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समाज की सशक्त भूमिका के बिना कोई भला काम अथवा कोई परिवर्तन यशस्वी व स्थायी नहीं हो सकता - सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत

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 विजयादशमी उत्सव पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत का उद्बोधन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ श्री विजयादशमी उत्सव (आश्विन शुद्ध दशमी बुधवार दि. 5 अक्तूबर 2022) समाज की सशक्त भूमिका के बिना कोई भला काम अथवा कोई परिवर्तन यशस्वी व स्थायी नहीं हो सकता -  सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत आज के कार्यक्रम की प्रमुख अतिथि आदरणीया श्रीमती संतोष यादव जी, मंच पर उपस्थित विदर्भ प्रांत के मा. संघचालक, नागपुर महानगर के मा. संघचालक, नागपुर महानगर के मा. सह संघचालक, अन्य अधिकारी गण, नागरिक सज्जन, माता भगिनी, तथा आत्मीय स्वयंसेवक बंधु। नौरात्रि की शक्ति पूजा के पश्चात विजय के साथ उदित होने वाली आश्विन शुक्ल दशमी के दिन हम प्रतिवर्षानुसार विजयादशमी उत्सव को संपन्न करने के लिए यहाँ एकत्रित है। शक्तिस्वरूपा जगद्जननी ही शिवसंकल्पों के सफल होने का आधार है। सर्वत्र पवित्रता व शान्ति स्थापन करने के लिए भी शक्ति का आधार अनिवार्य है। संयोग से आज प्रमुख अतिथि के रूप में अपनी गरिमामयी उपस्थिति से हमें लाभान्वित व हर्षित करने वाली श्रीमती संतोष यादव उसी शक्ति का व चैतन्य का प्रतिनिधित्व करती ह...

प. पू. सरसंघचालक डॉ. श्री मोहन भागवत जी का विजयादशमी उत्सव सम्पूर्ण सम्बोधन ( 2021)

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    विजयादशमी उत्सव (शुक्रवार दि. 15 अक्तूबर 2021) के अवसर पर प. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का उद्बोधन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प. पू. सरसंघचालक डॉ. श्री मोहन जी भागवत का विजयादशमी उत्सव (शुक्रवार दि. 15 अक्तूबर 2021) के अवसर पर दिया उद्बोधन   यह वर्ष हमारी स्वाधीनता का 75 वां वर्ष है । 15 अगस्त 1947 को हम स्वाधीन हुए । हमने अपने देश के सूत्र देश को आगे चलाने के लिए स्वयं के हाथों में लिए । स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर हमारी यात्रा का वह प्रारंभ बिंदु था । हम सब जानते हैं कि हमें यह स्वाधीनता रातों रात नहीं मिली । स्वतंत्र भारत का चित्र कैसा हो इसकी, भारत की परंपरा के अनुसार समान सी कल्पनाएँ मन में लेकर, देश के सभी क्षेत्रों से सभी जातिवर्गों से निकले वीरों ने तपस्या त्याग और बलिदान के हिमालय खडे किये; दासता के दंश को झेलता समाज भी एकसाथ उनके साथ खडा रहा; तब शान्तिपूर्ण सत्याग्रह से लेकर सशस्त्र संघर्ष तक सारे पथ स्वाधीनता के पड़ाव तक पहुँच पाये । परन्तु हमारी भेदजर्जर मानसिकता, स्वधर्म स्वराष्ट्र और स्वतंत्रता की समझ का अज्ञान, अस्पष्टता, ढुलमुल नीति, तथा उनपर खेलने ...