वेदों का दिव्य संदेश, पुरषार्थी बनो

वेदों का दिव्य संदेश : राष्ट्र भक्ति यस्यां पूर्वे पूर्वजना विचक्रिरे यस्यां देवा असुरानभ्यवर्तयन् । गवामशवानां वयसश्च विष्ठा भगं वर्च: पृथिवी नो दधातु ।। (अथर्ववेद १२/१/५) भावार्थ:जिस राष्ट्र का हमारे पूर्वजों ने निर्माण किया है और असुरों से रक्षा की है,उसके निर्माण के लिए हम अपना त्याग और बलिदान करने को सदा तैयार रहें) ************************* हे मातृभूमि!हम तुम्हारी गोद में पलते हैं और तेरी ही गोद में पुष्टि और आरोग्यकारक पदार्थ प्राप्त करते हैं।इसलिए समय आने पर तेरे लिए बलिदान देने से पीछे न हटें। (अथर्ववेद १२/१/६२) **************************** राष्ट्र के निर्माण के लिए हम सब नागरिक कर्मशील और जागरूक हों।आलसी और प्रमादी व्यक्ति जिस देश में होते हैं वह देश गुलाम हो जाता है। (अथर्ववेद१२/१/७) **************************** आलसी आदमी सदैव दुख पाते हैं इसलिए हम सब को कर्मनिष्ठ और उद्योगी बनना चाहिए। (ऋग्वेद(८/२/१८;अथर्ववेद२०/१८/३) **************************** आलस्य को त्याग कर पुरुषार्थी बनो,मूर्खता त्याग कर ज्ञान प्राप्त करो,मधुर बोलो और परस्पर मिलजुल कर एक दूसरे की सहायता करो।इस...