राष्ट्रपति चुनाव : विस्तृत जानकारी
भारत में कैसे होता है राष्ट्रपति का चुनाव
नवभारत टाइम्स | Updated: Jun 7, 2017अखिलेश प्रताप सिंह
हमारे देश में राष्ट्रपति के चुनाव का तरीका अनूठा है और एक तरह से इसे आप सर्वश्रेष्ठ संवैधानिक तरीका कह सकते हैं। इसमें विभिन्न देशों की चुनाव पद्धतियों की अच्छी बातों को चुन-चुन कर शामिल किया गया है। मसलन यहां राष्ट्रपति का चुनाव एक इलेक्टोरल कॉलेज करता है, लेकिन इसके सदस्यों का प्रतिनिधित्व आनुपातिक भी होता है। उनका सिंगल वोट ट्रांसफर होता है, पर उनकी दूसरी पसंद की भी गिनती होती है। इस चुनाव प्रणाली की खूबसूरती को समझने के लिए हमें इन बिंदुओं को समझना होगा।
इनडायरेक्ट इलेक्शन: प्रेजिडेंट का चुनाव एक निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज करता है। संविधान के आर्टिकल 54 में इसका उल्लेख है। यानी जनता अपने प्रेजिडेंट का चुनाव सीधे नहीं करती, बल्कि उसके वोट से चुने गए लोग करते हैं। यह है अप्रत्यक्ष निर्वाचन।
वोट देने का अधिकार: इस चुनाव में सभी प्रदेशों की विधानसभाओं के इलेक्टेड मेंबर और लोकसभा तथा राज्यसभा में चुनकर आए सांसद वोट डालते हैं। प्रेजिडेंट की ओर से संसद में नॉमिनेटेड मेंबर वोट नहीं डाल सकते। राज्यों की विधान परिषदों के सदस्यों को भी वोटिंग का अधिकार नहीं है, क्योंकि वे जनता द्वारा चुने गए सदस्य नहीं होते।
सिंगल ट्रांसफरेबल वोट: इस चुनाव में एक खास तरीके से वोटिंग होती है, जिसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते हैं। यानी वोटर एक ही वोट देता है, लेकिन वह तमाम कैंडिडेट्स में से अपनी प्रायॉरिटी तय कर देता है। यानी वह बैलट पेपर पर बता देता है कि उसकी पहली पसंद कौन है और दूसरी, तीसरी कौन। यदि पहली पसंद वाले वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो सका, तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है। इसलिए इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है।
आनुपातिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था: वोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के वोट का वेटेज अलग-अलग होता है। दो राज्यों के विधायकों के वोटों का वेटेज भी अलग होता है। यह वेटेज जिस तरह तय किया जाता है, उसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था कहते हैं। कैसे तय होता है यह वेटेज?
एमएलए के वोट का वेटेज
विधायक के मामले में जिस राज्य का विधायक हो, उसकी आबादी देखी जाती है। इसके साथ उस प्रदेश के विधानसभा सदस्यों की संख्या को भी ध्यान में रखा जाता है। वेटेज निकालने के लिए प्रदेश की पॉपुलेशन को इलेक्टेड एमएलए की संख्या से डिवाइड किया जाता है। इस तरह जो नंबर मिलता है, उसे फिर 1000 से डिवाइड किया जाता है। अब जो आंकड़ा हाथ लगता है, वही उस राज्य के एक विधायक के वोट का वेटेज होता है। 1000 से भाग देने पर अगर शेष 500 से ज्यादा हो तो वेटेज में 1 जोड़ दिया जाता है।
एमपी के वोट का वेटेज
सांसदों के मतों के वेटेज का गणित अलग है। सबसे पहले सभी राज्यों की विधानसभाओं के इलेक्टेड मेंबर्स के वोटों का वेटेज जोड़ा जाता है। अब इस सामूहिक वेटेज को राज्यसभा और लोकसभा के इलेक्टेड मेंबर्स की कुल संख्या से डिवाइड किया जाता है। इस तरह जो नंबर मिलता है, वह एक सांसद के वोट का वेटेज होता है। अगर इस तरह भाग देने पर शेष 0.5 से ज्यादा बचता हो तो वेटेज में एक का इजाफा हो जाता है।
वोटों की गिनती
प्रेजिडेंट के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने से ही जीत तय नहीं होती है। प्रेजिडेंट वही बनता है, जो वोटरों यानी सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज का आधा से ज्यादा हिस्सा हासिल करे। यानी इस चुनाव में पहले से तय होता है कि जीतने वाले को कितना वोट यानी वेटेज पाना होगा। इस समय प्रेजिडेंट इलेक्शन के लिए जो इलेक्टोरल कॉलेज है, उसके सदस्यों के वोटों का कुल वेटेज 10,98,882 है। तो जीत के लिए कैंडिडेट को हासिल करने होंगे 5,49,442 वोट। जो प्रत्याशी सबसे पहले यह कोटा हासिल करता है, वह प्रेजिडेंट चुन लिया जाता है। लेकिन सबसे पहले का मतलब क्या है?
प्रायॉरिटी का महत्व
इस सबसे पहले का मतलब समझने के लिए वोट काउंटिंग में प्रायॉरिटी पर गौर करना होगा। सांसद या विधायक वोट देते वक्त अपने मतपत्र पर बता देते हैं कि उनकी पहली पसंद वाला कैंडिडेट कौन है, दूसरी पसंद वाला कौन और तीसरी पसंद वाला कौन आदि आदि। सबसे पहले सभी मतपत्रों पर दर्ज पहली वरीयता के मत गिने जाते हैं। यदि इस पहली गिनती में ही कोई कैंडिडेट जीत के लिए जरूरी वेटेज का कोटा हासिल कर ले, तो उसकी जीत हो गई। लेकिन अगर ऐसा न हो सका, तो फिर एक और कदम उठाया जाता है।
पहले उस कैंडिडेट को रेस से बाहर किया जाता है, जिसे पहली गिनती में सबसे कम वोट मिले। लेकिन उसको मिले वोटों में से यह देखा जाता है कि उनकी दूसरी पसंद के कितने वोट किस उम्मीदवार को मिले हैं। फिर सिर्फ दूसरी पसंद के ये वोट बचे हुए उम्मीदवारों के खाते में ट्रांसफर किए जाते हैं। यदि ये वोट मिल जाने से किसी उम्मीदवार के कुल वोट तय संख्या तक पहुंच गए तो वह उम्मीदवार विजयी माना जाएगा। अन्यथा दूसरे दौर में सबसे कम वोट पाने वाला रेस से बाहर हो जाएगा और यह प्रक्रिया फिर से दोहराई जाएगी। इस तरह वोटर का सिंगल वोट ही ट्रांसफर होता है। यानी ऐसे वोटिंग सिस्टम में कोई मैजॉरिटी ग्रुप अपने दम पर जीत का फैसला नहीं कर सकता है। छोटे-छोटे दूसरे ग्रुप्स के वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं। यानी जरूरी नहीं कि लोकसभा और राज्यसभा में जिस पार्टी का बहुमत हो, उसी का दबदबा चले। विधायकों का वोट भी अहम है।
रेस से बाहर करने का नियम
सेकंड प्रायॉरिटी के वोट ट्रांसफर होने के बाद सबसे कम वोट वाले कैंडिडेट को बाहर करने की नौबत आने पर अगर दो कैंडिडेट्स को सबसे कम वोट मिले हों, तो बाहर उसे किया जाता है, जिसके फर्स्ट प्रायॉरिटी वाले वोट कम हों।
बना रहता है चांस
अगर अंत तक किसी प्रत्याशी को तय कोटा न मिले, तो भी इस प्रक्रिया में कैंडिडेट बारी-बारी से रेस से बाहर होते रहते हैं और आखिर में जो बचेगा, वही विजयी होगा।
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राष्ट्रपति चुनाव: कैसे चुनते हैं राष्ट्रपति (विस्तृत जानकारी)
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। राष्ट्रपति का यहां सर्वोच्च संवैधानिक पद है। संवैधानिक प्रक्रिया के अंतर्गत हर 5 वर्षों में राष्ट्रपति का चुनाव किया जाता है।
एक व्यक्ति को राष्ट्रपति बनने के लिए कुछ अनिवार्य शर्तें हैं, जिनमें प्रमुख हैं:-
वह भारत का नागरिक हो.
उसने कम से कम 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर ली हो.
वह लोकसभा का सदस्य बनने की पात्रता रखता हो.
राष्ट्रपति बनने के बाद उम्मीदवार संसद के किसी भी सदन या राज्यों की किसी भी विधानसभा/विधान परिषद का सदस्य नहीं होना चाहिए.
वह भारत सरकार के अंतर्गत किसी भी लाभ के पद पर न हो.
भारत में राष्ट्रपति का चयन सीधे-सीधे जनता नहीं करती है, लेकिन वह अप्रत्यक्ष रूप से इस चुनाव में सम्मिलित होती है. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को जनता का वोट उसके प्रतिनिधि यानी क्षेत्र के विधायक के ज़रिए मिलता है. राष्ट्रपति के चुनाव में लोकसभा, राज्यसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य मतदान करते हैं. राष्ट्रपति चुनाव में कोई भी पार्टी व्हिप नहीं जारी करती है यानी यह ज़रूरी नहीं है कि किसी भी पार्टी के सदस्य उस पार्टी द्वारा प्रस्तावित उम्मीदवार को ही वोट करेंगे. चूंकि राष्ट्रपति चुनाव में गुप्त मतदान होता है, इसलिए इसका खुलासा नहीं हो पाता है कि किस सांसद/विधायक ने किस उम्मीदवार को वोट दिया. देश में छह राज्य ऐसे हैं, जहां विधानसभा के साथ-साथ विधान परिषद भी है, लेकिन इस चुनाव में केवल राज्यों के निचले सदन (विधानसभा) के सदस्य ही मतदान में भाग ले सकते हैं. देश में सभी राज्यों में उच्च सदन (विधान परिषद) नहीं है. सभी राज्यों में एकरूपता और समानता बनी रहे, इसलिए केवल विधानसभा के सदस्यों को ही राष्ट्रपति के चुनाव में मत देने का प्रावधान है. विधानसभा में ऐसे विधायक, जो राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं, वे किसी क्षेत्र विशेष की जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, इसलिए राष्ट्रपति के चुनाव में उन्हें मतदान का अधिकार नहीं होता है. ठीक यही नियम लोकसभा और राज्यसभा में मनोनीत सदस्यों पर लागू होता है. राज्यसभा के वे सदस्य, जिन्हें अपने क्षेत्र में विशिष्ट पहचान और स्थान बनाने की वजह से मनोनीत किया गया है, भी राष्ट्रपति के चुनाव में अपना वोट नहीं डाल सकते. उदाहरण के तौर पर इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में राज्यसभा सदस्य क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, अभिनेत्री रेखा एवं अनु आगा अपना वोट नहीं डाल सकेंगे. इसी तरह लोकसभा में मनोनीत किए जाने वाले एंग्लो इंडियन सदस्य भी राष्ट्रपति चुनाव में मतदान नहीं कर सकते हैं.
अब यह जानते हैं कि आ़िखर राष्ट्रपति चुनाव में मतदान किस प्रकार होता है:-
भले ही 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 1.2 अरब है, लेकिन अभी भी भारत में चुनावों के लिए 1971 की जनगणना के आंकड़ों को आधार माना जाता है. 2026 तक 1971 की जनगणना के आधार पर ही चुनाव संपन्न होंगे. राष्ट्रपति चुनाव के लिए ़खास प्रकार का फार्मूला तय किया गया है, जिससे बिना किसी पक्षपात या गड़बड़ी के यह चुनाव सही तरीक़े से संपन्न हो सके. इसके लिए यह जानना ज़रूरी है कि राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्येक मतदाता का मत एक मत के रूप में नहीं गिना जाता है. सांसदों के वोट की वैल्यू तो समान होती है, मगर हर राज्य के विधायक के वोट की वैल्यू अलग-अलग होती है. दोनों सदनों के निर्वाचित सांसदों के वोट की वैल्यू सभी राज्यों के विधायकों की कुल वोट वैल्यू के बराबर होती है.
राष्ट्रपति चुनाव में इस्तेमाल होने वाले फार्मूले के आधार पर वोट वैल्यू निकालने के तीन चरण हैं:-
सबसे पहले हर राज्य के विधायक के वोट की वैल्यू निकाली जाती है.
विधायकों की संख्या के आधार पर उस राज्य के कुल वोटों की वैल्यू निकाली जाती है.
देश के कुल विधायकों की संख्या और वोट वैल्यू के आधार पर लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों के वोट की वैल्यू निकाली जाती है.
इस प्रक्रिया से गुज़रते हुए राष्ट्रपति चुनाव में पड़ने वाले कुल वोटों की गणना की जाती है. चुनाव में पड़ने वाले कुल वोटों की वैल्यू निकाली जा सकती है.
राज्य के विधायक के वोट की वैल्यू यानी संख्या निकालने के लिए:- 1971 की जनगणना के अनुसार, राज्य की जनसंख्या को वहां की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या से भाग दिया जाए, परिणाम में जो भी संख्या आए, उसे फिर से 1000 से भाग दिया जाए. इसके बाद जो परिणाम निकलेगा, वह उस राज्य के एक विधायक के वोट की वैल्यू होगी. इस तरह प्रत्येक राज्य के विधायकों के वोट की वैल्यू निकाली जाती है.
राज्य की कुल वोट वैल्यू निकालने के लिए:- राज्य के कुल विधायकों के वोटों की वैल्यू निकालने के लिए एक विधायक के वोट की वैल्यू को राज्य विधानसभा के कुल विधायकों की संख्या से गुणा किया जाए. इससे जो परिणाम आएगा, वह उस राज्य का कुल वोट होगा. इसी तरह हर राज्य अपनी भागीदारी राष्ट्रपति चुनाव में सुनिश्चित करता है.
सांसदों के वोट की वैल्यू निकालने के लिए:- सांसदों के वोट की वैल्यू निकालने के लिए संसद के निर्वाचित सदस्यों की संख्या को जोड़ते हैं. लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित सदस्यों को जोड़कर जो परिणाम आए, उससे राज्यों के कुल वोट में भाग देते हैं. इससे जो परिणाम आए, वह एक सांसद के वोट की वैल्यू होगी. कुल सांसदों के वोटों की वैल्यू निकालने के लिए कुल सांसदों की संख्या को एक सांसद के वोट की वैल्यू से गुणा करते हैं. अब राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं के वोटों की वैल्यू निकालने के लिए कुल सांसदों और कुल विधायकों के वोटों की वैल्यू जोड़ेंगे, जो परिणाम आए, वह मतदान में कुल पड़ने वाले वोटों की संख्या होगी.
नियम यह है कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार व्यक्ति को चुनाव जीतने के लिए 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट पाना आवश्यक होता है. मतलब यह कि 50 प्रतिशत के अलावा 1 और वोट उम्मीदवार के पक्ष में आना ज़रूरी है. राष्ट्रपति पद का चुनाव मल्टी कैंडिडेट इलेक्शन होता है यानी इस चुनाव में दो से ज़्यादा उम्मीदवार खड़े हो सकते हैं, इसलिए ज़्यादातर यह संभव नहीं है कि किसी भी उम्मीदवार को निर्वाचन के लिए 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट मिल सकें. इसलिए ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम का प्रावधान है. देश के छठवें राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी इस मामले में अपवाद रहे हैं. वह ऐसे राष्ट्रपति हुए, जिनके खिलाफ कोई अन्य प्रत्याशी खड़ा नहीं हुआ था और इसीलिए वह निर्विरोध यानी अनअपोज्ड राष्ट्रपति बने थे. एक सही उम्मीदवार चुनने का एक खास तरीक़ा है, जिसे उदाहरण के साथ समझते हैं.
सबसे पहले यह जान लें कि राष्ट्रपति चुनाव में प्रिफ्रेंसियल सिस्टम वोटिंग होता है यानी मतदाताओं को सभी प्रत्याशियों को अपनी पसंद के क्रम के अनुसार वोट करना ज़रूरी होता है. मान लें कि 4 लोग अ, ब, स, द राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं, उन्हें सभी मतदाता अपनी इच्छा से पहली पसंद, दूसरी पसंद, तीसरी और फिर चौथी पसंद के क्रम के अनुसार वोट देंगे. मान लें कि इनमें अ को 30 प्रतिशत वोट मिले, ब को 12 प्रतिशत वोट मिले, स को 40 प्रतिशत वोट मिले और द को 18 प्रतिशत वोट मिले. ऐसे में सबसे कम वोट पाने वाले प्रत्याशी को बाहर कर दिया जाता है. बाहर किए गए उम्मीदवार को मिले वोटों को उसमें वर्णित सेकेंड प्रिफ्रेंस के आधार पर अन्य उम्मीदवारों के वोटों में शामिल कर दिया जाता है. एलिमिनेशन की यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है, जब तक किसी भी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट न मिल जाएं. 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट पाने वाले प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है. आज तक भारत में राष्ट्रपति निर्वाचन की प्रक्रिया में एक बार ही दूसरे दौर की गिनती की गई है. 1969 में हुए चुनाव में वोटों की गिनती सेकेंड प्रिफ्रेंस के हिसाब से हुई थी. इसके बाद वी वी गिरि निर्वाचित घोषित किए गए थे. यह चुनाव इस तरह अपवाद है. इसके अलावा आज तक दूसरे दौर तक वोटों की गिनती की आवश्यकता नहीं पड़ी.
राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं के लिए कुछ विशेष प्रावधान हैं:-
यदि किसी राज्य में विधानसभा किसी भी कारणवश निलंबित हो, फिर भी उसके निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति चुनाव में भाग ले सकते हैं. 1967 में राजस्थान विधानसभा के निलंबित होने के बावजूद निर्वाचित सदस्यों ने अपना वोट दिया था. इसी तरह बिहार विधानसभा भी 1969 में निलंबित थी, मगर निर्वाचित सदस्यों ने राष्ट्रपति चुनाव में अपना वोट डाला था.
1950 के बाद देश के 12 राष्ट्रपति हुए हैं, जिनमें कुछ ऐसे हैं, जो विशेष प्रकार से राष्ट्रपति रहे हैं.
देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद अब तक के अकेले ऐसे राष्ट्रपति हैं, जो लगातार दो बार राष्ट्रपति बने थे.
देश के दो राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन और फ़खरुद्दीन अली अहमद की मौत उनके कार्यकाल के दौरान हो गई थी, जिसके बाद तत्काल तौर पर उप राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति का पद संभाला.
ज़ाकिर हुसैन की कार्यकाल के दूसरे वर्ष (1969) में मृत्यु के बाद तत्कालीन उप राष्ट्रपति वी वी गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति बने. उसके कुछ माह बाद ही राष्ट्रपति चुनाव में खड़े होने के लिए उन्होंने कार्यवाहक राष्ट्रपति के पद से इस्ती़फा दे दिया था, लेकिन चुनाव में वह हार गए और उनकी जगह मोहम्मद हिदायतुल्ला कार्यकारी राष्ट्रपति बने. फिर हुए चुनाव में वी वी गिरि खड़े हुए और उन्हें जीत मिली. इस तरह वी वी गिरि ऐसे राष्ट्रपति हुए, जो उप राष्ट्रपति रहते हुए कार्यवाहक राष्ट्रपति बने और बाद में चुनाव जीतकर राष्ट्रपति भी बने.
वी वी गिरि के बाद फ़खरुद्दीन अली अहमद राष्ट्रपति बने, लेकिन कार्यकाल के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई, तब तत्कालीन उप राष्ट्रपति बसप्पा दनप्पा जट्टी कार्यवाहक राष्ट्रपति बने थे.
वर्तमान में इस पद की शोभा बढ़ा रहीं प्रतिभा देवी सिंह पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्रपति हैं.
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राष्ट्रपति चुनाव पर आपके हर सवाल का जवाब यहां है
बीबीसी की ख़ास पहल 'हमसे पूछिए' के तहत हमने आपसे पूछा था कि आप राष्ट्रपति चुनावों के किस पहलू के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं.
आपने कई सवाल भेजे जिसमें से इस सवाल में सबकी दिलचस्पी थी कि भारत का राष्ट्रपति कैसे चुना जाता है.
हमसे पूछिए: राष्ट्रपति चुनाव से जुड़े सवाल
जानिए राष्ट्रपति चुनाव में किसके पास कितने वोट
हम इस रिपोर्ट में ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब दे रहे हैं.
1. राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया क्या होती है?
(भौमिक पटेल) (हर्ष प्रमेश) (मनीष कुमार) (अशोक सिंह) (मोहम्मद अलीम) (शैलेंद्र कुमार) सुशील नारायण) (लवनीत जैन) (शाहवाज) (अरविंद सिंह) (अब्दुल करीम टाक) (आर एस तिवारी) (अखिलेश यादव) सुभाष, (हरिकिशोर कुमार) (माधव शर्मा) (हेमाराम बारूपाल) (राजीव) (फैजान मलिक) (जयदेव यादव)
राष्ट्रपति का निर्वाचन इलेक्टोरल कॉलेज के द्वारा किया जाता है. इन इलेक्टोरल कॉलेज निर्वाचक मंडल के सदस्य होते हैं लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य और इसके अलावा सभी विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य.
विधान परिषद् के सदस्य उसके सदस्य नहीं होते. लोकसभा और राज्यसभा के नामांकित सदस्य भी इसके सदस्य नहीं होते हैं.
लेकिन इन सभी के मतों का मूल्य अलग-अलग होता है. लोकसभा और राज्यसभा के मत का मूल्य एक होता है और विधानसभा के सदस्यों का अलग होता है. ये राज्य की जनसंख्या के आधार पर तय होता है.
इसमें मशीन का इस्तेमाल नहीं होता है.
2.क्या राष्ट्रपति चुनाव में टाई होता है और ऐसा होता है तो चुनाव कैसे किया जाता है? (मनोज ककाडे)
टाई होने के बारे में संविधान बनाने वाले ने संकल्पना नहीं की थी. इसलिए इसके बारे में जिक्र नहीं है. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर जो 1952 का कानून है उसमें भी इसका जिक्र नहीं है. ऐसी स्थिति आज तक आई भी नहीं है और आने की संभावना भी नहीं दिखती है.
3.राष्ट्रपति का कार्यकाल खत्म होने के बाद क्या उनका राजनीतिक जीवन खत्म हो जाता है. क्या वो उसके बाद चुनाव नहीं लड़ सकते. (प्रदीप बस्सी)
संविधान में स्पष्ट प्रावधान है कि राष्ट्रपति कार्यकाल समाप्त होने के बाद दोबारा राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा जा सकता है. राजनीतिक जीवन समाप्त होने का कोई सवाल नहीं उठता है. वो चाहे तो किसी भी तरह से राजनीतिक जीवन में रह सकते हैं. लेकिन देश के सर्वोच्च पद पर रहने के बाद स्वाभाविक है कि वो सांसद या विधायक या राज्यपाल बनना पसंद नहीं करेंगे. क्योंकि ये सब तो राष्ट्रपति के नीचे के पद हैं.
4.राष्ट्रपति पद का क्या महत्व है जब भारत में सारे अधिकार प्रधानमंत्री के पास होते हैं? (मनोज कुमार सिंह) (मोहम्मद जावेद अख्तर) (परमजीत सिंह) (मोहम्मद अफज़ल)
ऐसा नहीं है कि सारे अधिकार प्रधानमंत्री के पास रहते हैं. सबके अपने-अपने क्षेत्र हैं. पूरी कार्यपालिका की शक्तियां राष्ट्रपति के हाथ में होती है. राष्ट्रपति इनका प्रत्यक्ष तौर पर स्वयं या फिर अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से इस्तेमाल कर सकते हैं.
राष्ट्रपति का प्रमुख दायित्व प्रधानमंत्री को नियुक्त करना और संविधान का संरक्षण करना है. यह काम कई बार वो अपने विवेक से तय करते हैं. कोई भी अधिनियम उनकी मंजूरी के बिना पारित नहीं हो सकता. वो मनी बिल को छोड़कर किसी भी बिल को पुनर्विचार के लिए लौटा सकते हैं.
5.राष्ट्रपति का चुनाव कौन लड़ सकता है और उस व्यक्ति की योग्यता और उम्र क्या होनी चाहिए. राष्ट्रपति के कर्तव्य और अधिकार क्या हैं? (मोहम्मद इमरान खान) (अनिल कुमार) (सुरेंद्र मिश्रा)
भारत का नागरिक होना चाहिए. आयु कम से कम 35 साल होनी चाहिए. लोकसभा का सदस्य होने की पात्रता होनी चाहिए. इलेक्टोरल कॉलेज के पचास प्रस्तावक और पचास समर्थन करने वाले होने चाहिए.
राष्ट्रपति का मूल कर्तव्य संघ की कार्यकारी शक्तियों का निर्वहन करना है. फौज के प्रमुखों की नियुक्ति भी वो करते हैं.
6.राष्ट्रपति को पद से कैसे हटाया जा सकता है? (ओमप्रकाश सिंह)
राष्ट्रपति को उसके पद से महाभियोग के ज़रिये हटाया जा सकता है.
इसके लिए लोकसभा और राज्यसभा में सदस्य को चौदह दिन का नोटिस देना होता है. इस पर कम से कम एक चौथाई सदस्यों के दस्तख़त ज़रूरी होते हैं. फिर सदन उस पर विचार करता है. अगर दो-तिहाई सदस्य उसे मान लें तो फिर वो दूसरे सदन में जाएगा. दूसरा सदन उसकी जांच करेगा और उसके बाद दो-तिहाई समर्थन से वो भी पास कर देता है तो फिर राष्ट्रपति को पद से हटा हुआ माना जाएगा.
7.क्या दो ही उम्मीदवार खड़े होते हैं या ज़्यादा भी उम्मीदवार हो सकते हैं? (कृपानंद)
दो से ज्यादा भी उम्मीदवार हो सकते हैं बशर्ते कि पचास प्रस्तावक और पचास समर्थन करने वाले हो.
8.राष्ट्रपति क्षमादान के अधिकार का उपयोग अपने विवेक से करता है या मंत्रिपरिषद की सलाह पर? (नितिन गायकवाड़)
क्षमादान के अधिकार का उपयोग राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद के सलाह पर ही करता है. लेकिन मंत्रिपरिषद ने राष्ट्रपति को क्या सलाह दी है, ये अदालत में भी नहीं पूछा जा सकता है.
9.सिंगर ट्रांसफरेबल वोटिंग क्या चीज़ है. (संतोष मीणा और अब्दुल करीम टाक) (तरूण कुमार उपाध्याय)
इसमें प्रावधान यह है कि राष्ट्रपति के चुनाव में आनुपातिक प्रतिनिधित्व सिंगर ट्रांसफरेबल वोट होगा. संविधान के निर्माण के समय ये बिना किसी मीटिंग के पास हो गया था. लेकिन सवाल उठता है कि एक से ज्यादा सीटों पर अगर चुनाव हो रहा है तो आनुपातिक प्रतिनिधित्व की बात होती है. एक पद के लिए नहीं.
10.क्या अब तक किसी राष्ट्रपति का चुनाव निर्विरोध हुआ है.
नीलम संजीव रेड्डी अकेले राष्ट्रपति हुए जो निर्विरोध चुने गए थे और डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद अकेले राष्ट्रपति थे जो दो बार चुने गए.
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