हमें वीर केशव मिले आप जबसे : संघ गीत


हमें वीर केशव मिले आप जबसे : संघ गीत

हमें वीर केशव मिले आप जबसे,
नयी साधना की डगर मिल गयी है ॥ध्रु॥

भटकते रहे ध्येय-पथ के बिना हम,
न सोचा कभी देश क्या, धर्म क्या है?
न जाना कभी पा मनुज-तन जगत में,
हमारे लिए श्रेष्ठतम कर्म क्या है?
दिया ज्ञान मगर जबसे आपने है,
निरंतर प्रगति की डगर मिल गई है ॥१॥

समाया हुआ घोर तम सर्वदिक था,
सुपथ है किधर कुछ नहीं सूझता था ।
सभी सुप्त थे घोर तम में अकेला,
ह्रदय आपका हे तपी जूझता था ।
जलाकर स्वयं को किया मार्ग जगमग,
हमें प्रेरणा की डगर मिल गई है ॥२॥

बहुत थे दुखी हिन्दू निज देश में ही,
युगों से सदा घोर अपमान पाया ।
द्रवित हो गए आप यह दृश्य देखा,
नहीं एक पल को कभी चैन पाया ।
ह्रदय की व्यथा संघ बनकर फूट निकली,
हमें संगठन की डगर मिल गई है ॥३॥

करेंगे हम पुनः सुखी मातृ-भू को,
यही आपने शब्द मुख से कहे थे ।
पुनः हिन्दू का हो सुयश गान जग में,
संजोए यही स्वप्न पथ पर बढ़ रहे थे ।
जला दीप ज्योतित किया मातृ-मंदिर,
हमें अर्चना की डगर मिल गई है ॥४॥

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