अपराधियों से मुक्त विधायिका ही लोकसंरक्षक हो सकती है - अरविन्द सिसोदिया Rahul Disqualified and Act challenged

अरविन्द सिसोदिया

अपराधियों से मुक्त विधायिका ही लोकसंरक्षक हो सकती है - अरविन्द सिसोदिया
Only a legislature free from criminals can be a protector of the people - Arvind Sisodia


हाल ही में आपराधिक मानहानि के प्रकरण में, कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं सांसद राहुल गांधी को 2 साल की सजा अदालत नें सुनाई है तथा इसी क्रम में उनकी लोकसभा की संसद सदस्यता स्वतः समाप्त हो गईं है। उनके खिलाफ अभी भी कई मानहानि केस न्यायालयों में चल रहे हैं। जिनमें सजा होनें की भी संभावना है।

भारत के राजनीतिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार, आय से अधिक संपत्ति, शब्दों एवं मिथ्या आरोपों के द्वारा अपराधिक मानहानि सहित विभिन्न प्रकार के हिंसात्मक व आपराधिक मामले दर्ज होते रहते हैं। इसका मूल कारण यह है कि वोट बैंक के ठेकेदार, जातीवादी नेता गण, राजनीतिक वर्चस्व, राजनैतिक मान सम्मान, और राजनीति से मिलने वाली ताकत के कारण इस तरह के अनेक व्यक्ति कानून व्यवस्था पर अपना बर्चस्व स्थापित कर लेते है।

कानून व्यवस्था एवं अदालतों की प्रक्रिया को इस तरह के लोग कार्यपालिका एवं प्रशासन में अपनी पहुंच सहित भय एवं डर का बातावरण निर्माण कर आपराधिक एवं भ्रष्टाचारी साम्राज्य चला कर अवैद्ध सम्पत्ती के पहाड खडे कर लेते हैं। कानून के राज्य को विकलांग बना देते हैं।

उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में बाहूबलियों का बोलवाला और उनकी मौजूदगी का लम्बा इतिहास इसका गवाह है । भारतीय राजनीति और अपराधीक गठजोड़ को ठीक से सर्च करके देखेंगे तो एक लम्बी फेहरिस्त इस बावत मिल जायेगी।

यदि इसी तरह के आपराधिक प्रवृत्ति के लोग जनप्रतिनिधि बनकर के संसद में पहुंचेंगे, विधानमंडलों में पहुंचेंगे, तो वे  जन सुरक्षा की वजाय आपराधिक तत्वों के हितों की सुरक्षा को अधिक प्राथमिकता देंगे और इससे व्यवस्था रामराज्य के बजाय रावण राज्य में बदल जायेगी। अब समय आ गया है कि इस तरह के गलत रास्ते पर जाने से रोकने के लिए न्यायपालिका का अधिक सतर्क होना होगा।

राहुल गांधी की सजा और सदस्यता समाप्ति के बाद, केरल से एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई है जो जनप्रतिनिधियों के सामान्य अपराधों पर की सदस्यता बनाए रखने का पक्ष ले रही है और यह निश्चित रूप से एक सोची-समझी योजना के तहत आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के संरक्षण हेतु है। इसे एक एनजीओ के माध्यम से अपनी इच्छा को कानून में बदलना चाहती है । इस तरह की इच्छा अगर पूरी हो जाती है, तो देश के विधान निर्माण करने वाले सदनों में अपराधी आसानी से राजा बन जायेंगे और प्रजाजन को दुखी करेगें। अर्थात अपराध प्रवृति के लोग अपने वर्चस्व और प्रभाव के बल पर विभिन्न विधानमंडलों, विधायिका और कार्यपालिका को भी प्रभावित करेंगे।

याचिका में आभा मुरलीधरन ने कहा – जनप्रतिनिधि कानून 1951 के अध्याय III के तहत अयोग्यता पर विचार करते समय आरोप की प्रकृति, भूमिका, नैतिक अधमता और आरोपी को भूमिका जैसे कारकों की जांच की जानी चाहिए”, याचिका में कहा गया है कि  –  लिली थॉमस केस का हवाला देकर राजनीतिक दलों द्वारा व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए खुले तौर पर इस अधिनियम का दुरुपयोग किया जा रहा है अधिनियम के अध्याय III के तहत अयोग्यता पर विचार करते हुए कई कारकों की जांच की जानी चाहिए। इस याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई होने की सम्भावना है ।

न्यायपालिका से जनहित में आग्रह है कि अपराधीकरण की प्रवृत्ति का संरक्षण करने वाली किसी भी तरह की याचना आवेदन आग्रह को अस्वीकार किया जाए।

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- राहुल की संसद सदस्यता रद्द होने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल,कानूनी प्रावधान खत्म करने की मांग
- राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। केरल की एक महिला ने सदस्यता रद्दे होने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।
- राहुल की संसद सदस्यता रद्द होने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल, कानून का ये प्रावधान खत्म करने की मांग ।

सुप्रीम कोर्ट Supreme Court
 
MP Membership Disqualified 

Rahul Gandhi Disqualified: 

Representation of the People Act challenged in SC
 
Rahul Gandhi Disqualified and Act challenged in SC

सूरत कोर्ट ने मानहानि के मामले में राहुल गांधी को दोषी करार देते हुए 2 साल की सजा दी है। जिसके बाद कांग्रेस नेता की संसद सदस्यता रद्द हो गई है। वहीं अब सदस्यता खत्म करने के प्रावधान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट  में याचिका दाखिल की गई है। केरल की रहने वाली आभा मुरलीधरन ने राहुल गांधी के मामले का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की है। याचिका में महिला ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(3) को असंवैधानिक करार देने की मांग की है।

बता दें कि केरल की वायनाड संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे राहुल गांधी को शुक्रवार (24 मार्च) को लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराया गया। लोकसभा सचिवालय की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि उनकी अयोग्यता संबंधी आदेश 23 मार्च से प्रभावी होगा. अधिसूचना में कहा गया है कि उन्हें (राहुल गांधी) संविधान के अनुच्छेद 102 (1) और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 धारा 8 के तहत अयोग्य घोषित किया गया है।

क्या कहता है जन प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 ?
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत दो साल या उससे अधिक समय के लिए कारावास की सजा पाने वाले व्यक्ति को ’दोष सिद्धि की तारीख से’ अयोग्य घोषित किया जाता है तथा इसी के साथ सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है। इसी के साथ, वो व्यक्ति सजा पूरी होने के बाद जनप्रतिनिधि बनने के लिए छह साल तक आयोग्य ही रहेगा। साफ है अगर सजा का फैसला बरकरार रहता है तो व्यक्ति 8 साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ पाएगा ।

किस मामले में हुई सजा, राहुल ने ऐसा क्या कहा था ?
उल्लेखनीय है कि सूरत की एक अदालत ने ’मोदी उपनाम’ संबंधी टिप्पणी को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ 2019 में दर्ज आपराधिक मानहानि के एक मामले में उन्हें 23 मार्च को दो साल कारावास की सजा सुनाई। हालांकि, सुनवाई के दौरान ही अदलात ने राहुल गांधी को जमानत भी दे दी और सजा के अमल पर 30 दिनों तक के लिए रोक लगा दी, ताकि कांग्रेस नेता फैसले को चुनौती दे सकें। बता दें कि राहुल गांधी ने कर्नाटक में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था। “क्यों सभी चोरों का समान उपनाम (सरनेम) मोदी ही होता है ?“

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