आंकड़ों ने दर्शाया हिन्दुओं पर संकट


आंकड़ों ने दर्शाया हिन्दुओं पर संकट
राजेन्द्र चड्ढा

सात सितम्बर, 2004 को भारत के जनगणना आयुक्त ने जनगणना, 2001 के अन्तर्गत प्राप्त पंथों के आंकड़ों को सार्वजनिक किया। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि अहिन्दू मतावलंबियों की बढ़ती जनसंख्या और उनकी अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि दर से देश में सामरिक, राजनीतिक और सामाजिक खतरा पैदा होने की आशंका हो गई है। इस पृष्ठभूमि में यह याद रखना आवश्यक है कि देश में जहां भी हिन्दू जनसंख्या में कमी आई है, उस क्षेत्र-विशेष में भारत से अलगाव बढ़ा है और प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वहां विखंडन की प्रवृत्ति ने जोर पकड़ा है।

पंथ पर आधारित जनगणना 2001 के आंकड़ों के अनुसार, देश की कुल जनसंख्या में 80.5 प्रतिशत हिन्दू, 13.4 प्रतिशत मुसलमान, 2.3 प्रतिशत ईसाई हैं। जबकि पिछली जनगणना में हिन्दू 82 प्रतिशत, मुसलमान 12.1 प्रतिशत और 2.3 प्रतिशत ईसाई थे। इन आंकड़ों को देखने पर पहली नजर में तो कोई बड़ा परिवर्तन दिखाई नहीं देता है पर अगर हम देश में विभिन्न मतावलंबियों की दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर, प्रजनन दर जैसे विशुद्ध अकादमिक पहलुओं सहित मतांतरण और विदेशी घुसपैठ के संदर्भ में इन आंकड़ों पर नजर डालें तो पूरी सूरत ही बदल जाती है। पर राजनीतिक पारे के चढ़ने के बाद महापंजीयक एवं जनगणना कार्यालय ने आनन-फानन में (जाहिर है इस बार दबाव में) जम्मू और कश्मीर तथा असम को निकालकर दूसरी बार पंथाधारित जनगणना के आंकड़ों को जारी किया। इससे केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व और वामपंथी समर्थित संप्रग सरकार का पंथनिरपेक्षता के नाम पर ओढ़ा मुस्लिम तुष्टीकरण का मुखौटा उजागर हो गया।

मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिशत (1951-2001) राज्य 1951 1961 1971 1981 1991 2001

कर्नाटक 10.05 9.87 11.62 11.05 11.64 12.2

केरल 17.53 17.91 19.5 21.25 23.33 24.7

महाराष्ट्र 7.61 7.67 8.4 9.25 9.66 10.6

गोवा 1.61 1.89 3.33 4.1 5.25 6.8

बिहार 11.28 12.45 13.48 14.12 14.81 16.5

उ.प्र. 14.28 14.63 15.48 15.93 17.33 18.5

दिल्ली 5.71 5.85 6.47 7.75 9.44 11.7

हरियाणा 3.38 3.83 4.04 4.05 4.64 5.8

चण्डीगढ़ - 1.22 1.45 2.02 2.72 3.9

पंजाब 0.8 0.8 0.84 1 1.18 1.6

प. बंगाल 19.46 20 20.45 21.51 23.61 25.2

असम 24.68 25.3 25.56 - 28.43 30.9

पिछले एक दशक में मुसलमानों के जनसांख्यिकीय स्वरूप का प्रादेशिक स्तर पर आकलन करने पर उनकी जनसंख्या में बढ़ोत्तरी साफ नजर आती है। पिछले दशक (1991) के पंथाधारित आंकड़ों का 2001 के ताजा आंकड़ों से तुलनात्मक अध्ययन करने से पता चलता है कि जहां 1991 में जम्मू और कश्मीर में मुसलमान कुल जनसंख्या का 64.19 प्रतिशत थे वहीं सन् 2001 में उनका प्रतिशत बढ़कर 67 हो गया। इसी तरह दिल्ली में मुसलमानों की जनसंख्या 9.44 प्रतिशत से बढ़कर 11.7 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 17.33 प्रतिशत से बढ़कर 18.5 प्रतिशत, बिहार में 14.81 प्रतिशत से बढ़कर 16.5 प्रतिशत, असम में 28.43 प्रतिशत से बढ़कर 30.9 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 23.61 प्रतिशत से बढ़कर 25.2 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 9.66 प्रतिशत से बढ़कर 10.6 प्रतिशत और गोवा में 5.25 प्रतिशत से बढ़कर 6.8 प्रतिशत हो गई। यह भी उल्लेखनीय है कि इस दशक (1991-2001) में मुसलमानों की दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर सबसे ज्यादा रही। सन् 1991 में मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर 34.5 प्रतिशत (पहली बार में जारी आंकड़ों के अनुसार) थी जो कि 2001 में बढ़कर 36 प्रतिशत हो गई। जबकि इसके उलट, हिन्दुओं की जनसंख्या वृद्धि दर 1991 के 25.1 प्रतिशत की तुलना में 2001 में घटकर 20.3 प्रतिशत रह गई। जबकि दूसरी बार जारी आंकड़ों में सन् 2001 के लिए मुसलमानों की वृद्धि दर 29.3 प्रतिशत और सन् 1991 में 32.9 दर्शायी गई। ताजा जनगणना में मुसलमानों की कमतर वृद्धि दर का एक मतलब यह भी है कि 80 के दशक में मुसलमानों की वृद्धि दर और भी अधिक थी।

1991 में हिन्दुओं की वृद्धि दर 22.8 प्रतिशत और 2001 में 20 प्रतिशत बताई गई। जहां पहले जारी किए गए आंकड़ों में मुसलमानों की वृद्धि दर हिन्दुओं से 15.7 प्रतिशत अधिक है तो दूसरी बार में भी मुसलमानों की वृद्धि दर हिन्दुओं की तुलना में 9.3 प्रतिशत अधिक है।

राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों से सम्बंधित आंकड़ों का गहराई से अध्ययन करने से साफ होता है कि देश के दूसरे मतावलंबियों की तुलना में उनमें प्रजनन की दर अधिक है। 0-6 वर्ष की आयु वाले बच्चों (जो कि प्रजनन का संकेतक माना जाता है) के वर्ग पर नजर डालें तो पता चलेगा कि यहां भी मुसलमानों का प्रतिशत सर्वाधिक (18.7) है जो कि हिन्दुओं के 15.6 प्रतिशत से कहीं अधिक है। इन प्राकृतिक कारणों के अलावा बंगलादेशी मुसलमानों की अवैध रूप से घुसपैठ और दूसरी तरफ पाकिस्तानी नागरिकों के वैध रूप से भारत आने और फिर लापता हो जाने जैसे गैरकानूनी तौर-तरीके भी मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ने के प्रमुख कारण हैं। केवल इस्लाम ही नहीं, ईसाइयत ने भी भारत की हिन्दू जनसंख्या के स्वरूप और चरित्र को बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, ईसाइयों की जनसंख्या वृद्धि दर को देखने पर यह बात साफ नजर आती है। पिछली जनगणना (1991) में ईसाइयों की जनसंख्या वृद्धि दर 17 प्रतिशत थी जो कि 2001 में बढ़कर 22.1 प्रतिशत हो गई यानी 5.1 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी। प्रादेशिक स्तर पर, विशेषकर देश के पूर्वोत्तर भाग में ईसाइयों की जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। यह वृद्धि स्वाभाविक रूप से न होकर मतांतरण के माध्यम से हुई है, जिसके पीछे चर्च की संगठित शक्ति है।

ईसाई जनसंख्या का प्रतिशत (1951-2001)

राज्य 1951 1961 1971 1981 1991 2001

असम 2 2.43 2.61 - 3.32 3.7

अरुणाचल - 0.51 0.79 4.32 10.29 18.9

मणिपुर 11.84 19.49 26.03 29.68 34.12 34

मेघालय 24.66 35.21 46.98 52.61 64.58 70.3

मिजोरम 90.52 86.63 86.07 83.81 85.73 87

नागालैण्ड 40.05 52.98 66.77 80.22 87.47 90

त्रिपुरा 0.82 0.88 1.01 1.21 1.69 3.2

सिक्किम 0.22 1.73 0.79 2.22 3.3 6.7

उड़ीसा 0.79 1.15 1.73 1.82 2.1 2.4

म.प्र.(छ.ग.) 0.31 0.58 0.69 0.67 0.64 0.3अ1.9(छ.ग.)

पंजाब 0.62 1.25 1.2 1.1 1.2 1.9

अरुणाचल प्रदेश की कुल जनसंख्या में ईसाइयों का हिस्सा 10.29 प्रतिशत (1991) से बढ़कर 18.7 (2001) हो गया है। जहां 1971 में अरुणाचल प्रदेश में कुल 364 ईसाई थे, वहीं आज उनकी जनसंख्या 2,05,548 हो गई है। मेघालय में भी ईसाई 64.58 प्रतिशत से बढ़कर 70.3 प्रतिशत, मिजोरम में 85.73 प्रतिशत से बढ़कर 87 प्रतिशत, नागालैण्ड में 87.47 प्रतिशत से बढ़कर 90 प्रतिशत, त्रिपुरा में 1.69 प्रतिशत से बढ़कर 3.2 प्रतिशत हो गया है। यहां तक कि उड़ीसा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी ईसाइयों की जनसंख्या बढ़ी है। जहां 1951 में उड़ीसा की कुल आबादी में ईसाइयों का प्रतिशत 0.97 था वह 1991 में 2.1 और 2001 में बढ़कर 2.4 गया है। मध्य प्रदेश में ईसाइयों की जनसंख्या 1951 में 0.31 प्रतिशत से बढ़कर 1991 में 0.64 हो गई। जबकि 2001 के ताजा आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ में ईसाई कुल जनसंख्या का 1.9 प्रतिशत हो चुके हैं। इन राज्यों में ईसाइयों की जनसंख्या में लगभग दोगुनी से अधिक वृद्धि हुई है।

सन् 1998 में असम के तत्कालीन राज्यपाल और अब जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (से.नि.) एस.के.सिन्हा ने असम में व्यापक स्तर पर हो रही बंगलादेशी घुसपैठ पर तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के.आर. नारायणन को 42 पृष्ठों की एक विस्तृत रपट भेजी थी। इस रपट में उन्होंने बंगलादेश द्वारा असम और पूर्वोत्तर राज्यों में अपने अधिक से अधिक नागरिकों को भेजकर एक दिन इस क्षेत्र को बंगलादेश में मिलाने और उपमहाद्वीप में एक बड़ा इस्लामी देश बनाने की षडंत्रकारी योजना का खुलासा किया था। सिन्हा ने अपनी बहुचर्चित रपट में असम के निचले हिस्से में स्थित धुबरी और ग्वालपाड़ा जैसे जिलों में अवैध बंगलादेशियों के जनसांख्यिकीय आक्रमण के कारण भविष्य में इन जिलों के बंगलादेश में विलय करने की मांग उठने की आशंका भी प्रकट की थी। सिन्हा ने अपनी रपट में इन अवैध घुसपैठियों से दूसरे राज्यों की तुलना में असम और पश्चिम बंगाल के लिए अधिक खतरनाक होने और इनकी वजह से सामरिक और आर्थिक संकट पैदा होने की बात रेखांकित की थी। पर कांग्रेस और असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई इस सम्बंध में अपनी आंख-कान बंद रखना चाहते हैं। इसका कारण साफ है। असम में बड़ी संख्या में बंगलादेशियों ने अपने नाम मतदाता सूची में दर्ज करवा लिए हैं और वे सभी कांग्रेसी वोट बैंक का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

बंगलादेश से जनसंख्या का दबाव इस कदर बढ़ा है कि लगभग दो करोड़ बंगलादेशी मुसलमान अवैध रूप से भारत में घुसपैठ कर चुके हैं। इतने बड़े पैमाने पर हुई अवैध घुसपैठ का ही नतीजा है कि असम के 23 में से 10 जिले मुस्लिम बहुल हो बन चुके हैं। पश्चिम बंगाल के नौ सीमांत जिलों में से दो-तीन को छोड़कर सभी जिले मुस्लिम बहुल हो चुके हैं। पश्चिम बंगाल के 56 विधानसभा क्षेत्रों में मुसलमान चुनाव की स्थिति में निर्णायक हैं। सन् 2001 में पश्चिम बंगाल में मुसलमान कुल आबादी का 25.20 पर प्रतिशत हो गए हैं जबकि सन् 1951 में उनका प्रतिशत 19.46 था। सन् 1991-2001 में यहां मुसलमानों की वृद्धि दर 25.98 थी जबकि हिन्दुओं की मात्र 14.22।

बंगलादेशी मुसलमानों की अवैध घुसपैठ के जरिए भारत के एक और विभाजन की मंशा पूरी तरह से जिहाद की इस्लामी अवधारणा के अनुरूप है, जो कि ताकत और विभाजन की बजाय जनसंख्या वृद्धि के माध्यम से अधिक सफल रहा है।

नागालैण्ड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में भी बंगलादेशी बड़ी संख्या में मौजूद हैं। इस क्षेत्र में बंगलादेशियों की उपस्थिति से न केवल जनसांख्यिकीय संतुलन बिगड़ा है, अपितु इसके राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दुष्परिणाम सामने आए हैं। इन राज्यों के अलावा देश की राजधानी दिल्ली भी बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठिए से अछूती नहीं है। इस स्थिति का देखते हुए सितम्बर, 2004 के तीसरे सप्ताह में दिल्ली उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को तीन सप्ताह के भीतर एक सर्वेक्षण करके राजधानी में अवैध रूप से रह रहे बंगलादेशी मुसलमानों की वास्तविक संख्या के बारे में सूचित करने का आदेश दिया। दिल्ली पुलिस के अनुमान के अनुसार, वर्तमान में राजधानी के यमुना पार क्षेत्रों में हो रहे साठ फीसदी अपराधों के पीछे बंगलादेशी घुसपैठियों का हाथ है।

पर विडम्बना यह है कि बंगलादेश की सरकार इस खुले तथ्य की अनदेखी कर रही है। उसके अनुसार, भारत में उनका कोई भी नागरिक अवैध रूप से नहीं रह रहा है। अगर भारत ने इस जनसंख्याकीय आक्रमण पर समय रहते पर्याप्त ध्यान नहीं दिया तो स्थिति विस्फोटक हो जाएगी, यह भारतीय सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकती है।

यह ऐतिहासिक सत्य है कि सन् 1900 में असम में पूर्वी बंगाल (जो बाद में पूर्वी पाकिस्तान बना) से धान उगाने वाले किसानों के रूप में घुसपैठियों के प्रवाह ने असम की कुल जनसंख्या को इस हद तक प्रभावित किया कि अगली जनसंख्या रपट में इस बात को रेखांकित किया गया। पिछली शताब्दी में सभी भारतीय राज्यों की तुलना में वर्तमान असम राज्य में हिन्दुओं की जनसंख्या में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई है। सन् 1905 में जहां इस प्रदेश में हिन्दुओं की जनसंख्या 84.55 प्रतिशत थी, वहीं 1991 में घटकर 68.25 प्रतिशत रह गई है। इस दौरान बंगलादेश से होने वाली घुसपैठ के कारण मुसलमानों की जनसंख्या 15.03 प्रतिशत से बढ़कर 28.43 प्रतिशत हो गई। ऐसे ही घुसपैठ का नतीजा सन् 1881 और सन् 1931 में हुई जनगणना के दौरान सामने आया था, तब असम में मुसलमानों की जनसंख्या में 109 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी। याद रखना चाहिए कि ऐसी ही घुसपैठ के कारण क्षेत्र और जनसंख्या के हिसाब से असम का सबसे बड़ा जिला सिलहट मुस्लिम बहुल बना और अंतत: पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बना।

पश्चिम बंगाल के सीमांत क्षेत्रों में मदरसों की संख्या में भी तीन सौ प्रतिशत की दर से बढ़ोत्तरी हुई है। सीमा सुरक्षा बल के सूत्रों के अनुसार अधिकतर नए मदरसों के लिए कराची स्थित एक ट्रस्ट ने पैसा दिया है, जिसने विदेशी सहायता नियामन कानून के अनुरूप कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया। 1981-91 के दशक में पश्चिम बंगाल के छह जिलों-कूच बिहार, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग, मिदनापुर, बांकुड़ा और चौबीस परगना में मुसलमानों की वृद्धि दर हिन्दुओं से दोगुनी दर्ज की गई। सन् 2003 में सीमा प्रबंधन पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय के केन्द्रीय कार्यदल की रपट में भारत-नेपाल और भारत-बंगलादेश सीमा द्वारा भारतीय क्षेत्र में जनसांख्यिकीय आक्रमण पर गहरी चिंता प्रकट की गई थी। रपट में कहा गया कि पिछले कुछ समय में बिहार और पश्चिम बंगाल के सभी जिलों में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ मस्जिदों और मदरसों की संख्या में की अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है। रपट में सीमा के दोनों ओर मदरसों और मस्जिदों की तेजी से बढ़ती संख्या पर भी चिंता प्रकट की गई।

सन् 2003 में केन्द्रीय मंत्रियों के एक समूह के अध्ययन में पाया गया था कि देश के बारह सीमांत प्रदेशों के 11,453 मदरसे चल रहे थे। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. द्वारा हवाला के जरिए इन मदरसों को अवैध धन मुहैया करवाने के भी कई मामले प्रकाश में आने की रपट भी थी। राजस्थान में भारत-पाकिस्तान सीमा पर बीकानेर, अनूपगढ़, सूरतगढ़ और श्रीगंगानगर के संवेदनशील क्षेत्रों में करीब पचास मदरसों और मजारों के बनने से भी भारतीय सुरक्षा एजेंसियां सकते में हैं। सन् 2003 में करवाए गए एक आधिकारिक सर्वेक्षण से पता चला है कि राजस्थान के सीमांत क्षेत्रों में मदरसों के बढ़ने से मजहबी पहचान एवं प्रतीकों के प्रति आग्रह बढ़ रहा है। पिछली जनगणना (1991) के अनुसार, राजस्थान के पश्चिम में पाकिस्तान के सीमा से सटे जैसलमेर में मुसलमानों की जनसंख्या का अनुपात प्रदेश में सर्वाधिक है। सन् 1951-91 के कालखंड में राजस्थान के पाकिस्तान के साथ सटे चार सीमांत जिलों को छोड़कर प्रदेश के लगभग सभी जिलों में मुसलमानों की जनसंख्या के अनुपात में खासी बढ़ोत्तरी और भारतीय पंथ के अनुयायियों की जनसंख्या में गिरावट देखने को मिली है। इस दौरान प्रदेश में मुसलमानों की जनसंख्या में 41.46 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इस दौरान, मुसलमानों की वृद्धि दर हिन्दुओं से 13.37 प्रतिशत और कुल जनसंख्या वृद्धि दर से 13.02 प्रतिशत अधिक रही। आश्चर्य की बात यह है कि प्रदेश की राजधानी जयपुर सहित सत्रह जिलों में मुसलमानों की वृद्धि दर हिन्दुओं से कहीं अधिक थी।

एक तथ्य यह भी है कि अविभाजित भारत और भारतीय गणराज्य की हर जनगणना में कुल जनसंख्या में मुसलमानों की जनसंख्या में वृद्धि और हिन्दुओं की जनसंख्या में गिरावट दर्ज की गई। जहां सन् 1881 में कुल जनसंख्या में मुसलमानों की संख्या 20 प्रतिशत से बढ़कर 1941 में 69.4 हो गई वहीं हिन्दुओं की जनसंख्या 1881 में 75.1 प्रतिशत से घटकर 1941 में 69.4 प्रतिशत रह गई थी। यहां तक कि स्वतंत्र भारत में सन् 1951 में देश की कुल जनसंख्या में मुसलमानों का प्रतिशत 9.9 था जो कि सन् 1991 में 12.1 हो गया, जबकि कुल जनसंख्या में हिन्दुओं का प्रतिशत 84.9 से घटकर 82.0 रह गया। पी.एम. कुलकर्णी ने भारत में 1981-91 के दौरान हिन्दुओं और मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि में अंतर नामक अपने अध्ययन में राष्ट्रीय स्तर के अलावा बड़े राज्यों में मुसलमानों की हिन्दुओं की तुलना में उच्च वृद्धि दर के लिए मुख्य रूप से उनकी प्रजनन की अधिक दर, नवजातों की निम्न मृत्यु दर और कुछ हद तक सीमा पार से मुसलमानों की घुसपैठ को जिम्मेदार बताया है। यहां तक कि केरल जैसे अधिक साक्षरता वाले राज्य में भी मुसलमानों की प्रजनन दर हिन्दुओं से अधिक है। अगर सरकार और समाज ने समय रहते मुसलमानों की उच्च प्रजनन दर पर नियंत्रण, बंगलादेशी घुसपैठ और चर्च के मतांतरण अभियानों को रोकने के लिए प्रभावी कदम न उठाए तो वह दिन भी देखना पड़ सकता है जब हिन्दू अपने ही देश में अल्पसंख्यक होकर रह जाएंगे।

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