अक्षय तृतीया : आखा तीज : स्वयंसिद्ध अभिजीत मुहूर्त





 भारतीय कालगणना के अनुसार वर्ष में चार स्वयंसिद्ध अभिजीत मुहूर्त होते हैं, अक्षय तृतीया (आखा तीज) भी उन्हीं में से एक है। इसके अलावा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुड़ी पड़वा), दशहरा और दीपावली के पूर्व की प्रदोष तिथि भी अभिजीत मुहूर्त हैं।

अक्षय तृतीया


“अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥„


अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है।
इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।
वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है।
* भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है,
* सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है।
* भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था।
* ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं।
* प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं।
* वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।
* पद्म पुराण के अनुसार इस तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए।
* इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और
* द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता।

मंगल कार्य जो किए जा सकते हैं : इस दिन समस्त शुभ कार्यों के अलावा प्रमुख रूप से शादी, स्वर्ण खरीदें, नया सामान,गृह प्रवेश, पदभार ग्रहण, वाहन क्रय, भूमि पूजन तथा नया व्यापार प्रारंभ कर सकते हैं।
क्यों है 

इस दिन का महत्व : भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सतयुग एवं त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में भगवान परशुराम, नर-नारायण एवं हयग्रीव आदि तीन अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही धरा पर आए। तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के पट भी अक्षय तृतीया को खुलते हैं। वृंदावन के बांके बिहारी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया को होते हैं। वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त है, उसमें प्रमुख स्थान अक्षय तृतीया का है। ये हैं- चैत्र शुक्ल गुड़ी पड़वा, वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया सम्पूर्ण दिन, आश्विन शुक्ल विजयादशमी तथा दीपावली की पड़वा का आधा दिन।
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स्वयं सिद्ध अबूझ मुहूर्त है अक्षय तृतीया
धार्मिक शास्त्रों में अक्षय तृतीया तिथि को स्वयं सिद्ध अबूझ मुहूर्त माना गया है. इस तिथि पर बिना मुहूर्त का विचार किए सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते है. इस दिन सभी प्रकार के शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, सोने-चांदी के आभूषण. घर, भूखंड या वाहन आदि की खरीदारी किए जा सकते हैं. धार्मिक मान्यता है कि इस अबूझ मुहूर्त की तिथि पर व्यापार आरम्भ, गृह प्रवेश, वैवाहिक कार्य, सकाम अनुष्ठान, दान-पुण्य,पूजा-पाठ अक्षय रहता है. हालांकि इस साल अक्षय तृतीया पर शादी विवाह नहीं किए जा सकेंगे. क्योंकि इस दौरान देव गुरु बृहस्पति और शुक्र ग्रह अस्त रहेंगे. इन दोनों ग्रहों के अस्त रहने पर शादी विवाह नहीं किए जाते है.

अक्षय तृतीया व्रत पूजा विधि
अक्षय तृतीया सर्व सिद्धि मुहूर्तों में से एक मुहूर्त है, इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आराधना किया जाता है. इस दिन परिवार की सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखा जाता है. अक्षय तृतीया पर सुबह जल्दी उठकर गंगा स्नान या घर में ही गंगाजल मिलाकर स्नान करके श्री विष्णुजी और मां लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत चढ़ाना चाहिए. इसके बाद श्वेत कमल के पुष्प या श्वेत गुलाब, धूप-अगरबत्ती और चन्दन इत्यादि से पूजा अर्चना करनी चाहिए. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी को नैवेद्य के रूप में जौ, गेंहू, या सत्तू, ककड़ी, चने की दाल आदि अर्पित करें. इस दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दान-दक्षिणा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करें.


जानें अक्षय तृतीया की विशेषताएं
अक्षय तृतीया तिथि पर भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान श्री परशुराम जी की जयंती भी मनाई जाती है.
भगवान परशुराम को चिरंजीवी माना गया है इस कारण से इस चिरंजीवी तिथि भी कहा जाता है.
धार्मिक मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर ही सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था.
भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण और हयग्रीव का अवतरण अक्षय तृतीया तिथि पर ही हुआ था.
अक्षय तृतीया तिथि पर ही ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव हुआ था.
अक्षय तृतीया के दिन ही वेद व्यास और श्रीगणेश द्वारा महाभारत ग्रंथ के लेखन का प्रारंभ किया गया था.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया की तिथि पर ही मां गंगा का पृथ्वी में आगमन हुआ था.
अक्षय तृतीया तिथि पर ही वृन्दावन के श्री बांकेबिहारी मंदिर में सम्पूर्ण वर्ष में केवल एक बार श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं.
अक्षय तृतीया तिथि से ही उड़ीसा के प्रसिद्धि पुरी रथ यात्रा के लिए रथों के निर्माण का कार्य शुरू हो जाता है.

Akshay Tritiya Religion 

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अक्षय तृतीया के दिन हुई कुछ विशेष महत्वपूर्ण घटनाएं।
1. अवतरण : इस दिन भगवान नर-नारायण का अवतरण हुआ था।
2. परशुराम का अवतरण हुआ था।
3. हयग्रीव का अवतार हुआ था, उन्होंने असुर द्वारा चुराए गए वेदों के प्राप्त कर ब्रह्मा जी को दिया था। 
4. इसी दिन मां गंगा मैया का अवतरण भी हुआ था। 
5. इसी दिन ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म भी हुआ था। 
 6. कुबेर को मिला खजाना : इसी दिन रावण के सौतेले भाई यक्षराज कुबेर को खजाना मिला था। 

7. सुदाम कृष्ण का मिलन : इसी दिन श्रीकृष्ण के सखा सुदामा द्वारिका में भगवान कृष्ण से मिलने पहुंचे थे।
 
8. ऋषभदेवजी ने किया था व्रत का पारण : प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान के 13 महीने के कठिन उपवास का पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया था।
 
9. महाभारत की रचना : अक्षय तृतीया के दिन से ही वेद व्यास और भगवान गणेश ने महाभारत ग्रंथ लिखना शुरू किया था।
 
10. युग प्रारंभ और समापन : इसी दिन सतयुग और त्रैतायुग का प्रारंभ हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ।
 
11. कनकधारा स्त्रोत की रचना : इसी दिन आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र की रचना संपन्न की थी।
 
12. कुरुक्षेत्र में युद्ध समाप्त : इसी दिन महाभारत की लड़ाई खत्म हुई थी।
 
13. बद्रीदाथ धाम के खुलते हैं कपाट : इसी दिन उत्तराखंड में स्थित चार धामों में से एक बद्रीनारायण धाम के कपाट भी खुलते हैं। 
 
14. जगन्नाथ का रथ बनना होता है प्रारंभ : इसी दिन भगवान जगन्नाथ का भव्य रथ बनाना प्रारंभ किया जाता है।
 
15. श्रीकृष्‍ण ने बताया था इस दिन का महत्व : इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के पूछने पर यह बताया था कि आज के दिन जो भी रचनात्मक या सांसारिक कार्य करोगे, उसका पुण्य मिलेगा।

16. सिर्फ इसी तिथि को होते हैं श्री बांकेबिहारी जी के चरण दर्शन. पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्री बांकेबिहारी जी अक्षय तृतीया के दिन ही पहली बार प्रकट हुए थे। इसलिए यह दिन उनके लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। श्री बांकेबिहारी जी का मंदिर 17वीं शताब्दी में बनाया गया था। उस समय से अक्षय तृतीया के दिन उनके चरण दर्शन की परंपरा शुरू हुई थी।
17. महाभारत ग्रंथ की रचना का प्रारंभ भी अक्षय तृतीया के दिन से ही हुआ था। ऋषि वेद व्यास और भगवान गणेश ने मिलकर इस ग्रंथ की रचना की थी।
18. अक्षय तृतीया के दिन से वल्लभाचार्य जी ने गौपाल जी की सेवा गोवर्धन में (श्रीनाथ जी की) सेवा प्रारंभ की थी।
19. अक्षय तृतीया के दिन अन्नपूर्णा मां का जन्म हुआ।
20. अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाने के लिए वस्त्र अवतार धारण किया

🙏🙏 सभी को अक्षय तृतीया की बहुत-बहुत शुभकामनाएं

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