आदि शंकराचार्य : 'हिंदूत्व ' के नवोत्थान कर्ता




आदि शंकराचार्य


आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय एवम जयंती |
Adi Shankaracharya biography Jayanti in hindi
Priyanka  April 11, 2018

आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय एवम जयंती | Adi Shankaracharya biography, Jayanti in hindi
शंकराचार्य जी को,आदिशंकराचार्य भी कहा जाता है आप साक्षात् भगवान शिव के अवतार थे . आपने परमेश्वर के विभिन्न रूपों से लोगो को अवगत कराया जिसमे, आपने यह बताया कि,

ईश्वर क्या है ?
ईश्वर का जीवन मे महत्व क्या है ?
यह ही नही आपने अपने जीवनकाल मे, ऐसे कार्य किये जो बहुत ही सरहानीय है और भारत की, अमूल्य धरोहर के रूप मे आज भी है . आपने हिन्दू धर्म को बहुत ही खूबसूरती से एक अलग अंदाज मे निखारा, इसी के साथ अनेक भाषाओं मे, आपने अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाया . आपने विभिन्न मठो की स्थापना की इसी के साथ कई शास्त्र, उपनिषद भी लिखे .

आदिशंकराचार्य जी का जीवन परिचय ( Shankaracharya history )

आदिशंकराचार्य जी साक्षात् भगवान का रूप थे . आप केरल के साधारण ब्राह्मण परिवार मे जन्मे थे . आपकी जन्म से आध्यात्मिक क्षेत्र मे रूचि रही है जिसके चलते, सांसारिक जीवन से कोई मोह नही था . आपको गीता,उपन्यास, उपनिषद् , वेदों और शास्त्रों का स्वज्ञान प्राप्त था, जिसे आपने पूरे विश्व मे फैलाया.


आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय ( Adi Shankaracharya biography in hindi)
जन्म 788 ई.
मृत्यु         820 ई.
जन्मस्थान केरल के कलादी ग्राम मे
पिता श्री शिवागुरू
माता श्रीमति अर्याम्बा
जाति नाबूदरी ब्राह्मण
धर्म         हिन्दू
राष्ट्रीयता भारतीय
भाषा     संस्कृत,हिन्दी
गुरु गोविंदाभागवात्पद
प्रमुख उपन्यास     अद्वैत वेदांत

शंकराचार्य जी की जन्म व मृत्यु (shankaracharya Birth & Death)

जन्म- आदिशंकराचार्य जी का जन्म 788 ई. मे, केरल के एक छोटे से, गाव कलादी मे हुआ था. शंकराचार्य जी के जन्म की एक छोटी सी कथा है जिसके अनुसार, शंकराचार्य के माता-पिता बहुत समय तक निसंतान थे . कड़ी तपस्या के बाद, माता अर्याम्बा को स्वप्न मे भगवान शिव ने, दर्शन दिये और कहा कि, उनके पहले पुत्र के रूप मे वह स्वयं अवतारित होंगे परन्तु, उनकी आयु बहुत ही कम होगी और, शीघ्र ही वे देव लोक गमन कर लेंगे . शंकराचार्यजी जन्म से बिल्कुल अलग थे, आप स्वभाव मे शांत और गंभीर थे . जो कुछ भी सुनते थे या पढ़ते थे, एक बार मे समझ लेते थे और अपने मस्तिष्क मे बिठा लेते थे . शंकराचार्य जी ने स्थानीय गुरुकुल से सभी वेदों और लगभग छ: से अधिक वेदांतो मे महारथ हासिल कर ली थी . समय के साथ यह ज्ञान अथा होता चला गया और आपने स्वयं ने अपने इस ज्ञान को, बहुत तरह से जैसे- उपदेशो के माध्यम के, अलग-अलग मठों की स्थापना करके, ग्रन्थ लिख कर कई सन्देश लोगो तक पहुचाया. आपने सर्वप्रथम योग का महत्व बताया, आपने ईश्वर से जुड़ने के तरीको का वर्णन और महत्व बताया . आपने स्वयं ने विविध सम्प्रदायों को समझा उसका अध्ययन कर लोगो को उससे अवगत कराया .

मृत्यु- 820 ई मे आपका देव लोक गमन हो गया था , अर्थात् मात्र बत्तीस वर्ष आपने, इस संसार के साथ व्यतीत करके उसे धन्य कर दिया .

जीवनशैली

जन्म से ही आदिशंकराचार्य जी जीवन शैली कुछ भिन्न थी . शंकराचार्य जी ने वेद-वेदांतो के इस ज्ञान को भारत के चारों कोनो मे फैलाया . उनका उद्देश्य प्रभु की दिव्यता से लोगो को अवगत कराना अद्वैत कहावत के अनुसार ब्रह्म सर्वत्र है या स्व ब्रह्म है अर्थात् ब्रह्म का मै और मै कौन हू ? का सिद्धांत शंकराचार्य द्वारा प्रचारित किया गया . इसी के साथ शिव की शक्ति और उसकी दिव्यता बताई गई . शंकराचार्य द्वारा कथित तथ्य और सिद्धांत जिसमे सांसारिक और दिव्य अनुभव दोनों का बेजोड़ मिलन है, जो कही देखने को नही मिलता है . शंकराचार्य ने कभी किसी देवता के महत्व को कम नही किया ना ही उनकी बाहुल्यता को कम किया . इन्होंने अपने जीवनशैली के माध्यम से लोगो जीवन के तीन वास्तविक स्तरों से अवगत कराया .

तीन वास्तविक स्तर
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 shankaracharya
प्रभु – यहा ब्रह्मा,विष्णु, और महेश की शक्तियों का वर्णन किया गया था .
प्राणी – मनुष्य की स्वयं की आत्मा – मन का महत्व बताया है .
अन्य – संसार के अन्य प्राणी अर्थात् जीव-जन्तु, पेड़-पौधे और प्राकृतिक सुन्दरता का वर्णन और महत्व बताया है .
इस प्रकार इन तीन को मिला कर, उनके साथ भक्ति,योग, और कर्म को जोड़ दिया जाये तो जो, आनंद प्राप्त होता है वो, बहुत ही सुखद होता है . इसी तरह का जीवन स्वयं व्यतीत कर, अपनी ख्याति सर्वत्र फैलाते थे .

कार्यकाल
आदिशंकराचार्य जी ने बहुत कम उम्र मे, तथा बहुत कम समय मे अपने कार्य के माध्यम से, अपने जीवन के उद्देश्य को पूर्ण किया . आपके जीवन के बारे मे यहा तक कहा गया है कि आपने महज दो से तीन वर्ष की आयु मे सभी शास्त्रों , वेदों को कंठस्थ कर लिया था . इसी के साथ इतनी कम आयु मे, भारतदर्शन कर उसे समझा और सम्पूर्ण हिन्दू समाज को एकता के अटूट धागे मे पिरोने का अथक प्रयास किया और बहुत हद तक सफलता भी प्राप्त की जिसका जीवित उदहारण उन्होंने स्वयं सभी के सामने रखा और वह था कि आपने सर्वप्रथम चार अलग-अलग मठो की स्थापना कर उनको उनके उद्देश्य से अवगत कराया . इसी कारण आपको जगतगुरु के नाम से नवाज़ा गया और आप चारो मठो के प्रमुख्य गुरु के रूप मे पूजे जाते है .

शंकराचार्य चार मठो के नाम (shankaracharya math Name)
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वेदान्त मठ – जिसे वेदान्त ज्ञानमठ भी कहा जाता है जोकि, सबसे पहला मठ था और इसे , श्रंगेरी रामेश्वर अर्थात् दक्षिण भारत मे, स्थापित किया गया .
गोवर्धन मठ – गोवर्धन मठ जोकि, दूसरा मठ था जिसे जगन्नाथपुरी अर्थात् पूर्वी भारत मे, स्थापित किया गया .
शारदा मठ – जिसे शारदा या कलिका मठ भी कहा जाता है जोकि, तीसरा मठ था जिसे, द्वारकाधीश अर्थात् पश्चिम भारत मे, स्थापित किया गया .
ज्योतिपीठ मठ – ज्योतिपीठ मठ जिसे बदरिकाश्रम भी कहा जाता है जोकि, चौथा और अंतिम मठ था जिसे, बद्रीनाथ अर्थात् उत्तर भारत मे, स्थापित किया गया .
इस तरह आदिशंकराचार्य जी ने, भारत भ्रमण कर इन मठो की, स्थापना कर चारो ओर, हिन्दुओ का परचम लहराया .

प्रमुख्य ग्रन्थ – आदिशंकराचार्य जी ने हिन्दी,संस्कृत जैसी भाषओं का प्रयोग कर दस से अधिक उपनिषदों , अनेक शास्त्रों, गीता पर संस्करण और अनेक उपदेशो को , लिखित व मौखिक लोगो तक पहुचाया . आपने अपने जीवन मे, कुछ ऐसे कार्यो की शुरूवात कि, जो उससे पहले कभी नही हुई थी . आपने अपने जीवन मन , आत्मा और ईश्वर को बहुत खूबसूरती से, अपने जीवन मे जोड़ा और लोगो को, इनके मिलाप से होने वाले अनुभव से अवगत कराया .

प्रमुख सन्देश
आदिशंकराचार्य जी ने तो अपने जीवनकाल मे इतना कुछ लिखा और बहुत अच्छे सन्देश दिये है जिसे हर कोई गंभीरता से सोंचे और अपने जीवन में उतारे तो यह जीवन धन्य हो जायेगा . वैसे आपके उपर कई लेख, और पुस्तके लिखी भी गई है . हम अपने इस संस्करण मे आफ्ही के द्वारा कथित कुछ महत्वपूर्ण सन्देश लोगो तक पंहुचा रहे है .

शंकराचार्यजी द्वारा अनमोल वचन (Shankaracharya quotes )
shankaracharya quotes



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पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने दिया ...

बचपन से ही अलौकिक तत्त्व के स्वामी (आद्यगुरु) शंकराचार्य
बालमित्रों, भगवान शंकराचार्य भारतवर्ष की एक दिव्य विभूति हैं । उनकी कुशाग्र बुद्धि को दर्शानेवाली एक घटना है । सात वर्ष की आयु में ही शंकर के प्रकांड पांडित्य तथा ज्ञान सामथ्र्य की कीर्ति सर्व ओर फैलने लगी । इस ज्ञान और कीर्ति को केरल के राजा राजशेखर ने भी सुना । राजा शास्त्रों में रूचि रखनेवाला, विद्वान, ईश्वरभक्त, श्रद्धावान तथा पंडितों का आदर करनेवाला था । इसलिए राजा के मन में इस बालक को देखने तथा उससे मिलने की तीव्र इच्छा उत्पन्न हो गई ।

राजा राजशेखर ने अपने प्रधान को हाथी के साथ शंकर के पास भेजा तथा उसे राजप्रासाद में आने का निमंत्रण दिया । हाथी लेकर प्रधान शंकर के घर गया तथा नम्रता से उसने राजा का संदेश कह सुनाया । संदेश सुन शंकर बोला, ‘‘उपजीविका हेतु भिक्षाटन ही जिसका साधन है, त्रिकाल संध्या, ईश्वरचिंतन, पूजा-अर्चा तथा गुरुसेवा ही जिसके जीवन के नित्य व्रत हैं, उसे आपके इस हाथी से क्या सरोकार ? चार वर्णों के सर्व कर्तव्यों का पालन कर ब्राह्मणादि धर्ममय जीवन जी सकेंगे, ऐसी व्यवस्था करना, राजा का कर्तव्य है । मेरा यह संदेश अपने स्वामी से कहें ।”

राजा को दिए इस संदेश के साथ राजप्रासाद में आने का राजा राजशेखर का निमंत्रण भी उन्होंने स्पष्ट शब्दों में अस्वीकार कर दिया । इस उत्तर से राजा अत्यधिक प्रसन्न हो गया । उसके मन में शंकर के प्रति श्रद्धा और भी अधिक बढ गई । एक दिन प्रधान के साथ राजा स्वयं ही कालडी में शंकर के दर्शन हेतु गया । राजा ने देखा, एक तेजस्वी बालक सामने बैठा है । उसके चारों ओर बैठे ब्राह्मण वेदाध्ययन कर रहे हैं ।

राजा को देखते ही शंकर ने उनका नम्रता से, सम्मानपूर्वक स्वागत किया । उससे चर्चा करते समय राजा को शंकर का प्रकांड पांडित्य तथा अलौकिक विचारशक्ति समझ में आई । जाते समय उसने कुछ सोने की मुद्राएं शंकर के चरणों में अर्पण की तथा उन्हें स्वीकारने की विनयपूर्वक विनती की । शंकर राजा से बोले, “महाराज, मैं ब्राह्मण तथा ब्रह्मचारी हूं । इसका मेरे लिए क्या उपयोग ? आपने देवपूजा के लिए जो भूमि दी है, वही मेरे तथा मेरी माता के लिए पर्याप्त है । आपकी कृपा से मुझे किसी भी प्रकार का अभाव नहीं है ।”

शंकर का यह उत्तर सुनकर क्या बोले, यह राजा को न सूझा । अंत में हाथ जोडकर बोला, ‘‘आपके दर्शन से मैं धन्य हो गया; किन्तु एक बार जो वस्तु अर्पण कर दी, वह मैं वापस नहीं ले सकता, आप ही यह धन योग्य व्यक्ति को दे दें ।” मुस्कराते हुए शंकऱ तुरंत बोला, ‘‘महाराज, आप राजा हैं । कौन सुपात्र, कौन योग्य इसका ज्ञान आपको अवश्य होना चाहिए । मुझ जैसे ब्रह्मचारी को यह ज्ञान कहां ? विद्यादान यही ब्राह्मण का धर्म है तथा सत्पात्र को दान देना यह राजधर्म है । आप ही योग्य सत्पात्र को चुनकर यह धन दे दें ।”राजा निरुत्तर हो गया । उसने शंकर को वंदन कर वहां उपस्थित ब्राह्मणों में वह धन बांट दिया ।

बच्चों, अपेक्षा किए बिना विद्यादान करने का महत्त्व तुम्हें समझ आ गया होगा । हम भी ऐसा कर सकते हैं । जिस विषय का ज्ञान आपको अधिक है, और वह ज्ञान दूसरे के पास न हो, तो उसे यह ज्ञान देकर उसकी सहायता कर सकते हैं ।

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'हिंदूत्व ' के नवोत्थान कर्ता 

जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जिन्होंने ईसा से 200 साल पहले 'हिंदूत्व ' धर्म को दिखाया नया रास्ता

भारत में चार मठों की स्थापना करने वाले आदि शंकराचार्य की जयंती आज पूरा सनातन धर्म मना रहा है. बचपन से ही शंकराचार्य का रुझान संन्यासी जीवन की तरफ था. लेकिन उनके मां नहीं चाहती थीं कि वो संन्यासी जीवन अपनाएं.

भारत में चार मठों की स्थापना करने वाले जगद्गुरु आदि शंकराचार्य की जयंती आज पूरा सनातन धर्म मना रहा है. उनका जन्म आठवीं सदी में भारत के दक्षिणी राज्य केरल में हुआ था. शंकराचार्य के पिता की मत्यु उनके बचपन में ही हो गई थी. बचपन से ही शंकराचार्य का रुझान संन्यासी जीवन की तरफ था. लेकिन उनके मां नहीं चाहती थीं कि वो संन्यासी जीवन अपनाएं.

कहा जाता है कि 8 साल की उम्र में एक बार शंकराचार्य जब अपनी मां शिवतारका के साथ नदी में स्नान के लिए गए हुए थे. वहां उन्हें मगरमच्छ ने पकड़ लिया. जिसके बाद शंकराचार्य ने अपनी मां से कहा कि वो उन्हें संन्यासी बनने की अनुमति दे दे वरना ये मगरमच्छ उन्हें मार देंगे. जिसके बाद उनकी मां ने उन्हें संन्यासी बनने की अनुमति दे दी.

शंकराचार्य का निधन 32 साल की उम्र में उत्तराखंड के केदारनाथ में हुआ. लेकिन इससे पहले उन्होंने हिंदू धर्म से जुड़ी कई रूढि़वादी विचारधाराओं से लेकर बौद्ध और जैन दर्शन को लेकर कई चर्चा की हैं.जिसके बाद शंकराचार्य को अद्वैत परम्परा के मठों के मुखिया के लिए प्रयोग की जाने वाली उपाधि माना जाता है.

शंकराचार्य हिन्दू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है, जो बौद्ध धर्म में दलाईलामा एवं ईसाई धर्म में पोप के बराबर समझा जाता है. इस पद की परम्परा आदि गुरु शंकराचार्य ने ही शुरू की थी. शंकराचार्य ने सनातन धर्म के प्रचार और प्रतिष्ठा के लिए भारत के 4 क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए. उन्होंने अपने नाम वाले इस शंकराचार्य पद पर अपने चार मुख्य शिष्यों को बैठाया. जिसेक बाद इन चारों मठों में शंकराचार्य पद को निभाने की शुरुआत हुई.

देशभर में धर्म और आध्‍यात्‍म के प्रसार के लिए 4 दिशाओं में चार मठों की स्‍थापना की गई. जिनका नाम है ओडिश का गोवर्धन मठ, कर्नाटक का शरदा शृंगेरीपीठ, गुजरात का द्वारका पीठ और उत्तराखंड का ज्योतिर्पीठ/ जोशीमठ 
आदि शंकराचार्य ने इन चारों मठों में सबसे योग्यतम शिष्यों को मठाधीश बनाने की परंपरा शुरु की थी, जो आज भी प्रचलित है.




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