हाई प्रोफाइल मामलों में न्यायपालिका की अभिरुचि चिंताजनक - अरविन्द सिसोदिया sc, cm aandhra, nyaypalika,

हाई प्रोफाइल मामलों में न्यायपालिका की अभिरुचि

सुप्रीम कोर्ट को भी लाईम लाईट में बने रहने की आदत हो गई है । कभी - कभी लगता है कि भारत की राजनीति का असली केंद्र ही सुप्रीम कोर्ट है । वहीं यह भी प्रतीत होता है कि भारत की न्यायपालिका के मुख्य कर्ताधर्ता परोक्ष अपरोक्ष एक वकील विशेष हैं । विपक्ष का मुख्य नेता ही कभी कभी सर्वोच्च न्यायालय प्रतीत होता है ।

मुझे आश्चर्य इसलिए है कि देश के नागरिकों और तमाम दुनिया के लोगों को अपनी गैर जिम्मेवार बयान परोसने वाले राहुल गांधी या अन्य पर कभी सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र के मुख्यमंत्री जैसी सीख देने वाली टिप्पणी नहीं की । वहीं प्रतीत होता है कि सोची समझी रणनीति जैसी टिप्पणी आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री पर कर दी गई , जो गैर जरूरी थी । जबकि सीधा बड़ा प्रश्न यह था कि 350 रुपये किलो में शुद्ध घी बना कर दिखाओ ? असली प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रोक्षरूप से पर्दा डाला है । आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री और उसका प्रशासन पूरी तरह से सही हैं उनके विरुद्ध अविश्वास व्यक्त करने का हक सर्वोच्च न्यायालय को नही था । जो अलग से एस आई टी गठन की जरूरत हुई । सच यह है कि सही  जांच होने से पहले ही जांचकर्ताओं को परोक्ष डरा दिया गया है ।

कभी कभी लगता है इस देश में पत्थर फेंकने वाले बनना , राष्ट्र के विरुद्ध बोलना , अपराध करना कहीं अधिक सुरक्षित है , न्यायपालिका सुरक्षा कवच बन जाएगी ।
सोसल मीडिया पर एक वकील साहब का वीडियो था , अब वह है या नही पता नहीं , मगर उन वकील साहब के कथन का सार यही था कि " अब  विधानसभाओं और लोकसभा का , सरकारों की जरूरत नहीं है । क्योंकि सभी निर्णय 2-3 न्यायाधीश ले सकते हैं । " न्यायपालिका की इस तरह की प्रवर्ति में वृद्धि देखी जा रही है । जबकि संविधान नें कानून बनाने और देश चलाने का अधिकार लोकतंत्र को दिए हैं । न्यायपालिका को निर्मित नियमों के तहत न्याय करने का कार्य दिया गया है । किंतु अब लगभग सभी प्रमुख मामलों में सीधे सर्वोच्च न्यायालय इन्वॉल्व हो रहा है । सामान्य व्यक्ति को तारीख नहीं मिलती , केस सुनने में वर्षों लग जाते हैं । मगर विषय राजनीति का हो , किसी सरकार के खिलाफ और प्रस्तुतकर्ता एक वकील विशेष हों तो तुरंत सुनवाई होती है ।

न्याय में आमव्यक्तिऔर विशेषव्यक्ति के दोहरे मापदण्ड दिख रहे हैं । यह ठीक नहीं हैं , जिन विषयों पर विचार ट्रायल कोर्ट , जिला कोर्ट , हाई कोर्ट में होना चाहिए उन्हें भी सीधे सर्वोच्च न्यायालय सुन ले तो यह अन्य लाइन में लगे मुकदमों के साथ अन्याय है । 

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गाय के दूध में क्रीम कम होता है यानी इसमें फैट कम होता है। भैंस के दूध में जहां एवरेज 7% फैट होता है वहीं गाय के दूध में यह 3.5% ही होता है। वहीं भैंस के दूध में 9% SNF (सॉलिड नॉट फैट) होता है जबकि गाय के दूध में इसकी मात्रा 8.5% होती है।
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इसलिये गाय का 1किलो घी  30 से 35 लीटर दूध में बनेगा। भैंस के दूध से 1 किलो घी 15 से 20 लीटर दूध में बनेगा । अर्थात शुद्ध घी घर में भी हजार आठ सौ रुपये से कम में नहीं बनेगा । इसलिए 320 से 411 रुपये किलो का घी तो किसी भी तरह शुद्ध नहीं हो सकता ।

एक निर्वाचन आयुक्त टी एन शेषन हुए , उन्होंने अपने बेवाक लहजे से पूरे राजनैतिक माहौल को गर्मा कर रखा , जब चुनाव मैदान में उतरे तो जनता नें उनको बुरी तरह अस्वीकार कर दिया।

मुख्य चुनाव आयुक्त के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद , उन्होंने 1997 का भारत के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा और के.आर. नारायणन से हार गए ।  उन्होंने 1999 में गांधीनगर से भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और हार गए।

संसद में न्यायपालिका की अतिसक्रियता पर चर्चा होनी चाहिए । ग्वालियर हाई कोर्ट में लगी याचिका 2018 से  पेंडिंग है और राजनीतिक प्रकरण तीसरे चौथे दिन ही सुन लिया जाता है । जनता के बीच जो जमानत बचाने की स्थिति में नहीं हैं , वे अपने विचारों को कैसे थोप सकते हैं । 
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राव ने कहा कि TTD के पांच घी सप्लायर हैं, ये सप्लायर प्रीमियर एग्री फूड्स, कृपाराम डेयरी, वैष्णवी, श्री पराग मिल्क और एआर डेयरी हैं। इनकी कीमतें 320 रुपये से लेकर 411 रुपये प्रति किलो तक हैं।

तिरुमाला:आंध्र प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर के लड्डू प्रसाद में मिलावटी घी का मुद्दा जोर पकड़ता जा रहा है. लड्डू प्रसाद बनाने के लिए बोर्ड द्वारा 320 रुपये प्रति किलो के भाव से घी खरीद को लेकर सवाल उठने लगे हैं. रिपोर्ट के अनुसार एक किलो घी की कीमत 1,667 रुपये है जबकि लड्डू प्रसाद के 320 रुपये प्रति किलो के भाव से घी खरीद की गई. आखिर इतनी कम कीमत पर घी कैसे उपलब्ध कराया गया.

वाईएसआरसीपी के शासन काल में कई आरोप
वाईएसआरसीपी के पांच साल के शासन के दौरान लड्डू प्रसाद को लेकर कई शिकायतें सामने आई. कई लोगों ने यह कहा है कि लड्डू का स्वाद और गंध अच्छा नहीं था. साथ ही ये लड्डू प्रसाद जल्द खराब हो जाता था. तत्कालीन सरकार के नेताओं, टीटी की शासी निकाय या तत्कालीन ईओ धर्म रेड्डी ने इसकी कोई सुनवाई नहीं की. धर्म रेड्डी जगन के रिश्तेदार हैं.

एनडीडीबी की रिपोर्ट में मिलावट का खुलासा

एनडीडीबी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि पिछली सरकार के दौरान गुट्टेदारों द्वारा सप्लाई किए गए घी में मिलावट थी. इसमें जानवर की चर्बी मिलाई गई थी. इस खुलासे से भक्त हैरान हैं. देश-विदेश में भक्तगण इस मामले पर अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं. इस जघन्य अपराध को अंजाम देने वालों को कड़ी सजा देने की मांग भी उठ रही है.
शुद्ध गाय का घी 320 रुपये में कैसे मिल सकता है?
जब यह बात सामने आई कि पिछली सरकार के कार्यकाल में तिरुपति बालाजी के प्रसाद में मिलावटी तेल का इस्तेमाल किया गया था, तो टीटीडी गवर्निंग बॉडी के पूर्व अध्यक्ष जगन परिवार के व्यक्ति वाईवी सुब्बारेड्डी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने कार्यों को सही ठहराने की कोशिश की. उन्होंने बताया कि दानदाताओं के सहयोग से प्रतिदिन 60 किलो शुद्ध देसी गाय का घी राजस्थान के फतेहपुर से खरीदा जाता रहा. लड्डू प्रसाद बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाला हजारों किलो घी कथित रूप से 320 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदा गया जबकि सुब्बारेड्डी ने कहा कि उन्होंने एक किलो घी 1,667 रुपये में खरीदा है.
जानकारों का कहना है कि एक किलो गाय का घी बनाने के लिए 17-18 लीटर दूध की जरूरत होती है. अगर एक लीटर की कीमत 40 रुपए भी हो तो भी इसकी कीमत 720 रुपए होती है. वहीं भैंस के दूध से निकाला गया घी की कीमत बाजार में 800 रुपए प्रति किलो से भी ज्यादा है.तो फिर उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसी जगहों पर कंपनियां परिवहन लागत वहन करते हुए भी 320 रुपये में एक किलो घी कैसे उपलब्ध करा सकती हैं?
कर्नाटक दुग्ध संघ (KMF) जो 'नंदिनी' ब्रांड नाम से दुग्ध उत्पाद बेचता है. 50 वर्षों से टीटीडी को घी की आपूर्ति करता रहा है. यह कर्नाटक सरकार का है. जगन सरकार के दौरान अधिक दाम लगाए जाने के कारण तत्कालीन टीटीडी सत्तारूढ़ निकाय द्वारा केएमएफ को दरकिनार कर दिया गया था. केएमएफ के अध्यक्ष भीमनायक ने उस समय कहा था कि टीटीडी जो कीमत बता रहा था उस पर शुद्ध घी की आपूर्ति करना संभव नहीं है.



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