पति पत्नी के प्रेम के समर्पण की अनोखी दास्तान pati patni prem
पति-पत्नी के अटूट रिश्ते की निशानी सिलारी गांव की देवली (स्मारक)। आज दैनिक अखबार "मरुधरा न्यूज" में छपा मेरा द्वारा लिखित यह ऐतिहासिक लेख।
आज तक आप सभी ने बलिदानी वीरों के स्मारकों के बारे में बहुत सुना और पढ़ा होगा। लेकिन आज मैं आपको पति - पत्नी के अटूट प्रेम/रिश्ते की निशानी एक देवली (स्मारक) जो मेरे गांव सिलारी, तहसील - पीपाड़शहर, जिला - जोधपुर ग्रामीण में स्थित है। उसके बारे में बताना चाहता हुं। मेरा गाँव सिलारी प्राचीन है, रावजी की बही के अनुसार विक्रम संवत 1345 (1288 ई.) में मेरे गांव सिलारी की स्थापना रक्षाबंधन पर्व के दिन 13वी शताब्दी में हुई थी। गांव का नामकरण "सिलारी" होने के पीछे एक दंतकथा गांव के बुजुर्गो द्वारा बताई जाती है की, जोगमाया(योगमाया जी) की मूर्ति धरती से शिला के रूप में प्रकट होने के कारण गांव का नाम सिलारी रखा गया था। एक दिन मेरे गांव सिलारी निवासी इंदरनाथजी का फोन मेरे पास आया और उन्होंने कहा गांव के प्राचीन तालाब की पाल पर स्थित आसन के पास बाड़े में एक देवली स्थापित है, उन्होंने मुझे इस देवली की फोटो भेजी। फोटो देखने से पता चला बाड़े के एक कोने में यह सुंदर कलात्मक ऐतिहासिक देवली स्थापित है। देवली पर की गई कारीगरी बेहद ही जीवंत थी। देखते ही लग रहा था जैसे उत्कीर्ण छवि अब बोल उठेगी। कारीगरी इतनी स्पष्ट थी की छवियो के हाथ और पांव की अंगुलिया भी गिनी जा सकती थी। देवली पर खुदाई करके सूरज-चांद बने हुए है। देवली पर अश्वारूढ वीर पुरुष की छवि एवं वीर के सम्मुख एक आभूषणों से सुसज्जित एक वीरांगना की हाथ जोड़े हुए छवि उत्कीर्ण है। चित्रांकन देखने से दूल्हा-दुल्हन का दृश्यावलोकित हो रहा था। अश्वारूढ वीर के कमरपट्टा बंधा हुआ और उसमे कटार लगी हुई है। वीर व वीरांगना के गले में कण्ठाभूषण, हाथो-पेरों मे कड़े एवं कानों में बड़े बड़े कुंडल शोभित हो रहे हैं। वीरांगना का सौन्दर्य बोध श्रृंगारित गहनों से सुशोभित हो रहा हैं। देवली देखने से ऐसे लग रहा था जैसे सम्भवतः कोई नव विवाहित जोड़ा किसी की रक्षार्थ राह में बलिवेदी के यज्ञानुष्ठान में प्राणोत्सर्ग कर मंगल गान कर गये होंगे। देवली में 4 पंक्तियों का एक लेख खुदा हुआ है। मैने लेख पढ़ने का प्रयत्न करा पर लेख की लिपि प्राचीन होने अक्षर बहुत धुंधले थे और पढ़ने में नही आ रहे थे इस कारण ज्यादा पढ़ नहीं पाया, 5-6 अक्षर ही पकड़ में आए। शुरू से ही इतिहास की पुस्तके पढ़ने और ऐतिहासिक स्मारकों को देखने में मेरी रुचि थी, तो वीरांगना की हाथ जोड़े हुई देवली पर उत्कीर्ण छवि को देखकर में समझ गया कि यह किन्ही वीर "सती माता" की छवि ही है, जो अपने पति के पीछे सती हुई थी। लेकिन फिर मेरे मन में एक प्रश्न व यह जानने की जिज्ञासा जाग गई की यह देवली किनकी याद में बनवायी गई होगी.......।
देवली पर उत्कीर्ण सम्मोहित छवि मेरी आंखों के सामने बार बार आ रही थी और यही सवाल मन में कौंध रहा था की गांव की यह देवली किसकी याद में बनवायी गई होगी। मैं SOH (Save our heritage foundation) संस्था से जुड़ा हुआ हु। यह संस्था हेरिटेज संरक्षण व हेरिटेज संरक्षण हेतु जागरूकता कार्यक्रम चलाती है। विचार आते ही मैंने सोचा क्यों ना इस देवली के लेख को SOH के शिलालेख पठन के विशेषज्ञ सदस्यों से पढ़वाने की कोशिश की जाएं। मैने SOH foundation के ग्रुप में शिलालेख की फोटोज भिजवाकर ग्रुप के सदस्यों से लेख पढ़ने का अनुरोध किया। जद्दोजहद करके काफी दिनों बाद SOH के वरिष्ठ सदस्य श्री संग्रामसिंह जी गिंगालिया ने लेख पढ़ा और लेख के हिस्से का पठन कर अनुवाद कर लिया और उस वीर स्मारक शिलालेख पर खुदी हुई 04 पंक्तियों का पठन भिजवाया, जो इस प्रकार से है :-
जय श्री चारभुजा की 🙏
१॥ संवत १ ६ ७ ८ रा बर्षे फ्रागुण
२॥ सद ६ कसवु दास ध़ांध़ल
३॥ सालवा खुर्द कम त्र्प्रय महसती
४॥ सोलंक लीलावति हवी
॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥
॥ अनुवाद, ॥
1॥ सम्वत १ ६ ७ ८ का वर्ष फाल्गुन
2॥ सुदी ६ केशवदास (किशनदास) धांधल
3॥ सालवा खुर्द का काम आया, महासती
4॥ सोलंकिणी लीलावती हुई।
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लेख पठन- संग्राम सिंह गिंगालिया
प्रेषण- दयालसिंह चौहान सिलारी
स्थान- गांव-सिलारी (तालाब, आसन के पास)
तहसील- पीपाड़सिटी, जिला- जोधपुर ग्रामीण
लेख पठन दिनांक- 30-4-2024, वार - मंगलवार
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पढे और विचार करे
एक गांव में प्राचीन तालाब की पाल के समीप एक बाड़े के कोने में उपेक्षित खड़ी इस देवली-शिलालेख का संबंध एक वीरांगना महासती से है जिनका नाम लीलावती सोलंकी था, जो अपने पति जिनका नाम केशवदास (किशनदास) धांधल था से इतना अधिक मोह या प्रेम करती थी जो अपने पति की वीरगति/मृत्यु होने पर उनका वियोग सहन ना कर पायी और अपने पति के पीछे विक्रम संवत् 1678 (1621 ईस्वी) में फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष 6 षष्ठी तिथि के दिन सती हो गई थी। पीपाड़ के पास धांधल राजपूतों के गाँव सालवा खुर्द के थे। यह सभी ऐतिहासिक जानकारियां हमें इस देवली पर उत्कीर्ण लेख से पता चलती है। लेख के अनुवाद को पढ़कर मुझे पता चला की लेख में,"एक पत्नी के अपने पति के साथ सती होने का उल्लेख है।" लेकिन कई सवाल और बाकी थे जैसे कौन थे यह वीर और वीरांगना। वीरांगना जो अपने पति से इतना अगाध प्रेम करती थी, जो अपने पति का वियोग सहन ना कर सकी और अपने वीर पति के पीछे सती हो गई।
लेकिन आज जब इस उपेक्षित देवली को देखता हूं तब ऐसा लगता है जैसे यह महासती माता हम सभी से प्रश्न करती है की,"आज हमारे देश के कई नव विवाहित जोड़े इतने नाकाबिल हो गए हैं कि दिनो दिन पति पत्नी के अलगाव/तलाक के मामले सामने आ रहे हैं। पति पत्नी के अटूट 7 जन्मों के रिश्ते की सार सम्भाल तक नहीं कर सकते हैं?" भारतीय परम्परा में विवाह एक महत्त्वपूर्ण संस्कार है। विवाह में वर-वधू द्वारा यह प्रतिज्ञा की जाती है -"मैं प्रतिज्ञा करता/करती हूँ कि मानव उद्यम के तीन लक्ष्यों (धर्म, अर्थ, काम) में मैं सीमाओं का उल्लंघन या तुम्हारे प्रति कोई अनुचित कार्य नहीं करूँगा/करूँगी।" भारत में शादी 7 जन्मों का रिश्ता मानी जाती है और उसे उसी तरह निभाया जाना चाहिए।
देवलियां पग पग खड़ी, पग पग देव निवास।
भूलोड़ा इतिहास रौ, गावै नित इतिहास।।
अर्थात राजस्थान में स्थान स्थान पर देवलियों के रूप में प्रस्तर के वीर स्मारक खड़े है और स्थान स्थान पर ही वीरों के देवालय है जो हमारे विस्मृत इतिहास का नित्य इतिहास गान करते है अर्थात विस्मृत इतिहास की स्मृति कराते है। हजारों गांवों में लाखों ऐसी ऐतिहासिक देवली-शिलालेख, वीर स्मारक, छतरिया व बावड़ियां स्थापित है, लेकिन उनकी सार संभाल नहीं हो रही है। सार संभाल के अभाव में ज्यादातर उन गांवों के ये ऐतिहासिक स्मारक ढह गए है या अपनी अंतिम सांसे गिन रहे है। ये स्मारक, देवलीयॉ, छतरियां, शिलालेख उन महापुरुषों व वीरांगनाओं के त्याग का प्रमाण है जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ, अपनी प्रजा व गायों की रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुतियां दी थी। हर गांव में स्थापित यह देवलीयॉ अपनी मातृभूमि के प्रति उन अनगिनत वीरों के प्रेम व त्याग की प्रतीक हैं। दुर्भाग्य से इस गौरवशाली इतिहास को पृष्ठों पर जो सम्मान मिलना चाहिये, वो नहीं मिल पाया और जनसामान्य में बहुत कम लोगो को इसकी जानकारी है।
मेरा सभी गांवों के स्थानीय निवासियों से अनुरोध है की सामूहिक जिम्मा उठाकर इन देवलीयो, स्मारकों, मन्दिरो व बावड़ियों का संरक्षण, सम्भाल व साफ सफाई करे। वार त्यौहार इनकी पूजा करके अपने पुर्वजों, वीर-वीरांगनाओं का आशीर्वाद प्राप्त करे। स्थानीय गांव के निवासियों के अलावा सरकार की भी यह जिम्मेदारी बनती है की सैकड़ों साल पुराने इन स्मारकों का संरक्षण करें। सरकार को भी स्थानीय ग्राम पंचायतो को इन ऐतिहासिक स्मारकों को संरक्षित करने के लिए अलग से बजट उपलब्ध करवाना चाहिए क्योंकि इतिहास को संरक्षित करना और जानना बहुत ज़रूरी है। अपने पुरखों की इन ऐतिहासिक छतरीयो, मंदिरों और शिलालेखों को समय रहते नष्ट होने से बचा लीजिए, अगर आज नहीं बचा पाए तो यह नष्ट हो जाएंगे और हमारे गांवों का स्वर्णिम इतिहास भी उसी मिट्टी में दब जाएगा, जो इन स्मारकों में छुपा है हमारा असली इतिहास। ऐतिहासिक धरोहरे हमे भावनात्मक रूप से, गुजरे हुए कल से जोड़ती है। आइए हम सभी मिलकर अपनी ऐतिहासिक धरोहर को बचाएं।
संस्कृतिसंरक्षणं धर्म:। विरासतसंरक्षणं कार्यम्।।🙏
अंत में दो पंक्तियां कहना चाहूंगा, जिनका अर्थ समझने की कोशिश कीजिएगा -
ओझल हो रही स्मृति, सिमट रहा इतिहास।
बॉट निहारे पूर्वज, करके हमसे आस।।
© लेखक - दयालसिंह चौहान - सिलारी
सेव आवर हेरिटेज फाउण्डेशन, टीम जोधपुर
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