लोकमत से बनें थे प्रताप, मेबाड के महाराणा Maharana Prtap
लोकमत से बनें थे प्रताप, मेबाड के महाराणा
मेवाड के राजपूत सरदारों ने बनाया प्रताप को महाराणा
महाराणा प्रताप को उनके पिता राणा उदयसिंह ने माहाराणा नहीं बनाया था बल्कि मेवाड के सरदारों ने लोकमत के द्वारा प्रताप का राजतिलक कर उन्हे महाराणा बनाया था।
महाराणा प्रताप का राजतिलक
उदय सिंह ने कई विवाह किए थे जिनसे उनको कुल 45 संताने थी।
महाराणा उदय सिंह की सबसे प्रिय रानी धीर बाई थी। इनको उदय सिंह अधिक प्रेम करते थे और ज्यादा महत्व देते थे। धीरबाई के कहने पर ही महाराणा उदय सिंह ने जगमाल को मेवाड़ का भावी राजा घोषित कर दिया था।
नियम के अनुसार जो सबसे बड़ा पुत्र होता है वही उत्तराधिकारी बनने का पात्र होता है परंतु महाराणा प्रताप को अपने पिता के निर्णय पर कोई दुख नहीं हुआ और उन्होंने इस निर्णय को सहर्ष स्वीकार किया। परंतु राज्य की प्रजा और राजपूत सामंतो को यह निर्णय मंजूर नहीं था क्योंकि उन्हें महाराणा प्रताप की योग्यता वे अच्छी तरह पता थी।
धीरे धीरे महाराणा उदय सिंह का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और सन 1572 में उदय सिंह का स्वर्गवास हो गया। महाराणा उदय सिंह के अंतिम संस्कार में मेवाड़ की सामान्य प्रजा, मेवाड़ के सभी सामंत सरदार और महाराणा प्रताप उपस्थित थे परंतु इस दुख के समय में कुंवर जगमाल महल के अंदर राजगद्दी पर बैठने के लिए अपना राज्याभिषेक करवा रहे थे । कारण सभी सरदारों में क्रोध की ज्वाला भड़क उठी और उन्होंने गोगुंदा की पहाड़ियों के बीच मेवाड़ के असली और योग्य राजा श्री कुंवर प्रताप का राज्याभिषेक कर दिया।
सरदार रावत कृष्णदास चुंडावत ने एक तलवार महाराणा प्रताप की कमर में बांधी और यह घोषणा की कि आज से महाराणा प्रताप ही मेवाड़ के महाराणा है।
राजतिलक के बाद महाराणा प्रताप अपने राजपूत सामंत सरदारों के साथ कुंभलगढ़ दुर्ग की ओर रवाना हुए। महाराणा प्रताप के आने की खबर सुनकर छोटा भाई जगमाल भय के कारण अकबर की शरण में चला गया जिसके बाद 1573 में मेवाड़ की राजगद्दी पर राजपूत कुलभूषण महाराणा प्रताप का औपचारिक रूप से राजतिलक कर दिया गया।
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