हिन्दू संस्कृति के पुनर्जागरण के पुरोधा : श्री अशोक सिंहल
भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण के पुरोधा : श्री अशोक सिंहल तारीख: 23 Nov 2015 - पाञ्चजन्य ब्यूरो भारतीय संस्कृति संपूर्ण विश्व में अपने परंपरागत ज्ञान वैभव के लिए अनुकरणीय मानी जाती है। विश्वभर में आज भी संभावित वैश्विक आर्थिक शक्ति वाले भारत से ज्यादा विश्वगुरु भारत की अवधारणा पर ज्यादा चर्चा होती है। विश्वगुरु की इसी छवि को एक बार पुन: प्रभावी ढंग से स्थापित करने के लिए जीवन के पूरे 8 दशक लगाकर श्री अशोक सिंहल ने विश्व हिन्दू परिषद और उससे जुड़े कई प्रकल्पों के माध्यम से देश-विदेश में अनवरत कार्य किया। मूलत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक व्रती स्वयंसेवक श्री अशोक सिंहल प्रचारक रूप में भी समाज और देश के गौरव एवं स्वाभिमान के लिए प्रतिबद्ध रहे। बचपन से संघ कार्य में तल्लीन अशोक जी ने आपातकाल के बाद दिल्ली और हरियाणा प्रांत में प्रांत प्रचारक रहते हुए अपने बहुआयामी बौद्धिक कौशल से संघ शक्ति को विस्तार प्रदान किया। संघ के स्वयंसेवक जानते हैं कि नियमित प्रार्थनाओं और गीतों को जब अशोक जी का मधुर और ओजपूर्ण कंठ मिलता था तो वे जीवंत प्रेरणा व जागरण के प्रतीक बन जाते थे। श्रीगुरुजी