Be brave be strong - Lord Shriram
Be brave be strong - Lord Shriram
- Arvind Sisodia 9414180151
About 17.5 lakh years ago, there was the time of Shriram in Tretayuga, this is also true from the scientific point of view, because the age of Ramsetu also comes almost the same. The age of Treta Yuga was 17 lakh 28 thousand years in which Shri Ram was once born. After Tretayuga, Dwapar Yuga passed completely, it has been of 8 lakh 64 thousand years, at the end of which the period of Lord Krishna came.
At present Kalyug is going on, Kalyug is believed to have started from 3102 BC, so in a way the 5125th year of Kalyug (in 2023) is going on. The present age of our earth is also about 2 billion years according to Hindu calendar and scientific calculations. which has passed. All this in the world only Hindutva has been saying, telling and explaining since thousands of years ago.
The basic struggle of the universe is with samay (time), it is with Kaal, it is with time, that is, how to pass the time, how to pass the time. When the question is of billions of years, then it is present in the form of a very complex and serious problem and its solution is the creation game of that superpower. In which the creator performs various games in the form of creation, operation and destruction. These are all kinds of pastimes in the sequence of Aadi, Anadi and Anant. Whom God himself and as part of them, in the form of 84 lakh types of bodies, the operator's life is done.
Whether it is God or its part, the living parani satta( entity), the living jeev satta (entity). All the conscious unconscious creations pervading the universe, everyone has to remain busy in their own duties, this is called truth, this is called Dharma (religion). All this goes on continuously like Charaiveti - Charaiveti. Calling the forms of that God, the activities, the diverse wide pasture world generated from him as Neti - Neti, the Adhyatm( sages) who know spirituality are called rishi (sages), muni (sages) and saint's. Let's praise
It is a divine system that there are negative, positive and neutral attitudes in it, they are also essential. We also know them as Satogun, Rajogun, Tamogun etc. In the same way, under the leadership of these trends, gods and demons, sages and saints live in every age. Everyone plays their own role with divine yoga only. That's why Lord Krishna told Arjuna that there is no such time, no period when you are not in someone else. That means we live in other forms all the time. Lives in different types of bodies.
The Ram Ravana period is also the story of a similar struggle. The entire creation moves with a certain discipline. The same principle applies to human civilization as well. Lord Shri Ram incarnates from his incarnation to teach this lesson to human civilization that only dignity is paramount. They can be said in very simple language. That the duties of one's own role are paramount. At the same time Shri Ram Avatar also gives this message that we have to perform our duty with full honesty.
He killed the rowdy demonic powers on the orders of the Guru. He chose exile by adopting a sense of duty towards his parents, he could have refused as well. He had full faith in his brother Bharat. When he was on exile, he gave equality status to the people sitting on the last rung of the society there too. Gave the boatman the value of his hard work, it is another thing that he did not take it. By eating false berries of Sabari, a woman of Bhil tribe, he presented an example which has not been presented till now.
Demonic practices that used to impose their will on the society. Defeated them firmly, giving the message that it is our duty to fight for orderliness. Even after winning Ravana's beautiful kingdom, without looking for his own interest in it, he gave it to the rightful heir. There he explained to brother Laxman that motherland is paramount. Discipline was created in Ramrajya also through continuous war and victory.
Being Shriram means being truthful, duty-oriented, bravery-oriented, religion-oriented, social-oriented, policy-oriented. Apart from this, the life of Lord Shri Ram gives us the message that war is the supreme skill in life, it can be used to protect oneself, the society and protect the principles.
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
( jananee janm bhoomishch svargaadapi gareeyasee )
Hindi translation: “Friend, blessed, grain etc. have a lot of respect in the world. (But) the place of mother and motherland is even higher than heaven.
Even if evil has ten heads, it has to come on earth. Such is the message given by the life of Lord Shri Ram. On the other hand, Ramayug also gives a message to everyone that even if the ego is of Ravana, it has to be broken.
Overall, the life of Lord Shri Ram gives us the message that be brave, be strong. Only then will you be able to protect the country and the society.
----------------------------
Note - The original article is in Hindi. It has been translated to English from Google. Due to this there may be discrepancy in some words.
नोट - मूल आलेख हिन्दी में है। इसका गूगल से अंग्रेजी अनुवाद किया गया है। इस कारण कुछ शब्दों में विसंगती हो सकती है।
note- mool aalekh hindee mein hai. isaka googal se angrejee anuvaad kiya gaya hai. is kaaran kuchh shabdon mein visangatee ho sakatee hai.
-------------------------------------------
शौर्यवान बनों शक्तिशाली बनों - भगवान श्रीराम
लगभग 17.5 लाखवर्ष पूर्व त्रेतायुग में श्रीराम का काल रहा था, यह वैज्ञानिक दृष्टि से भी सत्य है, क्योंकि रामसेतु कि आयु भी लगभग यही आती है। त्रेता युग कि आयु 17 लाख 28 हजार वर्ष थी जिसमें कभी श्रीराम का जन्म हुआ था। त्रेतायुग के बाद द्वापर युग पूरा गुजरा, वह 8लाख 64 हजार वर्ष का रहा है जिसके अंत में भगवान श्रीकृष्ण का कालखंड आया था।
वर्तमान में कलयुग चल रहा है, कलयुग ईसापूर्व 3102 वर्ष से प्रारंभ हुआ माना जाता है, इसलिए प्रकार से कलयुग का 5125 वां वर्ष (2023 में ) चल रहा हैं। हमारी पृथ्वी की वर्तमान आयु भी हिन्दू पंचाग और वैज्ञानिक गणना से लगभग 2 अरब वर्ष की है। जो कि गुजर चुकी है। यह सब विश्व में सिर्फ हिन्दुत्व ही हजारों वर्षों पूर्व से कहता, बताता और समझाता आया है।
सृष्टि का मूल संघर्ष समय से है, काल से है, टाइम से है अर्थात समय कैसे गुजरे, समय को कैसे पास किया जाये। जब प्रश्न अरबों खरबों वर्ष का हो तो यह बहुत जटिल और गंभीर समस्या के रूप में उपस्थित होता है और उसी का निदान उस महाशक्ति का सृष्टि निर्माण खेल है। जिसमें सृजन, संचालन और संहार के रूप में विविध क्रीडायें सृजनकर्ता करता है। यह आदी,अनादि और अनंत तक चलते रहने वाले क्रम में ही सभी प्रकार की लीलाएं हैं । जिन्हे स्वयं भगवान एवं उनके अंश के रूप में 84 लाख प्रकार के शरीरों में संचालक रूपी प्राण करते हैं।
ईश्वर हो या उसके अंशरूप प्राणी सत्ता, जीव सत्ता । सृष्टि में व्याप्त तमाम चेतन अचेतन सृजन हों, सभी को अपने अपने कर्तव्यों में रत रहना होता है, इसी को सत्य कहा है, इसी को धर्म कहा है। यह सब चरैवेती चरैवेती की तरह निरंतर चलता रहता है। उस ईश्वर के स्वरूपों को, क्रियाओं को,उनसे उत्पन्न विविध व्यापक चराचर जगत को नेती नेती कहते हुये,आध्यात्म को जानने वाले ऋषि मुनी साधू संत कहते है। स्तुती करते हैं।
यह ईश्वरीय व्यवस्था ही है कि उसमें निगेटिव, पॉजिटिव और न्यूटरल मनोवृतियाँ हैं,इनकी अनिवार्यता भी है। इन्हे हम सतोगुण,रजोगुण, तमोगुण आदी के रुपमें भी जानते हैं। इसी तरह से इन प्रवृतियों के नेतृत्व से देव दानव,साधू संत हर युग में रहते हैं। सभी अपनी अपनी भूमिका ईश्वरीय योग से ही निभाते हैं। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण नें अर्जुन से कहा था येशा कोई समय, कालखंड नहीं है जब तुम और में न रहे हों। अर्थात हम प्रत्येक समय अन्यान्य रूपों में रहते हैं। विभिन्न प्रकार के शरीरों में रहते हैं।
राम रावण कालखंड भी इसी तरह के संघर्ष का कथानक है। संपूर्ण सृष्टि सुनिश्चित अनुशासन से चलती है। यही सिद्धांत मानव सभ्यता पर भी लागू होता है। भगवान श्रीराम अपने अवतार से यही सीख मानव सभ्यता को देनें अवतरित होते हैं कि मर्यादायें ही सर्वोपरी है। इन्हे मह सरल भाषा में कह सकते है। कि अपनी अपनी भूमिका के कर्त्तव्य ही सर्वोपरी हैं। वहीं श्रीराम अवतार यह संदेश भी देता है कि हमें अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी से निभाना है।
उन्होंने गुरु के आदेश पर उपद्रवी दानवी शक्तियों का संहार किया। उन्होने माता - पिता के प्रति कर्त्तव्य भाव को अंगीकृत करते हुये वनगमन चुना, वे मना भी कर सकते थे। उन्होनें अपने भाई भरत पर पूर्ण विश्वास किया । जब वे वनवास पर थे तो उन्होने वहाँ भी समाज की पिछली पायदान पर बैठे लोगों को समानता का दर्जा दिया। केवट को उसके परिश्रम का मूल्य दिया , यह बात दूसरी है कि उसने नहीं लिया। उन्होने भील जनजाती की महिला सबरी के झूठे बेर खाकर, वह उदाहरण प्रस्तुत किया जो अभी तक भी प्रस्तुत नहीं हो पाया।
आसुरीवृतियां जो समाज पर अपनी मनमर्जी थोपती थीं। उन्हे मजबूती से पराजित किया, सुव्यवस्था निर्माण के लिए जो संघर्ष करना कर्तव्य है यह उन्होंने स्वयं करते संदेश दिया। रावण के मनोहारी राज्य को जीत कर भी उसमें अपना हित न खोज कर वास्तविक उत्तराधिकारी को प्रदान किया। वहां उन्होनें भाई लक्ष्मण को समझाया कि मातृभूमि ही सर्वोपरी है। रामराज्य में भी लगातार युद्ध और विजय के द्वारा अनुशासन का निर्माण किया।
श्रीराम होने का मतलब है सत्य परायण,कर्त्तव्य परायण,शौर्य परायण,धर्म परायणा, समाज परायण, नीती परायण होना तो है ही। इसके अलावा भगवान श्रीराम का जीवन हमें यह संदेश देता है कि जीवन में युद्ध कौशल का सर्वोच्च है , उससे स्वयं की,समाज की रक्षा की एवं सि़द्यांतों की रक्षा की जा सके।
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
हिन्दी अनुवाद : “मित्र, धन्य, धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है। (किन्तु) माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।“
बुराई के चाहे दस सिर हो, आखिर उसे धरती पर आना ही होता है। ऐसा ही संदेश भगवान श्री राम का जीवन देता है। वहीं दूसरी ओर रामायुग सभी को एक संदेश भी देता है कि अहंकार चाहे रावण का भी हो, उसे टूटना ही पड़ता है.
कुल मिला कर हमें भगवान श्री राम का जीवन यह संदेश देता है कि शौर्यवान बनों, शक्तिशाली बनों। तभी देश व समाज की रक्षा कर सकोगे।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें