कोई भी बच नहीं सकता ईश्वर ने न्याय से Justice of God

अवश्यमेव भोक्तव्यम,कृतं कर्म शुभाशुभम 
सावधान! आप सर्वोच्च न्यायालय से भी उच्च न्यायालय, के सीसीटीवी केमरे की निगाह में हैं

(न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र और कुलिया डाकू )

कुछ साल पहले, जब न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे तो उन्हें ओडिशा के पुरी के लॉ कॉलेज में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। कॉलेज समारोह में जाने से पहले वह भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पुरी के जगन्नाथ मंदिर गए और लौटते समय उन्होंने किसी को कई बार "रंगनाथ बाबू" नाम से पुकारते हुए सुना। वह इस बात से आश्चर्यचकित थे कि उसे इस तरह ऊंची आवाज में कौन बुला सकता है, वह भी मंदिर के प्रवेश द्वार के पास ? असमंजस की स्थिति में उन्होने पीछे मुड़कर देखा तो एक भिखारी के बदसूरत चेहरे वाला, कुष्ठ रोग से ग्रस्त और हाथ-पैरों पर पट्टी बांधे व्यक्ति को उन्हें बुलाते हुए देखा !!

  जस्टिस मिश्रा ने उससे पूछा, "आप कौन हैं और मुझे क्यों बुला रहे हैं?" मरीज ने उत्तर दिया, "सर, आपको मैं याद नहीं हूं ? मैं कुख्यात कुलिया डकैत (डाकू) हूं। कुछ साल पहले, जब आप ओडिशा उच्च न्यायालय में वकालत कर रहे थे तो मैं आपका मुवक्किल था। डकैती और हत्या के एक मामले में मुझे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, निचली अदालत द्वारा कड़ी सजा। लेकिन आपने ओडिशा उच्च न्यायालय में मेरे पक्ष में बहस की और मुझे बिना किसी सजा के रिहा करवा दिया था। लेकिन वास्तव में मैं दोषी था क्योंकि मैंने एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी , और उसके पैसे और सोना लूट लिया था। इसी तरह दूसरे मामलों में भी मुझे बिना किसी सज़ा के रिहा कर दिया गया।"
             
उसने आगे कहा, "सर, हालांकि मुझे इंसानों के न्यायालय द्वारा मुक्त कर दिया गया था, पर सर्वशक्तिमान के दरबार से मुझे कड़ी सजा दी गई और मेरे पूरे शरीर में कुष्ठ रोग हो गया और परिणामस्वरूप मैंने अंग खो दिए। मेरा परिवार, मेरे रिश्तेदार मुझसे नफरत करते हैं और मुझे गाँव से बाहर निकाल दिया। इसलिए अब मैं सड़क पर रेंगकर खाना माँग रहा हूँ। मंदिर के गेट के पास कभी-कभी कोई खाना दे देता है या फिर बिना खाना खाए ही रह जाता हूँ।"
यह सुनकर जस्टिस मिश्रा ने उसे सौ रुपए का नोट दिया और भारी मन से चुपचाप चले गए !! 
           
लॉ कॉलेज के कार्यक्रम में जस्टिस मिश्रा ने नम आंखों से यह सच्ची घटना बताई। उन्होंने कहा, “हम यहां अपनी बुद्धि के अनुसार किसी को रिहा करने या सजा देने वाले न्यायाधीश हैं, लेकिन ऊपर एक और ऊपरी अदालत है जहां कोई बुद्धि काम नहीं करती और अपराधी को सजा जरूर मिलती है।”

हम सोचते हैं कि हमें कोई देख नहीं रहा ,और हम तमाम तरह की गलत कार्य में लिप्त रहते हैं ,लेकिन वास्तविकता तो यह है की एक तीसरी आंख हमें निरंतर देख रही है और हमारे कार्यों हिसाब भी रख रही है !! यह सत्य है कि हमें अपने कर्मों का फल इसी जन्म में मिल जाता है।
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एक अन्य सत्य घटना.....

कोटा राजस्थान में एक अति प्रभावशाली व्यक्ती था, जो पंचायतीराज में बड़ा हस्तक्षेप रखता था, कांग्रेस पार्टी का दिग्गज नेता था।  राजस्थान के सीलिंग कानून में उसके परिवार की काफी जमीन सरकार में चली गईं, जो कि सरकार द्वारा गरीब व्यक्तियों में वितरित कर दी गईं। किन्तु उस प्रभावशाली नेता नें उन्हें न तो जमीन पर कब्जा करने दिया और फसलें करने दीं, जबकि उन्हें सरकार नें स्वामित्व दे दिया था।

सरकार के अधिकारीयों नें जनप्रतिनिधियों नें यहाँ तक कि जिला कलेक्टर, जिला पुलिस अधीक्षक और लोकसभा सांसद नें भी तमाम प्रयत्न किए किन्तु उस नेता नें जमीन पर उन गरीबों को कब्जा करने ही नहीं दिया। जो भी कब्जा करने जाता उसे मारा पीटा जाता, क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता। 

तमाम कोशिशों के बाद उस राजनेता को जिला कलेक्टर नें रासुका में बंद कर दिया। रासुका में जिला कलेक्टर 6 महीनेँ स्वविवेक से निरुद्ध कर सकता है, इससे ज्यादा के लिए राज्य सरकार की अनुमति आवश्यक है।

रासुका में उस दबँग राजनेता को और बंद रखने की अनुमति नहीं मिली, क्योंकि तत्कालीन राज्य सरकार उसकी पार्टी की ही थी और अपुष्ठ रूप से कहा जाता है कि कोई बड़ा पैसे का लेनदेन भी तय हुआ था। 

वह नेताजी जजेल से छूट गये, एक डो दिन बाद अपने पुत्र के साथ जयपुर रवाना हुए, उनका देवली से आगे एक्सीडेंट ही गया, दोनों की मृत्यु हो गईं।

तब तत्कालीन एक बड़े पुलिस अधिकारी का फोन, सांसद महोदय के पास आया कि " एक सांसद, एक कलेक्टर और पुलिस का पूरा महकमा जिन गरीबों को न्याय नहीं दिला पाया, उन गरीबों को भगवान के यहाँ से न्याय मिल गया। "

इसीलिए कहा गया है भगवान के यहाँ देर है अंधेर नहीं...

भगवान की लाठीमें आवाज नहीं होती...

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