कांग्रेस का विलाप, सहानुभूति बटोरने का प्रयास - अरविन्द सिसौदिया Congress tries to garner sympathy

 
कांग्रेस का विलाप गलत , राहुल के निर्णय को ही अदालत नें पूरा किया
कांग्रेस का विलाप, सहानुभूति बटोरने का प्रयास - अरविन्द सिसौदिया
Congress laments, tries to garner sympathy - Arvind Sisodia
 कांग्रेस अनाप सनाप बातें कर रही है, विपक्ष के कई अन्य नेता गण भी राहुल की सजा और सदस्यता समाप्त को लेकर निंदा कर रहे हैँ। अब एक बार फिर कथितरूप से लोकतंत्र और संविधान खतरे में आ गया है। जबकि सूरत की अदालत के निर्णय पर कांग्रेस का विलाप पूरी तरह अनुचित है और सत्तापक्ष पर मिथ्यारोपण का तो उन्हें कोई अधिकार ही नहीं है । कांग्रेस का यह छलपूर्ण आचरण भी अपराध है। अदालत का निर्णय तो क़ानून में लिखें शब्दों के अनुरूप ही आया है, यह सब तो स्वयं राहुल गाँधी के निर्णय के कारण ही हुआ, उनके ही सिद्धांत के कारण हुआ।

जब 10 साल पहले , लालू प्रसाद यादव की इसी तरह सदस्यता जाने वाली स्थिति से बचानें के लिये उनकी ही पार्टी के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार द्वारा लाये गये आध्यादेश अर्थात कानूनी बचाव के उपाय को , उन्होंने " नानसेन्स " कह कर फाड़ दिया था । प्रेस के सामने सार्वजनिक रूप से फाड़ा था। अब वे उसमें स्वयं फंस गये तो भारत के प्रधानमंत्री मोदीजी और भाजपा पर उनकी तमाम पार्टी के द्वारा मिथ्या दोषारोपण क्यों हो रहा हैं?

कांग्रेस और राहुल गाँधी को, अपने आप को भारत का स्वामी मानने  या भारत की कानून व्यवस्था से ऊपर होनें की ग्रंथी से बाहर निकलना चाहिए। भारत यूँ भी अब अंग्रेजों का उपनिवेश नहीं है, ना ही किसी परिवार या पार्टी का उपनिवेश है। स्वयं स्वतंत्र राष्ट्र है। अब भारत में कोई भी कानून व्यवस्था से ऊपर नहीं है।

कांग्रेस और विशेष कर उसके सर्वेसर्वा स्व. फिरोज गाँधी के वंशजों को अपना आचरण अनुशासन में रखना ही चाहिए। क्यों कि भारत की कानून व्यवस्था उन पर भी उतनी ही लागू है जितनी सामान्य नागरिक पर। देश की कानून व्यवस्था से ऊपर अपने आपको मानने की मनोवृति के कारण ही राहुल को समस्याएं उत्पन्न हो रहीं हैं।

उन्हें सच स्वीकारना चाहिए और कानून व्यवस्था का सम्मान करना चाहिए।

अपने कहे का भी सम्मान करना चाहिए, बड़े मन से स्वयं के सच को स्वीकार करना चाहिए और सिद्धांत पर अडिग रहना चाहिए। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका पूरी तरह अपराधियों से मुक्त रहे, इसकी चिंता करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है।
 
यूं भी अदालत नें उन्हे अपनी बात कहनें का पूरा अवसर दिया था। वहां जो उन्होनें कहा उसी के आधार पर यह सजा हुई है और सदस्यता गई है। सजा के विरूद्ध वहीं अपील तुरंत की जा सकती थी। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी जाया जा सकता था। किन्तु राहुल गांधी के द्वारा स्वयं कानूनी राहत नहीं लेना भी यह संकेत देता है कि वे विचारा बन कर इस मामले से राजनैतिक सहानुभूति बटोरना चाहते है।

कांग्रेस के गेम प्लान को जनता भी समझ रही है, इसलिये यह नहीं लगता कि उनका यह दाव सफल होगा।
 
राहुल गांधी के पास इस घटनाक्रम को टालनें के कई विकल्प थे, किन्तु उनका और उनकी पार्टी का मकसद इस तरह की घटना उत्पन्न कर राजनैतिक लाभ बटोरनें का अधिक प्रतीत हो रहा है। अन्यथा जब अन्य सांसद एवं विधायक इसी कानून से सदस्यता खो रहे थे, तब लोकतंत्र और संविधान ठीक था और जब राहुल इस कानून की चपेट में आये तो लोकतंत्र और संविधान खतरे में कैसे आ गया ?

कानून व्यवस्था और संविधान से ऊपर अपने आपको साबित करने का यह खेल अब पूरा इसलिये नहीं हो सकता कि अब देश में गैर कांग्रेस सरकार है। जो अपने कर्त्तव्यों प्रति पूरी तरह ईमानदार है। यह कांग्रेस या कांग्रेस पर आश्रित सरकार में ही संभव था।

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