थाईलैंड में भी है एक अयोध्या

साभार - विश्व गुरु भारत (Vishv Guru Bharat) facebook से


थाईलैंड में भी है एक अयोध्या

थाईलैंड में सदियों पुराना भारतीय प्रभाव है। एक अजीब विशेषता है। धर्म तो बौद्ध स्वीकार किया परन्तु संस्कृति हिन्दू अपनाई है। प्रत्येक राजा को ‘राम’ कहा जाता है। आधुनिक राजा ‘राम-8’ कहा जाता है। लगभग 450 वर्ष पूर...
्व इस वंश का प्रथम राजा ‘राम-1’ के नाम से विख्यात हुआ। सन् 1448 तक त्रैलोक नाम के राजा ने राज किया। उसने प्रशासन में उल्लेखनीय सुधार किए।

चौदहवीं सदी में थाईलैंड में अयोध्या की स्थापना हुई थी। वहीं थाईलैंड की राजधानी रही। इस वंश के 36 राजाओं ने 416 वर्षों तक राज किया। आधुनिक राजा के आठवें पूर्व वंशज ने राम नाम जोडऩा शुरू किया जो आज तक चल रहा है। अयोध्या को देवताओं की भूमि कहा जाता है। अद्वितीय इन्द्र देवता की नगरी। इन्द्र ने यह नगर स्थापित किया और विष्णुकरन ने इसका निर्माण किया था। इस राज्य की स्थापना राजा यूथोंग ने चायो फराया नदी के पास की थी। इसे स्याम नाम से भी जाना जाता था।

1782 में बर्मा के आक्रमण के बाद थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में बनाई गई। अयोध्या आज भी इस देश की पुरानी सांस्कृतिक धरोहर की गवाह है। राजा मागेंकुट राजा बनने से पूर्व 27 वर्ष तक बौद्ध भिक्षु रहा। उसने पाली व संस्कृति का पूरा ज्ञान प्राप्त किया। राजा बनने पर उसे राम-4 कहा गया। यहां की भाषा का मूल संस्कृत है।

लोकतंत्र में भी राजशाही का इतना सम्मान यहां की विशेषता है। राजा को आज भी दैवीय शक्ति सम्पन्न माना जाता है। चार सदियों तक रहे यहां की अयोध्या के राजा तो स्वयं को विष्णु का अवतार मानते थे। वर्तमान राजा भूमिवोन अदुलमादेज पिछले 62 वर्षों से राज ङ्क्षसहासन पर हैं। यह विश्व में किसी भी राजा के लिए सर्वाधिक अवधि है। राजमहल में प्रतिदिन की पूजा विशेष भारतीय ब्राह्मण रीति से होती है। भारतीय वंश के ब्राह्मण पुजारी भारतीय वेश में पूजा करवाते हैं। यह पूजा थाई राष्ट्रवाद के लिए की जाती है जिसके तीन स्तम्भ माने गए हैं-थाई सार्वभौमिकता, धर्म और राजशाही। मैं सोच रहा हूँ अगर भारत में यदि भारत के राष्ट्रपति भवन में इस प्रकार की पूजा होने लगे तो भारतीय सैकुलरवादी कितना हो-हल्ला मचाएंगे, उल्टी दस्त हो जायेंगे इन्हें ।

यहां के टी.वी. चैनल का नाम ‘राम चैनल’, और हवाई पत्तन का नाम ‘स्वर्णभूमि हवाई पत्तन’ है। कई सड़कों का नाम ‘राम’ पर है। सैंकड़ों साल पहले जब जहाज, सड़कें नहीं थीं, तब ‘राम’ का नाम ऐसा यहां आया कि आज भी सड़क से लेकर राजा तक राम छाए हुए हैं और भारत में राम के जन्मस्थान पर राम का मंदिर नहीं बन पा रहा।

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