vaidik saraswati river
मेरी स्पष्ट मान्यता है की एक समय सरस्वती सभ्यता सर्वश्रेष्ठ रही है , जिसका वर्णन ऋगवेद में मिलता है | कालांतर में नये सिरे से हुई खुदाई में , इसे हड़प्पा / मोहनजोदड़ो सभ्यता नाम , अवशेष मिलने वाले स्थान के कारण दे दिया गया | आज भी प्रयागराज (इलाहावाद ) में त्रिवेणी संगम है | जिसमें गुप्त मार्ग से सरस्वती का जल प्रगट होता है | हजारों वर्षों से यह मान्यता यहाँ बहुत ही दृढ़ता से मानी जाती है | किसी भू गर्भिय सुनामी, भूकंप या आंतरिक प्लेट खिसकने से सरस्वती का मार्ग बदल गया और वह यमुना में समाहित हो गई |
_ अरविन्द सिसोदिया , कोटा राजस्थान 94141 80151
ऐसा प्रतीत होता है कि पृथ्वी की संरचना आंतरिकी में हुए बदलाव के चलते सरस्वती भूमिगत हो गई और यह बात नदी के प्रवाह को लेकर आम धारणा के काफी करीब है। प्रयागराज में यही बात है कि संगम पर अंदर से सरस्वती नदी का जल स्पष्टता से प्रगट होता हे, यह शोध का विषय कि सरस्वती का बदला हुआ आंतरिक मार्ग क्या हे। जो लोग भूगर्भ विज्ञानी है। वे यह भी जानते हैं कि पृथ्वी के अंदर भी नदियां जलधराओं आदि का एक अलोकिक संसार है। वैदिक काल में एक और नदी दृषद्वती का वर्णन भी आता है। यह सरस्वती नदी की सहायक नदी थी। यह भी हरियाणा से होकर बहती थी। कालांतर में जब भीषण भूकंप आए और हरियाणा तथा राजस्थान की धरती के नीचे से पहाड़ ऊपर उठे, तो इन नदियों के बहाव की दिशा बदल गई। मगर लोकगाथाओं की प्रमाणिकता यही होती है कि वे किसी घटनाक्रम के काल से ही जनता के मध्य आती हैं और निरंतर बनीं रहती है।
सरस्वती सभ्यता पर काम अधूरा रह गया
सरस्वती की खोज के लिए डॉ. वाकणकर परंपराओं, लोककथाओं और लोकमान्यताओं का सहारा लिया। उन्होंने जिज्ञासु शोधकर्ताओं का एक समूह बनाकर हरियाणा से गुजरात तक सरस्वती के लोकश्रुत मार्ग में एक माह तक लोकसाहित्य के साथ-साथ वहां मिलने वाले सिक्कों और अन्य साक्ष्यों का संकलन किया। वे सारस्वत सभ्यता पर विस्तार से काम करना चाहते थे जो अधूरा रह गया। वे खुद ऋगवेदी ब्राह्ण थे। वैदिक अध्ययन ने उनके पुराविद् व्यक्तित्व में सोने में सुहागा कर दिया। उन्होंने वैदिक कथाओं के सत्य को पुरातत्व दृष्टि से प्रमाणित करने का प्रयास किया। इन कथाओं में छुपे प्राचीन भारतीय इतिहास को उद्घाटित करते हुए उनकी स्पष्ट मान्यता थी कि वैदिक साहित्य व पौराणिक आख्यान भी हमारे इतिहास के सूत्र प्रदान करते हैं। आधुनिक इतिहास इसे नकारता रहा है।
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