क्या,आतंकवादी घटनाओं को प्रोत्साहन मिलेगा,सब बरी निर्णय से - अरविन्द सिसोदिया HC-jaipur-bomb-blast
क्या,आतंकवादी घटनाओं को प्रोत्साहन मिलेगा,सब बरी निर्णय से - अरविन्द सिसोदिया
सही कौन है गलत कौन है, किससे चूक हुई यह अलग विषय है। आज की तारीख में 80 मुत्यु सुदा एवं 200 के लगभग घायलों का प्रश्न कि अपराधियों को सजा क्यों नहीं ? राजस्थान के गृहमंत्री के नाते मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इस पूरे घटनाक्रम पर सही सही प्रतिक्रिया देनी चाहिये थी। उनसे प्रदेश पूछ रहा है, ऐसा कैसे हो गया ? सबसे बडी बात यह है कि इस निर्णय के बाद आतंकवादी घटना अंजाम देकर बचा जा सकता है। यह संदेश आतंकवादियों में चला गया है।
राजस्थान हाईकोर्ट के द्वारा जयपुर बम ब्लास्ट काण्ड के सभी आरोपियों को बरी किये जानें के बाद अनेकानेक प्रकार की प्रतिक्रियायें समाज में व्याप्त हैं,जितने मुंह उतनी बातें जन चर्चाओं में है। भ्रष्टाचार से लकर राजनैतिक लाभ लेने तक की बातें हैं। मगर सबूत कहीं कोई नहीं है। यह बातें राजस्थान की कांग्रेस राज्य सरकार के विरूद्ध भी हैं, पुलिस आदि जांच एजेंसियों के विरूद्ध भी हैं और न्यायपालिका के विरूद्ध भी है।
क्यों कि जयपुर में हुये इस जघन्य खून खराबे में 80 के लगभग निर्दोष नागरिकों की जान चली गई और लगभग 200 लोगों घायल हुये थे। दिल दहलादेनें वाली इस आतंकी घटना की जांच पर हाईकोर्ट ने सवाल उठायें हैं। मगर यह भी एक तथ्य है कि इसी जांच पर प्रारंभिक न्यायालय नें न केवल सजा सुनाई थी बल्कि फांसी की सजा भी सुनाई थी। दो न्यायालयों में दो अलग अलग नजरिये आना बाम बात है, मगर न्याय हो इसकी जिम्मेवारी न्यायालय की ही है। अब प्रश्न यही है कि इस पूरे हिंसक आतंकी हमले का गुनाहगार कौन है ?
मेरा बहुत स्पष्ट मानना है कि न्यायालय के पास रिपोर्ट की एक प्रति 24 घंटे के अन्दर आ जाती है। सही जांच पर निगाह न्यायालय को भी रखना चाहिये। इतने बडे मामले में हाई कोर्ट 15 साल बाद कहे कि सबूत सही नहीं हैं, तो अब सबूत कहां से आयेंगे ? अब अपराधी को सजा किस तरह दी जावेगी। क्या अब कोई अपराधी इस अपराध में सजा नहीं पायेगा।
पुलिस की जांच और उसे अदालत में प्रस्तुत करने वाले अभियोजन वर्ग के अधिवक्ताओं में समन्वय क्यों नहीं था। हाई कोर्ट ने जांच पर प्रश्न खडे किये है। मगर अभियोजन और जांचकर्ता तो एक पार्टी की तरह ही काम करते है। उन्हे कमियां दूर करवानी चाहिये थी। मेरा मानना है कि अभियोजन वर्ग की भी घोर लापरवाही रही है। आरोपियों की तरफ से 18 वकील दलील देनें खडे थे और अभियोजन वर्ग नें एक तरफा फैसला लेनें को कोर्ट को छोड दिया था।
सभी अपराधी यही कहते हैं कि हमें फंसाया गया, 80 निर्दोष लोगों के हत्यारों में नाबालिग खोजा जायेगा ? आगे चल कर तो इस कानूनी कमजोरी का फायदा हर बडे जुर्म में उठाया जायेगा। इस तरह की घटनाओं में प्रत्यक्ष साक्ष्य होते भी नहीं हैं। परिस्थितीजन्य साक्ष्य ही आधार बनते हैं। यह इस तरह के अन्य घटनाक्रमों में भी आधार रहा है।
मेरा मानना है कि जान से मारनें की कोशिश , हत्या और बलात्कार जैसे मामलों में नाबालिग आयु 12 वर्ष माननी चाहिये। सर्वोच्च न्यायालय को इस पर विचार करना चाहिये।
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एक रिपोर्ट......…
जयपुर में बम ब्लास्ट के सभी आरोपी बरी
जयपुर में हुए सीरियल बम ब्लास्ट केस में 29 मार्च 2023 बुधवार को हाईकोर्ट ने सभी चार आरोपियों को बरी कर दिया। जस्टिस पंकज भंडारी और समीर जैन की बेंच ने कहा कि जांच अधिकारी को कानून की जानकारी नहीं है । कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि घटना को लेकर जनभावना जुड़ी है, लेकिन कोर्ट कानून और सबूतों के आधार पर फैसला देता है । वहीं राज्य सरकार फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है ।
मामला यह है कि 13 मई 2008 को जयपुर में सीरियल ब्लास्ट हुए थे। इसमें 71 (80 की संख्या भी बताई जाती है ) लोगों की जान चली गई थी, जबकि 185 घायल हुए थे। इस केस में सन 2019 में जिला कोर्ट ने मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद सभी आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की थी।
48 दिनों से चल रही सुनवाई पूरी होने पर आरोपियों के वकील सैयद सदत अली ने बताया कि हाईकोर्ट ने एटीएस की पूरी थ्योरी को गलत बताया है। इसी वजह से आरोपियों को बरी कर दिया गया। वहीं, एडिशनल एडवोकेट जनरल (AAG) राजेश महर्षि ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे।
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जयपुर में हुए सीरियल बम ब्लास्ट केस में 29 मार्च 2023 बुधवार को हाईकोर्ट ने सभी चार आरोपियों को बरी कर दिया। जस्टिस पंकज भंडारी और समीर जैन की बेंच ने कहा कि जांच अधिकारी को कानून की जानकारी नहीं है । कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि घटना को लेकर जनभावना जुड़ी है, लेकिन कोर्ट कानून और सबूतों के आधार पर फैसला देता है । वहीं राज्य सरकार फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है ।
मामला यह है कि 13 मई 2008 को जयपुर में सीरियल ब्लास्ट हुए थे। इसमें 71 (80 की संख्या भी बताई जाती है ) लोगों की जान चली गई थी, जबकि 185 घायल हुए थे। इस केस में सन 2019 में जिला कोर्ट ने मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद सभी आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की थी।
48 दिनों से चल रही सुनवाई पूरी होने पर आरोपियों के वकील सैयद सदत अली ने बताया कि हाईकोर्ट ने एटीएस की पूरी थ्योरी को गलत बताया है। इसी वजह से आरोपियों को बरी कर दिया गया। वहीं, एडिशनल एडवोकेट जनरल (AAG) राजेश महर्षि ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे।
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13 मई 2018 को 12 मिनट में फटे आठ बम
खंदा माणक चौक के पास शाम 7:20 पहला बम ब्लास्ट पर हुआ। इसमें एक महिला की मौत और 18 लोग घायल हो गए थे।
त्रिपोलिया बाजार स्थित बड़ी चौपड़ के समीप मनिहारों के खंदे में ताला चाबी वालों की दुकान के पास शाम 7:25 पर दूसरा बम ब्लास्ट हुआ। इसमें 6 की मौत और 27 लोगों हो गए थे।
छोटी चौपड़ पर कोतवाली थाने के बाहर पार्किंग में शाम 7:30 बजे तीसरा बम फटा। इसमें दो पुलिसकर्मियों सहित सात लोगों की मौत और 17 घायल हो गए थे।
त्रिपोलिया बाजार में दुकान नंबर 346 के सामने शाम 7:30 बजे चौथा बम ब्लास्ट हुआ। इसमें 5 लोगों की मौत हुई, जबकि 4 लोग घायल हुए थे।
चांदपोल बाजार स्थित हनुमान मंदिर के बाहर पार्किंग में शाम 7:30 बजे पांचवा बम फटा। इसमें सबसे अधिक 25 लोगों की मौत हुई और 49 घायल हो गए थे।
जोहरी बाजार में नेशनल हैंडलूम के सामने 7:30 बजे छठा धमका हुआ। इसमें आठ की मौत और 19 लोग घायल हो गए थे।
छोटी चौपड़ पर फूलों के खंदे में ज्वेलरी शॉप के सामने शाम 7:32 पर सातवां बम ब्लास्ट हुआ। इसमें दो की मौत और 15 लोग घायल हो गए थे।
जोहरी बाजार में सांगानेरी गेट हनुमान मंदिर के बाहर 7:32 पर आठवां बम धमाका हुआ। इसमें 17 की मौत और 36 लोग घायल हो गए थे।
चांदपोल बाजार स्थित दुकान नंबर 17 के सामने रात 9:00 बजे का टाइमर सेट किया हुआ बम खोज लिया गया था। जिसे बम निरोधक दस्ते ने निष्क्रिय कर दिया था।
इन आतंकियों ने दहलाया था जयपुर.........
जयपुर में हुए बम ब्लास्ट के बाद सबसे पहले 8 सितंबर 2008 को शाहबाज हुसैन को गिरफ्तार किया गया था। वह उत्तर प्रदेश के मौलवीगंज का रहने वाला है।
इसी साल 23 दिसंबर को दूसरे आतंकी मोहम्मद सैफ को गिरफ्तार किया गया। सैफ उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के सरायमीर का निवासी है।
29 जनवरी 2009 को तीसरे आतंकी मोहम्मद सरवर आजमी को गिरफ्तार किया गया। सरवर भी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के चांदपट्टी का रहने वाला है।
23 अप्रैल 2009 को बम ब्लास्ट कांड के चौथे आतंकी सैफ उर्फ सैफुर्रहमान को पकड़ा गया। आतंकी उत्तर प्रदेश के निवासी आजमगढ़ का रहने वाला है।
3 दिसंबर 2010 को पांचवे आतंकी सलमान को गिरफ्तार किया गया। वह उत्तर प्रदेश के निजामाबाद का रहने वाला है।
इसके अलावा बम ब्लास्ट कांड में शामिल कई आतंकी 14 साल से फरार हैं। अभी तक उनकी गिरफ्तारी नहीं हो सकी है।
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जयपुर में 13 मई 2008 को सिलसिलेवार बम ब्लास्ट हुए थे। इनमें 71 लोगों की जान चली गई थी। पहले जानिए क्या थी एटीएस की थ्योरी, जिसे जयपुर हाईकोर्ट ने गलत माना?
1. एटीएस को 13 सितंबर 2008 को पहला डिस्क्लोजर स्टेटमेंट मिला, लेकिन जयपुर ब्लास्ट 13 मई 2008 को हो गया था। इस चार महीने के अंदर एटीएस ने क्या कार्रवाई की। क्योंकि इस चार महीने में एटीएस ने विस्फोट में इस्तेमाल की गई साइकिलों को खरीदने के सभी बिल बुक बरामद कर ली थी तो एटीएस काे अगले ही दिन किसने बताया था कि यहां से साइकिल खरीदी गई हैं।
2. कोर्ट ने कहा कि साइकिल खरीदने की जो बिल बुक पेश की गई है, उन पर जो साइकिल नंबर हैं, वे सीज की गई साइकिलों के नंबर से मैच नहीं करते हैं। यह थ्योरी भी गलत मानी गई है।
3. कोर्ट ने एटीएस की उस थ्योरी को भी गलत माना कि आरोपी 13 मई को दिल्ली से बस से हिंदू नाम से आए हैं, क्योंकि उसका कोई टिकट पेश नहीं किया गया। साइकिल खरीदने वालों के नाम अलग हैं, टिकट लेने वालों के नाम अलग है। कोर्ट ने यह भी कहा कि साइकिल के बिलों पर एटीएस अफसरों द्वारा छेड़छाड़ की गई है।
4. एटीएस ने बताया है कि 13 मई को आरोपी दिल्ली से जयपुर आए। फिर एक होटल में खाना खाया और किशनपाेल बाजार से साइकिलें खरीदीं, बम इंप्लॉन्ट किए और साढ़े चार-पांच बजे शताब्दी एक्सप्रेस से वापस चले गए, यह सब एक ही दिन में कैसे मुमकिन हो सकता है?
5. एटीएस ने कहा था कि आरोपियों ने बम में इस्तेमाल करने वाले छर्रे दिल्ली की जामा मस्जिद के पास से खरीदे, लेकिन पुलिस ने जो छर्रे पेश किए और बम में इस्तेमाल छर्रे एफएसएल की रिपोर्ट में मैच नहीं किए।
(बरी किए गए आरोपियों के वकील सैयद सदत अली के मुताबिक)
अब जानें- आरोपियों को बरी करने के मामले में उन सवालों के जवाब, जो आप जानना चाहते हैं?
- जिला कोर्ट ने आरोपियों को क्या सजा सुनाई थी?
सभी चार आरोपियों को जिला कोर्ट ने 2019 में फांसी की सजा सुनाई थी। इसी के खिलाफ 4 आरोपी हाईकोर्ट गए थे। 4 आरोपी में से एक मोहम्मद सलमान घटना के दिन नाबालिग था, कोर्ट ने माना है कि वह 13 मई 2008 को 16 साल 10 महीने का था।
- आरोपियों ने हाईकोर्ट के सामने क्या अपील की थी?
आरोपियों ने कहा कि हम बेगुनाह हैं, हमें झूठा फंसाया गया है, हमारा इस केस से कोई संबंध नहीं है। इसके साथ 28 तरह की अपील हाईकोर्ट से की गई थी।
- चारों के अलावा कोई और भी आरोपी है?
इस केस में ये चार ही मुख्य आरोपी थे।
- कोर्ट ने क्या कहकर आरोपियों को बरी किया है?
आरोपियों के वकील के मुताबिक कोर्ट ने कहा है कि आरोपियों पर जो चार्ज लगाए गए हैं, वे कहीं से भी प्रूफ नहीं होते हैं। एटीएस और सरकारी वकील एक भी चीज को साबित नहीं कर पाए हैं। न वे उनकी दिल्ली से जयपुर यात्रा को साबित कर सके हैं, न ही बम इम्प्लांट करने को साबित कर पाए हैं।
- कोर्ट ने किसकी गलती बताई है, इस मामले में आगे क्या जांच होगी?
अली के मुताबिक कोर्ट ने केस की जांच में ढिलाई के लिए पूरी गलती एटीएस अफसरों की बताई है। इसके साथ ही पुलिस महानिदेशक को ऐसे अफसरों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि इस केस के ऊपर निगाह रखे।
- हाईकोर्ट ने ये क्यों कहा कि जांच अधिकारी को कानूनी जानकारी नहीं है?
अली के मुताबिक एटीएस अधिकारियों ने डिस्क्लोजर स्टेटमेंट पर भरोसा किया, लेकिन उससे तीन महीने पहले ही साइकिल शॉप कीपर्स को बुलाकर इन्वेस्टिगेशन कर लेते हैं। उन्हें बम धमाके के चार महीने बाद पहली बार साइकिल खरीदने की इन्फॉर्मेशन मिली थी तो तीन दिन बाद उन्हें किसने बता दिया था कि किशनपोल बाजार से साइकिल खरीदी गई थी।
- इस केस में कितने जांच अधिकारी थे?
एटीएस के तीन से चार अधिकारियों ने इस मामले की जांच की थी।
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जयपुर में 13 मई 2008 को सिलसिलेवार बम ब्लास्ट हुए थे। इनमें 71 लोगों की जान चली गई थी। पहले जानिए क्या थी एटीएस की थ्योरी, जिसे जयपुर हाईकोर्ट ने गलत माना?
1. एटीएस को 13 सितंबर 2008 को पहला डिस्क्लोजर स्टेटमेंट मिला, लेकिन जयपुर ब्लास्ट 13 मई 2008 को हो गया था। इस चार महीने के अंदर एटीएस ने क्या कार्रवाई की। क्योंकि इस चार महीने में एटीएस ने विस्फोट में इस्तेमाल की गई साइकिलों को खरीदने के सभी बिल बुक बरामद कर ली थी तो एटीएस काे अगले ही दिन किसने बताया था कि यहां से साइकिल खरीदी गई हैं।
2. कोर्ट ने कहा कि साइकिल खरीदने की जो बिल बुक पेश की गई है, उन पर जो साइकिल नंबर हैं, वे सीज की गई साइकिलों के नंबर से मैच नहीं करते हैं। यह थ्योरी भी गलत मानी गई है।
3. कोर्ट ने एटीएस की उस थ्योरी को भी गलत माना कि आरोपी 13 मई को दिल्ली से बस से हिंदू नाम से आए हैं, क्योंकि उसका कोई टिकट पेश नहीं किया गया। साइकिल खरीदने वालों के नाम अलग हैं, टिकट लेने वालों के नाम अलग है। कोर्ट ने यह भी कहा कि साइकिल के बिलों पर एटीएस अफसरों द्वारा छेड़छाड़ की गई है।
4. एटीएस ने बताया है कि 13 मई को आरोपी दिल्ली से जयपुर आए। फिर एक होटल में खाना खाया और किशनपाेल बाजार से साइकिलें खरीदीं, बम इंप्लॉन्ट किए और साढ़े चार-पांच बजे शताब्दी एक्सप्रेस से वापस चले गए, यह सब एक ही दिन में कैसे मुमकिन हो सकता है?
5. एटीएस ने कहा था कि आरोपियों ने बम में इस्तेमाल करने वाले छर्रे दिल्ली की जामा मस्जिद के पास से खरीदे, लेकिन पुलिस ने जो छर्रे पेश किए और बम में इस्तेमाल छर्रे एफएसएल की रिपोर्ट में मैच नहीं किए।
(बरी किए गए आरोपियों के वकील सैयद सदत अली के मुताबिक)
अब जानें- आरोपियों को बरी करने के मामले में उन सवालों के जवाब, जो आप जानना चाहते हैं?
- जिला कोर्ट ने आरोपियों को क्या सजा सुनाई थी?
सभी चार आरोपियों को जिला कोर्ट ने 2019 में फांसी की सजा सुनाई थी। इसी के खिलाफ 4 आरोपी हाईकोर्ट गए थे। 4 आरोपी में से एक मोहम्मद सलमान घटना के दिन नाबालिग था, कोर्ट ने माना है कि वह 13 मई 2008 को 16 साल 10 महीने का था।
- आरोपियों ने हाईकोर्ट के सामने क्या अपील की थी?
आरोपियों ने कहा कि हम बेगुनाह हैं, हमें झूठा फंसाया गया है, हमारा इस केस से कोई संबंध नहीं है। इसके साथ 28 तरह की अपील हाईकोर्ट से की गई थी।
- चारों के अलावा कोई और भी आरोपी है?
इस केस में ये चार ही मुख्य आरोपी थे।
- कोर्ट ने क्या कहकर आरोपियों को बरी किया है?
आरोपियों के वकील के मुताबिक कोर्ट ने कहा है कि आरोपियों पर जो चार्ज लगाए गए हैं, वे कहीं से भी प्रूफ नहीं होते हैं। एटीएस और सरकारी वकील एक भी चीज को साबित नहीं कर पाए हैं। न वे उनकी दिल्ली से जयपुर यात्रा को साबित कर सके हैं, न ही बम इम्प्लांट करने को साबित कर पाए हैं।
- कोर्ट ने किसकी गलती बताई है, इस मामले में आगे क्या जांच होगी?
अली के मुताबिक कोर्ट ने केस की जांच में ढिलाई के लिए पूरी गलती एटीएस अफसरों की बताई है। इसके साथ ही पुलिस महानिदेशक को ऐसे अफसरों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि इस केस के ऊपर निगाह रखे।
- हाईकोर्ट ने ये क्यों कहा कि जांच अधिकारी को कानूनी जानकारी नहीं है?
अली के मुताबिक एटीएस अधिकारियों ने डिस्क्लोजर स्टेटमेंट पर भरोसा किया, लेकिन उससे तीन महीने पहले ही साइकिल शॉप कीपर्स को बुलाकर इन्वेस्टिगेशन कर लेते हैं। उन्हें बम धमाके के चार महीने बाद पहली बार साइकिल खरीदने की इन्फॉर्मेशन मिली थी तो तीन दिन बाद उन्हें किसने बता दिया था कि किशनपोल बाजार से साइकिल खरीदी गई थी।
- इस केस में कितने जांच अधिकारी थे?
एटीएस के तीन से चार अधिकारियों ने इस मामले की जांच की थी।
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क्या हुआ था 13 मई 2008 को
पुलिस ने 13 लोगों को बनाया था आरोपी
पुलिस ने 13 लोगों को बनाया था आरोपी
जयपुर में 13 मई 2008 को सिलसिलेवार बम ब्लास्ट हुए थे। इनमें 71 लोगों की जान चली गई थी।
इस मामले में कुल 13 लोगों को पुलिस ने आरोपी बनाया था। 3 आरोपी अब तक फरार है, जबकि 3 हैदराबाद और दिल्ली की जेल में बंद है। बाकी बचे दो गुनहगार दिल्ली में बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं। चार आरोपी जयपुर जेल में बंद थे, जिन्हें निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी।
सजा सुनाते वक्त कोर्ट ने कहा था- विस्फोट के पीछे जेहादी मानसिकता
निचली अदालत में सजा सुनाते वक्त कोर्ट ने कहा था- विस्फोट के पीछे जेहादी मानसिकता थी। यह मानसिकता यहीं नहीं थमी। इसके बाद अहमदाबाद और दिल्ली में भी विस्फोट किए गए। कोर्ट ने मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत दोषी पाया था।
नौवां बम डिफ्यूज किया था, जो सबसे खतरनाक था
रात 8.10 बजे चांदपोल बाजार में हनुमान जी मंदिर के पास बीडीएस(बम डिस्पोजल स्कवॉड) को साइकिल पर स्कूल बैग में 8 किलो वजनी बम मिला था। बीडीएस के पास बम डिफ्यूज करने के लिए केवल पचास मिनट का समय था। टीम ने 8 बजकर 40 मिनट पर बम डिफ्यूज कर दिया था। बम में टाइमर और डेटोनेटर लगा हुआ मिला था। हैंडमेड बम में साइकिल के छर्रें, लोहे की छोटी प्लेटें, बारूद और अन्य विस्फोटक चीजें मिली थी। बीडीएस ने सबसे ज्यादा शक्तिशाली बम इसी को माना था। अगर यह फट जाता तो जयपुर का मंजर और भी भयानक हो सकता था।
इसकी तैयारी कर रहे हैं।
इस मामले में कुल 13 लोगों को पुलिस ने आरोपी बनाया था। 3 आरोपी अब तक फरार है, जबकि 3 हैदराबाद और दिल्ली की जेल में बंद है। बाकी बचे दो गुनहगार दिल्ली में बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं। चार आरोपी जयपुर जेल में बंद थे, जिन्हें निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी।
सजा सुनाते वक्त कोर्ट ने कहा था- विस्फोट के पीछे जेहादी मानसिकता
निचली अदालत में सजा सुनाते वक्त कोर्ट ने कहा था- विस्फोट के पीछे जेहादी मानसिकता थी। यह मानसिकता यहीं नहीं थमी। इसके बाद अहमदाबाद और दिल्ली में भी विस्फोट किए गए। कोर्ट ने मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत दोषी पाया था।
नौवां बम डिफ्यूज किया था, जो सबसे खतरनाक था
रात 8.10 बजे चांदपोल बाजार में हनुमान जी मंदिर के पास बीडीएस(बम डिस्पोजल स्कवॉड) को साइकिल पर स्कूल बैग में 8 किलो वजनी बम मिला था। बीडीएस के पास बम डिफ्यूज करने के लिए केवल पचास मिनट का समय था। टीम ने 8 बजकर 40 मिनट पर बम डिफ्यूज कर दिया था। बम में टाइमर और डेटोनेटर लगा हुआ मिला था। हैंडमेड बम में साइकिल के छर्रें, लोहे की छोटी प्लेटें, बारूद और अन्य विस्फोटक चीजें मिली थी। बीडीएस ने सबसे ज्यादा शक्तिशाली बम इसी को माना था। अगर यह फट जाता तो जयपुर का मंजर और भी भयानक हो सकता था।
इसकी तैयारी कर रहे हैं।
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