवासियों को पसंद नहीं।
ब्रिटिश सांसदों से भारत में लोकतंत्र ‘बचाने’ की अपील, देश की संप्रभुता को कमजोर करने का षडयंत्र
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि देश की सबसे पुरानी पार्टी के नेता राहुल गांधी ब्रिटिश धरती पर जाकर भारत के आंतरिक मुद्दों पर बात करते हुए विदेशी दखल की बात करते हैं। वह ऐसा पहली बार नहीं कर रहे हैं- इससे पहले उन्होंने निकोलस बर्न और अमेरिका के हस्तक्षेप की मांग की थी। और हम सभी को याद है कि कैसे कांग्रेस ने हाल ही में जॉर्ज सोरोस के बयान को लेकर हाय-तौबा मचाया था जबकि सोरोस राष्ट्रवाद से लड़ने के लिए 100 करोड़ डालर देने का ऐलान कर चुका है। यह एक बार नहीं बल्कि भारत की संप्रभुता को कमजोर करने का एक सुनियोजित पैटर्न है। इससे यह भी साबित होता है कि राहुल विदेशी ताकतों के इशारों पर खेल रहे हैं।
राहुल गांधी को जेलेंस्की बनाना चाहता है डीप स्टेट!
राहुल गांधी हाल के समय में चीन का जिक्र बार-बार करते हैं। चीन भारत में घुसपैठ कर रहा है। चीनी सैनिक भारतीय जवानों को पीटते हैं। चीन में काफी सद्भावना है। इस तरह के न जाने कितने ही बयान हैं। लेकिन हाल में ब्रिटेन के दौरे के दौरान उनके जुबान से वह बात भी निकल गई जिसका उन्हें सब्जबाग दिखाया गया था। उन्होंने कहा- जैसा रूस ने यूक्रेन में किया, वही भारत के खिलाफ दोहरा सकता है चीन। पश्चिमी देशों के डीप स्टेट (दुनिया को अपने हिसाब से चलाने वाले) ने मई 2022 में राहुल गांधी के मेकओवर और पीएम उम्मीदवार बनाने की पटकथा तैयार की थी। उस वक्त राहुल भी ब्रिटेन के दौरे पर थे। उसी वक्त यह तय हुआ था कि जिस तरह यूक्रेन में आंदोलन खड़ा कर जेलेंस्की को प्रधानमंत्री बनाया गया उसी तरह 2024 में पीएम मोदी के खिलाफ आंदोलन खड़ा कर राहुल की ताजपोशी करवाई जाएगी।
डीप स्टेट के प्लान के मुताबिक बयान दे रहे हैं राहुल गांधी
राहुल के मेकओवर की पटकथा की कहानी भारत जोड़ो यात्रा से शुरू होती है। इसके बाद पटकथा के मुताबिक पीएम मोदी की छवि खराब करने के लिए बीबीसी डॉक्यूमेंट्री, अडानी समूह को बदनाम करने के लिए हिंडनबर्ग रिपोर्ट और ANI, RSS जैसी संस्थाओं पर हमले किए जा रहे हैं। फिर रामचरितमानस विवाद के जरिये हिंदू धर्म को बदनाम करना और खालिस्तान मुद्दे को हवा देकर देश को आंदोलन की आग में झोंकने की साजिश रची जा रही है। यह कोई संयोग नहीं है कि खालिस्तान के नए झंडाबरदार अमृतपाल सिंह जो बात कहता है वही राहुल गांधी भी कहते हैं। RSS के खिलाफ एक तरफ कनाडा में रिपोर्ट तैयार होती है उसे आतंकवादी संगठन करार दिया जाता है तो दूसरी तरफ राहुल गांधी लंदन में RSS के खिलाफ जहर उगलते हैं। RSS को लेकर उनसे प्लांटेड सवाल किए जाते हैं।
सोरोस ने राष्ट्रवाद से लड़ने के लिए 100 करोड़ डॉलर देने का किया ऐलान
अमेरिकी अरबपति जार्ज सोरोस ने साल 2020 में वैश्विक स्तर पर राष्ट्रवाद से लड़ने के लिए 100 करोड़ डॉलर देने की बात कही थी। उसने कहा था कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना ‘राष्ट्रवादियों से लड़ने’ के लिए की जाएगी। सोरोस ने ‘अधिनायकवादी सरकारों’ और जलवायु परिवर्तन को अस्तित्व के लिए खतरा बताया था। सोरोस ने कहा था कि राष्ट्रवाद अब बहुत आगे निकल गया है। सबसे बड़ा और सबसे भयावह झटका भारत को लगा है, क्योंकि वहां लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नरेंद्र मोदी भारत को एक हिन्दू राष्ट्रवादी देश बना रहे हैं।
डीप स्टेट भारत की तरक्की से खुश नहीं
डीप स्टेट भारत की तरक्की से खुश नहीं है और वह चाहता कि किसी तरह से भारत को कमजोर किया जाए। इसीलिए उसने प्यादे के रूप में राहुल गांधी को चुना है। राहुल गांधी इसके लिए योग्य उम्मीदवार हैं। उनके पास अपना कोई विजन नहीं है। डीप स्टेट जैसा कहेगा वो वैसा ही करते जाएंगे। जैसा कि यूक्रेन में हो रहा है। कुल मिलाकर डीप स्टेट चाहता है कि पश्चिमी देशों को चुनौती देने वाली दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं भारत और चीन के बीच रूस-यूक्रेन की तरह युद्ध छिड़ जाए जिससे ये दोनों देश कमजोर हो जाएं। और राहुल गांधी लालचवश में उनके एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्हें इस बात से तनिक भी दुख नहीं है कि इससे देश का क्या होगा।
पीएम मोदी के सामने बेवश पश्चिमी देश और अमेरिका बौखलाया
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA और पश्चिमी देश अपना हित साधने के लिए सरकार भी खरीद लेती थी और तमाम तरह की साजिश रचने में सफल हो जाती थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 90 के दशक में हुए इसरो जासूसी कांड है। उस वक्त भारतीय वैज्ञानिक नंबी नारायण के नेतृत्व में भारत लिक्विड प्रोपेलेंट इंजन बनाने में सफल होने के करीब पहुंच गया था लेकिन CIA ने कांग्रेस सरकार और नेताओं को खरीद कर नंबी नारायण को जेल में डलवा दिया और भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम 20-30 साल पीछे चला गया। इसरो जासूसी कांड में जब नंबी नारायण को गिरफ्तार किया गया था तो उस वक्त केरल में कांग्रेस की सरकार थी। सीबीआई की जांच में सामने आया है कि नंबी नारायण की अवैध गिरफ्तारी में केरल सरकार के तत्कालीन बड़े अधिकारी भी शामिल थे। हाईकोर्ट में सीबीआई ने कहा कि नंबी नारायण की गिरफ्तारी संदिग्ध अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा थी।
विदेशी ताकतें भारत में चाहती है कमजोर और गठबंधन सरकार
विदेशी ताकतें और जार्ज सोरोस जैसे लोग भारत में एक कमजोर और गठबंधन सरकार को पसंद करते हैं, जिससे वे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उसे चला सकें। एक स्थिर, पूर्ण बहुमत वाली सरकार से वे डरते हैं और इसीलिए उसे हटाना चाहते हैं। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि राहुल गांधी 2022 में जब ब्रिटेन में थे उसी समय सोरोस भी ब्रिटेन में था। यह डीपस्टेट का षड़यंत्र है जिसमें कांग्रेस सहित लेफ्ट लिबरल मिले हुए हैं।
देश ने मोदी को दिल में बसाया, 2024 में विदेशी ताकतों का सपना होगा चकनाचूर
जिस तरह 2014 के बाद से भारत विकास के पथ पर अग्रसर है उसे देखते हुए देशवासियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिल में बसाया है। इसकी झांकी पीएम मोदी के रोड शो में साफ देखने को मिलती है। सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं भारतीय मतदाताओं को प्रभावित करने वाले ये विदेशी ताकतें और जार्ज सोरोस कौन होता है। भारतीय मतदाता निश्चित रूप से 2024 में मोदी जी को फिर से वापस लाएगा! 2024 में सोरोस और विदेशी ताकतों का सपना चकनाचूर होगा। देशों में शासन परिवर्तन के उसके मंसूबे का अंत भारत में होगा। भारत में ऐसा कुछ करने की कोशिश करना मुश्किल है। अब देश ने मोदी को दिल में बसा लिया है।
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अंतरराष्ट्रीय कान्फरेन्स ‘डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व’ का आयोजन करने वालों पर कारवाई की मांग
international conference Dismantling Global Hindutva
शांति प्रेम करुणा और समावेशिता की शिक्षा देनेवाले हिन्दू धर्म को बदनाम करने हेतु आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय कॉन्फरेन्स का आयोजन करनेवाले इसमें सहभाग लेनेवाले तथा इस कॉन्फरेन्स की सहायता करने वालों पर कारवाई की मांग वाराणसी में की गई है। डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व’ के माध्यम से हिन्दू धर्म के एक अरब से अधिक अनुयायियों को अमानवीय बताया जा रहा है।
वाराणसी, जेएनएन। देश में आगामी 10 से 12 सितंबर 2021 को आयोजित अंतरराष्ट्र्रीय कॉन्फरेन्स ‘डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व’ के माध्यम से हिन्दू धर्म के एक अरब से अधिक अनुयायियों को अमानवीय बताया जा रहा है। 11 सितंबर को अमेरिका में हुए हमले की वास्तविकता से संसार का ध्यान हटाने के लिए जानबूझकर यह प्रयास किया गया है। शांति, प्रेम, करुणा और समावेशिता की शिक्षा देनेवाले हिन्दू धर्म को बदनाम करने हेतु आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय कॉन्फरेन्स का आयोजन करनेवाले, इसमें सहभाग लेनेवाले तथा इस कॉन्फरेन्स की सहायता करने वालों पर कारवाई की मांग वाराणसी में की गई है। इस मांग के लिए हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से अपर नगर जिलाधिकारी सत्यप्रकाश सिंह के माध्यम से भारत सरकार के गृहमंत्री एवं विदेश मंत्री को ज्ञापन दिया गया है।
सदस्यों की मांगें
1- इस कार्यक्रम के माध्यम से हिन्दू धर्म तथा हिन्दुत्व के संदर्भ में अत्यंत गलत प्रचार होगा, जिससे भारत में धार्मिक सौहार्द को बाधा पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। इसलिए इस कार्यक्रम में सम्मिलित होने वाले भारतीय वक्ताओं तथा आयोजकों पर अपराध (गुनाह) प्रविष्ट करें।
2- इस कार्यक्रम का जिन विश्वविद्यालयों ने समर्थन किया है या प्रायोजित किया है, उन्हें भारत सरकार की ओर से पत्र भेजें, जिसमें यह कार्यक्रम भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता का गलत प्रचार करनेवाला है, इसलिए यह कार्यक्रम रहित करें या अपना प्रायोजकत्व पीछे लें । तब भी कुछ नहीं हुआ, तो भारत सरकार उन सभी देशों से पत्र व्यवहार करे।
3- इस कार्यक्रम की कार्यसूची (एजेंडा) भारत द्रोही एवं हिन्दूद्रोही है । इसलिए नागरिक इस कार्यक्रम में सहभागी न हों, ऐसा भारत सरकार आवाहन करे।
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'हिंदुत्व को खत्म करें' बनाम 'हिंदूफोबिया को समझें': अब विदेशी परिसरों में आख्यानों की लड़ाई
पिछले कुछ महीनों में हिंदुत्व समर्थक और विरोधी शिक्षाविदों ने अपनी बहस को विदेशों में ले जाया है, दोनों पक्षों ने सम्मेलन आयोजित किए हैं और लेख प्रकाशित किए हैं।
अरुण आनंद 09 सितंबर, 2021
नई दिल्ली: हिंदुत्व और हिंदुत्व विरोधी ताकतों के बीच चल रही आख्यानों की लड़ाई घरेलू क्षेत्र से लेकर विदेशी परिसरों तक फैल गई है।
इस बहस का तात्कालिक उत्प्रेरक, जहां दोनों पक्षों के शिक्षाविदों और सोशल मीडिया योद्धाओं ने एक-दूसरे को चुनौती दी है, 'डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व' है, एक वैश्विक सम्मेलन जो 10-12 सितंबर को एक गुमनाम समूह द्वारा आयोजित किया जा रहा है।
हालाँकि, यह सम्मेलन केवल हिमशैल का सिरा है; हिंदुत्व के मुद्दे पर लड़ी जा रही लड़ाइयों में से एक।
हिंदुत्व को भारत के लिए हानिकारक अवधारणा के रूप में पेश करने वाले कम से कम आधा दर्जन ऐसे ऑनलाइन कार्यक्रम कैलेंडर पर सामने आए हैं। उनमें से कुछ में शामिल हैं: 'रिपब्लिक ऑफ कास्ट', अंबेडकर किंग स्टडी सर्कल द्वारा आयोजित (यूएसए, 27 जून); ग्लोबल रिसर्च नेटवर्क द्वारा आयोजित 'कास्ट एंड हिंदुत्व इन (अदर) डायस्पोरा' (6 मई); हिंदुत्व की नरसंहार राजनीति: कंधमाल से मुजफ्फरनगर तक (4-5 जून); और कांग्रेसनल ब्रीफिंग: अकादमिक स्वतंत्रता पर हिंदू वर्चस्ववादी हमले (8 सितंबर)।
8 सितंबर के सम्मेलन के लिए आयोजकों के नाम सार्वजनिक नहीं किए गए थे, लेकिन प्रायोजकों की एक लंबी सूची थी जिसमें एमनेस्टी इंटरनेशनल, यूएसए शामिल थी; भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद; और उत्तरी अमेरिका के भारतीय अमेरिकी ईसाई, दूसरों के बीच में।
'हिंदुत्व बनाम हिंदूफोबिया'
ऑनलाइन घटनाओं की इस श्रृंखला का मुकाबला करने के लिए, हिंदुत्व ताकतों ने सितंबर के पहले सप्ताह में एक वैश्विक सम्मेलन का आयोजन किया। 'अंडरस्टैंडिंग हिंदुत्व एंड हिंदूफोबिया' शीर्षक से, इंडिया नॉलेज कंसोर्टियम (आईएनके) द्वारा आयोजित सम्मेलन में इतिहास और धार्मिक अध्ययन के क्षेत्र में शिक्षाविदों और विशेषज्ञों को एक साथ लाया गया ताकि वे हिंदूफोबिया को बनाए रखने के लिए हिंदू संस्कृति को बदनाम करने वाले इतिहास की विकृतियों का मुकाबला कर सकें।
INK विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले प्रमुख यूके और यूरोपीय शिक्षाविदों का एक संघ है।
विशेषज्ञों ने इस बात पर प्रकाश डालने की कोशिश की कि कैसे हिंदुत्व सभी मान्यताओं और आस्थाओं की सार्वभौमिक स्वीकृति और सहिष्णुता के सिद्धांतों में निहित है, लेकिन इस अवधारणा के बारे में गलतफहमियों ने हिंदूफोबिया को बनाए रखने में बहुत नुकसान पहुंचाया है।
इस बीच, एक और कदम में, जिसे हिंदुत्ववादी ताकतें हिंदुत्व विरोधी ताकतों का दुष्प्रचार करार देती हैं, उसका मुकाबला करने के लिए कई कार्यकर्ताओं ने विश्वविद्यालयों और विभागों से संपर्क करना शुरू कर दिया है और उनसे ऐसी घटनाओं को संस्थागत रूप से समर्थन न करने के लिए कहा है।
अमेरिका में, हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (एचएएफ) ने 'डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व' कार्यक्रम के सह-प्रायोजक के रूप में सूचीबद्ध सभी 41 विश्वविद्यालयों के अध्यक्षों और प्रमुख प्रशासकों को पत्र लिखकर उनसे सम्मेलन से दूरी बनाने को कहा।
“डीजीएच आयोजक किसी अकादमिक सम्मेलन की नहीं, बल्कि भारत में राजनीति से संबंधित एक पक्षपातपूर्ण कार्यक्रम की मेजबानी के लिए आपके संस्थान के नाम की प्रतिष्ठा का सौदा करते हैं। यह कार्यक्रम हिंदूफोबिया के अस्तित्व को नकारते हुए भी, हिंदूफोबिक प्रवचन को बढ़ाने के व्यापक इतिहास वाले कार्यकर्ताओं को मंच प्रदान करता है। इनमें से कई कार्यकर्ता संपूर्ण हिंदू धर्म को जातिगत कट्टरता और अन्य सामाजिक बुराइयों से जोड़ते हैं; हिंदुओं और हिंदू धर्म की उपमहाद्वीपीय स्वदेशीता को नकारें; और हिंसक चरमपंथी और अलगाववादी आंदोलनों का समर्थन करें या उन्हें कम करें और परिणामस्वरूप हिंदुओं के नरसंहार और जातीय सफाए से इनकार करें, ”एचएएफ के पत्र में कहा गया है।
विवेकानन्द के शिकागो संबोधन की वर्षगांठ पर डीजीएच सम्मेलन
हिंदुत्व ताकतों को लगता है कि डीजीएच सम्मेलन की तारीखें जानबूझकर 1893 में स्वामी विवेकानंद के प्रसिद्ध शिकागो संबोधन की वर्षगांठ के साथ मेल खाने के लिए चुनी गई हैं, जिसने पश्चिम में हिंदुत्व की स्थापना की।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर कई किताबें लिखने वाले रतन शारदा ने हाल ही में आरएसएस स्वयंसेवकों द्वारा संचालित मंच न्यूज भारती में एक तीखा लेख लिखा था।
गौरतलब है कि सेमिनार (डीजीएच) 10 से 12 सितंबर तक आयोजित किया जा रहा है। 11 सितंबर का ऐतिहासिक दिन मत चूकिए. यह दिन हिंदू धर्म के सार, यानी हिंदुत्व या हिंदूपन, और विशिष्टतावादी, सर्वोच्चतावादी, इस्लामवादी विश्व दृष्टिकोण के बीच स्पष्ट अंतर का प्रतीक है। यह वह दिन है जब स्वामी विवेकानन्द ने धर्म संसद में भाषण दिया था और सभी को गले लगाने वाले हिंदू धर्म के बारे में अपना जोरदार तर्क प्रस्तुत किया था जो सभी दृष्टिकोणों का सम्मान करता है, दुनिया के सभी सताए हुए लोगों को शरण देता है, यह दावा नहीं करता है कि केवल इसमें सच्चाई है और सब कुछ है अन्यथा झूठ था, ”शारदा ने लिखा।
आरएसएस समर्थित हिंदी साप्ताहिक पांचजन्य ने डीजीएच कार्यक्रम का जिक्र करते हुए लिखा: “रटगर्स विश्वविद्यालय सम्मेलन की तारीख 11 सितंबर है, जिसका एक ऐतिहासिक महत्व है। 11 सितंबर 1893 को शिकागो में, स्वामी विवेकानन्द ने विश्व धर्म संसद में भ्रातृत्व, सार्वभौमिक भाईचारे की पुष्टि करते हुए एक ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसने दुनिया को एकजुट किया। वे इस दिन का उपयोग हिंदू समुदाय की समझ को भ्रष्ट करने, हिंदुत्व को एक आतंक के रूप में स्थापित करने के लिए कर रहे हैं जो पश्चिम या बाकी दुनिया के लिए खतरा है। वे हिंदुत्व को गुंडा तत्व के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसे सम्मेलनों के एजेंडे पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, एक अन्य हिंदुत्व समर्थक मंच, 'द धर्म डिस्पैच' ने लिखा: "अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल के दूसरे वर्ष में अचानक इसी तरह के 'सम्मेलनों' का सिलसिला शुरू हो गया। जो लोग काफी बूढ़े हैं उन्हें रेडिफ़, सुलेखा और लोकप्रिय ब्लॉगों पर कैलिफोर्निया पाठ्यपुस्तक विवाद, हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन के खिलाफ तीसरे दर्जे के वामपंथी और इस्लामवादी अभियान, हिंदू विरोधी साजिश जैसे विविध लेकिन संबंधित विषयों पर लगातार और गरमागरम बहसें याद होंगी। सीएआईआर की वेंडी डोनिगर ने प्रवासी भारतीय दिवस पर विवाद खड़ा किया।''
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सोमवार, 23 अगस्त 2021 / प्रेस विज्ञप्ति में प्रकाशित
'डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व' सम्मेलन की निंदा के माध्यम से हिंदू नफरत को खत्म करें
हिंदू फोरम कनाडा उन सभी समूहों और विश्वविद्यालयों से बेहद निराश और नाराज है जो 'डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व' को आयोजित और प्रायोजित कर रहे हैं। यह शर्म की बात है कि कुछ शिक्षाविदों का हिंदुओं और हिंदू धर्म के प्रति नस्लवाद और भेदभाव ऐसे समय में चल रहा है जब तालिबान खुले तौर पर मानवता और मानवाधिकारों के सभी मानदंडों को नष्ट कर रहे हैं और तथाकथित 'विद्वानों' को हिंदुओं और हिंदू धर्म के प्रति अपनी नफरत दिखाने में खुशी मिलती है।
यह घटना आम तौर पर भारत में हिंदुओं और विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा में हिंदू प्रवासियों को बदनाम करने का एक नापाक और घृणित प्रयास है। यह शर्म की बात है कि आपके विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षाविद् हिंदू धर्म और हिंदुओं के खिलाफ अपने दुष्ट एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए आपके प्रतिष्ठित संस्थान के नाम का उपयोग कर रहे हैं।
इस सम्मेलन के आयोजकों के आह्वान को पढ़ने के बाद, यह बिल्कुल स्पष्ट है कि उनकी हिंदू नफरत चरम पर है और हिंदू धर्मग्रंथों, इतिहास और राजनीति के बारे में उनकी जानकारी का अभाव निम्न स्तर का है।
सम्मेलन के आयोजक झूठे आधार और मनगढ़ंत झूठ के आधार पर पंजीकरण की मांग कर रहे हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
भारत में हिंदू उग्रवाद बढ़ रहा है;
विदेशों में प्रवासी भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा वर्चस्ववादियों के वैचारिक समूहों के साथ संबंध बना रहा है;
जाति आधारित भेदभाव;
भारत में पत्रकारों, मानवाधिकार समूहों और सभी प्रकार के लोकतांत्रिक असहमति पर दमन हो रहा है।
जैसा कि ऊपर आपके एजेंडे में बताया गया है, दुनिया भर में हिंदुओं की छवि खराब करने के लिए यह एक झूठी कहानी से ज्यादा कुछ नहीं है। आयोजक केवल एकतरफ़ा मीडिया रिपोर्टों पर भरोसा कर रहे हैं।
हम कनाडा सहित हमारे पश्चिमी विश्व की प्रगति और समृद्धि में हिंदुओं के योगदान की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।
एक। हिंदू समुदाय, चाहे वे भारत में हों या विदेश में, बड़े पैमाने पर शांतिप्रिय और जीवंत हैं;
बी। विदेशों में हिंदू समुदाय, कानून का पालन करने वाला समुदाय है;
सी। विदेशों में हिंदू समुदाय अर्थव्यवस्था, व्यवसाय, प्रौद्योगिकी, विज्ञान, राजनीति, चिकित्सा,
ऊर्जा, साइबर-सुरक्षा, पुलिस, सेना, शिक्षाविदों, सामुदायिक सेवाओं, मीडिया, कानून, कानून-निर्माण और बहुत कुछ में योगदान देता है।
कनाडा और दुनिया भर में हिंदुओं और हिंदू धर्म पर हमला करना हिंदुओं को स्वीकार्य नहीं है। हम हिंदू महसूस करते हैं कि उन संस्थानों द्वारा हमें अलग-थलग किया जा रहा है और उन पर दुर्भावनापूर्ण हमला किया जा रहा है, क्योंकि हमने बढ़ते इस्लामी जिहादी संगठनों या चरम इंजीलवादी आंदोलनों या चरम रूढ़िवादी यहूदी समूहों या किसी अन्य चरमपंथी विचारधारा पर उनके द्वारा आयोजित कोई सम्मेलन नहीं देखा है। लेकिन वे हिंदुओं को निशाना बनाने में सहज महसूस करते हैं, जो सबसे शांतिपूर्ण हैं और पिछली कुछ शताब्दियों से पहले से ही उपनिवेशवादियों के अधीन हैं।
हम विश्वविद्यालयों से आग्रह करते हैं कि वे 21वीं सदी में हिंदुओं के प्रति उपनिवेशवादी मानसिकता और भेदभावपूर्ण व्यवहार का प्रदर्शन न करें।
हमें उम्मीद है कि वे नहीं चाहेंगे कि उनके प्रमुख संस्थान का नाम एजेंडा-संचालित सम्मेलन के लिए इस्तेमाल किया जाए।
इसलिए, हम उनसे आग्रह करेंगे कि वे उन विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करें और उनसे अपने संबंधित विश्वविद्यालय का नाम इस सम्मेलन से वापस लेने के लिए कहें।
ईमानदारी से,
राव येंदामुरी,अध्यक्ष, हिंदू फोरम कनाडा
हिंदू फोरम कनाडा
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हिन्दू ग्लोबल डिस्मेंटल
‘डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिन्दुत्व’
जबकि आयोजकों का कहना है कि 'डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व' के नाम से इस सम्मेलन का उद्देश्य "लिंग, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, जाति, धर्म, स्वास्थ्य और मीडिया में विशेषज्ञता रखने वाले दक्षिण एशिया के विद्वानों को एक मंच मुहैया कराना है और उनके नजरिए से हिंदुवादी विचारधार को समझना है।
विश्वविद्यालयों के कुछ विभागों, जिनमें से अधिकांश संयुक्त राज्य अमेरिका से हैं, द्वारा सह-प्रायोजित हिंदू और हिंदुत्व पर तीन दिवसीय सम्मेलन 11 सितंबर से आयोजित होने वाला है। कार्यक्रम के आयोजकों ने अपनी वेबसाइट पर - "डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व" लिखा है। ने अपने प्रायोजकों और सहप्रायोजकों के रूप में 40 से अधिक शीर्ष अमेरिकी विश्वविद्यालयों के नामों को सूचीबद्ध किया।
प्रायोजकों में कोलंबिया विश्वविद्यालय, एमोरी विश्वविद्यालय, हार्वर्ड विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, रटगर्स विश्वविद्यालय, प्रिंसटन विश्वविद्यालय, शिकागो विश्वविद्यालय और बर्कले, सैन डिएगो और सांता क्रूज़ में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय जैसे शीर्ष स्तरीय विश्वविद्यालय शामिल हैं।
विवादास्पद प्रचार कार्यक्रम ने विश्व स्तर पर हिंदुओं के बीच भारी हंगामा पैदा कर दिया है, कई भारतीयों ने वाम-उदारवादियों पर हिंदुओं के आसन्न नरसंहार को उचित ठहराने के लिए नाजी-शैली कार्यक्रम आयोजित करने का आरोप लगाया है। इस घटना के खिलाफ लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है और कहा जा रहा है कि यह घटना कुछ और नहीं बल्कि हिंदुओं के खिलाफ युद्ध की घोषणा है। इस घटना को वैश्विक स्तर पर हिंदुओं को व्यवस्थित और संस्थागत निशाना बनाने के रूप में देखा जा रहा है, जो पहले ट्विटर पर विक्षिप्त दिमागों तक सीमित था।
'डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व' कार्यक्रम में कई हिंदू-विरोधी तत्वों की भागीदारी देखी जाएगी 'डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व' कार्यक्रम में ऑड्रे ट्रुश्के , नक्सल समर्थक आनंद पटवर्धन और नंदिनी सुंदर, स्व-घोषित दूर-वामपंथी पत्रकार नेहा दीक्षित और कई अन्य जैसे
यहां "प्रतिष्ठित" अतिथियों और प्रमोटरों की एक विस्तृत प्रोफ़ाइल दी गई है, जो भाग लेने और उन "खतरों" पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं जो हिंदू और हिंदुत्व विश्व शांति के लिए लाते हैं:
ऑड्रे ट्रुश्के
कथित "इतिहासकार" ऑड्रे ट्रुश्के , जो आज भारत के सबसे अलोकप्रिय शिक्षाविदों में से एक हैं, हिंदूवादिक 'डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व' कार्यक्रम को बढ़ावा दे रहे हैं। ट्रुश्के ने अत्याचारी मुगल सम्राट औरंगजेब के अपराधों पर पर्दा डालने के अपने जुनून के कारण हिंदू विरोधी प्रचार उद्योग में प्रतिष्ठा बनाई है।
ऑड्रे ट्रुश्के काफी समय से भारत विरोधी प्रोपेगेंडा से जुड़ी हुई हैं। वह संयुक्त राज्य अमेरिका में एक कार्यकर्ता संस्था, स्टूडेंट्स अगेंस्ट हिंदुत्व आइडियोलॉजी (SAHI) के सलाहकार बोर्ड में हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी प्रतिष्ठान से करीबी संबंध है । कार्यकर्ता संस्था 2020 में हिंदूफोबिक 'होली अगेंस्ट हिंदुत्व' अभियान के आयोजन के लिए सबसे प्रसिद्ध है, जब इसे केवल "स्टूडेंट्स अगेंस्ट हिंदुत्व" कहा जाता था।
अंतिम लेकिन सबसे पहले, डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व सम्मेलन के लिए पंजीकरण करने के लिए एक लिंक होना चाहिए था।
कई अन्य लोगों के साथ, मैं इस अद्भुत घटना से सीखने के लिए उत्सुक हूं: https://t.co/3zA8epA00y
- डॉ. ऑड्रे ट्रुश्के (@AudrayTruschke) 19 अगस्त, 2021
अभियान के पीछे का दिमाग 21 वर्षीय कार्यकर्ता ज़ियाद अहमद का था, जो पहले हिलेरी क्लिंटन और अन्य प्रमुख डेमोक्रेट के अभियान के लिए काम कर चुका है। अहमद ब्रांडों को युवाओं तक पहुंचने में मदद करने के लिए एक कंसल्टेंसी फर्म/मार्केटिंग एजेंसी भी चलाते हैं। साही ने स्टैंड विद कश्मीर (एसडब्ल्यूके) के साथ काम किया है, जो एक संगठन है जो कश्मीर पर पाकिस्तानी लाइन पर चलता है। SAHI ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ जामिया में विरोध प्रदर्शन के बारे में सुनकर इस्लामवादियों का भी महिमामंडन किया।
रटगर्स यूनिवर्सिटी, जहां ट्रुश्के पढ़ाती हैं, के छात्रों ने उन पर हिंदुओं के खिलाफ घृणित एजेंडा चलाने का आरोप लगाया। ए छात्रों की याचिका में कहा गया है कि प्रोफेसर ने कैपिटल हिल में दंगा करने वाले चरमपंथियों और श्वेत वर्चस्ववादियों के साथ हिंदुओं को गलत तरीके से जोड़ा। अन्य अवसरों पर, उन्होंने यह दावा किया है कि हिंदुओं की पवित्र पुस्तक श्रीमद्भगवद गीता, "सामूहिक वध और हिंसा को तर्कसंगत बनाती है"। ट्रुश्के ने भगवान राम को "स्त्रीद्वेषी सुअर" कहकर हिंदू देवी-देवताओं का भी अपमान किया।
याचिका में उन पर सभी हिंदुओं को "कामुक और सेक्स-ग्रस्त" और "गाय का मूत्र पीने वालों" के रूप में चित्रित करने का आरोप लगाया गया था। इसमें लिखा है कि ट्रुश्के ने इस बात की वकालत की कि हिंदू धर्म स्वाभाविक रूप से दमनकारी, नस्लवादी, स्त्रीद्वेषी और हिंसक है। इतिहासकार ने 2018 में दावा किया, "सीता मूल रूप से राम से कहती है कि वह एक स्त्री द्वेषी सुअर और गंवार है।" हालाँकि, इसका कहीं भी कोई पाठ्य साक्ष्य नहीं था।
आनंद पटवर्धन
स्व-घोषित मानवाधिकार 'कार्यकर्ता' और एक वृत्तचित्र फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन का कलात्मक स्वतंत्रता के नाम पर हिंदूमिसिया का प्रचार करने का एक लंबा इतिहास है। पटवर्धन 1990 के दशक की शुरुआत में राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान प्रसिद्ध हुए जब देश का सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य बड़े पैमाने पर बदलाव के दौर से गुजर रहा था।
सुदूर वामपंथी विचारधारा का समर्थन करने वाले एक फिल्म निर्माता के रूप में, आनंद पटवर्धन ने युवा भारतीयों के मन में हिंदू विरोधी नफरत पैदा करने के लिए कई प्रचार वीडियो बनाकर 1990 के दशक में हिंदुत्व आंदोलन को बदनाम करने का अपेक्षित प्रयास किया । ऐसी ही एक फिल्म थी "राम के नाम" , जिसमें पटवर्धन ने हिंदू समुदाय के खिलाफ जहर उगलने के लिए बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद की घटनाओं का चयनात्मक रूप से इस्तेमाल किया था। दिलचस्प बात यह है कि पटवर्धन की डॉक्यूमेंट्री, जिसका उद्देश्य हिंदुओं के खिलाफ नफरत पैदा करना था, अंततः हिंदू समुदाय को एकजुट करने और उत्साहित करने में सफल रही।
वास्तव में, आनंद पटवर्धन उन अनुभवी सुदूर वामपंथी 'प्रचारकों' में से एक हैं, जो देश की 'धर्मनिरपेक्ष' पहचान की रक्षा की आड़ में हिंदुओं और उनके सांस्कृतिक संस्थानों के खिलाफ लगातार झूठी बातें फैलाते रहे हैं। 2014 में, पटवर्धन और बॉलीवुड के कुछ अन्य 'कार्यकर्ताओं' ने यह मांग करते हुए भाजपा के खिलाफ एक अभियान चलाया था कि लोगों को "धर्मनिरपेक्ष उम्मीदवार" को वोट देना चाहिए। हालाँकि किसी व्यक्ति के पक्ष या विपक्ष में खुलेआम प्रचार करना गलत नहीं है, फिर भी, भाजपा, विशेषकर प्रधान मंत्री मोदी के खिलाफ फैलाया गया राजनीतिक प्रचार यह सुनिश्चित करने के लिए था कि आरएसएस और भगवा पार्टी को सत्ता से दूर रखा जाए।
2014 और 2019 दोनों में भाजपा की जीत और नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से, इसने आनंद पटवर्धन जैसे "उदार-धर्मनिरपेक्ष" व्यक्तियों के लिए भारी नाराज़गी पैदा कर दी। कई अन्य लोगों के साथ हाथ मिलाकर, आनंद पटवर्धन लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को बदनाम करने के कई अभियानों में सबसे आगे रहे हैं। तब से पटवर्धन शामिल हो गए हैं कथित असहिष्णुता पर भगवा पार्टी के खिलाफ अपनी "असहमति" व्यक्त करने के लिए कई हस्ताक्षर अभियानों, विरोध प्रदर्शनों, "पुरस्कार" कार्यक्रमों में
ऐसा करने के अपने प्रयासों में, आनंद पटवर्धन ने (अतीत में) भाजपा, आरएसएस और शिव सेना जैसे हिंदू हितों के प्रति झुकाव रखने वाले राजनीतिक संस्थानों के खिलाफ कई झूठे दावे और प्रचार किए हैं, जो कि हिंदुओं को चित्रित करने का एक प्रयास है। एक समुदाय के रूप में वे अपने दृष्टिकोण में असहिष्णु और 'उग्रवादी' हैं और अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों को निशाना बनाने में सबसे आगे रहे हैं।
खैर, आनंद पटवर्धन नाज़ी-एस्क "डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व" के लिए बिल्कुल फिट लगते हैं क्योंकि उनके पास हिंदूमिसिया को बढ़ावा देने का समृद्ध अनुभव है।
आयशा किदवई
आयशा किदवई एक अन्य वामपंथी 'कार्यकर्ता' हैं जिन्होंने अक्सर 'फासीवाद' से लड़ने के नाम पर लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों को बदनाम करने की कोशिश की है। आयशा, जो कम्युनिस्टों के गढ़ - जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में काम करती है, एक पूर्ण कम्युनिस्ट है।
आतंकवादियों के लिए दया याचिका पर हस्ताक्षर करने से लेकर पूर्व जेएनयूएसयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार के समर्थन में खड़े होने तक, जिन पर जेएनयू परिसर के अंदर पाकिस्तान समर्थक कार्यक्रम आयोजित करने का आरोप है, आयशा किदवई के पास ऐसे व्यक्तियों को बढ़ावा देने का समृद्ध अनुभव है जो देश के हितों के लिए हानिकारक हैं । देश।
इसके अलावा, आयशा किदवई विभिन्न हिंदू विरोधी प्रचार पोर्टलों जैसे 'द वायर', सबरंगइंडिया आदि के लिए लिखती हैं ।
बानू सुब्रमण्यम
बानू सुब्रमण्यम मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय, एमहर्स्ट में महिला, लिंग और कामुकता अध्ययन की प्रोफेसर हैं। पेशे से एक विकासवादी जीवविज्ञानी, सुब्रमण्यम ने " होली साइंस: द बायोपॉलिटिक्स ऑफ हिंदू नेशनलिज्म (2019)" नामक एक पुस्तक लिखी है, जिसमें उन्होंने भारत में "धार्मिक राष्ट्रवाद" और विज्ञान की बातचीत का पता लगाने का दावा किया है।
सुब्रमण्यम के अनुसार, हिंदू राष्ट्रवाद के समर्थक आदर्श अतीत को प्रौद्योगिकियों से जोड़कर वैदिक सभ्यता के वैज्ञानिक आधार के बारे में साहसिक दावे करते हैं और इस कथा को जाति, पितृसत्तात्मक और हिंदू शक्ति को मजबूत करने के लिए तैनात करते हैं। बानू सुब्रमण्यम, जो ज्यादातर संयुक्त राज्य अमेरिका में काम करते हैं, को भारत और हिंदू दोनों के बारे में सीमित समझ है।
बेतुके दावे करते हुए, सुब्रमण्यम ने अपनी पुस्तक में कहा है कि 2014 में और फिर 2019 में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद से, ऐसे आख्यानों में वृद्धि हुई है जो विज्ञान, छद्म विज्ञान और मिथक को राजनीतिक से जोड़ते हैं। संदेश. सुब्रमण्यन के अनुसार, प्राचीन अतीत में, विशेषकर वैदिक युग में, हिंदुओं ने कोई मानवीय प्रयास हासिल नहीं किया है। हालाँकि, हिंदू राष्ट्रवाद के समर्थक एक प्राचीन सभ्यता में निहित भारत के विचार की ओर इशारा करते हैं जहाँ विज्ञान, प्रौद्योगिकी और दर्शन फलते-फूलते थे, जो उनके अनुसार अस्तित्व में नहीं था।
आश्चर्यजनक रूप से, सुब्रमण्यन सोचते हैं कि हिंदू धर्म एक "वैज्ञानिक धर्म" और "धार्मिक विज्ञान" बन गया है, जो "एक पुरातन आधुनिकता के रूप में भारत की दृष्टि" का निर्माण कर रहा है। इसलिए, सुब्रमण्यम के लिए, सुश्रुत जैसे हिंदू संत, जिन्होंने कुछ हद तक चिकित्सा में महारत हासिल की थी, किसी भी मूल्य प्रणाली का प्रतिनिधित्व नहीं करते थे, इसके बजाय, वह पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणालियों के साथ-साथ ब्रिटिशों द्वारा इन सभी उपलब्धियों को दरकिनार करने के बारे में शिकायत करते हैं।
हमारी प्राचीन उपलब्धियों को "जैव-राष्ट्रवाद" के रूप में उद्धृत करके नवप्रवर्तन में अपना स्थान पुनः प्राप्त करने के हिंदुओं के प्रयासों को सुब्रमण्यम ने बार-बार छद्म कहकर खारिज करते हुए धातु विज्ञान, शल्य चिकित्सा, खगोल विज्ञान सहित विभिन्न क्षेत्रों में हिंदुओं और उनकी उपलब्धियों को कमतर आंका है। -विज्ञान।
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बानू सुब्रमण्यन को हिंदुओं के खिलाफ जहर उगलने के इतिहास के साथ देश के "प्रख्यात" बुद्धिजीवियों की सूची में जगह मिलती है।
भंवर मेघवंशी
भंवर मेघवंशी भारतीय उदारवादियों के नवीनतम "नायक" हैं। भंवर मेघवंशी, एक दलित, जिसने कथित तौर पर कई वर्षों तक संगठन में सेवा करने के बाद आरएसएस छोड़ दिया था, आरएसएस और उनके द्वारा पालन की जाने वाली हिंदू जीवन शैली का दुरुपयोग करने के लिए हिंदू विरोधी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक आदर्श हथियार बन गया है।
मेघवंशी के मुताबिक, उन्होंने संगठन के बारे में ज्यादा कुछ जाने बिना ही राजस्थान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में जाना शुरू कर दिया था। हालाँकि, चार साल बाद, मेघवंशी के मन में मुसलमानों के प्रति गहरी नफरत पैदा हो गई और वह अपनी हिंदू पहचान पर बहुत गर्व करने लगा।
इसके अलावा, मेघवंशी का दावा है कि उन्होंने खुद को आरएसएस के हिंदू राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया, यहां तक कि संगठन द्वारा "सैन्य प्रशिक्षण" भी प्राप्त किया। हालाँकि, आरएसएस के भीतर भेदभाव का सामना करने के बाद उन्होंने हिंदू राष्ट्रवादी संगठन छोड़ दिया। उन्होंने महसूस किया कि इसकी दृष्टि उच्च जाति के हिंदुओं और दलितों के लिए अलग है और उन्होंने 'धर्मनिरपेक्षता' के लिए आरएसएस छोड़ दिया।
जाहिर है, मेघवंशी अब एक पत्रकार और एक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने कुछ किताबें लिखी हैं, "मैं एक कारसेवक था- मैं एक कारसेवक था", जो पहली बार 2019 में हिंदी में प्रकाशित हुई थी और एक अन्य पुस्तक, "आई कुड नॉट बी हिंदू: द स्टोरी ऑफ ए दलित इन द आरएसएस" प्रकाशित हुई थी । जनवरी 2020 में नवयान द्वारा।
मेघवंशी, जो आरएसएस का हिस्सा होने का दावा करते हैं, अब किसी तरह इस संगठन के प्रति गहरी नफरत रखते हैं। मेघवंशी के अनुसार, आरएसएस अपने कैडर को प्रेरित करता है और हिंसा का महिमामंडन करता है और हिंदू राष्ट्र बनाने का इरादा रखता है।
खैर, आरएसएस के साथ उनके सभी पुराने संबंधों के बावजूद, आयोजक भंवर मेघवंशी को उस कार्यक्रम में शामिल कैसे नहीं कर सकते जो "हिंदुओं और हिंदुत्व" से विश्व शांति के लिए खतरा पर चर्चा करना चाहते हैं।
क्रिस्टोफ़ जाफ़रलॉट
क्रिस्टोफ़ जाफ़रलॉट एक और विदेशी निहित स्वार्थी व्यक्ति है जो प्रतीत होता है कि वह भारत और हिंदुओं को यहां के लोगों से कहीं अधिक जानता है। जाफ़रलॉट, जो भारत में वामपंथी प्रतिष्ठानों के लिए कॉलम लिखते हैं, दशकों से हिंदू समाज के खिलाफ़ प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
लेखक क्रिस्टोफ़ जाफ़रलॉट ने महसूस किया है कि भारतीय उदारवादियों की अच्छी पुस्तकों में शामिल होने के लिए क्या करना पड़ता है। लेकिन, उन्हीं की तरह, वह भी कई वर्षों से हिंदुत्व, असहिष्णुता आदि के खिलाफ वही पुराने आख्यान दोहरा रहे हैं, जिससे पाठकों ने इन बुद्धिजीवियों को गंभीरता से लेना बंद कर दिया है।
मनोरंजक बात यह है कि जैफ़रलोट एजेंडे का सार बिल्कुल स्पष्ट है। यदि आप इंडियन एक्सप्रेस, द वायर जैसी प्रचार वेबसाइटों में प्रकाशित उनके साप्ताहिक कॉलम का विश्लेषण करें, तो भारत में वाम-उदारवादियों द्वारा खींचे जाने के बाद आम सूत्र स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। आरएसएस, उसके सहयोगी, भाजपा, हिंदुत्व, लिंचिंग, बहुसंख्यकवाद, लोकतंत्र, मानवाधिकार सामान्य विषय हैं। वह आरएसएस को एक "डीप स्टेट" कहते हैं और मोदी के भारत में जो कुछ भी गलत है - मुसलमानों और दलितों के खिलाफ "क्रूरता" - वह एक बड़े डिजाइन का हिस्सा है।
जाफ़रलोत के लिए, भारत एक निर्माणाधीन धार्मिक राज्य है।
कविता कृष्णन
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) (सीपीआई-एमएल) की पोलित ब्यूरो सदस्य कविता कृष्णन एक अति-कार्यकर्ता हैं और समय-समय पर भारत विरोधी कारणों का समर्थन करने के लिए एक स्वतंत्र प्रदर्शनकारी के रूप में भी काम करती हैं।
2016 में जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने की घटना के दौरान सुर्खियों में आईं कविता कृष्णन देश में धुर वामपंथी 'विरोध प्रदर्शन' का चेहरा बन गई हैं। पिछले कुछ वर्षों में, कविता कृष्णन को कई बार फर्जी खबरें फैलाने के आरोप में पकड़ा गया है , हालांकि, वह बेधड़क ऐसा करती रहती हैं।
राष्ट्र-विरोधी तत्वों के प्रति एकजुटता व्यक्त करने के अलावा , कविता कृष्णन का कट्टरपंथी इस्लामवादियों, फर्जी समाचार विक्रेताओं और पाकिस्तान समर्थक प्रचारकों का समर्थन करने का इतिहास रहा है। पिछले साल, उन्हें कुख्यात फर्जी समाचार विक्रेता मोहम्मद आसिफ खान के समर्थन में खड़े होने के लिए उजागर किया गया था, जिनका सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील फर्जी समाचार प्रचारित करने का इतिहास रहा है।
मीना कंडासामी
दलित "कार्यकर्ता" मीना कंडासामी को "सम्मानित" पैनल में शामिल किया जाना सबसे उपयुक्त है क्योंकि वह लगातार सोशल मीडिया पर हिंदुओं के खिलाफ भद्दी और अपमानजनक टिप्पणियां करती रहती हैं।
ट्विटर पर ब्राह्मणों को गाली देने में समय बिताने के अलावा , कंडासामी एक 'लेखक' और 'कवि' होने का भी दावा करते हैं। कंडासामी के अधिकांश ट्वीट घृणास्पद प्रकृति के हैं, विशेष रूप से समाज में उनकी अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति को लेकर ब्राह्मणों को निशाना बनाते हैं। अन्य सुदूर-वामपंथी कार्यकर्ताओं की तरह, कंडासामी भी देश में बहुसंख्यक समुदाय के प्रति नफरत की लहर पैदा करने के लिए अत्याचार, असहिष्णुता, हिंदुत्व आतंकवाद, सवर्ण वर्चस्व के खिलाफ बार-बार प्रचार करते हैं।
स्वयं को 'दुनिया की सर्वश्रेष्ठ महिला' घोषित करने वाली मीना कंडासामी एक 'कार्यकर्ता' के भेष में एक ट्रोल के अलावा और कुछ नहीं हैं। हाल ही में, उनके अलग हुए पति ने सुदूर वामपंथी ट्विटर 'कार्यकर्ता' के खिलाफ कुछ सनसनीखेज दावे किए थे।
सुदूर वामपंथी ट्रोल के पूर्व पति डॉ गुणशेखरन धर्मराज ने कहा था कि कार्यकर्ता ने उनके खिलाफ फर्जी उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था, क्योंकि उन्होंने अपने पिता पर हमला करने का मामला दर्ज कराया था। धर्मराज ने यह भी कहा था कि मीना कंडास्वामी दलित भी नहीं हैं, जैसा कि वह सोशल मीडिया पर दावा करती हैं, बल्कि तमिलनाडु में एमबीसी के रूप में वर्गीकृत एंडी पंडाराम समुदाय के एक पुरुष और एक महिला के बीच अंतरजातीय मिलन का परिणाम हैं। ओबीसी समुदाय.
अपनी संदिग्ध साख के बावजूद, सुदूर वामपंथी ट्रोल मीना कंडासामी सोशल मीडिया पर प्रति घंटे के आधार पर हिंदुओं को नैतिक व्याख्यान देना जारी रखती हैं। सोशल मीडिया पर हिंदुओं के खिलाफ 'मुक्त' प्रचार फैलाने के समृद्ध इतिहास के साथ, शायद ऐसा लगता है कि आयोजकों ने मीना कंडासामी को अपने हिंदूफोबिया को अब वैश्विक स्तर पर फैलाने का एक बड़ा मौका दिया है।
नंदिनी सुंदर
"डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व" कार्यक्रम में सभी पैनलिस्टों में से सबसे संभ्रांतवादी नंदिनी सुंदर हैं। नंदिनी सुंदर, जो स्वयं काफी विशेषाधिकार प्राप्त हैं, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में समाजशास्त्र की प्रोफेसर हैं। वह धुर वामपंथी हिंदूमिसिक वेबसाइट ' द वायर ' के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन की पत्नी भी हैं।
नंदिनी सुंदर, जो अपने पति के द वायर सहित विभिन्न प्लेटफार्मों के लिए लिखती हैं, पर एक बार छत्तीसगढ़ के सुकमा में एक आदिवासी व्यक्ति की हत्या का आरोप लगाया गया था। उन पर ग्रामीणों को सरकार के खिलाफ भड़काने का आरोप था. दावा किया गया कि प्रोफेसरों ने धमकी दी कि अगर ग्रामीणों ने माओवादियों का समर्थन नहीं किया तो वे घर जला देंगे. हालांकि, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनने के साथ ही नंदिनी सुंदर को हत्या के मामले में क्लीन चिट दे दी गई.
नक्सल समर्थक नंदिनी सुंदर की हिंदुओं के प्रति नफरत इस हफ्ते एक बार फिर जाहिर हुई जब उन्हें दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों पर गरुड़ प्रकाशन की किताब को बंद करने के लिए एक किताब की दुकान पर धमकाते हुए पकड़ा गया । सुंदर, एक प्रसिद्ध भारत-विरोधी योद्धा, जो "डिसमेंटल ग्लोबल हिंदुत्व" सम्मेलन के वक्ताओं में से एक हैं, ने हिंदू विरोधी दिल्ली दंगों पर एक तथ्य-आधारित पुस्तक और गरुड़ प्रकाशन की अन्य पुस्तकों को प्रदर्शित करने के लिए क्रॉसवर्ड पर हमला किया, सिर्फ इसलिए कि यह पिछले साल फरवरी में राष्ट्रीय राजधानी में इस्लामी भीड़ द्वारा हिंदुओं के खिलाफ किए गए अत्याचारों का खुलासा किया।
नेहा दीक्षित
'द वायर' और 'कारवां' जैसे वामपंथी मीडिया आउटलेट्स से जुड़ी एक "पत्रकार" नेहा दीक्षित भी हिंदूफोबिक कार्यक्रम में अतिथि वक्ता के रूप में एक आदर्श विकल्प हैं, क्योंकि हिंदू विरोधी प्रचार में उनका समृद्ध इतिहास है।
दीक्षित की सोशल मीडिया टाइमलाइन के त्वरित विश्लेषण से उनके झुकाव और विचारधारा का अंदाजा हो जाएगा। भाजपा सरकार को बदनाम करने से लेकर हिंदुओं के राजनीतिक और सांस्कृतिक आंदोलन तक झूठ फैलाकर अपने अधिकारों का दावा करने तक, दीक्षित एक आदतन अपराधी प्रतीत होते हैं।
कुछ ही हफ्ते पहले, नेहा दीक्षित को आरएसएस से संबद्ध सेवा इंटरनेशनल को निशाना बनाने के लिए बड़े पैमाने पर गलत सूचना फैलाते हुए पकड़ा गया था, क्योंकि उन्होंने दावा किया था कि संगठन "आदिवासी क्षेत्रों से बच्चों को प्रशिक्षित करने के लिए उनकी तस्करी" में शामिल था। सुदूर वामपंथी ट्रोल के खिलाफ उस समय एक संगठन को बदनाम करने का मामला दर्ज किया गया है जब वह कोविड-19 महामारी के दौरान राहत कार्य में था।
हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन ने हिंदूफोबिक सम्मेलन को प्रायोजित करने वाले विश्वविद्यालयों से खुद को इस आयोजन से दूर रखने की मांग की है
10-12 सितंबर को आयोजित होने वाले "डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व" नामक एक आभासी सम्मेलन के जवाब में, हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (एचएएफ) ने कार्यक्रम के सह-प्रायोजक के रूप में सूचीबद्ध सभी 41 विश्वविद्यालयों को पत्र लिखकर उनसे दूरी बनाने का आग्रह किया था । राजनीति से प्रेरित हिंदूफोबिक घटना।
एक जमीनी स्तर पर अभियान शुरू करते हुए, एचएएफ ने छात्रों, पूर्व छात्रों और संबंधित नागरिकों से उपरोक्त कार्यक्रम को प्रायोजित करने वाले प्रत्येक विश्वविद्यालय को अपने पत्र भेजने का आह्वान किया है । फाउंडेशन ने हिंदूफोबिक सामग्री का विरोध करने पर हिंदू छात्रों पर संभावित हमलों पर भी चिंता व्यक्त की है और सुरक्षा की मांग की है।
एचएएफ ने विश्वविद्यालयों को लिखे अपने पत्र में अत्यधिक पक्षपातपूर्ण कार्यक्रम की मेजबानी के लिए संस्थान की प्रतिष्ठा के लिए संभावित खतरे पर भी प्रकाश डाला।
“डीजीएच आयोजक किसी अकादमिक सम्मेलन की नहीं, बल्कि भारत में राजनीति से संबंधित एक पक्षपातपूर्ण कार्यक्रम की मेजबानी के लिए आपके संस्थान के नाम की प्रतिष्ठा का सौदा करते हैं। यह कार्यक्रम हिंदूफोबिया के अस्तित्व को नकारते हुए भी हिंदूफोबिक प्रवचन को बढ़ाने के व्यापक इतिहास वाले कार्यकर्ताओं को मंच देता है” पत्र में लिखा है।
एचएएफ ने 'सम्मानित वक्ताओं' और उनकी हिंदू घृणा की पृष्ठभूमि के बारे में विस्तार से बताया। गलत सूचना और हिंदूफोबिया फैलाने के लिए जाने जाने वाले 'वक्ताओं' के स्क्रीनशॉट संलग्न करते हुए, एचएएफ ने ट्वीट किया, "स्पीकर सूची में ऐसे कार्यकर्ता शामिल हैं जो: -हिंदू धर्म को जातीय कट्टरता के साथ जोड़ते हैं - दक्षिण एशिया में हिंदुओं की स्वदेशीता से इनकार करते हैं - हिंसक कश्मीर उग्रवाद का समर्थन करते हैं - हिंदूफोबिया और प्रणालीगत उत्पीड़न से इनकार करते हैं पूरे दक्षिण एशिया (पाक, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, कश्मीर) में हिंदुओं का सामना करना पड़ता है।''
फाउंडेशन ने विश्वविद्यालय की ब्रांडिंग को हटाने के लिए भी कहा है, "इस संबंध में आपके विश्वविद्यालय के नाम और लोगो का उपयोग, स्पष्ट संस्थागत पक्षपात और आयोजन के राजनीतिक और भेदभावपूर्ण मकसद के समर्थन को दर्शाता है।"
आक्रोश के बाद, सहप्रायोजक के रूप में सूचीबद्ध कम से कम पांच विश्वविद्यालयों ने डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व सम्मेलन से खुद को दूर कर लिया है।
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5 तरीके जिनसे डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व सम्मेलन हिंदूफोबिक है
दीपाली कुलकर्णी द्वारा / 10 सितंबर 2021
डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व एक ऐसा सम्मेलन है जो जानबूझकर हिंदूफोबिक है। राजनीतिक, "वर्चस्ववादी" हिंदुओं के एक कल्पित वैश्विक खतरे को समझने के बजाय "नष्ट" करने के लिए काम करने में, ये कार्यकर्ता और कार्यकर्ता-विद्वान दुनिया भर में हिंदुओं को डराने और अमानवीय बनाने के लिए कथित शैक्षणिक स्वतंत्रता के पीछे छिपते हैं।
ऐसे।
1) हिंदू वर्चस्व और उसके वैश्विक खतरे की कल्पना करना
" इस सम्मेलन के बारे में " पर क्लिक करें और आप "बड़े भारतीय प्रवासी" से डरना सीखेंगे जिसमें "अन्य वर्चस्ववादी विचारधाराओं के साथ संबंध बनाने की क्षमता" है।
वास्तविक खतरे के बजाय संभावित खतरे का विश्लेषण डीजीएच आयोजकों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है।
आइए इसे तोड़ें।
वैश्विक वर्चस्ववादी विचारधाराएँ - वे विचारधाराएँ जो जातीय, नस्लीय या धार्मिक आधिपत्य की तलाश करती हैं और जो राष्ट्रीय सीमाओं को पार कर चुकी हैं - हिंदुओं जैसे धार्मिक समूहों के बहिष्कार और अधीनता पर आधारित हैं।
तर्क और साक्ष्य के अभाव में, यह दावा करना कि आपके लिए वैश्विक हिंदू वर्चस्व आ रहा है, भारतीय या हिंदू इतिहास या भू-राजनीति से अपरिचित लोगों के लिए भय पैदा करने वाला है।
प्रसिद्ध वैदिक कहावत एकम सत् विप्रा बहुधा वदन्ति “सत्य एक है; बुद्धिमान लोग इसे कई नामों से बुलाते हैं" हिंदू धर्म की गहरी जड़ें जमा चुकी बौद्धिक उदारता को दर्शाता है, जिसने ऐतिहासिक रूप से विविध धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को बढ़ावा दिया है।
इस बात पर विचार करते समय कि क्या हिंदू दर्शन, संस्कृतियों या राजनीति की यह आलोचना वैध है, हमें खुद से पूछना चाहिए: क्या कोई अन्य धार्मिक समूह है जिसके लिए एक अकादमिक सम्मेलन में उनके संभावित गठबंधनों के बारे में परिकल्पना करना और डर फैलाना उचित होगा?
शायद इस स्पष्ट आलोचना का जवाब देने के लिए, सम्मेलन के आयोजकों ने इस लेख को एक साथ रखा है कि " हिंदुत्व हिंदू धर्म क्यों नहीं है ।"
लेकिन हिंदुत्व की उनकी परिभाषा में शाब्दिक अनुवाद, कानूनी परिभाषा और पिछली सदी के सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टिकोणों की सीमा शामिल नहीं है, जिन्होंने अलग-अलग मान्यताएं ले ली हैं। वे कई और गैर-विचारित बातें करते हैं, जिसमें यह भी शामिल है कि "हिंदू वर्चस्ववादियों" ने " बीसवीं सदी की शुरुआत से ही" सताए गए हिंदू समुदाय के लिए बोलने का दावा करके अपने चरमपंथ की वैध आलोचना से खुद को बचाने के लिए कड़ी मेहनत की है । जोर मेरा)।
हिंदू केवल उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के लिए बोलने का "दावा" नहीं कर रहे हैं बल्कि वास्तव में हिंदुओं के मानवाधिकारों की वकालत कर रहे हैं। इसके अलावा, हमें यह मानना चाहिए कि भारत 1947 में एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया था। सम्मेलन के आयोजकों ने उस समय हिंदू वर्चस्व की फिर से कल्पना की है जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था। हिंदू वर्चस्व स्थापित करने के लिए कोई आंदोलन नहीं हुआ जबकि हिंदू और अन्य भारतीय धार्मिक समुदाय सबसे अधिक असुरक्षित थे। यह अऐतिहासिक विश्लेषण हिंदूफोबिया है।
2) हिंदू आवाजों को अवैध ठहराना
कार्यक्रम के आयोजक आलोचना करने वाले हिंदुओं को सर्वोच्चतावादी करार देकर हिंदुओं की आलोचनाओं को अवैध ठहराने का प्रयास करते हैं, यह दावा करते हैं कि ये आलोचनाएँ बुरे विश्वास में हैं, और यह दावा करते हुए कि हिंदुओं की कोई भी आलोचना वास्तविक लोगों से नहीं आ रही है। ये हिंदूफोबिया है.
हिंदुत्व उत्पीड़न फील्ड मैनुअल और साउथ एशिया स्कॉलर एक्टिविस्ट कलेक्टिव के समर्थन वक्तव्य पर विचार करें । इन दोनों टुकड़ों में दावा किया गया है कि इस सम्मेलन की हिंदू आलोचनाएँ "दुर्भावनापूर्ण" या कपटपूर्ण और बेईमान हैं। वास्तव में, वे यह सुझाव देने के लिए आगे बढ़ते हैं कि ऐसे असहमत लोग नस्लवादी, जातिवादी, कट्टर और खतरनाक हैं। इस तरह के एड होमिनेम हमले उनके मुखर असहमत लोगों की खूबियों को कम करने और असहमत लोगों को और चुप कराने का प्रयास करते हैं। यह उन मुक्त भाषण सुरक्षा के विपरीत है जिसे ये शिक्षाविद स्वयं संजोने का दावा करते हैं। जिन हिंदू आवाज़ों से आप सहमत नहीं हैं, उनका प्रदर्शन करना हिंदू-भय है।
विभिन्न समुदाय के नेतृत्व वाले अभियानों के माध्यम से, इस घटना पर चिंता व्यक्त करने के लिए दुनिया भर से हिंदुओं और सहयोगियों के 1 मिलियन से अधिक संदेश विश्वविद्यालय प्रशासन को भेजे गए थे। विभिन्न याचिकाओं पर 10,000 से अधिक हस्ताक्षर हुए। लेकिन सामुदायिक संगठनों का समर्थन पत्र इस जमीनी स्तर की गति को "जमीनी स्तर की प्रतिक्रिया की नकल करने के लिए ट्रोल सेनाओं के उपयोग" के रूप में चित्रित करता है। बिना किसी सबूत के, कार्यक्रम आयोजक यह दावा कर रहे हैं कि इस सम्मेलन की आलोचना करने वाले वास्तविक लोग - जिनमें हिंदू छात्र, संकाय, माता-पिता और पूर्व छात्र शामिल हैं - वास्तव में वास्तविक इंसान नहीं हैं। वास्तविक हिंदू लोगों की आवाज़ों और चिंताओं को अमानवीय बनाने का यह प्रयास न केवल अशैक्षणिक है, बल्कि हिंदू-विरोधी भी है।
3) भय फैलाना
सम्मेलन हिंदुत्व 101 नामक एक गाइड से जुड़ा है जिसमें कहा गया है, “हिंदुत्व समूह संयुक्त राज्य अमेरिका में सक्रिय हैं - वे आपके स्थानीय मंदिर में, आपके कॉलेज परिसर में, या आपके समुदाय में कहीं और सक्रिय हो सकते हैं। “यह ज़बरदस्त डर मैककार्थीवाद के समान है - जहां हर कोने के पीछे एक संभावित कम्युनिस्ट खतरा है। गाइड आगे कहता है , " हिंदुत्व या विशिष्ट हिंदू-केंद्रित विचारों को कैंपस सेटिंग्स में पहचानना मुश्किल हो सकता है, खासकर अधिक अनौपचारिक, सामाजिक बातचीत में।" पहचानना मुश्किल है, लेकिन किसी तरह एक व्यापक खतरे से आपको डरना चाहिए। हम कल्पना नहीं कर सकते कि इस भाषा का उपयोग किसी अन्य धार्मिक समुदाय की कथित या वास्तविक राजनीति का वर्णन करने के लिए किया जा रहा है। हिंदुओं के बारे में डर फैलाना हिंदूफोबिक है।
4) दोहरा मापदंड
यह निर्धारित करने के लिए कि क्या भारतीय राजनीति की आलोचनाएँ वैध हैं या क्या वे हिंदूफोबिया में डूब रही हैं, हम इज़राइल की वैध आलोचना को यहूदी विरोधी भावना से अलग करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भाषा उधार ले सकते हैं।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत सहित सभी सरकारों को आलोचना की जरूरत है और वह इसकी हकदार भी है। लेकिन हिंदुत्व के अस्पष्ट लेकिन किसी तरह वैश्विक खतरे की आलोचना करने के बजाय इसे "खत्म" करने का प्रयास करके, ये सम्मेलन आयोजक दुनिया भर के हिंदू समुदायों के साथ-साथ सभी लोगों (धार्मिक या सांस्कृतिक परवाह किए बिना) के लिए अवैधकरण, राक्षसीकरण और दोहरे मानक बनाने का प्रयास करते हैं। पृष्ठभूमि) भारत में।
सम्मेलन के आयोजकों ने हिंदुत्व की कल्पना हिंदू राष्ट्रवाद के रूप में की है। राष्ट्रवाद अलग-अलग संदर्भों में अलग-अलग रूप लेता है, और निश्चित रूप से यह भारत तक सीमित राजनीतिक विचार नहीं है। यदि "वैश्विक हिंदुत्व को ख़त्म करने" का तर्क दुनिया भर में लागू किया गया, तो हम सभी जिन वैश्विक खतरों का सामना कर रहे हैं वे असंख्य और गंभीर होंगे। प्यू रिसर्च के अनुसार , 2017 में 80 से अधिक देशों में एक आधिकारिक राज्य धर्म है या एक धर्म को दूसरे धर्म से अधिक तरजीह दी जाती है। लेकिन भारतीय राजनीति में हिंदू राष्ट्रवाद को लेकर चिंता बहुत बढ़ गई है, इसका कारण एक बहुत ही वास्तविक दोहरा मापदंड है।
वर्तमान में ऐसा कोई देश नहीं है जहां हिंदू धर्म राज्य धर्म है। वैश्विक हिंदुत्व, जिसे हिंदू राष्ट्रवाद के रूप में समझा जाता है, की कल्पना केवल तभी की जा सकती है जब भारतीय-प्रवासी हिंदू, जिनमें से अधिकांश भारतीय राजनीतिक प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकते, उन्हें अनिच्छा से वह लेबल सौंपा जाए। हिंदू पहचान का राजनीतिकरण करना और उसे बदनाम करना हिंदू-भय है।
5) हिंदूफोबिया का खंडन और हिंदुओं के खिलाफ हिंसा को मिटाना
हिंदुओं, हिंदू कार्यकर्ताओं और भारत को बदनाम करने का प्रयास एक नव-उपनिवेशवादी परियोजना है जिसके गंभीर परिणाम होंगे। जब हिंदुओं को हमेशा अपराधी के रूप में चित्रित किया जाता है, लेकिन हिंसा के शिकार कभी नहीं, जैसा कि डीजीएच घटना में शामिल लोगों द्वारा किया जाता है, तो जानबूझकर हिंदुओं का अमानवीयकरण किया जाता है और उनके खिलाफ हिंसा को मिटा दिया जाता है।
हिंदूफोबिया "सनातन धर्म (हिंदू धर्म) और हिंदुओं के प्रति विरोधी, विनाशकारी और अपमानजनक दृष्टिकोण और व्यवहार का एक सेट है जो पूर्वाग्रह, भय या घृणा के रूप में प्रकट हो सकता है।" दूसरे शब्दों में, हिंदूफोबिया हिंदुओं के प्रति एक नकारात्मक आंतरिक प्रतिक्रिया, पूर्वाग्रह और भेदभाव है।
इसके विपरीत, घटना के समर्थकों द्वारा हिंदूफोबिया का वर्णन "पश्चिम में हिंदुत्व ताकतों द्वारा जातिवाद, इस्लामोफोबिया, लिंगवाद, यहूदी-विरोधीवाद, नस्लवाद और हिंदुत्व के केंद्र में वर्चस्ववादी विचारधाराओं के अन्य रूपों की आलोचनाओं को चुप कराने के लिए किया गया एक शब्द" के रूप में किया गया है। ” दूसरे शब्दों में, डीजीएच और उसके प्रतिभागियों और समर्थकों के लिए हिंदूफोबिया मौजूद नहीं है, और वास्तव में यह हिंदुओं के लिए भेदभाव के विभिन्न रूपों को अपनाने का एक बहाना है।
हिंदुओं के प्रति वास्तविक भय, घृणा और घृणा का मतलब यह था कि 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान न तो संयुक्त राष्ट्र या अमेरिका ने हस्तक्षेप किया, जहां लगभग 3 मिलियन हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और बौद्ध लोग मारे गए और 10 मिलियन से अधिक लोग विस्थापित हुए। हिंदू इस नरसंहार का विशेष लक्ष्य थे, जिसे संयुक्त राष्ट्र में नोट किया गया था, हालांकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने हस्तक्षेप नहीं किया था। इस हिंदू नरसंहार के दौरान राष्ट्रपति निक्सन ने "उन अभिजात वर्ग का तिरस्कार किया जो चिंतित थे कि "हम छह सौ मिलियन भारतीयों को खो देंगे।" मुरझाए हुए व्यंग्य के साथ उन्होंने कहा, ' बड़ी क्षति .''
1971 के बाद से बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर हमले लगातार जारी हैं। अगस्त 2021 की शुरुआत में बांग्लादेश और पाकिस्तान दोनों में हिंदुओं पर भीड़ के हमले हुए - पहला धार्मिक गीत गा रही हिंदू महिलाओं के एक समूह की प्रतिक्रिया में और दूसरा 9 साल के लड़के पर ईशनिंदा का आरोप लगाए जाने की प्रतिक्रिया में।
नरसंहार और जातीय सफाए के ये और कई अन्य उदाहरण जबरदस्त हैं और हिंदूफोबिया के कारण इन्हें लगातार कम किया गया और नजरअंदाज किया गया। हिंदुओं के खिलाफ नरसंहार, जातीय सफाए और लगातार हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन से इनकार करना हिंदूफोबिक है।
5 ways the Dismantling Global Hindutva conference is Hinduphobic
By Deepali Kulkarni / September 10, 2021
Dismantling Global Hindutva is a conference that is intentionally Hinduphobic. In working to “dismantle” rather than understand an imagined global threat of political, “supremacist” Hindus, these activists and activist-scholars hide behind supposed academic freedom to fear-monger and dehumanize Hindus around the world.
Here’s how.
1) Imagining Hindu Supremacy and its global threat
Click on “About this Conference” and you will learn to fear the “large Indian Diaspora” which has “potential for building links with other supremacist ideologies.”
The analysis of a potential, rather than actual threat is a key concern for DGH organizers.
Let’s break this down.
Global supremacist ideologies — ideologies which seek ethnic, racial, or religious hegemony and which have transcended national borders — are predicated on the exclusion and subjugation of religious groups such as Hindus.
In the absence of logic and evidence, claiming that a global Hindu supremacy is coming for you is fear-mongering for those unfamiliar with Indian or Hindu history or geopolitics.
The well-known Vedic maxim Ekam sat vipra bahudha vadanti “Truth is one; the wise call it by many names” illustrates the deep-rooted intellectual generosity of Hinduism, which has historically fostered diverse religious and cultural traditions.
When considering if this attempted critique of Hindu philosophies, cultures, or politics is legitimate, we must ask ourselves: Is there any other religious group for which hypothesizing and fear mongering about their potential alliances at an academic conference would be appropriate?
Perhaps to respond to this obvious critique, the conference organizers have put together this piece on why “Hindutva is not Hinduism.”
But their definition of Hindutva excludes the literal translation, legal definition, and the range of cultural and political viewpoints from the past century which have taken on different valences. They go on to make several more ill-considered points, including that “Hindu supremacists” have “worked hard to shield themselves from legitimate critique for their extremism by claiming to speak for a persecuted Hindu community” from “the early twentieth century onwards” (emphasis mine).
Hindus are not just “claiming” to speak for persecuted minorities but are actually advocating for the human rights of Hindus. Moreover, we must recognize that India became an independent nation in 1947. The conference organizers have reimagined a Hindu supremacy during a time when India was ruled by the British. There was no movement to establish Hindu supremacy while Hindus and other Indian religious communities were most vulnerable. This ahistorical analysis is Hinduphobia.
2) Delegitimizing Hindu voices
The event organizers attempt to delegitimize critiques from Hindus by labeling Hindus that critique as supremacists, claiming that these critiques are in bad faith, and asserting that any critiques from Hindus are not coming from real people. This is Hinduphobia.
Consider the Hindutva Harassment Field Manual and the Statement of Support by the South Asia Scholar Activist Collective. Both of these pieces claim that Hindu critiques of this conference are in “bad faith” or fraudulent and dishonest. In fact, they go further to suggest that such dissenters are racist, casteist, bigoted, and dangerous. Such ad hominem attacks attempt to diminish the merits of their vocal dissenters and further silence those who disagree. This is contrary to the very free speech protections these academics themselves claim to cherish. Demonizing Hindu voices you don’t agree with is Hinduphobic.
Through various community led campaigns, over 1 million communications from Hindus and allies from across the world were sent to university administrations to express concern over this event. Various petitions drew well over 10,000 signatures. But the Community Organizations Support Letter portrays this grassroots momentum as “the use of troll armies to mimic a grassroots response.” Without any evidence, the event organizers are claiming that the very real people critiquing this conference — including Hindu students, faculty, parents, and alumni— are not in fact real humans. This attempt to dehumanize the voices and concerns of real Hindu people is not only unacademic, it is Hinduphobic.
3) Fearmongering
The conference links to a guide called Hindutva 101 which states, “Hindutva groups are active in the United States — they might be active at your local temple, on your college campus, or elsewhere in your community.” This blatant fear mongering akin to McCarthyism— where there is a potential communist threat behind every corner. The guide goes on, “Hindutva or elite Hindu-centric ideas may be difficult to identify in campus settings, particularly in more casual, social interactions.” Difficult to identify, but somehow a pervasive threat you must fear. We cannot imagine this language being used to describe the perceived or actual politics of any other religious community. Fear mongering about Hindus is Hinduphobic.
4) A double standard
To determine if critiques of Indian politics are legitimate or whether they are veering into Hinduphobia, we can borrow language used to distinguish legitimate criticism of Israel from antisemitism.
All governments including that of the largest democracy in the world, India, need and deserve critique. But by attempting to “dismantle” rather than critique the vague but somehow global threat of Hindutva, these conference organizers attempt to delegitimize, demonize, and create double standards for Hindu communities around the world as well as all people (regardless of religious or cultural background) in India.
The conference organizers have imagined Hindutva as Hindu nationalism. Nationalism takes different forms in different contexts, and is certainly not a political idea limited to India. If the logic of “Dismantling Global Hindutva” was applied across the world, the global threats we all face would be numerous and egregious. According to Pew Research, in 2017 over 80 countries have an official state religion or give preferential treatment to one religion over others. But the anxiety about Hindu nationalism has been magnified around Indian politics, due to a very real double standard.
There is currently no country in which Hinduism is the state religion. The only way a global Hindutva which is understood as Hindu nationalism can be imagined is if Indian-diaspora Hindus, most of whom cannot participate in the Indian political process, are assigned that label unwillingly. Politicizing and demonizing Hindu identity is Hinduphobic.
5) Hinduphobia denial and erasure of violence against Hindus
Attempting to demonize Hindus, Hindu activists, and India is a neocolonial project with grave consequences. When Hindus are portrayed as always perpetrators, but never victims of violence, as they are by those involved in the DGH event, there is intentional dehumanizing of Hindus and erasure of violence against them.
Hinduphobia is “a set of antagonistic, destructive, and derogatory attitudes and behaviors towards Sanatana Dharma (Hinduism) and Hindus that may manifest as prejudice, fear, or hatred.” In other words, Hinduphobia is a negative visceral reaction, prejudice, and discrimination towards Hindus.
In contrast, Hinduphobia is described by supporters of the event as “a term deployed by Hindutva forces in the west to silence critiques of casteism, Islamophobia, sexism, anti-Semitism, racism, and other forms of supremacist ideologies at the heart of Hindutva.” In other words, Hinduphobia does not exist for DGH and its participants and supporters, and in fact is a ruse for Hindus to employ various forms of discrimination.
The real fear, hatred, and disgust towards Hindus meant that neither the UN or US intervened during the 1971 Bangladesh Liberation War, where approximately 3 million Hindu, Muslim, Christian, and Buddhist people died and more than 10 million people were displaced. Hindus were a particular target of this genocide, which was noted in the United Nations although the international community did not intervene. During this Hindu genocide President Nixon “scorned elites who worried that “we’ll lose six hundred million Indians (sic).” With withering sarcasm, he said, ‘Great loss.’”
Since 1971, attacks on Hindus and other minorities in Bangladesh and Pakistan continue with impunity. In the beginning of August 2021 there were mob attacks on Hindus in both Bangladesh and Pakistan — the former in response to a group of Hindu women singing religious songs and the latter in response to a 9 year old boy being accused of blasphemy.
These and many other examples of genocide and ethnic cleansing are both overwhelming and consistently minimized and ignored because of Hinduphobia. To deny genocide, ethnic cleansing, and continued human rights violations against Hindus is Hinduphobic.
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