बूंदी रियासत के पराक्रमी शासक, Bundi State

बूंदी राज्य का पराक्रमी शासक, 

नारायण दास:----
बूंदी के हाडा राजवंश में तीन शासक ऐसे हुए हैं जिन्होंने बूंदी में हाडा राजवंश की स्थापना या पुनर्स्थापना की।
(1)राव देवा हाडा (1242-1244)ने तत्कालीन जेता मीणा को परास्त कर बूंदी में हाडा राजवंश की स्थापना की।
(2)पराक्रमी नारायण दास (1503-1527)ने बूंदी को मांडू के सुल्तान से मुक्त करवाया।
(3)राव उमेद सिंह जी (1741-1770)ने बूंदी को जयपुर की अधीनता से मुक्त करवाया।
बूंदी पर मांडू के महमूद खिलजी का अधिकार:--
अचलदास खींची के समय गढ़ गागरोन पर मांडू के सुल्तान ने आक्रमण किया था। इस युद्ध में अचलदास के अतिरिक्त खींची के सहायतार्थ गए हुएमेवाड़ के राणा मोकल (1428-1433)तथा बूंदी के तत्कालीन राजा वेरी साल (1393-1433)भी काम आए थे। बूंदी से प्रतिशोध लेने हेतु मांडू के महमूद खिलजी ने बूंदी पर सैनिक आक्रमण किया। बूंदी के राजा वेरी साल के पुत्र शुभांड देव ने किले के दरवाजे बंद करके सुरक्षा हेतु युद्ध किया। कालांतर में मांडू की सेना ने गोवंश को आगे करके युद्ध किया फल स्वरूप हाडा सैनिकों ने हथियार डाल दिए। बूंदी पर महमूद खिलजी का अधिकार हो गया।
बूंदी का राज परिवार रात्रि में ही किसी गुप्त मार्ग से उत्तर में स्थित दबलाना गांवपहुंचा। इस अभियान के समय राज परिवार के दो शिशु  समर सिंह तथा अमर सिंह मुस्लिम सैनिकों द्वारा पकड़ कर इन्हें मांडू पहुंचा दिया गया। यहां इन दोनों कुमारों का पालन पोषण इस्लामिक रीति रिवाज से किया गया। इनका धर्मांतरण करके इनके नाम समरकंद तथा अमरकंद रखा गया। कालांतर में खिलजी ने बूंदी का शासन समरकंद को सौंप दिया।
समरकंद दबलाना में स्थित बूंदी के वास्तविक शासक तथा अपने बड़े भाई शुभांड देव से हमेशा आशंकित रहता था। समरकंद ने योजनाबद्ध तरीके से दबलाना के परिवार से दिखावटी मेलजोल तथा प्रेम व्यवहार बनाए रखा। सीधा-साधा निर्मल स्वभाव वाला शुभांड देव समरकंद की कूटनीति को नहीं समझ सका। समरकंद ने दावत के बहाने दबलाना के परिवार को हिंडोली के राम सागर नामक तालाब के पाल पर आमंत्रित किया तथा समस्त निहत्थे आगंतुकों को अचानक आक्रमण करके मार दिया। इस स्थल पर वर्तमान में भी तेजाजी के थानक के पास  स्मारकछतरियां बनी हुई है। शुभांड देव के तीनों पुत्र नारायण दास, नर्बद तथा नृसिंह दावत में सम्मिलित नहीं होने के कारण जीवित बच गए।
नारायण दास अति बलशाली, दृढ़ निश्चय वाला, बुद्धिमान , दयालुतथा कौशल युक्त योग्यतम व्यक्ति था। क्षत्रिय परंपरा के अनुसारअपने पिता की मौत का बदला लेने हेतु नारायण दास ने दृढ़ निश्चय करके अवसर की तलाश में था। पर्याप्त सैनिक बल के अभाव में नारायण दास ने कूटनीति तथा छल कपट का सहारा लेते हुए सगे काकासमरकंद को मारने की योजना बनाई। अपने काका से दिखावटी मेलजोल बढ़ाकर उसका विश्वास अर्जित कर लिया। इस षड्यंत्र के लिए नारायण दास अपने मामा जहाजपुर के सोलंकी से निरंतर सलाह लेता था। पूर्व योजना के तहत नारायण दास अपने 5 साथियों के साथ मेहमान के रूप मेंबूंदी पहुंचा। इस समय समरकंद बूंदी के नाहर का चो हटा स्थित बुलबुल के चबूतरे पर मुर्गों की लड़ाई का आनंद ले रहा था। (वर्तमान में इस चबूतरे पर उमेद सिंह जी के पराक्रमी तथा स्वामी भक्त हूजा नामक घोड़े की प्रतिमा लगी हुई है।) इसी चबूतरे पर नारायण दास नेअचानक आक्रमण करके समर कंद तथा उसके पुत्र दाउद के सिर काट दिए। महल में जाकर दयालु नारायण दास नेसमरकंद की महिलाओं तथा शिशुओं को सुरक्षा के साथ मांडू भिजवा दिया।  समरकंद तथा पुत्र दाऊद की मजार वर्तमान बूंदी स्थितचारभुजा मंदिर के पीछे छोटे तालाब के नाले के किनारे स्थित है। इस प्रकार पराक्रमी तथा शूरवीर नारायण दास बूंदी को मुस्लिमों से मुक्त करवा कर इतिहास के पन्नों में अमर हो गया।
मेवाड़ तथा बूंदी के मध्य अनेक पीढ़ियों से विवाद चल रहे थे जो यदा-कदा 'रंग में भंग' तथा 'नकली दुर्ग' आदि के रूप में युद्ध में भी परिणित हो जाते थे। बुद्धिमान तथा समय की पहचान रखने वाले नारायण दास ने मेवाड़ के राणा रायमल (1468-1508)तथा राणा सांगा(1508-1527) से अत्यधिक मधुर संबंध बनाए । राणा सांगा नारायण दास के सगे छोटे साडू थे। दोनों राठौड़ पत्नियां सगी बहने थी। नारायण दास के छोटे भाई नरवद की पुत्री कर्मवती का विवाह राणा सांगा से हुआ था जिसके गर्भ से विक्रमादित्य एवं उदय सिंह पैदा हुए थे। सन 1527 में राणा सांगा तथा बाबर के मध्य खानवा के युद्ध के समय बूंदी के नारायण दास सेना सहित राणा सांगा की ओर से लड़े थे। इस युद्ध में नारायण दास का छोटा भाई तथा कर्मवती का पिता नरबद काम आया था। खानवा में आज भी नरबद की प्रतिमा लगी हुई है। सन 1535 में गुजरात के बहादुर शाह द्वारा चित्तौड़ पर हमले के समय कर्मवती का भाई अर्जुन सिंह भयानकयुद्ध करते हुए मारा गया था। उक्त स्थान को आज भी अर्जुन बुर्ज कहते हैं।
नारायण दास के जीवन काल से संबंधित कतिपय रोचक प्रसंग:--
(1)बूंदी को अधिकृत करने के पश्चात नारायण दास निश्चिंत हो गए थे। मेवाड़ के आक्रमण का भय अबनहीं रहा था। इस स्थिति में नारायण दास अत्यधिक मात्रा में अफीम या अमल का सेवन करने लगे। अत्यधिक अफीम सेवन से हैं प्राय इन का शरीर शिथिल अवस्था में रहता था तथा मुंह से लार टपकती रहती थी। अफीम की अधिक मात्रा के कारण इनकी काम शक्ति भी क्षीण हो गई थी जिससे 50 वर्ष की आयु तक इनके कोई संतान नहीं हुई।
(2)एक दिन नारायण दास अकेले ही शिकार हैतु जंगल में निकल गए।  अफीम खाने का समय होने से वह जंगल में ही एक वृक्ष के नीचे बेहोश होकर लेट गए। स्थानीय मान्यता के अनुसार बेहोश नारायण दास के सिर पर अलौकिक रूप से एक काले नाग ने अपने फणसे छाया कर रखी थी। बाद में उसी नाग ने नारायण दास को अनेक स्थानों पर डस लिया। नाग के विष के प्रभाव से नारायण दास सचेत हुए, अश्वारूढ़ होकर महल में पहुंचे। स्थानीय मान्यता के अनुसार नाग विष के प्रभाव से राजा की काम शक्ति जागृत हो गई तथा उसी रात्रि के सहवास से राठौड़ी रानीधारू के गर्भ ठहरा। समय पूरा होने पर राजकुमार सूरजमल पैदा हुआ जो बूंदी राजवंश में सर्वाधिक काले रंग का था। काला सूरजमल पराक्रमी, शूरवीर तथा आजानुबाहू था ।बाद में राठौड़ी रानी के गर्व से रायमल एवं कल्याणमल नामक 2 पुत्र और हुए। जिस स्थान पर नारायण दास को काले नाग ने काटा था वहां वर्तमान में विषधारी नामक गांव बसा हुआ है। वर्तमान में रामगढ़ विषधारी को बाघ संरक्षण क्षेत्र घोषित किया गया है। बूंदी नरेश राम सिंह (1821-1889)जी ने जंगल के मध्य में मेज नदी के किनारे, महल के रूप में स्थाई शिकारगाह बना रखी है जिसे रामगढ़ कहते हैं। इसलिए इस क्षेत्र को रामगढ़ विषधारी कहते हैं।
(2)मेवाड़ से अच्छे संबंध होने के कारण नारायण दास का काफिला एक बार बूंदी से चित्तौड़ जा रहा था। अत्यधिक अफीम सेवन के कारण हाडा नरेश के मुंह से लारे टपक रही थी। मार्ग के एक गांवमैं स्थित एक तेली जाति की स्त्री ने नारायण दास की मादक दशा देखकर उनकी वीरता तथा पराक्रम पर हल्के शब्दों में टिप्पणी की। टिप्पणी को सुनकर नारायण दास ने उस स्त्री को पास में बुलाकर अपने मोटे भालेको हाथों से मरोड़ कर उसके गले में तागली की तरह पहना दिया। किसी अन्य व्यक्ति के हाथों में इतना बल नहीं था की भाले को सीधा करके महिला को यातना मुक्त कर सके। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार चित्तौड़ से वापस आते समय दयालु नारायण दास ने ही उक्त महिला को लोहे के मोटे भालेके 'आभूषण' से मुक्त किया।
(3)राणा सांगा के समय चित्तौड़ में अश्वारूढ़ इक्के पठान आए दिन आकर उत्पात मचाते थे। एक दिन इक्का चित्तौड़ में नारायण दास के सामने आ गया। द्वंद युद्ध में नारायण दास ने इक्के को अपने भाले सेमार दिया। कहा जाता है की बूंदी नरेश का भाला पठान के सिर, धड़ को फोड़कर घोड़े के शरीर को फोड़ता हुआ धरती में धंस गया। इस प्रकार मृत पठान एवं घोड़ा प्रतिमा के समान स्थिर हो गए। सामान्य जन इन्है भूत समझकर डरने लगे।
(4)मेवाड़ से मधुर संबंध होने के बाद भी कतिपय मेवाड़ी जागीरदार नारायणदास है ईर्ष्या और द्वेष रखते थे। ढक्कू चौहान इनमें प्रमुख था जो आए दिन दरबार में नारायण दास की मादक दशा पर नकारात्मक टिप्पणियां करता था। एक दिन मदमस्त नारायण दास ने चित्तौड़ दरबार में ही ढक्कू चौहान को मार कर उसके शरीर के 8 टुकड़े कर दिए। इसी चौहान के वंशजों ने कालांतर में नारायण दास के पुत्र सूरजमल एवं राणा सांगा के पुत्र राणा रतन सिंह को भी आपस में एक दूसरे का शत्रु बना कर, कोटा के समीप तुलसी गांव के पास लाडवा कर मरवा दिया था।

(5)नारायण दास की निडरता का प्रमाण:-बूंदी की राज्य व्यवस्था को व्यवस्थित करके नारायण दास निडर होकर मांडू के नएसुल्तान से मिलने गया। सुल्तान ने  भोजन के समय शस्त्र विहीन अवस्था में मिलने की अनुमति दी। मुलाकात के समय सुल्तान ने बूंदी में समरकंद को छल कपट से मारने का उलाहना दिया। नारायण दास ने जो स्पष्टीकरण दिया वह क्षत्रियों के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखने का बिल है। नारायण दास के अनुसार"क्षत्रियों में पितृहंता का बदला लेने की परंपरा है। पिता की हत्या का बदला नहीं लेने वाले पुत्र की उच्च कुल में शादी नहीं होती है। ऐसे पुत्र को स्त्री अपना स्पर्श नहीं करने देती है। पित्र हंता से प्रतिशोध नहीं लेने वाले को समाज में अपमानित माना जाता है। जहांपनाह! मैंने बूंदी में जो कुछ भी किया वह मेरे कुल की उत्कृष्ट परंपरा के अनुसार ही किया है।"इस प्रकार सुल्तान के प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर देकर, सुल्तान को संतुष्ट कर के नारायण दास सकुशल बूंदी आ गए।
ऐसे शक्तिशाली नरकेसरी को शिकार के समय खटकड़ के असंतुष्ट जागीरदार संग्राम सिंह के पुत्र नर बदने धोखे से सन 1527 मेंमार दिया।

संदर्भ साहित्य:---
(1)ताहिर भवन, अरावली के मोती बूंदी।
(2)सूर्यमल मिश्रण, वंश भास्कर खंड-5
(3) जेम्स टॉड, बूंदी राज्य का इतिहास।
(4)व्यक्तिगत संकलन।

संकलनकर्ता एवं प्रस्तुति:--
सत्यनारायण शर्मा
9410 16 120

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