नया संसद भवन , मोदी है तो मुमकिन है - अरविन्द सिसौदिया

 


भारत के नये संसद भवन का लोकापर्ण 28 मई 2023 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा किया जायेगा, जिसमें लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला मुख्यरूप से रहेंगे। लोकसभा के महासचिव के आमंत्रण पर यह उद्घाटन किया जा रहा है। आमंत्रणपत्र  लोकसभा सचिवालय के द्वारा भेजे जा रहे हैं। 


यह नया संसद भवन बनानें के निर्देश लोकसभा स्पीकर की ओर से केन्द्र सरकार को दिये गये थे। यह भवन लोकसभा अध्यक्ष के कब्जे में ही रहने वाला संसदीय कार्य सम्पन्नता का केन्द्र होता है। इसलिये यह व्यर्थ का विवाद है कि ये उद्घाटन वह करे या यह करे । में समझता हूं कि लोकसभा अध्यक्ष स्वतंत्र हैं कि वे उदघाटन के लिये किसे आमंत्रित करें। प्रधानमंत्री जी के द्वारा इस गरिमापूर्ण भवन के निर्माण में महती योगदान दिया गया है। इसलिये उनसे लोकापर्ण करवाया जाना पूरी तरह औचित्यपूर्ण है। 

कांग्रेस को यह अब समझना होगा कि हर उदघाटन - हर लोकार्पण नेहरू परिवार के राजनैतिक वंशज ही करें या उनकी आज्ञा पालन हो। इस तरह की स्थिती रही है मगर देश की जनता ने इसे 2014 से बदल दिया है। अब वे जनता के द्वारा बहुत कम अंकों पर समेट दिये गये हैं। यह सब इसीलिये जनता के द्वारा हुआ कि आप लोकतंत्र से भी ऊपर नेहरू गांधी परिवार को दिखानें की परम्परा लागू करवाते थे। अनेकों उदाहरण हैं।

कांग्रेस के कुतर्क के साथ अन्य विपक्षी दलों का खडा होना 2024 की मजबूरी हो सकती है मगर यह बहिस्कार पूरी तरह तर्क व तथ्य हीन होकर लोकतंत्र व संविधान विरोधी है। राजनैतिक टुच्चापन कहा जा सकता है, गिरी हुई क्षुद्र राजनीति कहा जा सकता है। यह शुद्धरूप से एक नवनिर्मित भवन का लोकार्पण है । जिसकी आवश्यकता देश कई दसकों से करता आ रहा था । कांग्रेस की मनमोहनसिंह जी की सरकार और उससे पहले की सरकारें इस आवश्यकता को नकारती रहीं, जबकि भाजपा की नरेन्द्र मोदी जी की सरकार ने इसे कर दिखाया। 

सारा विपक्षी क्लेश इस बात का है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक और बडा काम क्यों कर दिखाया...। जबकि मनमोहन सिंह सरकार को भी पूरे दस साल मिले थे, आप कर दिखाते । इससे पूर्व में नरसिंहराव सरकार भी रही है।  जब लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार थीं तब वे नया संसद भवन बनानें के लिये कॉफी सक्रीय थीं वे चाहती थीं कि नया संसद भवन बनें। इस हेतु उन्होने भी दो समितियों का गठन भी किया था। 


लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन नें भी नई संसद भवन बनाये जानें के निर्देश केन्द्र सरकार को दिये थे। यह बात तो पूरी तरह गलत है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नें स्वयं को प्रतिष्ठित करनें के लिये संसद भवन बनवाया है। कांग्रेस समझे कि वे हर समस्या को टालते थे हल नहीं करते थे इसीलिये उन्हे जनता ने हटा दिया। और यह नरेन्द्र मोदी जी हैं जो हर समस्या का समाधान खोजते है उसे हल करके दिखाते हें। इसीलिये तो कहा जाता है कि मोदी है तो मुमकिन है। वे टालते नहीं करके दिखाते हैं।

 इसे यूं भी कहा जा सकता है कि भारत के स्वदेशी संसद भवन का लोकापर्ण 28 मई 2023 को महान स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर की जयंती के अवसर पर किया जा रहा है। मुझे नहीं मालूम की सरकार नें इस तरह का कुछ कहा है। मगर इसमें गलत कुछ नहीं है भारत के संविधान के मूल कर्त्तव्यों में स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान की बात कहता है। 

श्रीमती इन्दिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुये उन्हे स्वतंत्रता सेनानी माना और श्रृद्धांजली व्यक्त की है।  कांग्रेस को कही भी यह अधिकार नहीं दिया कि वे तय करें कि स्वतंत्रता सेनानी कौन है कौन नहीं है। जिसका स्वतंत्रता संग्राम में योगदान है वह स्वतंत्रता सेनानी है। 

विपक्ष का इस उत्सव के अवसर पर रोना - धोना न केवल फिजूल है बल्कि देश के आत्म गौरव का अपमान भी है। भारत का वर्तमान संसद भवन निश्चित रूप से भारतीय वास्तु का अनुपम निर्माण है किन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि वह गुलामी का भी प्रशासनिक केन्द्र रहा है और इस हेतु स्वतंत्रता के साथ ही स्वदेशी निर्माण होना ही चाहिये था। 

इसके अतिरिक्त वर्तमान आवश्यकताओं की भी मांग थी कि एक सुविधायुक्त भवन हो । प्रत्येक क्षेत्र में नव निर्माण हो रहा है तो संसद भवन नया बने इस पर विरोध बेतुकापन ही लगता है। अब 1947 नहीं है अब तों हमें 2047 की ओर बडना है। जनता सब जानती है, समय पर निर्णय करती है।

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

जन गण मन : राजस्थान का जिक्र तक नहीं

अटलजी का सपना साकार करते मोदीजी, भजनलालजी और मोहन यादव जी

इंडी गठबन्धन तीन टुकड़ों में बंटेगा - अरविन्द सिसोदिया

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवाद Swami Vivekananda and Nationalism