राहुल और कांग्रेस से देश को सावधान रहना होगा - अरविन्द सिसोदिया
राहुल और कांग्रेस से देश को सावधान रहना होगा - अरविन्द सिसोदिया
इन दिनों राहुल गाँधी ब्रिटेन की सुनियोजित यात्रा पर हैं, माना जाता है की लोकसभा 2024 के चुनावों को ध्यान में रख कर वे भारत की ताकतवर भाजपा और उसके प्रधानमंत्री पर लगातार राजनैतिक हमले कर रहे हैं। भारत के बाहर इस तरह की आलोचना को देश अपमान के रुपमें देख रहा है।
उनके वक्तव्य जिन ताकतों की इच्छापूर्ती कर रहे हैं, उनके द्वारा परोसे जा रहे विचार या बोले जा रहे शब्द जो हैं, वे भारतीय हितचिंतक कतई नहीं हैं। क्यों कि जो भी राहुलजी के माध्यम से आ रहा है, वह भ्रमित करने वाला एवं पूरी तरह झूठ से समवेशीत भारत विरोधी और विदेशी ताकतों को फायदा पहुंचाने वाला भी होता है।
ब्रिटेन में वे एक दिन चीन को अच्छा बताते हैं, क्यों कि चीन का चंदा राजीव गांधी फ़ौण्डेशन में आया है यह मीडिया भी कहता है और राहुलजी सहित पूरे परिवार का चित्र चीनी राष्ट्रपति के साथ भी है । फिर राहुल जी के सालाहकारों को लगा होगा कि इससे अमरीका - ब्रिटेन नाराज हो जायेंगे, सो तुरंत ही अगले दिन हल्की पलटीमार कर चीन से भारत को खतरा बता देते हैं और ब्रिटेन व अमरीका से भारत में लोकतंत्र ठीक करने कि अपरोक्ष मांग भी कर देते हैं।
एक तरफ राहुल भारत में अल्पसंख्यक समुदाय को खतरा बताते हैं जबकि असलियत यह है कि भारत में पूर्वोत्तr से लेकर पश्चिम व दक्षिण तक के तमाम अल्पसंख्यक प्रभाव वाले प्रदेशों में कांग्रेस चुनाव हार चुकी हैं।
भारत का अल्पसंख्यक अब कांग्रेस पर विश्वास करता ही नहीं है। जहाँ जहां विकल्प हैं, भारत का अल्पसंख्यक कांग्रेस के बजाय अन्य दल को ही चुनता है। जहां विकल्प नहीं है वहीं कांग्रेस को वोट मिल पा रहा हैं।
ब्रिटेन में उन्होंने बहुत से झूठ बोले, भारत को नीचा दिखाने का सब कुछ किया। असल समस्या कांग्रेस की, सोनिया जी की, राहुल जी की यही है कि वे भारत के असली वारिश हिन्दुओं के अधिकारों को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। उनकी परोक्ष अपरोक्ष हितचिंतन भूमिका भारत पर हमलावर रही विदेशी ताकतों के प्रति रहती है।
बात लंबी हो जायेगी इसलिए इतना ही कहना पर्याप्त है कि भारत का बुरा करने वालों और बुरा चाहने वालों के साथ कांग्रेस नेता ही क्यों खड़े नजर आते हैं।
समस्या राहुल में है या उन्हें विचार देनें वालों में! यह निर्णय मुश्किल है, क्योंकि जो व्यक्त हो रहा है, वह राहुल के मुंह से व्यक्त हो रहा है। उनके वक्तव्यों का समर्थन पूरी पार्टी करती है। उनके वक्तव्य पार्टी के अधिकृत वक्तव्य हैं। सो इनके बयानात पार्टी के बयानात ही मानें जायेंगे।अर्थात समस्या कांग्रेस में ही है।
कांग्रेस और ब्रिटेन का गहरा रिस्ता है, यही कांग्रेस की विदेशीयत के लिये जिम्मेवार भी है। यूँ मानिये कि कांग्रेस पर ब्रिटेन का अपरोक्ष स्वत्व है। क्योंकि ब्रिटेन के अधिकारी ए ओ ह्युम नें ब्रिटिश भक्त भारतीयों के लिये कांग्रेस की स्थापना की थी और भारत के स्वतंत्र होनें तक उनकी पकड़ कांग्रेस पर रही, कांग्रेस क्रांतिकारियों के विरुद्ध व ब्रिटिश सरकार के साथ रही। नेताजी सुभाषचंद्र बोस के संघर्ष के समय, उनके विरुद्ध व ब्रिटेन के साथ रही थी, यही रोल नेवी विद्रोह में भी रहा, नेवी विद्रोह में कांग्रेस विद्रोहियों से आत्मसमर्पण करबा कर ब्रिटिश सरकार का सहयोग कर रही थी।
कांग्रेस के सर्वेसर्वा बनते ही बिना किसी से बात किये बगैहर जवाहरलाल नेहरू नें ब्रिटिश क्राउन के प्रति निष्ठा के हस्ताक्षर किये थे जो अभी भी प्रभाव में हैं। तब भारत की संबिधान सभा में इस बात पर काफ़ी नाराजगी भी प्रगट हुई थी, जिसे संभालने में नेहरूजी को पसीना आ गया था।
जवाहरलाल नेहरू कमरत आयु में ही ब्रिटेन पढ़ने चले गये थे, उन पर ब्रिटेन का ही प्रभाव था। वे ब्रिटेन से ही बेरिस्टर बनें, वहीं जिन्ना भी बेरिस्टर बनें, जिन्ना भी ब्रिटिश भक्त मुसलमान पार्टी मुस्लिम लीग के नेता थे, वे पूर्व कोंग्रेसी भी थे। कांग्रेस और लीग दोनों ही ब्रिटिश भक्त नागरिकों के संगठन थे।
शिक्षा का असर सोच पर रहता है जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गाँधी, राजीव गांधी और राहुल गाँधी की शिक्षा का संबंध ब्रिटेन से रहा है, ब्रिटेन की भारत के लिये एक नीती थी फुट डालो राज करो। इसी नीती की पहली पायदान थी भारत के मुसलमानो को भारत के हिन्दुओं से लड़ाओ। ब्रिटेन के राजानैतिक सोच व नीती अभी भी वही है। इसी वैचारिक वातावरण का कांग्रेस पर असर अभी भी महसूस होता है।इसलिए उनका झुकाव मूल भारतीयों के प्रति नकारात्मक रहता है।
अर्थात वर्तमान कांग्रेस और नेहरू वंशजों पर पश्चात्य का असर कुछ ज्यादा ही है। यह तब भी देखने को मिला था जब अटल जी की सरकार नें परमाणु परिक्षण कर भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न देश घोषित किया, तो तत्कालीन कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी नें लगातार इसका विरोध किया। वहीं जब अमरीका से परमाणु संधि की बात आई तब कांग्रेस नें समर्थन दे रहे वामपंथियों को धकियाते हुए अमरीकी संधि का समर्थन भारत की संसद से पास करवाया ।
भारत में 2014 के बाद निश्चित रूप से राष्ट्रहित का बदलाव आया है, भारत को दवा - कुचला व आश्रित रख कर पिछड़ा बना रही, भ्रष्टाचारी कॉंग्रेस को जाग्रत जनता नें सत्ता से हटा दिया है। देश की जनता नें आर एस एस के स्वयंसेवक और भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी एवं भाजपा पार्टी में जो विश्वास व्यक्त किया है उसे ये पूरा भी कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी का डंका जहां पूरे विश्व में बज रहा है वहीं योगी मॉडल का शासन प्रत्येक प्रान्त मांग कर रहा है।
पाकिस्तान व चीन निश्चित रूप से भारत के बड़े एवं सर्वकालीन शत्रु हैं। इनसे शत्रुता का जन्म भी कांग्रेस की सरकारों की विफलता से हुआ है।
आज अमेरिका के बाद चीन एक बड़ी आर्थिक व सामरिक महाशक्ति है, इससे कोई इंकार नहीं किया जा सकता। किन्तु उसे मज़बूत करने में सबसे ज्यादा लाभ भारत से जवाहरलाल नेहरू एवं उनके वंशजों ने ही पहुंचाया है। कांग्रेस के समर्थन से ही उसे विश्व में पहचान व सम्मान मिला था और मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में भारत नें चीन को आर्थिक महाशक्ति बनने में बड़ा सहयोग किया है। यही वह काल खंड है जिसमें भारत के व्यापारियों नें माल उत्पादन से हाथ खींच कर चीन से बना माल मंगा कर बेचना प्रारंभ किया था। चीन से भारत को बहुअयामी इन नुकसानों को एक दो सरकारों से ठीक नहीं किया जा सकता, इसमें कई दशक मोदी जैसी सरकार रहने पर ही बदलाव संभव है। कांग्रेस चीन को कवर फायर देती है, उसे अपरोक्ष मदद करती है। उसका मात्र दिखावे का विरोध भारत और विश्व भी भली प्रकार समझते हैं।
कांग्रेस को यह अच्छी तरह समझना होगा कि अब भारत करवट बदल रहा है, जो भारत का हितचिंतक होगा, वही देश पर राज करेगा।
कांग्रेस लगातार राजनैतिक ब्लेकमेलर की तरह अंबानी और अडानी पर हमले कर रही है। इसने भारत के फुटकर व्यापारियों के कांग्रेस लगातार राजनैतिक ब्लेकमेलर की तरह अंबानी और अडानी पर हमले कर रही है। इसने भारत के फुटकर व्यापारियों के व्यापार को निगल रहीं अमेजान जेसी कंपनियों के विरूद्ध कभी मुंह नहीं खोला, कोकाकोला जेसी विदेशी कंपनियों के विरूद्ध नहीं बोले । भारत लगातार 70-75 वर्षों से उत्पाद बनानें में पिछड रहा है वह विदेशों में बनें माल पर निर्भर है। हजारों विदेशी कंपनिया आज भी भारत को लूट रहीं है। मगर इस संदर्भ में कांग्रेस और उस जैसे सामंतवादी दल हमेशा चुप रहे है। किन्तु भारत के बाबा रामदेव के खिलाफ प्रचार क्यों कि उनके आयुर्वेदिक उत्पादों से विदेशी दवा कंपनियों को मामूली नुकसान हो रहा था। इसी तरह अडानी एवं अंबानी के खिलाफ क्यों कि इससे भारत की उद्योगशक्ति विश्व पटल पर उभर रही थी। कांग्रेस हमेशा विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ खडी नजर आती है। वह अपने इस देश विरोधी कृत्य के लिये शर्मिंदा नहीं है, बल्कि बछी ही बेशर्मी से भारत को नुकसान पहुंचा रहीं विदेशी ताकतों को भारत में बेकअप देती नजर आती है। को निगल रहीं अमेजान जेसी कंपनियों के विरूद्ध कभी मुंह नहीं खोला, कोकाकोला जेसी विदेशी कंपनियों के विरूद्ध नहीं बोले । भारत लगातार 70-75 वर्षों से उत्पाद बनानें में पिछड रहा है वह विदेशों में बनें माल पर निर्भर है। हजारों विदेशी कंपनिया आज भी भारत को लूट रहीं है। मगर इस संदर्भ में कांग्रेस और उस जैसे सामंतवादी दल हमेशा चुप रहे है। किन्तु भारत के बाबा रामदेव के खिलाफ प्रचार क्यों कि उनके आयुर्वेदिक उत्पादों से विदेशी दवा कंपनियों को मामूली नुकसान हो रहा था। इसी तरह अडानी एवं अंबानी के खिलाफ क्यों कि इससे भारत की उद्योगशक्ति विश्व पटल पर उभर रही थी। कांग्रेस हमेशा विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ खडी नजर आती है। वह अपने इस देश विरोधी कृत्य के लिये शर्मिंदा नहीं है, बल्कि बछी ही बेशर्मी से भारत को नुकसान पहुंचा रहीं विदेशी ताकतों को भारत में बेकअप देती नजर आती है।
राहुल गाँधी भारत में कांग्रेस के सबसे विफल नेता हैँ। उन्होंने अपने बयानों से कांग्रेस कि कब्रखोद दी है। भाजपा की सफलता में राहुल जी का भी बड़ा योगदान है। भाजपा को राहुलजी सहित कांग्रेस के तमाम बढ़ बोले नेताओं से कोई खतरा नहीं है। खतरा उन ताकतों से है जो इनका उपयोग दरूपयोग कर रहीं हैं। इसी कारण देश को, देश की सरकार को कांग्रेस से सावधान रहना ही होगा।
भारत के नरेन्द्र मोदी का विरोध या उन्हें नीचा दिखानें की कोशिश, क्या भारत के करोड़ो मातदाताओं का विरोध नहीं है, जिन्होंने संवैधानिक व्यवस्था से उन्हें चुना है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत के नागरिकों का अधिमान्य संगठन तो है ही साथ ही वह विश्व का सबसे बड़ा, सबसे अनुशासित संगठन है। इसी तरह भाजपा विश्व की सबसे अधिक सदस्यों का राजनैतिक संगठन है। जिसे देश के नागरिकों नें चुना है।
जहां तक वीर सावरकर का संबंध है वे महान स्वतंत्रता सेनानी थे उनके विचारों और योजनाओं से ही अंग्रेजों को भारत छोड़ कर भागना पड़ा था। ब्रिटिश भक्त तो कांग्रेस थी जिसने ब्रिटेन के देश विभाजन षणयंत्र का विरोध न करने समर्थन किया था, पंडित जवाहरलाल नेहरू नें ब्रिटिश क्राउन के प्रति निष्ठा के हस्ताक्षर किये हैं।
जनसंघ के संस्थापक डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी वह व्यक्ती थे जिन्होंने भारत विभाजन के नक़्शे पर जोरदार संघर्ष किया और आधा बंगाल और आधा पंजाब बचाया और कश्मीर को बचाये रखनें के लिये अपना बलिदान कर दिया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वह संगठन है जिसके सरसंघचालक गुरूजी को जम्मू और कश्मीर के भारत विलय में लिये तत्कालीन उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल नें विशेष विमान से महाराजा हरिसिंह के पास भेजा और सभी शंकाओं को दूर करवा कर भारत विलय संभव करवाया। इसी संगठन को चीन युद्ध के बाद गणतंत्र दिवस पर पंडित जवाहरलाल नेहरू नें आमंत्रित किया था। युद्ध हो या आपदा यही एक मात्र संगठन है जो जान की बाजी लगा कर सेवा को तत्पर रहता है।
आरएसएस और भाजपा कोई अर्जी - फर्जी संगठन नहीं हैं बल्कि ये इस देश के स्वत्व धारी करोड़ों करोड़ों नागरिकों के अधिमान्य संवैधानिक संगठन हैं। इन्हे भी भारत का संविधान मूल अधिकार प्रदान करता है।
सभी दलों और संस्थाओं को यह समझना होगा कि भारत पर शासन करने की किसी भी उस इच्छा को स्वीकार नहीं किया जा सकता, जिसकी भाषा व नीति राष्ट्र विरोधी हो, जो शत्रुदेशों का शुभ करने वाला हो। अर्थात भारत भारत के लोगों का है, इस पर चीन के मित्र, पाकिस्तान के मित्र, विदेशी अहितकर्ता ताकतों के मित्र अब राज नहीं कर सकते।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें