हिन्दू शौर्य के साथ कांग्रेस की बदतमीजी
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महाराणा प्रताप की कहानी में काट-छांट
जयपुर, 23 जून 2020,
अशोक गहलोत सरकार के दौरान किताबों की समीक्षा के लिए बनी कमेटी की सिफारिश पर पाठ्यपुस्तक मंडल की ओर से कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान की किताब के संस्करण में महाराणा प्रताप से जुड़ी ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी को हटा दिया है.
महाराणा प्रताप से जुड़ी ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी को हटा दियाप्रताप और चेतक की वीरता को काट-छांट कर उसे कम कर दिया गया
राजस्थान में सरकारों के बदलने के साथ ही इतिहास बदलने का भी चलन हो गया है. एक बार फिर से राजस्थान की किताबों के इतिहास में महाराणा प्रताप अकबर के खिलाफ लड़े गए हल्दीघाटी युद्ध में नहीं जीत पाए हैं. इसके पहले राजस्थान में इतिहास की किताबों मे पढ़ाया जाता था कि हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना जीती थी मगर पिछली बीजेपी सरकार ने 2017 में सिलेबस में बदलाव करते हुए बताया था कि महाराणा प्रताप की सेना ने हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर पर विजय प्राप्त की थी.
इसे लेकर इतिहासकारों में विवाद रहा. अब एक बार फिर से दसवीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान के किताब में महाराणा प्रताप के हल्दीघाटी युद्ध के जीतने के बारे में उल्लेख किए गए तथ्यों को हटा दिया गया है. यही नहीं इस किताब में यह भी साफ कर दिया गया है कि महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुआ युद्ध कोई धार्मिक युद्ध नहीं था बल्कि वह एक राजनीतिक युद्ध था.
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दरअसल गहलोत सरकार के दौरान किताबों की समीक्षा के लिए बनी कमेटी की सिफारिश पर पाठ्यपुस्तक मंडल की ओर से कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान की किताब के संस्करण में महाराणा प्रताप से जुड़ी ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी को हटा दिया है. इस मामले को लेकर मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्य एवं प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के साथ इतिहासकारों ने भी मोर्चा खोल दिया है.
पाठ्यक्रम में बदलाव हुए कुछ वर्ष ही हुए हैं
इन लोगों का कहना है कि इस तरह किताब से महाराणा प्रताप और चेतक घोड़े से जुड़े अनछुए पहलुओं और तथ्यों को हटाना गलत है. सरकार के इस कदम से आने वाली पीढ़ी को महाराणा प्रताप के गौरवशाली इतिहास का ज्ञान पूरा नहीं मिल पाएगा. वर्ष 2017 की किताब में प्रताप के हल्दीघाटी के युद्ध एव चेतक घोड़े की वीरता का वर्णन पूरा था लेकिन वर्ष 2020 के संस्करण में प्रताप और चेतक की वीरता को काट-छांट कर उसे कम कर दिया गया है.
मजे की बात तो यह है कि इस काट-छांट में लेखक चंद्रशेखर शर्मा की सहमति तक नहीं ली गई है. साल 2017 के सिलेबस में यह दर्शाया गया था कि महाराणा प्रताप ने किस तरह से हल्दीघाटी युद्ध में संघर्ष किया और उस संघर्ष के बाद आज भी महाराणा प्रताप को देश-दुनिया याद करती है.
ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी को हटाने को लेकर महाराणा प्रताप पर शोध करने वाले एकमात्र इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा और प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने साफ किया कि महाराणा प्रताप के जीवन के ऐतिहासिक पहलुओं को किताब से हटाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. जिन पहलुओं को समाजिक विज्ञान के वर्ष 2020 के संस्करण हटाया गया है, वो तथ्य आने वाली पीढ़ी के बच्चों के लिए काफी महत्वपूर्ण है.
आज के इस दौर में महाराणा प्रताप कि उन सभी बातों को बच्चों को पढ़ाना बहुत जरूरी है जो कि उन्होंने अपने जीवन काल में संघर्ष करते हुए दूसरों के लिए प्रेरणादायक बन गई.
मेवाड़ ने पाठ्यक्रम मंडल के सदस्यों पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि आखिर ऐसी क्या वजह थी जिसके चलते जल्दबाजी में पाठ्यक्रम में बदलाव करना पड़ा, जबकि पाठ्यक्रम में बदलाव हुए कुछ वर्ष ही हुए हैं.
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जयपुर, 23 जून 2020,
अशोक गहलोत सरकार के दौरान किताबों की समीक्षा के लिए बनी कमेटी की सिफारिश पर पाठ्यपुस्तक मंडल की ओर से कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान की किताब के संस्करण में महाराणा प्रताप से जुड़ी ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी को हटा दिया है.
महाराणा प्रताप से जुड़ी ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी को हटा दियाप्रताप और चेतक की वीरता को काट-छांट कर उसे कम कर दिया गया
राजस्थान में सरकारों के बदलने के साथ ही इतिहास बदलने का भी चलन हो गया है. एक बार फिर से राजस्थान की किताबों के इतिहास में महाराणा प्रताप अकबर के खिलाफ लड़े गए हल्दीघाटी युद्ध में नहीं जीत पाए हैं. इसके पहले राजस्थान में इतिहास की किताबों मे पढ़ाया जाता था कि हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना जीती थी मगर पिछली बीजेपी सरकार ने 2017 में सिलेबस में बदलाव करते हुए बताया था कि महाराणा प्रताप की सेना ने हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर पर विजय प्राप्त की थी.
इसे लेकर इतिहासकारों में विवाद रहा. अब एक बार फिर से दसवीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान के किताब में महाराणा प्रताप के हल्दीघाटी युद्ध के जीतने के बारे में उल्लेख किए गए तथ्यों को हटा दिया गया है. यही नहीं इस किताब में यह भी साफ कर दिया गया है कि महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुआ युद्ध कोई धार्मिक युद्ध नहीं था बल्कि वह एक राजनीतिक युद्ध था.
तुलसी-अश्वगंधा समेत इन चीजों से पतंजलि ने बनाई कोरोनिल, कोरोना को देगी मात
दरअसल गहलोत सरकार के दौरान किताबों की समीक्षा के लिए बनी कमेटी की सिफारिश पर पाठ्यपुस्तक मंडल की ओर से कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान की किताब के संस्करण में महाराणा प्रताप से जुड़ी ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी को हटा दिया है. इस मामले को लेकर मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्य एवं प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के साथ इतिहासकारों ने भी मोर्चा खोल दिया है.
पाठ्यक्रम में बदलाव हुए कुछ वर्ष ही हुए हैं
इन लोगों का कहना है कि इस तरह किताब से महाराणा प्रताप और चेतक घोड़े से जुड़े अनछुए पहलुओं और तथ्यों को हटाना गलत है. सरकार के इस कदम से आने वाली पीढ़ी को महाराणा प्रताप के गौरवशाली इतिहास का ज्ञान पूरा नहीं मिल पाएगा. वर्ष 2017 की किताब में प्रताप के हल्दीघाटी के युद्ध एव चेतक घोड़े की वीरता का वर्णन पूरा था लेकिन वर्ष 2020 के संस्करण में प्रताप और चेतक की वीरता को काट-छांट कर उसे कम कर दिया गया है.
मजे की बात तो यह है कि इस काट-छांट में लेखक चंद्रशेखर शर्मा की सहमति तक नहीं ली गई है. साल 2017 के सिलेबस में यह दर्शाया गया था कि महाराणा प्रताप ने किस तरह से हल्दीघाटी युद्ध में संघर्ष किया और उस संघर्ष के बाद आज भी महाराणा प्रताप को देश-दुनिया याद करती है.
ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी को हटाने को लेकर महाराणा प्रताप पर शोध करने वाले एकमात्र इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा और प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने साफ किया कि महाराणा प्रताप के जीवन के ऐतिहासिक पहलुओं को किताब से हटाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. जिन पहलुओं को समाजिक विज्ञान के वर्ष 2020 के संस्करण हटाया गया है, वो तथ्य आने वाली पीढ़ी के बच्चों के लिए काफी महत्वपूर्ण है.
आज के इस दौर में महाराणा प्रताप कि उन सभी बातों को बच्चों को पढ़ाना बहुत जरूरी है जो कि उन्होंने अपने जीवन काल में संघर्ष करते हुए दूसरों के लिए प्रेरणादायक बन गई.
मेवाड़ ने पाठ्यक्रम मंडल के सदस्यों पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि आखिर ऐसी क्या वजह थी जिसके चलते जल्दबाजी में पाठ्यक्रम में बदलाव करना पड़ा, जबकि पाठ्यक्रम में बदलाव हुए कुछ वर्ष ही हुए हैं.
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महाराणा प्रताप पर पूरा अध्याय तक नहीं है पाठ्यक्रम में
कक्षा 1 से 12 तक की पाठ्य पुस्तकों में महाराणा प्रताप का त्याग और बलिदान चंद संदर्भो तक में सिमट गया है।
May 20, 2012, 05:03 AM IST
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