इकलौता बेटा : करोड़पति मां का कंकाल



भारतीय संस्कृति बचाओ पवित्र परिवार बनाओ 

- अरविन्द सिसौदिया, जिला महामंत्री भाजपा कोटा !!! 9414180151



मुम्बई की करोड़पति स्त्री का शव है। एक करोड़पति NRI पुत्र की माँ की लाश है।

#जरूर_पढ़ें
यह मुम्बई की करोड़पति स्त्री का शव है। एक करोड़पति NRI पुत्र की माँ की लाश है। लगभग 10 माह से 7 करोड़ के फ़्लैट में मरी पड़ी थी। अमेरिका में रहने वाले इंजीनियर ऋतुराज साहनी लंबे अरसे बाद अपने घर मुंबई लौटे, तो घर पर उनका सामना किसी जीवित परिजन की जगह अपनी मां के कंकाल से हुआ। बेटे को नहीं मालूम कि उसकी मां आशा साहनी की मौत कब और किन परिस्थितियों में हुई। आशा साहनी के बुढ़ापे की एकमात्र आशा 'उनके इकलौते बेटे' ने खुद स्वीकार किया कि उसकी मां से आखिरी बातचीत कोई सवा साल पहले बीते साल अप्रैल में हुई थी।
23 अप्रैल 2016 को मां ने ऋुतुराज से कहा था कि बेटा! अब अकेले नहीं रह पाती हूँ। या तो अपने पास अमेरिका बुला लो या फिर मुझे किसी ओल्डएज होम में भेज दो। बेटे ऋतुराज ने आशा साहनी को ढाढस दिया कि मां फिक्र न करे, वह जल्द ही इंडिया आएगा। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका में किसी भारतीय का नौकरी करना और डालर कमाना आसान नहीं रहा। लिहाजा बेटे ने अपने हिसाब से तो जल्दी ही की होगी, वह सवा साल बाद मॉं से किया वायदा पूरा करने इंडिया आया, पर माँ के हिसाब से देर हो गई और इसी बीच न जाने कब आशा साहनी की मौत हो गई।
रविवार सुबह एयरपोर्ट से घर पहुंचने के बाद ऋतुराज साहनी ने काफी देर तक दरवाजे पर दस्तक दी। जब कोई जवाब नहीं आया तो उन्होंने दरवाजा खुलवाने के लिए एक चाबी बनाने वाले की मदद ली। भीतर घुसे तो उन्हें अपनी 63 साल की मां आशा साहनी का कंकाल मिला।

आशा साहनी 10वें फ्लोर पर बड़े से फ़्लैट में अकेले रहती थीं। उनके पति की मौत 2013 में हो चुकी थी। पुलिस के मुताबिक 10वीं मंजिल पर स्थित दोनों फ्लैट साहनी परिवार के ही हैं, इसलिए शायद पड़ोसियों को कोई बदबू नहीं आई। हालांकि पुलिस के मुताबिक यह भी हैरानी की बात है कि किसी मेड या फिर पड़ोसी ने उनके दिखाई न देने पर गौर क्यों नहीं किया।

बेटे ने अंतिम बार अप्रैल 2016 में बात होने की जानकारी ऐसे दी, मानों वह अपनी मां से कितना रेगुलर टच में था। जैसा कि बेटे से बातचीत में आशा ने संकेत भी किया था कि वह इतनी अशक्त हो चुकी थीं कि उनका अकेले चल-फिर पाना और रहना मुश्किल हो गया था। करोड़ों डालर कमाने वाले बेटे की मां और 12 करोड़ के दो फ़्लैटों की मालकिन आशा साहनी को अंतिम यात्रा तो नसीब नहीं ही हुई, इससे भी बड़ी विडंबना यह हुई, जैसा कि प्रत्यक्षदर्शियों का अनुमान है कि संभवत: आशा की मौत भूख-प्यास के चलते हुई।

भारत के महाराष्ट्र प्रान्त की आर्थिक राजधानी मुंबई के अंधेरी इलाके लोखंडवाला की पाश लोकलिटी 'वेल्स कॉट सोसायटी' में इस अकेली बुजुर्ग महिला की मौत जिन हालात में हुई, उनसे यह साफ है कि कोलंबिया विश्वविद्यालय की रिपोर्ट में छुपी पश्चिमी सभ्यता की त्रासदी हम भारतीयों के दरवाजे पर दस्तक देती लग रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक मौत का इंतजार ही इस सदी की सबसे खौफनाक बीमारी और आधुनिक जीवन शैली की सबसे बड़ी त्रासदी है। अशक्त मां की करुण पुकार सुनकर भी अनसुना कर देने वाला जब अपना इकलौता बेटा ही हो, तब ऐसे समाज में रिश्ते-नातेदारों से क्या अपेक्षा की जाय?

आशा साहनी की मौत ने एक बार फिर चेताया है कि भारत के शहरों में भी सामाजिक ताना-बाना किस कदर बिखर गया है। अब समय नहीं बचा है, अब भारतवर्ष को चेत जाना चाहिए। भारत में भारतीय संस्कृति नहीं बची तो कुछ नहीं बचेगा।

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

विश्व व्यापी है हिन्दुओँ का वैदिक कालीन होली पर्व Holi festival of Vedic period is world wide

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

हमें वीर केशव मिले आप जबसे : संघ गीत

भाजपा की सुपरफ़ास्ट भजनलाल शर्मा सरकार नें ऐतिहासिक उपलब्धियां का इतिहास रचा

रामसेतु (Ram - setu) 17.5 लाख वर्ष पूर्व

दीवान टोडरमल के समर्पण शौर्य पर हिन्दुत्व का सीना गर्व से चौंडा हो जाता है - अरविन्द सिसौदिया Diwan-Todar-Mal

कांग्रेस की हिन्दू विरोधी मानसिकता का प्रमाण

भारत को आतंकवाद के प्रति सावचेत रहना ही होगा - अरविन्द सिसोदिया