अपार संपत्ती का स्रोत,राजनेताओं को बताना अनिवार्य हो - अरविन्द सिसोदिया rajnetaon ki apaar snpatti

अपार संपत्ती का स्रोत,राजनेताओं को बताना अनिवार्य हो - अरविन्द सिसोदिया
 भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ हैं। जबकि भारत की शासन व्यवस्था के रोम रोम में भ्रष्टाचार व्याप्त है। यह अंग्रेजो के समय से ही चला आ रहा है, इसमें बहुत सारे अच्छे बदलाव अभी तक नहीं हो पाए हैं। इसका मुख्य कारण क्षेत्रीय राजनीति ही रहा है। किन्तु वर्तमान में तमाम विपक्ष को भी भ्रष्टाचारियों के पक्ष में खड़ा हुआ देख सकते हैं।

 राजनीतिक दलों ने भी अपना पैसा बनाने और कमाने को ही प्रथम उद्देश्य रखा, इस कारण अंग्रेज व्यवस्था का भ्रष्टाचारी तंत्र छोटे मोटे बदलाव के बाद आज भी उसी तरह से बना हुआ है।

अंग्रेजों के समय में, वोट डालने का अधिकार ही धनवान व्यक्ती को होता था,जिसके पास पैसा होता था, वही वोट डाल पाता था। आम गरीब उस समय वोट भी नहीं डाल पाता था। इसलिए तब राजनेता लाभ कमाने वाले होते थे। जो गरीबों का शोषण भी करते थे। वही वृति वही परंपरा अभी भी कमोवेश बनी हुई है। 

अंग्रेज गये ओर बाबू छोड़ गये वाली कहावत यही दर्शाती है कि अंग्रेजों के समय की भ्रष्टाचारी व्यवस्था अभी भी क़ायम है। भारत की राजनीति पर इसकी गहरी पकड़ है। भारत के लोकतंत्र में भ्रष्टाचार का भयंकरतम जाल फैला हुआ है।

 यह बहुत ही प्रत्यक्ष दिखता है कि जो व्यक्ति एक बार ठीकठाक जनप्रतिनिधि बन जाता है, ना जाने कहां से उसकी सात पीढ़ीयों का इंतजाम तो हो ही जाता है। यह बात कर्नाटक कांग्रेस के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष नें बहुत ही स्पष्टता से कही भी थी।

 राजनेताओं की संपत्तियों के पहाड़ किस जादू से उत्पन्न होते हैं यह स्रोत कभी पता नहीं चलता। मगर राजनीति में जनप्रतिनिधि बनने के बाद पैसा ऊपर से बरसता है यह भारत में सभी जगह महसूस किया जाता रहा है।

विशेषकर भारत में परिवारवादी व वंशवादी दलों में तो यह बीमारी कुछ अधिक ही है। उनकी संपत्ति अपने आप में यह बताती है कि राजनीति में भ्रष्टाचार का समुद्र है।

 बहुत ज्यादा नाम ना भी लिया जाए तो भी मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव की संपत्ति अपने आप में बताती है कि राजनीति में पैसा भारी बरसात की तरह बरसता है। पैसे की बाढ़ भी आती है।

 भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निश्चित रूप से भ्रष्टाचार विरोधी है, होने मुख्यमंत्री रहते हुए भी भ्रष्टाचार को कतई नहीं पनपने दिया और अब प्रधानमंत्री होकर भ्रष्टाचार की गंगा की सफाई में लगे हुए हैं।

भ्रष्टाचार हमेशा ऊपर से नीचे की तरफ आता हुआ है। ऊपर का तंत्र यदि ईमानदार है तो भ्रष्टाचार हो ही नहीं सकता।

 एक कड़वा सच है कि भारत की मंहगी चुनाव व्यवस्था और राजनेताओं की लकजरी लाइफ इस्टाइल के खर्च नें पूरी व्यवस्था को भ्रष्टाचारी बना दिया है। जब छोटे छोटे कार्यक्रमों को भी महंगे होटलों और करोड़ों रुपयों के डोमों में किया जायेगा तो इसको किसी से तो वसूला ही जायेगा। इसमें ईडी को दोष देने से क्या होता है। बंगाल और यूपी में जो बड़ी बड़ी राशियाँ बरामद हुई, उनका संबंध तो राजनीति से ही था। किसी संस्था को दोष देना गलत है। सच यही है कि भ्रष्टाचार है, होता है और इसे रोकना फिलहाल बहुत मुश्किल भी है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो अभियान राष्ट्रीय स्तर पर छेड़ रखा है, वह स्वागत योग्य भी है और आवश्यक भी है। इस हेतु एक बड़ा तंत्र होना चाहिए, जो महानगर, नगर, उपनगर, कस्बे गांव,गली मोहल्ले के शासन को भी स्वच्छ रखें। न्यायालय और प्रशासन को भी स्वच्छ रखें। समय-समय पर भ्रष्टाचारियों की बड़ी कार्यवाहियां होती रहनी चाहिए और भ्रष्टाचारियों को दंडित भी किया जाता रहना चाहिए।

विश्व के सबसे छोटे संविधान वाला देश चीन भ्रष्टाचारियों को सजा देने में सर्वप्रथम है। इसी तरह दुनिया के कई तानाशाह देश अपने यहां कानून व्यवस्था को बनाने रखनें में सर्वश्रेष्ठ हैं। लोकतंत्र से भी अपेक्षा यही है की क़ानून और व्यवस्था का राज हो, किन्तु यह अभी तक तो सिर्फ लूट तंत्र ही बना हुआ है।

लोकतंत्र का मतलब मनमर्जी का न्याय - अन्याय भी नहीं होता है, लोकतंत्र भी संविधान के प्रति प्रतिबद्ध है, पूर्ण न्याय और ईमानदारी की ही अपेक्षा है।

 भारतीय लोकतंत्र में राजनैतिक स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है और जिसका समाधान दिख भी नहीं रहा है। पकड़े जानें वाले राजनेता, पकड़ने वाली एजेंसी को ही बदनाम करने लग जाते है।

 राजस्थान की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने जब कदम कदम पर भ्रष्टाचारियों को पकड़ना शुरू किया तो सरकार नहीं उस पर कार्रवाई नहीं करने की दवाब बनाने लगी। एक अधिकारी ने तो भ्रष्टाचार की कार्रवाइयों को बहुत ही सीमित करने तक की कोशिश की। जो कि यह सिद्ध करता है कि भ्रष्टाचार की गंगा राजनीतिक संरक्षण में ऊपर से नीचे आ रही है और इसीलिए यह भी जरूरी हो गया है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर कार्रवाई हो।

जनता भी यह देखे कि किस राजनेता की संपत्ति अचानक बढ़ गई है, वह उसे नकारना भी प्रारंभ करें, भ्रष्टाचारी को वोट देना पाप है और इस महापाप से जनता को स्वयं तो बचना ही चाहिए व जनजागरण कर भ्रष्टाचारी का बहिस्कार भी करना चाहिए।

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