दीपावली पर्व का समाज व्यवस्था सम्बर्द्धन का वैज्ञानिक दृष्टिकोंण
Scientific view of Deepawali festival for social system development
दीपावली पर्व का समाज व्यवस्था सम्बर्द्धन का वैज्ञानिक दृष्टिकोंण
भारत में सभी व्रत तिथि और त्यौहारों के पीछे कोई न कोई सामाजिक सरोकार का हेतु होता है। यही दीपावली के पर्व पर भी है। मानव के जीवन में जिन जिन व्यवस्थाओं से उन्नती प्रगति विकास एवं सम्पन्नता आती है। सुखमय व्यवस्था आती है। उन सभी के आत्म निरिक्षण व संवर्द्धन का अवसर यह उत्सव प्रदान करता है।
दीपावली भारत का सबसे प्राचीन त्यौहार है, सृष्टि सृजन के समय जब प्रलय के पश्चात समुद्र मंथन हुआ और उसमें से देवी लक्ष्मीजी के प्रगट होनें आगमन होनें के अवसर से ही यह ज्यौहार मनाया जाता है। अर्थात सनातन सभ्यता की दृष्टि से यह त्यौहार सतयुग से ही मनाया जा रहा है। इसे करोडों और अरबों वर्ष पूर्व का माना जा सकता है। इसीलिये इसमें मुख्यपूजा लक्ष्मीजी की है। हो सकता है कि इसका नया नामकरण भगवान श्रीराम के त्रेतायुग में वनवास से अयोध्या लौटते समय उनके आगमन पर जलाये गये दीपों के कारण दीपावली हो गया हो और इससे पूर्व कोई ओर नाम हो । इस वर्प में सतयुग से लक्ष्मी एवं गणेश पूजन, त्रेता से श्रीराम का जुडना और द्वापर में नरकासुर संहार एवं गोवर्द्धनपूजा से श्रीकृष्ण का जुडना महसूस किया जा सकता है। अर्थात यह पर्व अभी तक के तीनों युगों का प्रतिनिधित्व करता है।
गणेश जी मुख्यरूप से देवीय शक्तियों के सुरक्षा अधिकारी है। उन्हे पार्वती जी ने देवीय शक्तियों की सुरक्षा हेतु ही उत्पन्न किया था। इसलिये जब भगवान विष्णु जी योग निद्रा में हैं तब लक्ष्मी जी की सुरक्षा में श्री गणेशजी हैं। इसी कारण दीपावली पर लक्ष्मीजी के साथ गणेशजी का पूजन होता है। तथा समस्त देवों की यह वचनबद्धता भी है कि प्रथमपूज्य गणेश जी ही हैं।
दीपावली पांच दिन का त्यौहार है
1- 13 वीं जो धन तेरस कहलाती है, इस दिन भगवान धन्वतरी एवं कुबेर की पूजा होती है। धनवन्तरी स्वास्थय रूपी धन का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कुबेर राजकोष अर्थात मौजूदा धनसम्पदा का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसदिन कोई न कोई धातु / बर्तन इत्यादी को खरीद कर घर लाते है। और एक प्रकार से खजानें में वृद्धि करते हैं।
2- 14वीं अर्थात रूप चौदस यह मूलरूप से स्वरूप रूपी धन की पूजा का दिन है। मनुष्य के रहन सहन की सृमृद्धता का विषय है। इसी दिन नरकासुर पर भगवान श्रीकृष्ण की विजय के कारण नरक चतुर्दशी का भी आयोजन होता है, जो कि सुरक्षा रूपी धन की पूजा है।
3- आमश्या के दिन माता लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा है, लक्ष्मीपूजा मूलरूप से उन संसाधनों की पूजा है जिनसे परिवार आय प्राप्त करता है। यह आय रूपी धन की पूजा है। इसमें भी आय वे संसाधन जो स्थिर हैं । उनकी पूजा होती है। कई जगह माता लक्ष्मीजी के साथ देवी काली के शक्तिस्वरूप और देवी सरस्वती के ज्ञानस्वरूप की पूजा भी होती है।
4- पडवां इस पर्व का चौथा दिन है, इसदिन गोवर्द्धन पूजा जो पर्यावरण रूपी धन की सुरक्षा का विषय है की पूजा होती है। और इसी दिन पशुधन की पूजा का भी विधान है।
5- दूज जो कि भाई दूज कहलाती है, भाई बहन के मिलन का महत्वपूर्ण त्यौहार है। हिन्दू जीवन पद्यती में भाई बहन को आपस में मिलाते रहनें के चार त्यौहार हैं। रक्षा बंधन, दीपावली की भाई दूज और होली की भाई दूज और मकर संक्रंती । इसी दिन यमुनाजी के भाई यम अपनी बहन के घर पहली बार आये थे , इसलिये इसे यम देव की पूजा का दिन माना गया है। भाव रिरूतों रूपी धन का है।
इस प्रकार जीवन में उपयोगी विभिन्न प्रकार के धनों के आत्मनिरिक्षण और संवर्द्धन को दीपावली का पर्व समर्पित है।
--------------------------------------
Scientific view of Deepawali festival for social system development
There is some or the other reason of social concern behind all the fasts, dates and festivals in India. The same is true for Deepawali festival. This festival provides an opportunity for self-introspection and development of all those systems in human life which bring progress, development and prosperity. A happy system comes.
Deepawali is the most ancient festival of India, at the time of creation of the universe when the ocean was churned after the deluge and this festival is celebrated on the occasion of the arrival of Goddess Lakshmi from it. That is, from the point of view of Sanatan civilization, this festival is being celebrated since the Satya Yuga. It can be considered to be millions and billions of years old. That is why the main worship in this is of Goddess Lakshmi. It is possible that it got renamed as Deepawali due to the lamps lit on the arrival of Lord Shri Ram from exile to Ayodhya in Treta Yuga and there was some other name before this. In this year, we can feel the worship of Laxmi and Ganesha from Satya Yuga, Shri Ram from Treta Yuga and Shri Krishna from Dwapar Yuga and Govardhan Puja. That is, this festival represents all the three Yugas till now.
Ganesh Ji is mainly the protector of divine powers. He was created by Parvati Ji for the protection of divine powers. That is why when Lord Vishnu Ji is in Yog Nidra, Shri Ganesh Ji is in the protection of Laxmi Ji. That is why Ganesh Ji is worshipped along with Laxmi Ji on Deepawali. And it is also the commitment of all the Gods that Ganesh Ji is the first to be worshipped.
Deepawali is a five day festival
1- 13th which is called Dhanteras, on this day Lord Dhanvantari and Kuber are worshipped. Dhanvantari represents the wealth of health while Kuber represents the treasury i.e. the existing wealth, on this day people buy some metal/utensil etc. and bring it home. And in a way, they increase the treasury.
2- 14th i.e. Roop Chaudas is basically the day of worship of wealth in the form of form. It is the subject of prosperity of human lifestyle. On this day, Narak Chaturdashi is also organized due to Lord Krishna's victory over Narakasur, which is the worship of wealth in the form of security.
3- On the day of Amashya, Mata Lakshmi and Ganesha are worshiped. Lakshmi Puja is basically the worship of those resources from which the family gets income. It is the worship of wealth in the form of income. In this also, those resources of income which are stable are worshiped. At many places, along with Mata Lakshmi, the Shakti form of Goddess Kali and the Gyan form of Goddess Saraswati are also worshiped.
4- Padwa is the fourth day of this festival. On this day, Govardhan Puja, which is the subject of protection of wealth in the form of environment, is worshiped. And on this day, worship of livestock is also prescribed.
5- Duj, which is also called Bhai Dooj, is an important festival of brother-sister reunion. In Hindu way of life, there are four festivals to keep brother-sister together. Raksha Bandhan, Bhai Dooj of Diwali, Bhai Dooj of Holi and Makar Sankranti. On this day, Yamunaji's brother Yam came to his sister's house for the first time, so it is considered the day of worship of Yam Dev. The meaning is of wealth in the form of opportunities.
Thus, the festival of Diwali is dedicated to introspection and enhancement of various types of wealth useful in life.
के अवसर पर धन्वंतरि पूजा करने के लिए ये चरणों का पालन करेंः-
1. स्नान और शुद्धिः दीपावली के दिन सुबह स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
2. पूजा स्थल तैयार करेंः घर के एक शुद्ध और पवित्र स्थल पर धन्वंतरि की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
3. पूजा सामग्री इकट्ठा करेंः धन्वंतरि पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे कि फूल, अक्षत, धूप, दीप, और प्रसाद इकट्ठा करें।
4. पूजा आरंभ करेंः धन्वंतरि को स्नान कराएं और उन पर फूल और अक्षत चढ़ाएं।
5. मंत्रोच्चारः धन्वंतरि के मंत्रों का जाप करें और उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करें।
6. आरती और प्रसादः धन्वंतरि की आरती करें और उन्हें प्रसाद चढ़ाएं।
7. समापनः पूजा के समापन पर धन्वंतरि को नमस्कार करें और उनकी कृपा के लिए धन्यवाद दें।
धन्वंतरि पूजा के मंत्रः
“ॐ धन्वंतरये नमः“
“ॐ धन्वंतरि राजाय नमो नमः“
धन्वंतरि पूजा करने से स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
----------------
धनतेरस की पूजा विधि इस प्रकार हैः-
धनतेरस पूजा मुहूर्तः-
- धनतेरस की पूजा का मुहूर्त सूर्यास्त के बाद शाम ७ः३० से रात ८ः४५ तक होता है।
- इस समय में पूजा करना सबसे शुभ माना जाता है।
पूजा विधिः-
१) घर की साफ-सफाई करें और पूजा स्थल को सजाएं।
२) एक चौकी या पाटे पर धन की देवी लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की तस्वीर या मूर्ति रखें।
३) देवताओं को फूल, अक्षत, और फल चढ़ाएं।
४) दीपक जलाएं और धूपबत्ती करें।
५) भगवान धन्वंतरि और धन की देवी लक्ष्मी की पूजा करें और उनके मंत्रों का जाप करें।
६) पूजा के बाद आरती करें और प्रसाद वितरित करें।
७) रात में दीये जलाकर उनकी पूजा करें और अगली सुबह उन्हें जल में विसर्जित कर दें।
धनतेरस की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और धन की वृद्धि होती है।
--------------
दीपावली से एक दिन पहले मनाया जाने वाला त्योहार रूप चौदस या नरक चतुर्दशी है। इस दिन लोग स्नान करते हैं और देवताओं की पूजा करते हैं। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और इसे हिंदू धर्म में बहुत महत्व दिया जाता है।
रूप चौदस पूजा विधिः-
1. सुबह जल्दी उठें और स्नान करें।
2. स्नान के बाद नए कपड़े पहनें।
3. देवताओं की पूजा करें, विशेष रूप से भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु की।
4. दीपक जलाएं और घर को सजाएं।
5. परिवार और दोस्तों के साथ मिलें और मिठाइयाँ बांटें।
रूप चौदस का महत्वः-
1. बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक।
2. आत्मशुद्धि और पवित्रता का प्रतीक।
3. भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु की पूजा का अवसर।
4. परिवार और दोस्तों के साथ मिलने का अवसर।
रूप चौदस की कथाः-
भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था, जो अपनी शक्ति के अभिमान में था। भगवान कृष्ण ने नरकासुर को हराया और उसकी मृत्यु के बाद लोगों ने खुशी मनाई। तब से यह त्योहार नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है।
---------------
दीपावली पर पूजने वाले देवी देवताओं का वर्णन
1. भगवान गणेशः
दिवाली उत्सव अक्सर भगवान गणेश की पूजा के साथ शुरू होता है, ज्ञान, सफलता और बाधाओं को दूर करने के लिए उनका आशीर्वाद मांगा जाता है। भक्तों का मानना है कि किसी भी कार्य की शुरुआत में भगवान गणेश का आह्वान करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
2. देवी लक्ष्मीः
दिवाली का मुख्य दिन देवी लक्ष्मी की पूजा को समर्पित है। भक्त देवी लक्ष्मी को अपने घरों में आमंत्रित करने के लिए विस्तृत अनुष्ठान और प्रार्थना करते हैं, धन, समृद्धि और खुशी का आशीर्वाद मांगते हैं। ऐसा माना जाता है कि वह उन घरों का दौरा करती हैं जो साफ-सुथरे और अच्छी रोशनी वाले होते हैं, जो अंधेरे पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।
दीपावली पर लक्ष्मी पूजन की विधि इस प्रकार हैः
1. स्नान और शुद्धिः दीपावली के दिन सुबह स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
2. पूजा स्थान की तैयारीः घर के एक शुद्ध और पवित्र स्थान पर लक्ष्मी पूजा की तैयारी करें।
3. देवी लक्ष्मी की स्थापनाः लक्ष्मी जी की मूर्ति या चित्र रखें और उनके सामने दीया जलाएं।
4. पूजन सामग्रीः लक्ष्मी पूजन के लिए आवश्यक सामग्री जैसे कि फूल, अक्षत, धूप, दीप, और मिठाई रखें।
5. पूजा विधिः देवी लक्ष्मी को फूल और अक्षत अर्पित करें, धूप जलाएं, और दीपक जलाकर पूजा करें।
6. मंत्र और प्रार्थनाः लक्ष्मी मंत्रों का जाप करें और देवी से सुख, समृद्धि, और शांति की कामना करें।
7. आरती और समापनः पूजा के बाद आरती करें और देवी लक्ष्मी को धन्यवाद देकर पूजा का समापन करें।
इस तरह दीपावली पर लक्ष्मी पूजन करके आप सुख, समृद्धि, और शांति की कामना कर सकते हैं।
---------------
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें