अनैतिक अंतरिम जमानत से उपजे कई सवाल - अरविन्द सिसोदिया
केजरीवाल को दीं गईं अनैतिक अंतरिम जमानत से उपजे कई सवाल
राजनीतिक व्यक्ति का यह दायित्व है कि वह संविधान, विधान और सामान्य नैतिकताओं की रक्षा करें, सुरक्षा करें और संरक्षण दे और इसी नैतिकता के कारण जब कोई राजनीतिक व्यक्ति अपराध करता है, अनैतिकता करता है, तो भारत के ट्रायल कोर्ट, हाईकोर्ट उनके प्रति सख्त रहते हैँ, कडा रुख दिखाते हैं। यह इसलिए उचित भी है कि जिन लोगों को देश के संविधान, विधान और कानूनी प्रक्रियाओं को बिना किसी भेदभाव के देश में सही सही स्वरूप में स्थापित करना है और वही लोग भ्रष्टाचारी हो जाएं, अपने पद के प्रभुत्व से अनैतिकतायें, अपराधिक हेर फेर करने लगे, तिजोरिया भरने लगे, चुनावी खर्च उठवाने लगे अन्य प्रकार के लाभ लेने लगे, तो सरकार का अर्थ ही अनर्थ में बदल जायेगा। जिसकी जिम्मेवारी राज्य में भ्रष्टाचार खत्म करने की हो और वही व्यक्ति भ्रष्टाचार करने लगे, भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाए अर्थात भ्रष्टाचार का संरक्षक तो यह एक बहुत बड़ा नैतिक अपराध स्पष्ट रूप से है। इस तरह के व्यक्ति को न्यायपालिका संरक्षण देगी तो शासन - प्रशासन और राज्य की समस्त नैतिकताएं समाप्त हो जाएंगी।
इसलिए शासन तंत्र में चाहे जनप्रतिनिधि हो और चाहे लोकप्रशासन के कर्मचारी - अधिकारी हों,उन्हें एक आदर्श ईमानदार पद्धति का अनुपालन करना ही चाहिए। जिसकी अपेक्षा केजरीवाल से भी है और सर्वोच्च न्यायालय से भी है।
केजरीवाल के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने जो टिप्पणी की है वह एक तरफा आधी अधूरी है और अमान्य है क्योंकि केजरीवाल ने लगातार नौ बार सम्मन ठुकराये हैँ, जबकि जबकि सरकार के मुखिया के तौर पर उन्हें कानून का सम्मान करना चाहिए था। वही जब वे गिरफ्तार हो गए तो उन्हें मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र देना चाहिए था, यह एक सामान्य नैतिकता है कि सरकार का एक सामान्य कर्मचारी भी 24 घंटे से ज्यादा जेल में बंद रह जाता है तो उसे पद से हटा दिया जाता है किंतु एक मुख्यमंत्री लगातार कई कई दिनों तक जेल में बंद रहा और वह जबरिया अपने पद पर बना रहना चाहता है। इस तरह की अनैतिकता नहीं थोपी जा सकती, इस संदर्भ में भी सर्वोच्च न्यायालय को गंभीरता से देखना चाहिए था।
अनैतिक मनोवृति के पक्षधर व्यक्ति को संरक्षण प्रदान करके जो अवैध और असंवैधानिक अंतरिम जमाने दी गई है उसने संपूर्ण न्यायपालिका का मस्तक शर्म से नीचे झुका दिया है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय पर कई बार प्रश्न उठते रहे हैँ, इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि ट्रायल कोर्ट भी कानून तो जानता ही है, हाई कोर्ट भी कानून जानता ही है, फिर एक अलग स्पेशल कानून सर्वोच्च न्यायालय में कहां से आ जाता है! कहीं ना कहीं सर्वोच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय को भी अपमानित करता है।
न्याय व्यवस्था का एक साधारण सिद्धांत है, वह देश की बनाई गई संसद के बनाये गये विधान के अनुसार और संविधान में निहित मानदंड के अनुसार चलें। सर्वोच्च न्यायालय अपने देश के बने हुए नियम कानून विधानो के अनुरूप न्याय करने और निर्णय लेने के लिए बाध्य भी है। उसे स्वतंत्रता इस मायने में नहीं है कि वह भारत के संविधान, भारत के विधान और परंपरागत नैतिकताओं को परे रखकर स्वयंभू शासक बन जाए। अगर ऐसा होता है तो यह स्वछंदता हो जायेगी।
भारत के संविधान में समस्त नागरिकों को एक दृष्टि से देखने के निर्देश स्पष्ट दिए हुए हैँ। सभी व्यक्ति - सभी नागरिक विधि और कानून के समक्ष समान है ऐसा भाव भारत के संविधान का है। इस स्थिति में चाहे वह जनप्रतिनिधि हो, चाहे वह लोकसेवक हो, चाहे वह राजनीतिक हो, चाहे प्रशासनिक हो, चाहे सामान्य नागरिक हो ! उनके साथ एक ही दृष्टि से व्यवहार किया जाएगा।
जेल से चुनाव तो लड़ा जा सकता चुनाव प्रचार नहीं किया जा सकता
जेल बंद रहते हुए ब्रिटिश सरकार के शासन के दौरान, तत्कालीन कांग्रेस के दिग्गज नेता नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कोलकाता के मेयर का चुनाव जेल से ही लड़ा था। उन्हें जेल से ही चुनाव लड़ना पड़ा था चुनाव प्रचार के लिए उन्हें जेल से बाहर नहीं निकलने दिया गया था ।
इसी तरह जब भारत में कांग्रेस की इंदिरा गांधी की सरकार थी आपातकाल / इमरजेंसी हटाई गई थी और तब कांग्रेस सरकार के शासन में 1977 के आम चुनाव हुए थे, तब जनता पार्टी के दिग्गज नेता जार्ज फर्नांडीज़ जेल में थे और उन्होंने जेल से ही चुनाव लड़ा था, उन्हें भी जेल से बाहर जाकर चुनाव प्रचार की अनुमति नहीं थी अर्थात जो व्यक्ति चुनाव लड़ रहा है और वह जेल में है तब भी उसे चुनाव प्रचार के लिए जेल से मुक्त नहीं किया जाता, तो अरविंद केजरीवाल तो स्वयं चुनाव लड़ ही नहीं रहे, फिर उन्हें चुनाव प्रचार के लिए स्वयं एस सी के द्वारा अंतरिम जमानत के लिए प्रेरित करना और अंतरिम जमानत देना पूरी तरह से अनैतिक और असंवैधानिक है।
सर्वोच्च न्यायालय की पीठ का अरविंद केजरीवाल की अनैतिक अंतरिम जमानत लेने के संदर्भ में कहीं गई बातों से भी यह स्पष्ट है कि उन्होंने केजरीवाल के प्रति अपनी अतिरिक्त आसक्ति का उपयोग किया है, जिसकी उन्हें अनुमति नहीं है। प्रश्न यही है की पीठ को किस दबाव के चलते यह शर्मनाक निर्णय देना पड़ा।
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नेताजी सुभाषचंद्र बोस भी जेल से चुनाव लड़े थे.....
वर्ष 1930 में सुभाष जेल में बंद थे. लेकिन उन्होंने जेल से ही कोलकाता के मेयर का चुना लड़ा और वे जीत गए. इसलिए सरकार उन्हें रिहा करने पर मजबूर हो गई-
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जार्ज फरनान्डीज जेल से चुनाव लडे थे, उन्हे कोई अंतरिम जमानत नहीं दी गई थी।
जॉर्ज फर्नांडिस नें1977 में, बिहार की मुजफ्फरपुर सीट से चुनाव जेल में रहते हुए लड़ा था और वे चुनाव में जीते थे। जॉर्ज ने 1989 और 1991 में जनता दल के टिकट पर लोकसभा में मुजफ्फरपुर और 1996, 1998 और 1999 में समता पार्टी के टिकट पर बिहार के ही नालंदा का प्रतिनिधित्व किया।
उन्हे जेल में जगा कर बताया गया कि आप चुनाव जीत गये है।
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सुप्रीम कोर्ट नें स्वंय अंतरिम जमानत आफॅर की
5 मई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो चुनाव के कारण केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने पर ’विचार’ कर सकता है।
केजरीवाल की जमानत के विरूद्ध ईडी के तर्क
- ED का कहना था कि चुनाव प्रचार जमानत का आधार नहीं हो सकता, क्योंकि ये कोई मौलिक या कानूनी अधिकार नहीं हो सकता।
जॉर्ज फर्नांडिस ने जेल से चुनाव लड़ा और इतने बड़े अंतर से जीत हासिल की कि यह भारतीय चुनावों में सबसे बड़ा अंतर था। कृपया किसी राजनीतिक नेता को एक अलग वर्ग के रूप में चिह्नित न करें और उन्हें आम आदमी से अलग न करें...
- ED ने ये भी कहा था कि जमानत देने से गलत मिसाल कायम होगी।
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Lok Sabha Election
Arvind Kejriwal Bail : जेल से बेल तक, अदालत में ED Vs केजरीवाल की लड़ाई में कब-कब क्या हुआ, देखें
पूरी टाइमलाइन - Arvind Kejriwal Bail : जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि कथित आबकारी नीति घोटाले से जुड़ेजुड़ेमनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार अरविंद केजरीवाल को दो जून 2024 को सरेंडर करना होगा और वापस जेल जाना होगा। लोकसभा चुनाव का आखिरी चरण का मतदान एक जून को होगा।
ARVIND KEJRWIAL BAIL: जेल से बेल तक, अदालत में ED VS केजरीवाल की लड़ाई में कब-कब क्या हुआ, देखें पूरी टाइमलाइन
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक जून तक अंतरिम जमानत दे दी है। इसके बाद दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) के कार्यालय में जश्न मनाया गया। खुशी से लबरेज कार्यकर्ताओं ने डांस किया और "जेल के ताले टूट गए, केजरीवाल जी छूट गए" जैसे से नारे लगाए। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को केजरीवाल को बड़ी राहत देते हुए लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत दे दी।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि कथित आबकारी नीति घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार केजरीवाल को दो जून को सरेंडर करना होगा और वापस जेल जाना होगा । लोकसभा चुनाव का आखिरी चरण का मतदान एक जून को होगा।
अरविंद केजरीवाल को 21 मार्च को गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वह न्यायिक हिरासत के तहत तिहाड़ जेल में बंद हैं। यह मामला 2021-22 के लिए दिल्ली सरकार की अब खत्म हो चुकी एक्साइज पॉलिसी के निर्माण और कार्यान्वयन में कथित भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा है।
'मैंने जल्द वापस आने का वादा किया था' 50 दिनों बाद तिहाड़ जेल से बाहर आए केजरीवाल, SC के जजों को दिया धन्यवाद
देखा जाए तो केजरीवाल को करीब-करीब 50 दिनों में इतनी बड़ी राहत मिली है और अदालत से अंतरिम जमानत भी मिल गई। आइए एक नजर डालते हैं, अरविंद केजरीवाल के जेल से बेल तक के इस पूरे सफर पर...
अदालत में ED Vs केजरीवाल की लड़ाई में कब-कब क्या हुआ
1- 30 अक्टूबर 2023: ED ने अरविंद केजरीवाल को पहला समन भेजा।
2- दिसंबर 2023: ED ने केजरीवाल को 21 दिसंबर और 3 जनवरी को पूछताछ के लिए दो और समन जारी किए।
3- जनवरी 2024: ED ने 18 जनवरी और 2 फरवरी के लिए दो और समन भेजे।
4- 3 फरवरी, 2024: ईडी ने समन पर पेश न होने पर केजरीवाल के खिलाफ मजिस्ट्रेट अदालत में शिकायत दर्ज की।
5- 7 फरवरी, 2024: मजिस्ट्रेट अदालत ने ईडी की शिकायत पर केजरीवाल को तलब किया।
6- फरवरी 2024: ईडी ने केजरीवाल को 19 फरवरी, 26 फरवरी और 4 मार्च को पेश होने के लिए समन जारी किया।
7- 7 मार्च 2024: मजिस्ट्रेट अदालत ने समन से बचने के लिए केजरीवाल के खिलाफ ईडी की नई शिकायत पर समन जारी किया।
8- 15 मार्च,र्च 2024: सेशन कोर्ट ने समन पर पेश न होने पर केजरीवाल के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
9- 16 मार्च 2024: मजिस्ट्रेट अदालत ने केजरीवाल को उसके सामने पेश होने के बाद जमानत दे दी।
10- 21 मार्च 2024: हाई कोर्ट ने केजरीवाल को गिरफ्तारी से राहत देने से इनकार कर दिया। उसी रात ED ने केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया।
11- 23 मार्च 2024: केजरीवाल ने ईडी की तरफ से अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया।
12-9 अप्रैल, 2024: HC ने ED की गिरफ्तारी के खिलाफ केजरीवाल की याचिका खारिज कर दी।
13- 15 अप्रैल : केजरीवाल दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। SC ने ED को नोटिस जारी करते हुए तत्काल कोई राहत देने से इनकार कर दिया।
14- 30 अप्रैल : सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल की गिरफ्तारी के समय पर सवाल उठाया।
15- 5 मई: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो चुनाव के कारण केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने पर 'विचार' कर सकता है।
16- 7 मई: सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत पर अपना फैसला टाल दिया।
17- 9 मई: सुप्रीम कोर्ट में दायर एक नए हलफनामे में, ED ने कहा,"किसी भी नेता को चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत नहीं दी गई है, भले वो चुनाव लड़ रहा हो। यहां तक कि चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार भी अगर हिरासत में हो, तो उसे अपने खुद के प्रचार के लिए भी अंतरिम जमानत नहीं दी जाती है।"
18- अरविंद केजरीवाल को बहुत बड़ी राहत सुप्रीम कोर्ट से मिल गई है। शीर्ष अदालत ने दिल्ली के मुख्यमंत्री को शराब नीति घोटाला में जमानत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कथित उत्पाद शुल्क नीति घोटाले से जुड़ेमनी लॉन्ड्रिंग मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 1 जून तक अंतरिम जमानत दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को 1 जून तक अंतरिम जमानत दी और 2 जून को सरेंडर करने को कहा है। ये आम आदमी पार्टी प्रमुख के लिए बड़ी राहत है, क्योंकि लोकसभा चुनाव चल रहे हैं।
19- केजरीवाल गाड़ी की सनरूफ खोलकर बाहर आए। कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, 'आप लोगों के बीच आकर अच्छा लग रहा है। मैंने कहा था कि मैं जल्दी आऊंगा, आ गया।' उन्होंने कहा, 'आप सभी का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं। सुप्रीम कोर्ट के जजों का शुक्रिया अदा करता हूं।'
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No privilege to politicians: SC on bail to Kejriwal
Granting interim bail to Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal would not amount to grant of privilege or special status to politicians, the Supreme Court on Friday said, while observing that the Aam Aadmi Party leader has no criminal antecedents and is not a threat to the society.
A bench of justices Sanjiv Khanna and Dipankar Datta, while granting interim bail till June 1 to Kejriwal in a money laundering case linked to the alleged excise policy scam, rejected the submission of the Enforcement Directorate (ED) that granting the relief for Lok Sabha campaigning will create a separate class of politicians.
"We would reject the argument that the reasoning recorded by us in the paragraphs results in grant of privilege or special status to politicians. As observed in the paragraphs, several peculiarities of the case have weighed with us," it said.
राजनेताओं को कोई विशेषाधिकार नहीं: केजरीवाल को जमानत पर सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देना राजनेताओं को विशेषाधिकार या विशेष दर्जा देने के समान नहीं होगा, जबकि यह देखते हुए कि आम आदमी पार्टी नेता का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और वह समाज के लिए खतरा नहीं हैं।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कथित उत्पाद नीति घोटाले से जुड़े धन शोधन मामले में केजरीवाल को एक जून तक अंतरिम जमानत देते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की उस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए राहत देने की बात कही गई थी। राजनेताओं का एक अलग वर्ग तैयार होगा।
"हम इस तर्क को खारिज कर देंगे कि पैराग्राफ में हमारे द्वारा दर्ज किए गए तर्क के परिणामस्वरूप राजनेताओं को विशेषाधिकार या विशेष दर्जा दिया जाता है। जैसा कि पैराग्राफ में देखा गया है, मामले की कई विशिष्टताओं पर हमारा असर पड़ा है।"
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It noted that the investigation in the case has remained pending since August 2022 and Kejriwal was arrested on March 21 this year.
"The appellant -- Arvind Kejriwal is the Chief Minister of Delhi and a leader of one of the national parties. No doubt, serious accusations have been made, but he has not been convicted. He does not have any criminal antecedents. He is not a threat to society," the bench said.
It further said, "More importantly, legality and validity of the arrest itself are under challenge before this court and we are yet to finally pronounce on the same. The fact situation cannot be compared with harvesting of crops or plea to look after business affairs."
The top court highlighted that once the matter is sub judice and the questions relating to the legality of the arrest are under consideration, a more holistic and libertarian view is justified in the background that the 18th Lok Sabha general elections are being held.
"It is no gain saying that the General Elections to the Lok Sabha are the most significant and important event this year, as they should be in a national election year. Between 650-700 million voters out of an electorate of about 970 million will cast their votes to elect the government of this country for the next five years. General Elections supply the vis viva to a democracy," the bench said.
The top court added, "Given the prodigious importance, we reject the argument raised on behalf of the prosecution that grant of interim bail/release on this account would be giving a premium of placing the politicians in a benefic position compared to ordinary citizens of this country."
Noting that the court always takes into consideration the peculiarities associated with the person in question and the surrounding circumstances while examining the question of grant of interim bail and release, the bench said, "In fact, to ignore the same would be iniquitous and wrong."
It termed Kejriwal's failure to appear before the ED on nine summons as 'a negative factor' and said there are several other facets which are required to be taken into consideration while granting bail.
As soon as the bench assembled for pronouncing the order, Solicitor General Tushar Mehta pointed out that radical preacher Amritpal Singh, who is currently lodged in Assam's Dibrugarh jail under the National Security Act, has approached the government for contesting the elections.
"Now we have been approached by Amritpal Singh. That's our concern. I could not find any precedent to assist the court on this (interim bail for poll campaigning). A person is being released for election campaigning," he told the bench.
इसमें कहा गया कि मामले की जांच अगस्त 2022 से लंबित है और केजरीवाल को इस साल 21 मार्च को गिरफ्तार किया गया था।
"अपीलकर्ता - अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय दलों में से एक के नेता हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है, गंभीर आरोप लगाए गए हैं, लेकिन उन्हें दोषी नहीं ठहराया गया है। उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। वह नहीं हैं।" समाज के लिए ख़तरा,'' पीठ ने कहा।
इसमें आगे कहा गया, "इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि गिरफ्तारी की वैधता और वैधता ही इस अदालत के समक्ष चुनौती के अधीन है और हमें अभी भी इस पर अंतिम निर्णय देना बाकी है। तथ्यात्मक स्थिति की तुलना फसलों की कटाई या व्यावसायिक मामलों की देखभाल के लिए याचिका से नहीं की जा सकती है।" "
शीर्ष अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि एक बार जब मामला विचाराधीन है और गिरफ्तारी की वैधता से संबंधित प्रश्न विचाराधीन हैं, तो 18वीं लोकसभा के आम चुनाव होने की पृष्ठभूमि में अधिक समग्र और उदारवादी दृष्टिकोण उचित है।
"यह कहने में कोई फायदा नहीं है कि लोकसभा के आम चुनाव इस साल की सबसे महत्वपूर्ण और महत्वपूर्ण घटना है, क्योंकि उन्हें राष्ट्रीय चुनाव वर्ष में होना चाहिए। लगभग 970 मिलियन मतदाताओं में से 650-700 मिलियन मतदाता मतदान करेंगे अगले पांच वर्षों के लिए इस देश की सरकार चुनने के लिए उनके वोट लोकतंत्र को जीवंतता प्रदान करते हैं,'' पीठ ने कहा।
शीर्ष अदालत ने कहा, "असाधारण महत्व को देखते हुए, हम अभियोजन पक्ष की ओर से उठाए गए तर्क को खारिज करते हैं कि इस खाते पर अंतरिम जमानत/रिहाई देने से राजनेताओं को आम नागरिकों की तुलना में लाभकारी स्थिति में रखने का प्रीमियम मिलेगा।" देश।"
यह देखते हुए कि अंतरिम जमानत और रिहाई के सवाल पर विचार करते समय अदालत हमेशा संबंधित व्यक्ति से जुड़ी विशिष्टताओं और आसपास की परिस्थितियों को ध्यान में रखती है, पीठ ने कहा, "वास्तव में, इसे नजरअंदाज करना अन्यायपूर्ण और गलत होगा। "
इसने केजरीवाल के नौ समन पर ईडी के सामने पेश होने में विफलता को 'एक नकारात्मक कारक' बताया और कहा कि कई अन्य पहलू हैं जिन्हें जमानत देते समय ध्यान में रखा जाना आवश्यक है।
जैसे ही पीठ आदेश सुनाने के लिए एकत्र हुई, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि कट्टरपंथी उपदेशक अमृतपाल सिंह, जो वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद हैं, ने चुनाव लड़ने के लिए सरकार से संपर्क किया है।
उन्होंने पीठ से कहा, "अब अमृतपाल सिंह ने हमसे संपर्क किया है। यह हमारी चिंता है। मुझे इस (चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत) पर अदालत की सहायता करने के लिए कोई उदाहरण नहीं मिला। एक व्यक्ति को चुनाव प्रचार के लिए रिहा किया जा रहा है।"
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