जान बचानें वाली वेक्सीन से ही जिन्दा है, भ्रम न फैलाएं - अरविन्द सिसोदिया

हम लगातार कनाडा से भारत विरोधी कृत्यों को देख रहे हैँ। 
आप सभी के ध्यान में होगा कि अमेरिकी शॉर्ट-सेलर समूह हिंडनबर्ग रिसर्च के कुख्यात झूठे आरोपों के कारण अदानी समूह पूरे 2023 में खबरों में रहा है और अमेरिका के हिड्नेबर्ग के द्वारा भ्रामकता फैलाने से इस निर्दोष भारतीय कंपनी को बड़ी क्षति पहुंचाई गईं। ठीक इसी तरह का बड़ा षड्यंत्र यह चुनावों के दौरान वेक्सीन के बारे में विदेश से आया है। भारत को ईसाई बर्चस्व के नीचे लाने के अपरोक्ष षड्यंत्रो में एक के रूप में इसे देखना चाहिए, यह भारत के लोकतंत्र पर हमला है।
अमेरिकी कुबेर जार्ज सोरस ने मोदीजी की सरकार को हटाने का खुला ऐलान किया हुआ है, अमेरिका, फ़्रांस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया में खुले आम हिन्दुओं पर आक्रमण हो रहे हैँ, इस समय ईसाई देशों में हिंदुत्व को खत्म करने की जल्दबाजी देखी जा रही है। उनके हिंदूवादी मोदीजी की सरकार कतई नहीं भा रही है। इसलिए हिन्दुओं को भी सावधान होकर अपनी हिन्दुत्ववादी भाजपा सरकार की रक्षा करनी चाहिए।

Astrazeneca Covishield :- जान बचानें के लिए कोरोना काल में हर किसी ने वैक्सीन लगवाई थी और जान बचानें में सफल रहे,लेकिन हाल ही में कुछ घंटे पहले से सभी को टेंशन में डाला जा रहा हैं। यह खबर लंदन में एस्ट्राजेनेका कंपनी ने माना है कि उसकी कोरोना वैक्सीन से दुलर्भ केस में खून के थक्के जम सकते हैं। यह मानना किसी बड़े खतरे की घोषणा नहीं है किन्तु भारत के चुनाव प्रभावित करने की दृष्टि से भय उत्पन्न करने के लिए, अफवाही स्वरूप में इसे फैलाया जायेगा। यह सब पूर्व रणनीति से तय षड्यंत्र है, इसे समझने की जरूरत है कि वेक्सीन में कोई भी साइड इफेक्ट होता तो सेकड़ों करोड़ वेक्सीन लगने के बाद करीब कई वर्ष गुजरने के बाद भी कोई जनहानि नहीं हुईं है। यह वेक्सीन के निरापद होनें का साक्ष्य है। जरुरत इस बात की जाँच की है कि भारत में कुछ लोग हार्ट अटैक से मृत्यु को क्यों प्राप्त हुए हैँ, इनके पीछे कोई षड्यंत्रकर्ता है या कोई अन्य कारण है?
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वैक्सीन पर पोस्ट है, पूरा पढ़े और अफवाओं से बचे 

भारत में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव हो रहा है. ऐसे मे विदेशी मीडिया से एक खबर प्लांट की जाती है कि covishield vaccine लेने वालों की लहू का थक्का ज़मने, हार्ट अटैक से मृत्यु हो रही है. ऐसा साइड इफेक्ट करोड़ों मे से किसी एक दो लोगों मे देखने को मिला है. ऐसा साइड इफेक्ट बहुत दुर्लभ स्थिति मे देखने को मिला है. यही बात covishield बनाने वाली कंपनी ने कोर्ट में बताई है. 

लेकिन भारत मे रहने वाले देश विरोधी से भी ज्यादा खतरनाक प्रवत्ति के लोग इस खबर का इस प्रकार दुष्प्रचार कर रहे हैं कि covishield लेने वाले हर व्यक्ति की मृत्यु हार्ट अटैक से हो रही है. कांग्रेसी, आपिये, चमचे, वामिये तो इसको मोदी सरकार से जोड़ कर राजनैतिक लाभ लेने मे लगे हैं. 

कॉमन सेंस की बात है.. 

अगर vaccine खराब है; इसको लेने से लोग की मृत्यु हो रही हैं तो अब तक तो आधी दुनिया हार्ट अटैक से जा चुकी होती.

250 करोड़ डोज से ज्यादा डोज तो अकेले भारत मे भी लगे हैं. कितने करोड़ लोग लहू का थक्का ज़मने या हार्ट अटैक से चले गये ??

साइड इफेक्ट हर दवाई का होता है, नॉर्मल बुखार जुकाम खांसी की दवाई का भी लेकिन ये अत्यंत दुर्लभ होता है. 

निश्चिंत रहें, घबराने जैसी कोई बात नहीं है. ये बस भारत की तरक्की से अपनी मानसिकता खोने वाले और कांग्रेसियों-लिब्रान्डुओ द्वारा फैलाया जा रहा प्रोपेगेंडा है. 

में भारत सरकार से मांग करता हु की इस तरह की जो भी भ्रामक खबरे फैला रहे है चाहे मिडिया हो, चाहे कोई भी पार्टी से नेता हो या कार्यकर्ता हो या उनका चमचा हो सब पर सख्ती से कार्यवाही की जाय एवं लाखो की संख्या में दंड वसूला जाए , ताकि दुबारा ऐसी हरकते करने से बचे ! 

भारत माता की जय !! देश प्रथम !! 
जय श्री राम !! हर हर महादेव !! 

#covishieldvaccine 
#CovidVaccine 
*कोरोना टीके से रिस्क 10 लाख में महज 1 को : इसलिए घबराएं नहीं, डॉक्टर बोले- साइड इफेक्ट तो 6 महीने में ही दिख जाते*
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*01 मई 2024*

एस्ट्राजेनेका कंपनी की वैक्सीन को भारत में कोवीशील्ड के नाम से जाना जाता है। सीरम इंस्टीट्यूट ने एस्ट्राजेनेका के फॉर्मूले से ही कोवीशील्ड को मैन्युफैक्चर किया था। इस वैक्सीन को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर बनाया गया था। 

दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटिश कोर्ट में बताया है कि उसकी कोविड वैक्सीन थ्रोम्बोसिस थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) का कारण बन सकती है, जिससे खून का थक्का जमता है। भारत में इस कंपनी की कोविशील्ड के 170 करोड़ डोज लगे हैं। भास्कर ने देश-दुनिया के प्रसिद्ध डॉक्टरों से इस बारे में बात की...

साइड इफेक्ट 6 माह में दिख जाते हैं, अब तो 2 साल हो चुके

रांची रिम्स के न्यूरो सर्जन डॉ. विकास कुमार ने बताया कि अमेरिकन सोसाइटी ऑफ हेमेटोलॉजी के पब्लिकेशन के मुताबिक, वैक्सीन से साइड इफेक्ट का खतरा 10 लाख लोगों से 3 से 15 को ही होता है। इनमें भी 90% ठीक हो जाते हैं। इसमें मौत की आशंका सिर्फ 0.00013% ही है। यानी 10 लाख में 13 को साइड इफेक्ट है, तो इनमें से जानलेवा रिस्क सिर्फ एक को होगी।

जिस TTS के चलते खून का थक्का जमता है, इसके केस कोविड वैक्सीन लगने के पहले भी आ रहे थे। इसलिए यह नहीं कह सकते कि कोवीशील्ड के कारण ऐसा हुआ। रही बात खून पतला होने के मामलों की तो यह समस्या पोस्ट कोविड इफेक्ट हो सकती है, न कि पोस्ट वैक्सीनेशन। कोविड में शरीर के कई हिस्से प्रभावित हुए थे।

कोरोना वैक्सीन ने तो हमारी रोग प्रति​रोधक क्षमता बढ़ा दी

एम्स दिल्ली के कम्युनिटी मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. संजय राय का कहना है कि महामारी के दायरे में आने वाली प्रति दस लाख आबादी में से 15 हजार पर जान का खतरा था। ऐसे में इस आबादी को वैक्सीन देकर महामारी की घातकता 80 से 90% तक घटाई गई। ऐसे में दुष्प्रभाव के मुकाबले लाभ अधिक थे। देश में लगभग 100 प्रतिशत टीकाकरण हो गया। वहीं, एक बड़ी आबादी को नेचुरल वैक्सीनेशन होने से कोरोना आम जुकाम बन गया।

चीन की तरह भारत में भी जोखिम है, लेकिन खतरा कम है। अच्छी बात है कि दुष्प्रभाव का खतरा समय के साथ कम होता जाता है। कुछ मामलों में साइड इफेक्ट चिंता की बात नहीं है, क्योंकि यह बहुत दुर्लभ मामलों में हो सकता है। भारत में कोविड वैक्सीन के कारण जान जाने का कोई मामला नहीं आया है।

हफ्ते में 2 दिन 1 बार खाना खाएं, एस 1-2 प्रोटीन की जांच कराएं

अमेरिका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के साइंटिस्ट डॉ. राम उपाध्याय ने कहा कि सब का मेटाबॉलिज्म एक जैसा नहीं होता है। किसी को वैक्सीन का साइड इफेक्ट जीरो होता है तो किसी को 100%। इसीलिए वैक्सीन से जान का रिस्क 10 लाख में एक को ही है। अब सवाल है कि अपनी देखभाल आगे कैसे करें? जवाब है- ऑटोफेजी (Autophagy)। यानी हफ्ते में दो दिन उपवास। इसमें दिन में सिर्फ एक बार खाना है।

वैक्सीन के कारण शरीर में एस1, एस2 प्रोटीन और म्यूटेंट एस प्रोटीन की मात्रा बढ़ी है। इनसे ब्लड क्लॉटिंग के लिए जिम्मेदार सीसीआर-5 फैक्टर एक्टिवेट होने की आशंका होती है। इससे रक्त नलिकाओं पर प्लेटलेट्स चिपकने लगती हैं। यही खून के प्रवाह में रुकावट बन सकती हैं। इससे बचने के लिए एस1, एस2 प्रोटीन के स्तर की जांच कराएं। सीसीआर-5 लेवल, साइटोकाइन प्रोफाइल एवं इंफ्लेमेटरी मार्कर की भी जांच करा सकते हैं। यदि बढ़े हैं तो डॉक्टर की सलाह पर दवा लें।

एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन से हार्ट अटैक का खतरा

ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने माना है कि उनकी कोविड-19 वैक्सीन से खतरनाक साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। हालांकि, ऐसा बहुत रेयर (दुर्लभ) मामलों में ही होगा। एस्ट्राजेनेका का जो फॉर्मूला था उसी से भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ने कोवीशील्ड नाम से वैक्सीन बनाई है।

ब्रिटिश मीडिया टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, एस्ट्राजेनेका पर आरोप है कि उनकी वैक्सीन से कई लोगों की मौत हो गई। वहीं कई अन्य को गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा। कंपनी के खिलाफ हाईकोर्ट में 51 केस चल रहे हैं। पीड़ितों ने एस्ट्राजेनेका से करीब 1 हजार करोड़ का हर्जाना मांगा है।

ब्रिटिश हाईकोर्ट में जमा किए गए दस्तावेजों में कंपनी ने माना है कि उसकी कोरोना वैक्सीन से कुछ मामलों में थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी TTS हो सकता है। इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है।

सबसे पहले ब्रिटिश नागरिक जेमी स्कॉट ने केस किया

अप्रैल 2021 में जेमी स्कॉट नाम के शख्स ने यह वैक्सीन लगवाई थी। इसके बाद उनकी हालत खराब हो गई। शरीर में खून के थक्के बनने का सीधा असर उनके दिमाग पर पड़ा। इसके अलावा स्कॉट के ब्रेन में इंटर्नल ब्लीडिंग भी हुई। रिपोर्ट के मुताबिक, डॉक्टरों ने उनकी पत्नी से कहा था कि वो स्कॉट को नहीं बचा पाएंगे।

कंपनी ने पहले दावों को नकारा, फिर माना

पिछले साल स्कॉट ने एस्ट्राजेनेका के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। मई 2023 में स्कॉट के आरोपों के जवाब में कंपनी ने दावा किया था कि उनकी वैक्सीन से TTS नहीं हो सकता है। हालांकि इस साल फरवरी में हाईकोर्ट में जमा किए दस्तावेजों में कंपनी इस दावे से पलट गई। इन दस्तावेजों की जानकारी अब सामने आई है।

हालांकि अवैक्सीन में किस चीज की वजह से यह बीमारी होती है, इसकी जानकारी फिलहाल कंपनी के पास नहीं है। इन दस्तावेजों के सामने आने के बाद स्कॉट के वकील ने कोर्ट में दावा किया है कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन में खामियां हैं और इसके असर को लेकर गलत जानकारी दी गई।

तस्वीर जेमी स्कॉट और उनकी पत्नी केट स्कॉट की है। जेमी को अप्रैल 2021 में वैक्सीन की वजह से ब्लड क्लॉटिंग का सामना करना पड़ा था।

वैज्ञानिकों ने अप्रैल 2021 में वैक्सीन से होने वाली 
बीमारी की पहचान की

वैज्ञानिकों ने सबसे पहले मार्च 2021 में एक नई बीमारी वैक्सीन-इंड्यूस्ड (वैक्सीन से होने वाली) इम्यून थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (VITT) की पहचान की थी। पीड़ितों से जुड़े वकील ने दावा किया है कि VITT असल में TTS का ही एक सबसेट है। हालांकि एस्ट्राजेनेका ने इसे खारिज कर दिया।

कंपनी ने कहा- हमने मानकों का पालन किया
एस्ट्रजेनेका ने कहा, "उन लोगों के प्रति हमारी संवेदनाएं हैं, जिन्होंने अपनों को खोया है या जिन्हें गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा। मरीजों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है। हमारी रेगुलेटरी अथॉरिटी सभी दवाइयों और वैक्सीन के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए सभी मानकों का पालन करती है।"

कंपनी ने आगे कहा, "क्लिनिकल ट्रायल और अलग-अलग देशों के डेटा से यह साबित हुआ है कि हमारी वैक्सीन सुरक्षा से जुड़े मानकों को पूरा करती है। दुनियाभर के रेगुलेटर्स ने भी माना है कि वैक्सीन से होने वाले फायदे इसके दुर्लभ साइड इफेक्ट्स से कहीं ज्यादा हैं।"

ब्रिटेन में नहीं इस्तेमाल हो रही एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन
खास बात यह है कि इस वैक्सीन का इस्तेमाल अब ब्रिटेन में नहीं हो रहा है। टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, बाजार में आने के कुछ महीनों बाद वैज्ञानिकों ने इस वैक्सीन के खतरे को भांप लिया था। इसके बाद यह सुझाव दिया गया था कि 40 साल से कम उम्र के लोगों को दूसरी किसी वैक्सीन का भी डोज दिया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन से होने वाले नुकसान कोरोना के खतरे से ज्यादा थे।

मेडिसिन हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी (MHRA) के मुताबिक ब्रिटेन में 81 मामले ऐसे हैं, जिनमें इस बात की आशंका है कि वैक्सीन की वजह से खून के थक्के जमने से लोगों की मौत हो गई। MHRA के मुताबिक, साइड इफेक्ट से जूझने वाले हर 5 में से एक व्यक्ति की मौत हुई है।

रिपोर्ट के मुताबिक, फ्रीडम ऑफ इन्फॉर्मेशन के जरिए हासिल किए गए आंकड़ों के मुताबिक ब्रिटेन में फरवरी में 163 लोगों को सरकार ने मुआवजा दिया था। इनमें से 158 ऐसे थे, जिन्होंने एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लगवाई थी।

ब्रिटेन के पूर्व PM बोरिस जॉनसन ने एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को ब्रिटिश साइंस के लिए बड़ी जीत बताया था।

एस्ट्राजेनेका ने बचाई 60 लाख लोगों की जान
कंपनी ने यह भी दावा किया है कि उन्होंने अप्रैल 2021 में ही प्रोडक्ट इन्फॉर्मेशन में कुछ मामलों में TTS के खतरे की बात शामिल की थी। कई स्टडीज में यह साबित हुआ है कि कोरोना महामारी के दौरान एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन आने के बाद पहले साल में ही इससे करीब 60 लाख लोगों की जान बची है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने भी कहा था कि 18 साल या उससे ज्यादा की उम्र वाले लोगों के लिए यह वैक्सीन सुरक्षित और असरदार है। इसकी लॉन्चिंग के वक्त ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इसे ब्रिटिश साइंस के लिए एक बड़ी जीत बताया था।

ग्राफिक्स के जरिए TTS बीमारी और उसके लक्षणों के बारे में जानें...

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