हिन्दू कांग्रेस के खतरनाक इरादों से अब भी सावधान हो जाये - अरविन्द सिसोदिया
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EAC-PM: ' अगर कांग्रेस के हवाले कर दिया तो हिंदुओं के लिए नहीं बचेगा कोई देश ', सरकारी समिति की रिपोर्ट पर BJP
भाजपा के राष्ट्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रभारी अमित मालवीय ने बुधवार को ईएसी-पीएम की रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस को आड़े हाथ लिया। उन्होंने कहा कि 1950 से 2015 के बीच भारत में हिंदुओं की आबादी में 7.8 फीसदी की कमी आई है।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के एक अध्ययन से पता चला है कि 1950 से 2015 के बीच भारत में हिंदुओं की आबादी में 7.8 फीसदी की तेज से गिरावट आई है। इस आंकड़े के सामने आते ही राजनीतिक गलियारे में गलचल मच गई है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। अब भाजपा ने इस रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधा है। उसका कहना है कि अगर देश कांग्रेस के हवाले कर दिया गया तो हिंदुओं के लिए कोई देश नहीं बचेगा।
कांग्रेस के दशकों के शासन ने हमारे साथ यही किया
भाजपा के राष्ट्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रभारी अमित मालवीय ने बुधवार को ईएसी-पीएम की रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस को आड़े हाथ लिया। उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स पर कहा, '1950 से 2015 के बीच भारत में हिंदुओं की आबादी में 7.8 फीसदी की कमी आई है। वहीं, मुस्लिम आबादी में 43.15 फीसदी की वृद्धि हुई है। कांग्रेस के दशकों के शासन ने हमारे साथ यही किया है। उनके भरोसे छोड़ दिया जाए तो हिंदुओं के लिए कोई देश नहीं बचेगा।'
1950 से 2015 के बीच भारत में बहुसंख्यकों की संख्या आठ फीसदी घटी
बता दें, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्ययन के अनुसार 1950 में भारत में हिंदुओं की संख्या कुल आबादी में 84 फीसदी थी जो 2015 में घटकर 78 फीसदी रह गई। इस अवधि में यानी 65 वर्षों में मुस्लिमों की संख्या कुल आबादी के 9.84 फीसदी से बढ़कर 14.0 फीसदी पर पहुंच गई। 1950 और 2015 के बीच, भारत में मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी में 43.15 फीसदी की वृद्धि हुई, ईसाइयों की संख्या में 5.38 फीसदी की वृद्धि हुई वहीं सिखों में 6.58 फीसदी की वृद्धि हुई। इस दौरान बौद्धों की संख्या में भी मामूली वृद्धि देखी गई।
यूपी के डिप्टी सीएम ने भी लगाया आरोप
इस बीच, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी हिंदू आबादी में कमी के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने दावा किया कि पार्टी की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के कारण मुस्लिम आबादी बढ़ रही है। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि जनसंख्या में असंतुलन होना चिंता का विषय है। मुस्लिमों की आबादी बढ़ रही है। वहीं हिंदुओं की आबादी घटती जा रही है। इन सबके पीछे कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण है।
मौर्या ने आगे कहा, 'कांग्रेस पार्टी ने मुस्लिम लीग की तरह काम किया है। इसके कारण देश में जनसंख्या असंतुलन हुआ है। इसलिए देश को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की आवश्यकता है। हिंदुओं की तरह, मुसलमान केवल एक व्यक्ति से शादी करेंगे। यह नहीं कि हम पांच और हमारे पांच के फॉर्मूले से संतुलन बिगड़े और फिर देश में एक और पाकिस्तान की मांग उठने लगे। यह सब होने से रोकने के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड जरूरी है।'
यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा
केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा, 'यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है। इस पर सभी भारतीयों को गंभीरता से कुछ सवाल पूछने चाहिए क्योंकि सिर्फ मुस्लिम समुदाय ने पिछले कई वर्षों में इतनी बड़ी संख्या में अपनी आबादी बढ़ाई है। अवैध आप्रवासन और धर्मांतरण के कारण यह कितनी वृद्धि हुई है? अकेले मुस्लिम समुदाय की इस वृद्धि का कितना हिस्सा बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई जैसे अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को उन लाभों से बाहर कर रहा है जो अल्पसंख्यकों को भारत सरकार और राज्य सरकारों से मिलते हैं?'
उन्होंने कहा, 'मुसलमानों की तेजी से बढ़ती आबादी को देखते हुए और उसके ऊपर कुछ राजनीतिक दल संविधान को बदलना चाहते हैं और मुस्लिम समुदाय को धर्म आधारित आरक्षण देना चाहते हैं, जनसंख्या और आरक्षण में वृद्धि का वह घातक संयोजन क्या होगा, इसका ओबीसी, एससी और एसटी जैसे अन्य वंचित समुदायों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?'
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ABSS:-
'कांग्रेस की साजिश से घटी हिंदुओं की आबादी', सरकारी पैनल की रिपोर्ट पर बोले स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती
स्वामी जितेंद्रानंद ने कहा- हम शुरू से यह बात कहते आ रहे हैं कि देश में हिंदुओं की आबादी तेजी से घट रही है, जबकि मुसलमानों की आबादी बेहिसाब तरीके से बढ़ रही है। चिंता की बात है कि जब किसी देश की मूल आबादी की तुलना में किसी दूसरे वर्ग की आबादी बढ़ती है तो देश के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। इसलिए, मेरा मानना है कि यदि भारत देश को दोबारा खंडित होने से बचाना है तो देश में एक समान जनसंख्या नियंत्रण कानून लाना होगा।
Akhil Bhartiya Sant Samiti general secretary Swami Jitendrananda Saraswati speaks on EAC PM Report on religious
विस्तार
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) की एक रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि देश में हिंदुओं की आबादी में 7.8 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि इसी दौरान (1950-2015) मुसलमानों की आबादी में 43.15 प्रतिशत की तेज वृद्धि हुई है। अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने इसी विषय पर सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल कर पूरे देश में' एक समान जनसंख्या कानून' लाने की मांग की थी। हमारे संवाददाता ने स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती से इस मुद्दे पर विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है वार्ता के प्रमुख अंश-
प्रश्न- स्वामी जी, आपने भी आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट के बारे में सुना होगा। आपने इस पर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका भी दाखिल की थी। इस रिपोर्ट पर आप क्या कहेंगे?
उत्तर- हम शुरू से यह बात कहते आ रहे हैं कि देश में हिंदुओं की आबादी तेजी से घट रही है, जबकि मुसलमानों की आबादी बेहिसाब तरीके से बढ़ रही है। कुछ राजनीतिक दल अवैध बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं को लाकर भी इस देश में मुसलमानों की आबादी बढ़ा रहे हैं। लेकिन चिंता की बात है कि जब किसी देश की मूल आबादी की तुलना में किसी दूसरे वर्ग की आबादी बढ़ती है तो देश के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। पूरी दुनिया के इतिहास में इस तरह के उदाहरण भरे हुए हैं। स्वयं भारत ने इसी तरह के कारण से विखंडन की त्रासदी झेली है। इसलिए, मेरा मानना है कि यदि भारत देश को दोबारा खंडित होने से बचाना है तो देश में एक समान जनसंख्या नियंत्रण कानून लाना होगा।
प्रश्न- आपने इस पर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका भी दाखिल की थी। उस पर क्या हुआ?
उत्तर- हमने देश के अलग-अलग हिस्सों में बेहिसाब तरीके से मुसलमान आबादी के बढ़ने का प्रश्न उठाते हुए सर्वोच्च न्यायालय से यह मांग की थी कि पूरे देश में हर वर्ग, हर धर्म के लोगों के लिए एक समान जनसंख्या नियंत्रण कानून लाया जाए। हमारी सर्वोच्च न्यायालय से प्रार्थना थी कि वह इस संदर्भ में केंद्र सरकार को निर्देश दे। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि कानून बनाना केंद्र सरकार का काम है। वह इस मामले में उसे कोई आदेश नहीं दे सकता। लेकिन केंद्र सरकार इस पर अभी तक कोई कानून नहीं लाई है। मेरा स्पष्ट मानना है कि यदि देश को विखंडित होने से बचाना है तो देश में अविलंब जनसंख्या नियंत्रण कानून लाया जाए।
प्रश्न- भाजपा-विहिप अवश्य यह मांग करती रही हैं कि देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाया जाए, लेकिन जब सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में केंद्र सरकार से उसकी राय मांगी थी तो इसी केंद्र सरकार ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की कोई आवश्यकता नहीं है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री भारती पवार ने जुलाई 2022 में राज्यसभा कहा था कि केंद्र सरकार ऐसा कोई कानून नहीं लाने जा रही है। फिर आप इस तरह के कानून की मांग क्यों कर रहे हैं?
उत्तर- आप राजनीतिक बात कर रहे हैं। कोई पार्टी क्या मांग करती है, क्या नहीं करती है, यह मेरा विषय नहीं है। मैं हिंदू धर्मगुरु हूं और हिंदू समुदाय और इस राष्ट्र के हितों की चिंता करना मेरा कार्य है। विश्व इतिहास और स्वयं भारत के अनुभव को देखते हुए देश में समान जनसंख्या नियंत्रण कानून लाना बेहद आवश्यक है। मेरा तो मानना है कि एक समान जनसंख्या नीति स्वयं मुसलमानों के भी हित में है। यदि देश की व्यवस्था अच्छी होगी तो उनके बच्चों के लिए भी एक बेहतर भविष्य होगा।
प्रश्न- कांग्रेस का आरोप है कि चुनावों के बीच इस रिपोर्ट को लाकर मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है। प्रियंका गांधी ने कहा है कि बेरोजगारी-गरीबी असली मुद्दे हैं जिस पर बात होनी चाहिए। आप क्या कहेंगे?
उत्तर- कांग्रेस इस मुद्दे पर क्या बोलेगी? सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस की गहरी साजिश के कारण ही इस देश में हिंदुओं की आबादी घटी है। पहले तो इंदिरा गांधी ने कहा अपनी आबादी घटाओ, और जब हिंदुओं ने अपनी आबादी घटा ली तो आज उन्हीं के पोते राहुल गांधी कह रहे हैं कि 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी'। यानी पहले तो कांग्रेस ने साजिश कर हिंदुओं की आबादी घटा दी, और अब मुसलमानों को उनकी ज्यादा आबादी के आधार पर ज्यादा आरक्षण देने की बात कर रहे हैं। सीधे तौर पर यह दिखाई देता है कि कांग्रेस ने देश के हिंदुओं के साथ एक साजिश रची और आज उसी का परिणाम हमारे सामने दिखाई दे रहा है। देश के हिंदू समाज को यह सोचना चाहिए कि उसके साथ क्या हो रहा है?
प्रश्न- लेकिन पूरी दुनिया में जहां भी शिक्षा दर बढ़ी है, जहां महिलाओं को आगे बढ़ने का अवसर मिला है, वहीं आबादी में कमी आई है। भारत में भी शिक्षा बढ़ने के साथ ही मुसलमानों की आबादी बढ़ने की दर में कमी आई है। ऐसे में क्या शिक्षा का स्तर बढ़ाना इस समस्या का ज्यादा सही उपाय नहीं हो सकता?
उत्तर- अच्छी शिक्षा इसका एक समाधान हो सकती है, लेकिन जब मदरसे में मुसलमान बच्चों को यह शिक्षा दी जाएगी कि नसबंदी कराना इस्लाम के खिलाफ है, और हिंदू बच्चे को उसके स्कूल में यह बताया जाएगा कि आबादी बढ़ने से गरीबी-बेरोजगारी बढ़ती है तो दोनों की आबादी में एक संतुलन कैसे आएगा। दरअसल आप एक और गंभीर बीमारी की तरफ इशारा कर रहे हैं। इस देश में हर समुदाय के बच्चे के लिए एक समान शिक्षा होनी चाहिए जिससे सबको एक समान विकास करने का अवसर मिले। यह तो नहीं हो सकता कि हिंदू देश के संविधान से चले और मुसलमान शरिया कानून के हिसाब से चले। लेकिन दुर्भाग्य है कि आज भी देश में दो अलग-अलग कानून चल रहे हैं। इसका समाधान निकाले बिना जनसंख्या-बेरोजगारी-गरीबी जैसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
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1950-2015 तक भारत की मुस्लिम आबादी 43% से अधिक बढ़ी: ईएसी-पीएम वर्किंग पेपर
पेपर ईएसी-पीएम सदस्य शमिका रवि, अपूर्व कुमार मिश्रा, सलाहकार, ईएसी-पीएम और अब्राहम जोस, प्रोफेशनल, ईएसी-पीएम द्वारा लिखा गया है।
भारत की जनसंख्या
भारत में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी में कमी देखी गई
भारत में 1950-2015 तक बहुसंख्यक धार्मिक आबादी की हिस्सेदारी में 7.81 प्रतिशत की कमी देखी गई है, जबकि इसी अवधि के दौरान मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी 43.15 प्रतिशत बढ़ी है। प्रधान मंत्री (ईएसी-पीएम) के सदस्यों के लिए आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा प्रकाशित एक कार्य पत्र में विश्लेषण किए गए 167 देशों में से केवल म्यांमार के बाद बहुसंख्यक आबादी में गिरावट आई है, जिसमें 10 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है।
“भारत में 1950-2015 तक बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी में 7.81 प्रतिशत की कमी देखी गई (84.68 प्रतिशत से 78.06 प्रतिशत)। 1950 में मुस्लिम आबादी का हिस्सा 9.84 प्रतिशत था और 2015 में बढ़कर 14.09 प्रतिशत हो गया, उनकी हिस्सेदारी में 43.15 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वर्किंग पेपर में कहा गया है कि दक्षिण एशिया के तत्काल पड़ोस में, भारत में म्यांमार के बाद बहुसंख्यक आबादी में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई है।
पेपर ईएसी-पीएम सदस्य शमिका रवि, अपूर्व कुमार मिश्रा, सलाहकार, ईएसी-पीएम और अब्राहम जोस, प्रोफेशनल, ईएसी-पीएम द्वारा लिखा गया है।
“कई तिमाहियों में शोर के विपरीत, डेटा के 28 सावधानीपूर्वक विश्लेषण से पता चलता है कि अल्पसंख्यक न केवल संरक्षित हैं बल्कि वास्तव में भारत में फल-फूल रहे हैं। दक्षिण एशियाई पड़ोस के व्यापक संदर्भ को देखते हुए यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जहां बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी बढ़ी है और बांग्लादेश, पाकिस्तान , श्रीलंका, भूटान और अफगानिस्तान जैसे देशों में अल्पसंख्यक आबादी चिंताजनक रूप से घट गई है।''
वर्किंग पेपर 2019 में एसोसिएशन ऑफ रिलिजन डेटा आर्काइव्स (एआरडीए) द्वारा प्रकाशित स्टेट्स डेटासेट प्रोजेक्ट की धार्मिक विशेषताओं - जनसांख्यिकी से जनसांख्यिकीय डेटा का उपयोग करता है।
भारत में बहुसंख्यक आबादी का हिस्सा घटा, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों में बढ़ा: अध्ययन भारत में बहुसंख्यक आबादी का हिस्सा घटा, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में बढ़ा...
समग्र समूह के रूप में अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। विशेष रूप से, भारत में मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध और सिख आबादी की हिस्सेदारी में वृद्धि और जैन और पारसी आबादी की हिस्सेदारी में गिरावट देखी गई है।
ईसाई आबादी का हिस्सा 2.24 प्रतिशत से बढ़कर 2.36 प्रतिशत हो गया, 1950 और 2015 के बीच 5.38 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सिख आबादी का हिस्सा 1950 में 1.24 प्रतिशत से बढ़कर 2015 में 1.85 प्रतिशत हो गया, उनके हिस्से में 6.58 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यहां तक कि बौद्ध आबादी की हिस्सेदारी में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो 1950 में 0.05 प्रतिशत से बढ़कर 0.81 प्रतिशत हो गई।
दूसरी ओर, भारत की जनसंख्या में जैनियों की हिस्सेदारी 1950 में 0.45 प्रतिशत से घटकर 2015 में 0.36 प्रतिशत हो गई। भारत में पारसी आबादी की हिस्सेदारी में 85 प्रतिशत की भारी गिरावट देखी गई, जो 1950 में 0.03 प्रतिशत से घटकर 0.004 हो गई। 2015 में प्रतिशत, यह कहा।
“भारत के प्रदर्शन से पता चलता है कि समाज में विविधता को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल माहौल है। पेपर में कहा गया है कि नीचे से ऊपर के दृष्टिकोण के माध्यम से एक पोषण वातावरण और सामाजिक समर्थन प्रदान किए बिना समाज के वंचित वर्गों के लिए बेहतर जीवन परिणामों को बढ़ावा देना संभव नहीं है।
भारत उन कुछ देशों में से एक है जहां अल्पसंख्यकों की कानूनी परिभाषा है और उनके लिए संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार प्रदान करता है। इन प्रगतिशील नीतियों और समावेशी संस्थानों के परिणाम भारत के भीतर अल्पसंख्यक आबादी की बढ़ती संख्या में परिलक्षित होते हैं।
मुस्लिम बहुमत बढ़ रहा है
“दक्षिण एशियाई पड़ोस के व्यापक संदर्भ को देखते हुए यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है जहां बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी बढ़ी है और बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, भूटान और अफगानिस्तान जैसे देशों में अल्पसंख्यक आबादी चिंताजनक रूप से घट गई है। इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि पड़ोस से अल्पसंख्यक आबादी दबाव के समय भारत आती है, ”यह कहा।
भारतीय उपमहाद्वीप पर, मालदीव को छोड़कर सभी मुस्लिम-बहुल देशों में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी में वृद्धि देखी गई, जहां बहुसंख्यक समूह (शफ़ीई सुन्नियों) की हिस्सेदारी में 1.47 प्रतिशत की गिरावट आई।
बांग्लादेश में, बहुसंख्यक धार्मिक समूह की हिस्सेदारी में 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो भारतीय उपमहाद्वीप में इस तरह की सबसे बड़ी वृद्धि है। 1971 में बांग्लादेश के निर्माण के बावजूद पाकिस्तान में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय (हनफ़ी मुस्लिम) की हिस्सेदारी में 3.75 प्रतिशत की वृद्धि और कुल मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी में 10 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। गैर-मुस्लिम बहुमत में केवल श्रीलंका और भूटान हैं। 1950 और 2015 के बीच देशों में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी में वृद्धि देखी गई है।
भारत उन तिब्बती बौद्धों के लिए एक पोषक वातावरण रहा है जिन्हें चीन से भागना पड़ा था और पिछले छह दशकों में उन्हें भारत में एक आरामदायक घर मिला है। इसी तरह, बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत में शरण लेने वाले मतुआओं को भारतीय समाज में समाहित कर लिया गया है। भारत श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार और अफगानिस्तान से आए शरणार्थियों की एक बड़ी आबादी की मेजबानी भी करता है। अपनी बहुलता, उदारता और लोकतांत्रिक प्रकृति को देखते हुए, भारत ने पिछले छह दशकों से कई देशों की सताई हुई आबादी को शरण देने की अपनी सभ्यतागत परंपरा को जारी रखा है।
गैर-मुस्लिम बहुसंख्यक देशों में, म्यांमार, भारत और नेपाल में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी में गिरावट देखी गई। अध्ययन के तहत अवधि में थेरवाद बौद्ध आबादी की हिस्सेदारी में 10 प्रतिशत की गिरावट के साथ म्यांमार में इस क्षेत्र में बहुसंख्यक धार्मिक समूह की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई।
वर्किंग पेपर में कहा गया है कि नेपाल में तीन प्रमुख धर्मों में से बहुसंख्यक हिंदू आबादी की हिस्सेदारी में 4 प्रतिशत की गिरावट आई है, बौद्ध आबादी की हिस्सेदारी में 3 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि मुस्लिम आबादी में 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
पेपर में लेखकों ने कहा कि वे भारत से भौगोलिक निकटता के कारण इन देशों में जनसांख्यिकीय परिवर्तनों की संरचना पर ध्यान देने में रुचि रखते हैं। इसलिए, उनकी जनसंख्या में किसी भी महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव का भारत की राजनीति और नीतियों पर प्रभाव पड़ता है।
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