Sheetala Ashtami शीतला अष्टमी ( बसौड़ा )
शीतला अष्टमी का मूल महत्व शरीर को रोगों से बचाव की दिशा में सर्तक करना है। देवी की जो छवी बनाई जाती है उसमें सबसे मुख्य नीम के पत्ते जो कि एन्टी बायोटिक होते है। झाडू यानि कि साफ सफाई । अर्थात शीतला देवी के पूजन को संक्रामक रोगों को रोकनें के निमित्त किया जाता है। अर्थात यह पर्व समाज को रोगों के प्रति जागरूक करता है ।
The basic importance of Sheetala Ashtami is to alert the body towards protection from diseases. The most important thing in the image of the goddess that is made is neem leaves, which are anti-biotic. Broom means cleanliness. That is, the worship of Sheetla Devi is done to prevent infectious diseases. That is, this festival makes the society aware of diseases.
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शीतला अष्टमी
शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। आज भी लाखों लोग इस नियम का बड़ी आस्था के साथ पालन करते हैं। शीतला माता की उपासना अधिकांशत: वसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में होती है। शीतला (चेचक रोग) के संक्रमण का यही मुख्य समय होता है। इसलिए इनकी पूजा का विधान पूर्णत: सामयिक है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी शीतला देवी की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है। इसलिए यह दिन शीतलाष्टमी के नाम से विख्यात है।
माहात्म्य
प्राचीनकाल से ही शीतला माता का बहुत अधिक माहात्म्य रहा है। स्कंद पुराण में शीतला देवी शीतला का वाहन गर्दभ बताया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है। चेचक का रोगी व्यग्रतामें वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत:कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। शीतला-मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है।
स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है:
“वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।„
अर्थात
गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तकवालीभगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत:स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी [झाडू] होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।
मान्यता अनुसार इस व्रत को करनेसे शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग, शीतलाकी फुंसियोंके चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।
आधुनिक युग में भी शीतला माता की उपासना स्वच्छता की प्रेरणा देने के कारण सर्वथा प्रासंगिक है। भगवती शीतला की उपासना से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है।
शीतला अष्टमी व्रत का महत्व-
शीतला अष्टमी के दिन शीतला मां का पूजन करने से चेचक, खसरा, बड़ी माता, छोटी माता जैसी बीमारियां नहीं होती हैं। अष्टमी ऋतु परिवर्तन का संकेत देती है। यही वजह है कि इस बदलाव से बचने के लिए साफ-सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है। माना जाता है कि इस अष्टमी के बाद बासी खाना नहीं खाया जाता है।
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