विष्णु पुराण के अनुसार काल-गणना vishnu puran kal ganana
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विष्णु पुराण के अनुसार काल-गणना विभाग, विष्णु पुराण भाग १, तॄतीय अध्याय के अनुसार:- 2 अयन (छः मास अवधि, ऊपर देखें) = 1 मानव वर्ष = एक दिव्य वर्ष
- 4,000 + 400 + 400 = 4,800 दिव्य वर्ष = 1 कॄत युग
- 3,000 + 300 + 300 = 3,600 दिव्य वर्ष = 1 त्रेता युग
- 2,000 + 200 + 200 = 2,400 दिव्य वर्ष = 1 द्वापर युग
- 1,000 + 100 + 100 = 1,200 दिव्य वर्ष = 1 कलि युग
- 12,000 दिव्य वर्ष = 4 युग = 1 महायुग (दिव्य युग भी कहते हैं)
- ब्रह्मा की काल गणना
- 1000 महायुग= 1 कल्प = ब्रह्मा का 1 दिवस (केवल दिन) (चार खरब बत्तीस अरब मानव वर्ष; और यहूसूर्य की खगोलीय वैज्ञानिक आयु भी है).
(दो कल्प ब्रह्मा के एक दिन और रात बनाते हैं)- 30 ब्रह्मा के दिन = 1 ब्रह्मा का मास (दो खरब 59 अरब 20 करोड़ मानव वर्ष)
- 12 ब्रह्मा के मास = 1 ब्रह्मा के वर्ष (31 खरब 10 अरब 4 करोड़ मानव वर्ष)
- 50 ब्रह्मा के वर्ष = 1 परार्ध
- 2 परार्ध= 100 ब्रह्मा के वर्ष= 1 महाकल्प (ब्रह्मा का जीवन काल)(31 शंख 10 खरब 40अरब मानव वर्ष)
ब्रह्मा का एक दिवस 10,000 भागों में बंटा होता है, जिसे चरण कहते हैं:चारों युग
4 चरण (1,728,000 सौर वर्ष) सत युग
3 चरण (1,296,000 सौर वर्ष) त्रेता युग
2 चरण (864,000 सौर वर्ष) द्वापर युग
1 चरण (432,000 सौर वर्ष) कलि युग
यह चक्र ऐसे दोहराता रहता है, कि ब्रह्मा के एक दिवस में 1000 महायुग हो जाते हैं- एक उपरोक्त युगों का चक्र = एक महायुग (43 लाख 20 हजार सौर वर्ष)
- श्रीमद्भग्वदगीता के अनुसार "सहस्र-युग अहर-यद ब्रह्मणो विदुः", अर्थात ब्रह्मा का एक दिवस = 1000 महायुग. इसके अनुसार ब्रह्मा का एक दिवस = 4 अरब 32 खरब सौर वर्ष. इसी प्रकार इतनी ही अवधि ब्रह्मा की रात्रि की भी है.
- एक मन्वन्तर में 71 महायुग (306,720,000 सौर वर्ष) होते हैं. प्रत्येक मन्वन्तर के शासक एक मनु होते हैं.
- प्रत्येक मन्वन्तर के बाद, एक संधि-काल होता है, जो कि कॄतयुग के बराबर का होता है (1,728,000 = 4 चरण) (इस संधि-काल में प्रलय होने से पूर्ण पॄथ्वी जलमग्न हो जाती है.)
- एक कल्प में 864,000,0000 - ८ अरब ६४ करोड़ सौर वर्ष होते हैं, जिसे आदि संधि कहते हैं, जिसके बाद 14 मन्वन्तर और संधि काल आते हैं
- ब्रह्मा का एक दिन बराबर है:
- (14 गुणा 71 महायुग) + (15 x 4 चरण)
-
- = 994 महायुग + (60 चरण)
-
- = 994 महायुग + (6 x 10) चरण
-
- = 994 महायुग + 6 महायुग
-
- = 1,000 महायुग
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विष्णु पुराण के अनुसार काल-गणना विभाग, विष्णु पुराण भाग १, तॄतीय अध्याय के अनुसार:
विष्णु पुराण के अनुसार काल-गणना विभाग, विष्णु पुराण भाग १, तॄतीय अध्याय के अनुसार:
- 2 अयन (छः मास अवधि, ऊपर देखें) = 1 मानव वर्ष = एक दिव्य वर्ष
- 4,000 + 400 + 400 = 4,800 दिव्य वर्ष = 1 कॄत युग
- 3,000 + 300 + 300 = 3,600 दिव्य वर्ष = 1 त्रेता युग
- 2,000 + 200 + 200 = 2,400 दिव्य वर्ष = 1 द्वापर युग
- 1,000 + 100 + 100 = 1,200 दिव्य वर्ष = 1 कलि युग
- 12,000 दिव्य वर्ष = 4 युग = 1 महायुग (दिव्य युग भी कहते हैं)
- ब्रह्मा की काल गणना
- 1000 महायुग= 1 कल्प = ब्रह्मा का 1 दिवस (केवल दिन) (चार खरब बत्तीस अरब मानव वर्ष; और यहूसूर्य की खगोलीय वैज्ञानिक आयु भी है).
(दो कल्प ब्रह्मा के एक दिन और रात बनाते हैं)
- 30 ब्रह्मा के दिन = 1 ब्रह्मा का मास (दो खरब 59 अरब 20 करोड़ मानव वर्ष)
- 12 ब्रह्मा के मास = 1 ब्रह्मा के वर्ष (31 खरब 10 अरब 4 करोड़ मानव वर्ष)
- 50 ब्रह्मा के वर्ष = 1 परार्ध
- 2 परार्ध= 100 ब्रह्मा के वर्ष= 1 महाकल्प (ब्रह्मा का जीवन काल)(31 शंख 10 खरब 40अरब मानव वर्ष)
ब्रह्मा का एक दिवस 10,000 भागों में बंटा होता है, जिसे चरण कहते हैं:
4 चरण (1,728,000 सौर वर्ष) | सत युग |
3 चरण (1,296,000 सौर वर्ष) | त्रेता युग |
2 चरण (864,000 सौर वर्ष) | द्वापर युग |
1 चरण (432,000 सौर वर्ष) | कलि युग |
यह चक्र ऐसे दोहराता रहता है, कि ब्रह्मा के एक दिवस में 1000 महायुग हो जाते हैं
- एक उपरोक्त युगों का चक्र = एक महायुग (43 लाख 20 हजार सौर वर्ष)
- श्रीमद्भग्वदगीता के अनुसार "सहस्र-युग अहर-यद ब्रह्मणो विदुः", अर्थात ब्रह्मा का एक दिवस = 1000 महायुग. इसके अनुसार ब्रह्मा का एक दिवस = 4 अरब 32 खरब सौर वर्ष. इसी प्रकार इतनी ही अवधि ब्रह्मा की रात्रि की भी है.
- एक मन्वन्तर में 71 महायुग (306,720,000 सौर वर्ष) होते हैं. प्रत्येक मन्वन्तर के शासक एक मनु होते हैं.
- प्रत्येक मन्वन्तर के बाद, एक संधि-काल होता है, जो कि कॄतयुग के बराबर का होता है (1,728,000 = 4 चरण) (इस संधि-काल में प्रलय होने से पूर्ण पॄथ्वी जलमग्न हो जाती है.)
- एक कल्प में 864,000,0000 - ८ अरब ६४ करोड़ सौर वर्ष होते हैं, जिसे आदि संधि कहते हैं, जिसके बाद 14 मन्वन्तर और संधि काल आते हैं
- ब्रह्मा का एक दिन बराबर है:
- (14 गुणा 71 महायुग) + (15 x 4 चरण)
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- = 994 महायुग + (60 चरण)
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- = 994 महायुग + (6 x 10) चरण
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- = 994 महायुग + 6 महायुग
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- = 1,000 महायुग
श्वेतवाराह कल्प के मनु
मन्वन्तर | मनु | सप्तर्षि | विशिष्ट व्यक्तित्व |
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प्रथम | स्वायम्भु मनु | मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह, कृतु,पुलस्त्य, और वशिष्ठ[२][६]. | प्रियव्रत, ऋषभदेव, भरत, ज्ञडभरत, प्रह्लाद, भगवन कपिल[७]. |
द्वितीय | स्वरोचिष मनु | उर्जा, स्तम्भ, प्राण, दत्तोली, ऋषभ, निश्चर एवं अर्वरिवत | |
तृतीय | औत्तमी मनु | वशिष्ठ के पुत्र: कौकुनिधि, कुरुनधि, दलय, सांख, प्रवाहित, मित एवं सम्मित | |
चतुर्थ | तामस मनु | ज्योतिर्धाम, पृथु, काव्य, चैत्र, अग्नि, वानक एवं पिवर | |
पंचम | रैवत मनु | हिरण्योर्मा, वेदश्री, ऊर्द्धबाहु, वेदबाहु, सुधामन, पर्जन्य एवं महानुनि | |
षष्टम | चाक्षुष मनु | सुमेधस, हविश्मत, उत्तम, मधु, अभिनमन एवं सहिष्णु | |
वर्तमान सप्तम | वैवस्वत मनु | कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम,जम्दग्नि, भरद्वाज[६] | इक्च्वाकू, मान्धाता, सत्यव्रत (त्रिशंकु ), हरीश चन्द्र, रोहित सागर, औशुमन, दिलीप,भगीरथ, खट्वांग, अज, दशरथ, भगवान् राम, लव और कुश,भगवान् कृष्ण [८] |
अष्टम | सावर्णि मनु | आने वाला पाठ्य....विष्णु पुराण: भाग:तृतीय, अध्याय:द्वितीय | |
नवम | दक्ष सावर्णि मनु | भविष्य के सप्तर्षि | |
दशम | ब्रह्म सावर्णि मनु | भविष्य के सप्तर्षि | |
एकादश | धर्म सावर्णि मनु | भविष्य के सप्तर्षि | |
द्वादश | रुद्र सावर्णि मनु | भविष्य के सप्तर्षि | |
त्रयोदश | रौच्य या देव सावर्णि मनु | भविष्य के सप्तर्षि | |
चतुर्दश | भौत या इन्द्र सावर्णि मनु | भविष्य के सप्तर्षि |
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मन्वन्तर [१], मनु [२], हिन्दू धर्म अनुसार, मानवता के प्रजनक, की आयु होती है. यह समय मापन की खगोलीय अवधि है. मन्वन्तर एक संस्कॄत शब्द है, जिसका संधि-विच्छेद करने पर = मनु+अन्तर मिलता है. इसका अर्थ है मनु की आयु[३].
प्रत्येक मन्वन्तर एक विशेष मनु द्वारा रचित एवं शासित होता है, जिन्हें ब्रह्मा द्वारा सॄजित किया जाता है. मनु विश्व की और सभी प्राणियों की उत्पत्ति करते हैं, जो कि उनकी आयु की अवधि तक बनती और चलती रहतीं हैं, (जातियां चलतीं हैं, ना कि उस जाति के प्राणियों की आयु मनु के बराबर होगी). उन मनु की मॄत्यु के उपरांत ब्रह्मा फ़िर एक नये मनु की सृष्टि करते हैं, जो कि फ़िर से सभी सृष्टि करते हैं. इसके साथ साथ विष्णु भी आवश्यकता अनुसार, समय समय पर अवतार लेकर इसकी संरचना और पालन करते हैं. इनके साथ ही एक नये इंद्र और सप्तर्षि भी नियुक्त होते हैं.
चौदह मनु और उनके मन्वन्तर को मिलाकर एक कल्प बनता है। यह ब्रह्मा का एक दिवस होता है। यह हिन्दू समय चक्र और वैदिक समयरेखा के नौसार होता है। प्रत्येक कल्प के अन्त में प्रलय आती है[४], जिसमें ब्रह्माण्ड का संहार होता है, और वह विराम की स्थिति में आ जाता है, जिस काल को ब्रह्मा की रात्रि कहते हैं।
इसके उपरांत सृष्टिकर्ता ब्रह्मा फ़िर से सृष्टिरचना आरम्भ करते हैं, जिसके बाद फ़िर संहारकर्ता भगवान शिव इसका संहार करते हैं। और यह सब एक अंतहीन प्रक्रिया या चक्र में होता रहता है। [५].
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कल्प एक हिन्दू समय चक्र की बहुत लम्बी मापन इकाई है। कल्प शब्द का अति प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है. यह बौद्ध पठ्य में भी मिलता है, हालांकि बहुत बाद के काल में, वह भी हिन्दू पाठ से लिया हुआ ही है. यहां यह उल्लेखनीय है, कि बुद्ध एक हिन्दू परिवार में जनमे हिन्दू ही थे.
हिन्दू धर्म में एक कल्प होता है चार अरब बत्तीस करोड़ मानव वर्षों के बराबर के समय को कहते हैं. यह ब्रह्मा के एक दिवस या एक सहस्र महायुग के बराबर होता है. आधुनिक वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड की आयु तेरह अरब वर्ष बतायी है. प्रत्येक कल्प चौदह मन्वन्तरों में बंटा होता है (एक मन्वन्तर बराबर 306,720,000 वर्ष). दो कल्पों से ब्रह्मा की एक दिवस और रात्रि बनती है. यानी 259,200,000,000 वर्ष. ब्रह्मा के बारह मास से उनका एक वर्ष बनता है. और सौ वर्ष उनकी आयु होती है. इसमें से पचास वर्ष बीत चुके हैं, और हम अब श्वेतवाराह कल्प में हैं. प्रत्येक कल्प के अन्त में प्रलय आती है.
March 16th, 2010 at 8:51 pm
रत्नेशजी ने सराहनीय जानकारी प्रस्तुत की। धन्यवाद। कुछ भारतीय काल गणनाके जागतिक प्रभावके पहलु संक्षेपमें प्रस्तुत करता हूं।
कभी आपको भी प्रश्न हुआ होगा, कि अंग्रेजी सप्टेंबर, ऑक्टोबर,नवेंबर,डिसेंबर; इन नामोका संस्कृत जैसे सप्तांबर, अष्टांबर, नवांबर, दशांबर ऐसे शब्दोंसे क्या संबंध है? और यह कैसे हो गया? मैने जब एन्सायक्लोपेडिया ब्रीटानीका देखा तो इसका कुछ अनुसंधान मिला।
(१) इ. १७५० तक युरप में भी नया वर्ष मार्च मे हि (२०-२५) मार्च के लगभग प्रारंभ हुआ करता था। युरपमे अनेक कॅलेंडर चलते थे।उनमें कोई एक वाक्यता नहीं थी। १७५२ में पर्लामेंट के अधिनियम द्वारा नववर्ष जनवरी १ से प्रारंभ किया गया।
मेरे एक पुर्तगाली(Client) ग्राहकने मुझे बताया कि Calendar को पुर्तगाली में “कलांदर” कहा जाता है। मुझे यह कलांदर हमारे “कालांतर” जैसा लगता है। जैसे मन्वंतर, युगांतर, कल्पांतर इत्यादि शब्द हैं; वैसे ही कालांतर संस्कृत निष्ठ ही है। जो Calendar का भी मूल होगा।