जम्मू और कश्मीर में अब टकराव की राजनीति नहीं चल पायेगी - अरविन्द सिसोदिया

जम्मू और कश्मीर में अब टकराव की राजनीति नहीं चल पायेगी - अरविन्द सिसोदिया

जम्मू और कश्मीर से अस्थाई प्रावधानों वाली धारा 370 हटानें के बाद , लोकसभा और विधानसभा के चुनाव बिना किसी अशांति और विरोध के सम्पन्न होगये हैं । जैसा कि पहले से ही स्पष्ट था कि वहां भाजपा सीधे बहुमत में नहीं आएगी यही हुआ । वहां पीडीपी को भाजपा के साथ देनें के पूर्व निर्णय की सजा भुगतनी पड़ी , अर्थात वह मुकाबले से पूरी तरह बाहर हो गई , उसके पास नाममात्र की सीटें हैं । पीडीपी के सीटें खोई और लगभग उतनी ही सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस की बढ़ गई । इस तरस jk में सबसे बड़ी पार्टी NC है । हालांकि उनके साथ गठबंधन कांग्रेस का था किंतु कांग्रेस ने अपनी पिछली संख्या की आधी सीटें गंवा दी है । अब वह मात्र 6 सीटों पर सिमट गई है । पीडीपी ने NC को ही समर्थन की घोषणा की हुई है । किंतु अभी 5 नामित विधायक नियुक्त होनें है जिनकी नियुक्ति संभवतः केंद्र सरकार करेगा । इस तरह से वहां सदन 95 सीटों का होगा।बहुमत के लिये 48 सीटों की जरूरत होगी । सबसे बड़ी बात इस सरकार की स्थिति केन्द्रशासित प्रदेश होनें से उपराज्यपाल के अधीनस्थ होगी । इसलिए जितने वायदे किये थे , बड़बोलेपन की हुकरें भरी थीं वे सब असंभव हैं ।

NC नें मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह को घोषित कर दिया है और उनने समय की नजाकत और संवैधानिक स्थिति को देखते हुए केंद्र से टकराव को टालने जैसी बातें ही कीं है ।

अभी यह देखना बांकी है कि 5 मनोनीत विधायक कौन कौन होते है , मुख्यमंत्री का चुनाव कैसे होता है । LG और बनने वाली सरकार में तालमेल रहता है या दिल्ली जैसे टकराव होता है।


कांग्रेस का अहंकार एक समस्या 

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे में NC-कांग्रेस गठबंधन को जीत मिली है और सरकार  बनाने के लिए जरूरी बहुमत को पार कर लिया है। यह चुनाव NC-कांग्रेस ने गठबंधन में लड़ा था किन्तु कांग्रेस के अहंकार की देखिए कि वह 7 सीटों पर NC के खिलाफ भी लड़ रही थी । 

गठबन्धन में कांग्रेस 32 सीटों पर चुनाव लड़ी तो नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 51 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे किन्तु  इसके अलावा 7 सीटों पर दोनों दलों के बीच फ्रेंडली फाइट हुई जिसमें , इन सात सीटों पर दोनों दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारे । इनमें कांग्रेस सभी सात सीटें हार गई।

यह सात सीटें बनिहाल, डोडा, भद्रवाह, नगरोटा, सोपोर, बारामुला और देवसर थीं। इन सात में से NC को 4, AAP को 1, भाजपा को 2 सीटों पर जीत मिली है। अगर NC कांग्रेस से अलग होकर लड़ती तो स्वयं स्पष्ट बहुमत पर होती ।

हरियाणा में भी उसने AAP को अहंकार पूर्ण ठेंगा दिखाया , नतीजा जीत के पास होते हुये भी हार गई ।

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