बलिदानी सैनिकों के परिजनों हेतु व्यवस्थित व्यवहार तय हों - अरविन्द सिसोदिया
बलिदानी सैनिकों के परिजनों हेतु व्यवस्थित व्यवहार तय हों - अरविन्द सिसोदिया
शहीद सैनिक अपने जीवन का बलिदान देकर अपने कर्त्तव्य को निभाता है तो देश की व्यवस्था भी अपनी सर्वोच्चता से कर्त्तव्यवहन का परिचय दे । बलिदानी सैनिको के परिजनों के मामले राष्ट्रीयस्तर पर रक्षा मंत्री स्वयं और प्रदेश में मुख्यमंत्री और जिले में जिला कलक्टर डील करें।
सेना से जुडे मामलों में राजनीति नहीं होनी चाहिये , किन्तु राजस्थान में वीरांगनाओं ने मुख्यमंत्री गहलोत से मिलने की काफी कोशिशें की मगर उन्होनें हठधर्मि से सामान्य मामले पर राजनीति का अवसर दिया ।
सेना से जुडे तमाम मामलों को सुलझानें के लिये एक त्वरितगति से निर्णय लेनें वाला सिस्टम होना ही चाहिये। ताकि शहीद सैनिकों तक के आश्रितों को इधर उधर भटकना न पडें। जैसे जिले में जिला कलक्टर, राज्य में मुख्यमंत्री और केन्द्र में रक्षा मंत्री तो न्यायपालिका में जिला न्यायाधशी तो उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में स्वयं मुख्य न्यायाधीश गण मामले को सुनें एवं समय सीमा में सुलझायें।
राजस्थान
में भारतीय सेना के वीर सपूतों की वीरांगनाओं के साथ कांग्रेस की गहलोत
सरकार के द्वारा जो व्यवहार किया गया वह सिर्फ और सिर्फ निंदनीय है।
अशोभनीय है, यह नहीं होना चाहिए था। आधीरात में पुलिस कार्यवाही का कोई
औचित्य नहीं था।
इससे भी दुर्भाग्यशाली विधानसभा
में इस संदर्भ में बदतमीजीपूर्ण वक्तव्य रहा. एक राज्य सभा सांसद को
आतंकी कह रहे हैं। नाते जानें की प्रथा लम्बे समय से है, इसमें कोई बुराई
भी नहीं है, जीवन जीने की व्यवस्था है। सभी को सुखपूर्वक जीवन जीने का
अधिकार है। इन शब्दों के उपयोग की जरूरत कतई नहीं थी।
जहां
तक बलिदानी सैनिक के परिजनों का सवाल हैं, उसमें पत्नी एवं बच्चों के
आलावा माँ -बाप,भाई- बहन को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। यह है कि
प्राथमिकता क्रम तय कर सकते हैं। माँ बाप की वृद्धा वस्था का सहारा तो उसका
बेटा ही था। यह सही है की देवर और ननद सीधे तौर पर प्राथमिकता नहीं पा
सकते किन्तु परिस्थिति विशेष में इनके माध्यम से भी राहत दी जा सकती है। ये
कोई दुश्मन नहीं हैं।
कुलमिला कर एक बलिदानी सैनिक के परिजनों
को लेकर एक सुनिश्चित समय में सुनिश्चित प्रक्रिया से राहत एवं सहायता की
तय व्यवस्था होनी चाहिए।
.....
देश पर अपना सर्वश्व
बलिदान कर देने वाले बलिदानी सैनिकों हेतु एक न्यूनतम सहायता एवं सम्मान तय
किया जाना चाहिए। जिसमें उन्हें तय समय सीमा में उनके परिजनों को पेंशन,
अन्य देताओं का भुगतान, विद्यालय नामकरण, भूमि या आवास आबंटन, पैट्रोल पंप,
गैस एजेंसी आदी का आबंटन, सड़क, विद्यालय नाम करण, प्रतिमा स्थापना आदि हो
जाये। उनके साथ सम्मान जनक व्यवहार हो एक सुनिश्चित आचार संहिता का निर्माण
केंद्र सरकार को करनी चाहिए। जिसका पालन राज्य सरकारों को करना अनिवार्य
हो।
उदाहरणार्थ जैसे -
1- बलिदानी
सैनिक का जन्म उसके माता पिता के कारण हुआ है, उन्होंने पलपोश कर बड़ा किया,
सेना की सेवा लायक बनाया। यह उनकी सबसे बड़ी क्षति है। उन्हें प्रथम सम्मान
का अधिकार है। गणतंत्र दिवस पर इस तरह के पात्र व्यक्तियों को घर से लाना
ठीक से बिठाना खिलाना पिलाना सम्मान करना और फिर घर छोड़ कर आना प्रोटोकाल
में सम्मिलित हो।
2- बलिदानी सैनिक की i पत्नी की सबसे अधिक क्षति हुई है, उनका भी उतना ही अधिकार है, जितना माता पिता का।
3- बलिदानी सैनिक की संतान गर्भ में हो या बालिग़ हो उनकी भी क्षति हुई है, उनका भी अधिकार उतना ही है जितना माता पिता का।
4-
बलिदानी सैनिक के अंतिम संस्कार में उस पते के जिला कलक्टर, पुलिस
अधीक्षक, विधायक, sho, सरपंच, पालिका अध्यक्ष का सम्मिलित होना अनिवार्य
होगा। अनुपस्थित में जिला सेसन जज इन पर शास्ती लगा सकेगा।
5-
बलिदान के 3 माह के अंदर, उनके निवास के आसपास स्थित ग्राम पंचायत केंद्र
या नगरपालिका केंद्र पर के एक स्कूल का नामकरण किया जाना, ठीक जगह पर
प्रतिमा का निर्माण किया जाना एवं किसी मार्ग का नामकरण किया जाना। यह
कार्य जिला कलक्टर को 3 माह में करने होंगे। प्रस्ताव पर एक माह में कोई भी
आपत्ति न आये तो जिला कलक्टर यह कार्य जिला स्तर पर भी करके गजटनोटिफिकेशन
को भेज सकता है। राज्य सरकार के स्तर पर कोई नगद राशि ही जानी है उसके
साथ, गैस एजेंसी, जमीन आबंटन, सरकारी योजना का आवास आबंटन आदी की कार्यवाही
के लिये भी जिला कलक्टर ही जबावदेह होगा। जिला कलक्टर के विरुद्ध जिला
सेसन जज को शिकायत का अधिकार होगा।
अर्थात समस्त लाभ बिना किसी देरी के और सभी की क्षतियों को ध्यान में रखते हुये, राहत एवं सहायता के लिये नियम बनने ही चाहिये।
बलिदानी सैनिक के अंतिम संस्कार से पहले ही -
1-
बलिदानी सैनिक के अंतिम संस्कार के सभी प्रबंध सूचना इत्यादि का दायित्व
जिला कलक्टर कार्यालय एवं adm प्रशासन का होगा, स्थानीय स्तर पर व्यवस्था
पंचायत अथवा पालिका की होंगी।
2- अंतरिम राहत
पेंशन के रुपमें बलिदानी सैनिक को दिया जा रहा संपूर्ण वेतन 6 माह तक शत
प्रतिशत दिया जावेगा। जो कि 50 प्रतिशत मातापिता को एवं 50 प्रतिशत पत्नी व
बच्चों के पक्ष में देय हो। यह राशि जिला कोषाध्यक्ष द्वारा देय होंगी।
इसे जिला कलक्टर स्वीकृति करेंगे।
------
वीरांगनाओं के मामले पर ना हो राजनीति, बैठकर सुलझाई जाए यह समस्या- अरुण सिंह
Mar 12, 2023
बीजेपी
प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने वीरांगनाओं के मामले पर बयान दिया है।
उन्होंने कहा कि वीरांगनाओं पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। इस मामले को बैठकर
शांति से सुलझाना चाहिए। राजस्थान वीरों की भूमि है। यहां पर वीरांगनाओं
का सम्मान होना चाहिए।
वीरांगनाओं का सम्मान करने की जगह हो रहा है अपमान।
उन्होंने
कहा कि शहीद सैनिकों के अंतिम संस्कार के समय, कांग्रेस सरकार के मंत्री
ने मूर्तियों के निर्माण और रोजगार प्रदान करने का वादा किया था। अब वादे
पूरे करने की बजाय शहीदों की विधवाओं का अपमान किया जा रहा है। कांग्रेस
ओछी राजनीति कर रही है। मैं इसकी निंदा करता हूं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें