देश की अखंडता के लिए कुछ करना होता है - प्रो. सदानंद सप्रे




केवल विचार विश्लेषण से भविष्य नहीं बनता है, देश की अखंडता के लिए कुछ करना होता है -  प्रो. सदानंद सप्रे
मारवाड़ विचार मंच पाली द्वारा अखंड भारत पर  संगोष्ठी आयोजित

राष्ट्रीय  स्वयंसेवक संघ के विश्व विभाग के सहसंयोजक प्रो. सदानंद सप्रे उध्बोधन देते हुए, साथ  में 
ओम विश्वदीप आश्रम के महामंडलेश्वर महेश्वरानंद महाराज
पाली ९ अगस्त २०१५. राष्ट्रीय  स्वयंसेवक संघ के विश्व विभाग के सहसंयोजक माननीय सदानंद सप्रे ने कहा कि केवल विचार विश्लेषण से भविष्य नहीं बनता है, देश की अखंडता के लिए कुछ करना होता है। उन्होंने कहा कि अलगाव और आतंकवादियों के खिलाफ एकजुट होना पड़ेगा। वे रविवार को "हमारा संकल्प अखंड भारत" विषय पर मारवाड़ विचार मंच के तत्वावधान में आयोजित विचार गोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे।

मंडिया रोड स्थित सरस्वती शिशु मंदिर में आयोजित इस गोष्ठी में प्रो.  सप्रे ने भारत की अखंडता के संभावित समाधानों तथा विभाजन के कारणों का विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि अलगाववादी लोगों के कारण देश का विभाजन हुआ। साथ ही कहा कि यह चिंतन का विषय है कि 1857 की क्रांति में हिंदू मुस्लिम सभी साथ-साथ लड़े थे, फिर आजादी मिलने के वक्त विभाजन क्यूं हो गया। सप्रे ने दो सत्रों मे अपने उद‌्बोधन में हिंदुस्तान शब्द की महता समाहित करने का भाव और इतिहास की गलतियों से सीख लेने की बात कही।


प्रो. सप्रे ने अपने उध्बोधन में कहा कि भारत अखण्ड होगा  जर्मनी भी एक हुआ था । भारत भी होगा। 1940 में असंभव लगने वाला विभाजन 7 साल बाद हुआ। असंभव कुछ नहीं। विभाजन क्यों हुआ? मूल कारण - मुस्लिम समाज में अलगाववादी विचारों वाले लोगो का मत था की हम अलग है। सैंकड़ों वर्ष के मुस्लिम वर्चस्व का अंत हुआ तो भारत का मूल चरित्र वापस सामने आया। हिन्दू-मुस्लिम एक साथ आए और आज़ादी में एक साथ जुटे। भारत में उपासना पद्धति बदलने की कभी परंपरा नहीं रही। अंग्रेजो ने कट्टर मुस्लिमो को भड़काया। दोनों के संयुक्त प्रयासों के बाद भी मुस्लिम गणेशोत्सव में शामिल हुए।
अंग्रेजों की कुटिल चालों में आर्य बाहर से आए की थ्योरी चलना भी था। भारत अंग्रेजो के कारण  एक हुआ ये भ्रम फैलाया गया। भारत में एक राष्ट्र अनेक राज्य की परिकल्पना शुरू से रही।
19वीं  सदी में कांग्रेस के अध्यक्ष सुरेन्द्र नाथ बेनर्जी की पुस्तक अ नेशन टू बिल्ड में भारत को राष्ट्र बनाने की बात। पुस्तक में कॉम्पोसिट कल्चर की बात। इसी आधार पर राष्ट्र बनाने की बात हुई ।तत्समिक परिस्थियों में विदेशो की तर्ज पर राष्ट्र पिता का विचार आया।

भारत का इतिहास 5000 साल पुराना है । इस्लाम और ईसाई बहुत बाद यहाँ आये।  ये संस्कृति हिन्दू। जिसे नकार मिली जुली संस्कृति बताना अंग्रेजों की चाल थी । आज़ादी पूर्व सभी आन्दोलनों में हिन्दुओ के साथ मुस्लिम भी शामिल हुए व बिना शर्त। इसके बाद मुस्लिम लीग बनाई गयी।

प्रो. सप्रे ने अपने उध्बोधन में बताया कि बंग भंग विरोधी आंदोलन में हिदुओ के साथ मुस्लिम भी शामिल होते थे। सभी वंदे मातरम् का गान करते थे, मुस्लिम भी। तत्समय वंदे मातरम् का विरोध मुस्लिम नही करते थे। राष्ट्र वादी मुस्लिमो से अलगाव वादियो को अलग कर मुस्लिम लीग की स्थापना हुई थी । 1906 में स्थापित मुस्लिम लीग अलग राष्ट्र की बात करते रहे। उस समय भी आरक्षण था। तत्समय जिस श्रेणी का आरक्षण उसी को वोट का अधिकार था । 1937 में मुस्लिम लीग को मुस्लिमो में से मात्र 20% ने स्वीकारा। 80% भारत विभाजन के विरोध में थे। 1937 मे मुस्लिम लीग को 20% से 1946 में 100% आरक्षित सीटें मिली और 90% वोट मिले। हमसे हुई भूलों से सीख ले कर भविष्य में भूल न हो ऐसा विचार रख इतिहास पढ़े। इजराइल जैसी परिस्थियां अभी भारत की नहीं।

द्वितीय सत्र  में  प्रो. सप्रे ने कहा कि इस धरती पर पैदा हुए सभी धरती माँ के पुत्र है. उपासना पद्धति से पूर्वज , मातृभूमि, संस्कृति नहीं बदली जाती । ईश्वर के जरिये मुक्ति मिलती है । सिर्फ उपसना पद्दति में अंतर आया।   1905 तक धर्म आधारित अलगाववाद नहीं था। राष्ट्रभक्ति बिना शर्त होती है। सशर्त नहीं। स्वतन्त्रता प्राप्ति में सशर्त जुड़ें अलगाववादियों की शर्ते मानना गलत था ।

कांग्रेस शासनकाल के शिक्षामंत्री मोहमद करीम छागला ने कहा की मेरी शिकायत ये है की राष्ट्रवादी मुस्लिमों के प्रति कांग्रेस और गांधीजी भी उदासीन रहे। जिन्ना और सांप्रदायिक को महत्व। राष्ट्रवादियों का समर्थन किया होता तो जिन्ना की हर बात का खंडन होता एवं अलगाववादियों को भी राष्ट्रवादी बना दिया होता।

 डॉ सप्रे ने कहा की भारत का मुसलमान डॉ कलाम जैसे बने याकुब जैसे नहीं।

सेक्युलर को इंडियन, भारतीय हिंदुस्तानी कह दो मगर हिन्दू कहो तो दुखी होते हे । हिन्दू यानि संकुचित का दुष्प्रचार।हिन्दू शब्द में संकुचित्ता नहीं। जो हिंदुस्तान में रहे वो हिन्दू।हज़ यात्रा में गए भारतीय मुसलमान को हिन्दू मुस्लमान कहा जाता है। यहाँ हिन्दू धर्म नही संस्कृति के रूप में।
विश्व में धर्म आधारित देश नहीं संस्कृति आधारित। इस्लामिस्तान और क्रिश्चिनलैंड नहीं। ऐसे में हिंदुस्तान भी धर्म आधारित नहीं संस्कृति आधारित। हिन्दू सभी को समाहित करता है।एकात्मकता श्रोत में रसखान को महापुरुष कहा है। दादा भाई नोरोजि पारसी, कलाम साहब आदर्श है अपने मज़हब का पालन करते हुए हिन्दू संस्कृति को अपनाना। अखंड भारत की संकल्पना एक राष्ट्र अनेक राज्य।

अध्यक्षता करते हुए ओम विश्वदीप आश्रम के महामंडलेश्वर महेश्वरानंद महाराज ने भारतीय संस्कृति को जोड़ने वाली बताया। जैसा संग वैसा रंग सबसे बडी भक्ति देश भक्ति है, कई राजस्थानी लोकोक्तियों से उन्होंने संस्कृति से जुड़ें रहने की बात कही।

 महेश्वरानंद जी  ने उध्बोधन में कहा कि वसुदेव कुटुम्बकम् की भावना है हमारी ।संस्कारो से संस्कृति बनती है। संस्कारों की कमी के कारण  बंटवारा होता है।  जहाँ लालच वही विभाजन होता है ।  स्वयं में अगर विभाजन है तो अखण्ड भारत की परिकल्पना असम्भव।
महेश्वरानंद जी ने कहा कि भारत ने सिर्फ दिया ही है ,  कभी आक्रमण नहीं किया। हमें हमारी संस्कृति बचाने की जरुरत है।मारवाड़ विचार मंच के मेघराज बंब ने मंच की गतिविधियों पर प्रकाश डाला।

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