संवत और सनातन सृष्टि के शुभारम्भ से ही है - अरविन्द सिसोदिया snvat or sanatan

संवत और सनातन धर्म सृष्टि के शुभारम्भ से ही है - अरविन्द सिसोदिया
 सृष्टि के शुभारंभ से ही सनातन धर्म है। पृथ्वी पर प्रकृति सृजन की संज्ञा ही सनातन नाम से जानी जाती है। तभी से संवत व्यवस्था है, जो कि ईश्वरीय काल गणना की व्यवस्था से अभिप्रेत है।

भगवान विष्णु जी की प्रेरणा से ब्रह्मा जी ने सृजन किया और सृष्टि शुभारंभ में सृष्टि संचालन हेतु ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु से अंशदान का आग्रह किया और इस प्रकार से भगवान विष्णु का प्रथम अवतार 4 सनत कुमारों के रूप में हुआ, यह चारों सनत कुमारों में से एक का नाम " सनातन " था, उन्ही के नाम से यह सृजन सनातन कहलाया ।

सनातन का अर्थ है कि जो सदैव नूतनता को ग्रहण करते हुए गमन करता रहे, वह सनातन है अर्थात जो निरंतर अनुसंधानकर्ता रहे, जो नवीनता का निरंतर सृजन करता रहे। नवाचार द्वारा समाज को उन्नति एवं विकास प्रदान करता हो।

धर्म का मूल अर्थ धारण किये हुए अपने अपने कर्तव्य है। अर्थात अपने अपने कर्तव्यों को पूरा करते हुए यह प्रकृति संरचना निरंतर आगे बढ़ रही है, यही सनातन धर्म है। अर्थात धारण किये हुये कर्तव्यों का महासागर धर्म कहलाता है, जिसमें ईश्वर से लेकर मानव तक अपने अपने कर्तव्यपथ पर अग्रसर हैं। ईश्वर समाज में सुरक्षा सुव्यवस्था के लिये अवतार लेते हैं। मानव निरंतर जन्म जीवन एवं मृत्यु के द्वारा इसे आगे बड़ा रहे हैं।

 प्राणी सत्ता के सृजन में मनुष्य सहित 84 लाख योनियों ( शरीरों ) का अस्तित्व है। यह लोक मृत्यु लोक कहलाता है, क्यों कि यह प्राणी सत्ता जन्म जीवन और मृत्यु को प्राप्त होती है। जबकि ईश्वरीय सत्ता अमर रहते हुए, सृजन और प्रलय के साथ जीवंत रहती है। उनकी भी जाग्रति और निद्रा होती है। उनका भी दिन और रात्रि होती है। हम इस महान अस्तित्व में इतने सूक्ष्म हैं कि अत्यंत सूक्ष्म। हमारी ज्ञानेंन्द्रियां हमारी आवश्यकता जितना ही जान पाती हैं। हम सब कुछ नहीं देख पा रहे हैं, हम सिर्फ उतना ही देख पा रहे हैं जितना ईश्वर चाहता है। इसी तरह हम बहुत सीमित और ईश्वर बहुत विशाल है। दृष्य और अदृष्य जगत का जीवन ही महाकाल है और इसमें गतिशीलता ही सनातन है। इसीलिए ही इस महान सृष्टि रचना को सनातन कहते हैं।

एक बार ब्रह्मा जी भगवान विष्णु जी निवास वैकुंठ लोक पहुँचे और संदेश भिजवाया कि ब्रह्मा जी भगवान विष्णुजी से मिलने आये हैं। कुछ देर बाद संदेश वाहक नें आकर, उन्हें सम्मनपूर्वक आतिथ्य प्रदान कर पूछा आप कौनसे लोक के ब्रह्मा जी हैं। तब ब्रह्माजी को ज्ञान हुआ कि अनेकों लोक और अनेकों ब्रह्मा हैं, तभी तो पूछा गया है। हमारे शास्त्रों और धर्मग्रंथो में अनेकों लोकों का जिक्र आता है।

पृथ्वी पर हमारी महान सभ्यता में देव कन्या आर्या हुई जिसका विवाह एक ऋषि से हुआ और उसकी संताने आर्य कहलाई। इन आर्य संतानों का जो राज्यक्षेत्र था वह आर्यावर्त कहलाया।

समान्यतः हिन्दुकुश पर्वत से हिमालय के पूर्वी छोर तक हिन्द महासागर की और की सभ्यता हिन्दू कहलाती है। हिन्दू एक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है। हिंदुत्व इस विशाल राष्ट्र की जीवन शैली है। जीवन पद्धति है।

ईश्वरीय घड़ी भी अपनी गणना करती है, इसे काल कहा गया है, अंग्रेजी में इसे टाइम Time कहा जाता है। सृजन का मूल कारण यही काल है समय है, इसके देवता शिव हैं। शिव को महाकाल भी कहा गया है।

काल तो आदी अनादि और अनंत है। इसकी छोटी इकाई संवत है। संवत का अर्थ है जो उत्पन्न स्थिति समवेत होते हुये अपने चक्र को पूर्ण कर पुनः प्रारंभ हो जाये तो वह संवत है। यानि कि चैत्र शुक्ल एकम तिथि से प्रारंभ होकर समय अपना परीभ्रमण पूर्ण कर पुनः चैत्र शुक्ल एकम ऐ प्रारंभ ही जाये तो यह काल एक संवत होता है। यह संवत सृष्टि के शुभारंभ से ही प्रारंभ होकर वर्तमान में 1अरब 97 करोड़ वर्ष से अधिक पूर्ण कर चुका है। इसकी अन्य छोटी बड़ी गणनायें भी प्रभाव एवं व्यवस्था से हैं। जिनमें कल्प, मंन्वंतर, महायुगी, चतुरयुगी, सतयुग, त्रेता युग, द्वाॉपर युग और कलयुग हैं। फिर समय समय पर नाम करण होते रहे संवत हैं जैसे सप्तऋषि संवत, युधिष्ठर संवत, कलयुग के प्रारंभ का कली संवत जिसे युगाब्द कहा जाता है। विक्रम संवत, शालीवाहन संवत आदी आदी। किन्तु सभी संवत चैत्र शुक्ल एकम से ही प्रारंभ होते है। ईश्वरीय व्यवस्था अपनी काल गणना इसी वर्ष प्रतिपदा से ही प्रारंभ करती है।

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