ईश्वर तो है , उसे समझना अपनी अपनी समझ पर निर्भर है - अरविन्द सिसोदिया Ishwar to he

ईश्वर तो है , उसे समझना अपनी अपनी समझ पर निर्भर है - अरविन्द सिसोदिया

राजस्थान के एक आईपीएस अधिकारी किशन सहाय मीणा ने धार्मिक विश्वासों पर प्रश्न उठाते हुए, ईश्वर को कल्पित बताया है । किंतु यह भी सच है कि ईश्वर तो है , उसकी पूरी सरकार है उसका पूरा शासन भी है, उसकी संपत्ती यां भी हैं , वह परम वैज्ञानिक भी है और इस ज्ञात और अज्ञात सृष्टि में जो भी है उसका स्वामित्व भी ईश्वर में ही निहित है । यहां तक कि खण्डन करने वाले स्वयं किशन सहाय मीणा का जन्म भी ईश्वरीय व्यवस्था के अंतर्गत निहित ईश्वरीय वैज्ञानिकता से ही हुआ है ।

जो वास्तविक ईश्वर है और जो वास्तविक धर्मपथ है वह तो अबाध अनंतकाल से कार्यरत है। उसकी सजीव  कार्यप्रणाली पूरी तरह परिपक्व भी है । वह अपना कार्य, अपने प्रकार से निरन्तर कर रहा है । इसे किसके के साथ क्या व्यवहार करना है, यह वह स्वयं निश्चित करता है ।

मुझे नहीं लगता कि पृथ्वी पर हम जिन धर्म , संप्रदाय और पंथों में अलग - अलग पहचान रखते हैं , उससे वह प्रभावित होता होगा । हमारी पहचान हमारे नियम कानून से वह पूरी तरह अप्रभावित है । इसकी व्यवस्था में सभी मनुष्य एक ही प्रोडक्ट हैं, सभी पशु पक्षी , सभी कीट पतंगे , जल चर, थल चर, नभ चर आदि उनके विशुद्ध निर्माण की क्वालिटी पर श्रेणीबद्ध हैं । उनकी फेक्ट्री ,उनके प्रोडक्ट ,उनके मानकों, उनके नामों से उनकी व्यवस्था में अलग ही प्रकार से सूचीबद्ध होंगे । जिस तक हम पहुंच ही नहीं पाते । क्योंकि हमारी क्षमता उसके सामने अत्यंत सूक्ष्म है ।

मनुष्य नें अपने अपने तरीके से ईश्वर की खोज की है , सनातन पथ इस अनुसन्धान में सत्य के निकट पहुंचने में अधिकतम सक्रिय रहा है । उन्होंने इसे अनुभव के आधार पर लिपिबद्ध भी किया है । मानव सभ्यता में ईश्वर की खोज की जाग्रत  जीजिविषा के बहुत कुछ व्यवस्थित किया भी है । इसीलिए ईश्वर की व्यवस्थाओं के निकट सनातन धर्म पथ खड़ा है ।

ईश्वर की संसार के सृजनकर्ता की भूमिका तो सत्य है मगर उसे मनोकामना सिद्धि का साधन बना देना गलत है ।

यहां यह विषय महत्वपूर्ण है कि हमनेँ ईश्वर को क्या समझ लिया , मुझे लगता है कि ईश्वर को मनोकामना सिद्धि का कर्ताधर्ता बना कर जो प्रस्तुतिकरण हुआ वह गलत है ।  ईश्वर के नाम पर हम उसके अधिकृत एजेंट बन गये यह भी गलत है । ईश्वर नें हमें बना दिया अब जीवित रहना हमारा कर्तव्य है । जीवन की रक्षा के लिए संघर्ष करना भी हमारा ही कर्तव्य है । 

ईश्वर नें हमें श्रेष्ठ शरीर दिया , इस शरीर के निर्माण की स्वचलित अर्थात ऑटोमेटिक व्यवस्था उसनें की है । जो फिजिक्स , केमेस्ट्री ,  कार्बनिक रसायन , कंप्यूटर साइंस के अनुपम तालमेल से सुसज्जित है । सिर्फ हम ही नहीं चौरासी लाख शरीर, विविध प्रकार से उसनें निर्मित किये हैँ । जिस तरह भारत का प्रधानमंत्री 140 करोड़ों लोगों के देश में प्रत्येक नागरिक के साथ खड़ा नहीं हो सकता है उसी प्रकार ईश्वर भी प्रत्येक नागरिक के साथ व्यक्तिशः खड़ा नहीं हो सकता । किन्तु उसकी व्यवस्था से बाहर हम कोई नहीं निकल सकते । उसे हमें जो स्वायत्तता दी है हम उसी तक सीमित हैं । उससे बाहर हम निकल भी नहीं सकते । इसके अलावा हम ईश्वर की व्यवस्थाओं को बहुत हद तक जानते ही नहीं हैं । हम अपनी आत्मा को ही ठीक से पहचानते नहीं , शरीर के नष्ट होने पर यह आत्मा खान रहता है क्या करता है यह भी नहीं जानते , तो ईश्वर के अस्तित्व पर टिप्पणी निरर्थक है ।

अर्थात ईश्वर तो है । वह कल्पित नहीं वास्तविक है । उस वास्तविक को हम अपने प्रस्तुतिकरण में कल्पनाओं का आकार देते हैं , यह भी सत्य है ।

सवाल यही है कि हम उसकी कार्यपद्धति को समझते नहीं हैँ। पढ़ नहीं पा रहे हैं । इसका कारण यही है कि हम बहुत अल्प बुद्धि हैं । हमारे मस्तिष्क रूपी कम्प्यूटर की रैम, स्टोरेज कैपिसिटी, सर्च इंजन , AI, वाईफाई बैटरी  बहुत कम क्षमताओं के हैँ । दूसरी बात उसके हमें सक्षम शरीर दे दिया है , अब इसकी रक्षा भरण पोषण संचालन हमें ही करना है ।

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