संघ : राष्ट्र रक्षा का शुभ संकल्प लेने का दिन गुरु पूर्णिमा RSS Guru Purnima
संघ : राष्ट्र रक्षा का शुभ संकल्प लेने का दिन गुरु पूर्णिमा
sangh : raashtr raksha ka shubh sankalp lene ka din guru poornima
राष्ट्र रक्षा का शुभ संकल्प लेने का दिन गुरु पूर्णिमा
भारतीय इतिहास गुरु-शिष्य संबंधों की गाथाओं से भरा पड़ा है. समय-समय पर गुरुओं ने जन-कल्याण के लिये मंत्र दिया, जिसे उनके शिष्यों ने दूर-दूर तक प्रसारित एवं प्रचारित किया इस संबंध की स्मृति में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व अनादिकाल से मनाया जाता रहा है. परंतु इसे महर्षि व्यास ने अधिक व्यापक बनाया. इस कारण इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं. प्राचीन काल में गुरु दीक्षा और गुरु दक्षिणा के लिये जो दिन नियत था, उसे ही गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता था. किंतु आषाढ़ मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु समाधि लेते हैं और महात्मा आ भी चातुर्मास्य व्रत करते और एक स्थान पर रहकर उसे सम्पन्न करते हैं. इसी दिन सरस्वती पूजा भी की जाती है, स कारण यह पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाने लगा. इसके पीछे यह भी भावना है कि पूर्णिमा को किया गया व्रत-अनुष्ठान पूर्णता एवं सर्वसिद्धि प्रदान करता है. निश्चत ही, यह वर्ष में एक बार हमें कल्याणकारी दिशा में अग्रसर होने की प्रेरणा देता है.
मगध के छिन्न-भिन्न हो रहे साम्राज्य को कौन बचाता अगर चन्द्रगुप्त के चाणक्य ना होते? बर्बर मुस्लिम आक्रमणकारियों से हिन्दू राष्ट्र की रक्षा कौन करता अगर छत्रपति शिवाजी के समर्थ गुरु रामदास ना होते? गुरू गोदिं सिंह का खालसा पंथ कैसे सिरजा जाता तथा भारत और समाज की रक्षा कैसे होती अगर गुरु ग्रंथ साहिब की अमर वाणी ना होती? वर्तमान भारतवर्ष की पराधीनता की बेडि़यां तोड़कर स्वतंत्रता और हिन्दू स्वाभिमान की क्रांति कैसे प्रारंभ होती अगर डा. हेडगेवार के साथ भगवा ध्वज की शाश्वत बलिदानी परम्परा का गुरु-बल ना होता?
भारत के प्राण सभ्यतामूलक संस्थाओं में बसे हैं. माता, पिता और गुरु-ये वे संस्थान हैं जिन्होंने इस देश की हवा, पानी और मिट्टी को बचाया. रामचरित मानस में श्रीराम के बाल्यकाल के गुणों में सबसे प्रमुख है मात-पिता गुरु नाविही माथा. वे माता-पिता और गुरु के आदेश से बंधे थे और जो भी धर्म तथा देश के हित में हो, वही आदेश उन्हें माता-पिता और गुरु से प्राप्त होता था. जब वे किशोरवय के ही थे और उनकी मसें भी नहीं भीगी थीं तभी गुरु वशिष्ठ उन्हें देश, धर्म और समाज की रक्षा के लिये उनके पिता दशरथ से मांग कर ले गये. जब देश संकट में हो और धर्म पर मर्दायाहीनता का आक्रमण हो तो समाज के तरुण और युवा शक्ति क्या सिर्फ अपना कैरियर और भविष्य को बनाने में लगी रहे? यह गुरू का ही प्रताप और मार्गदर्शन होता है कि वह समाज को राष्ट्र तथा धर्म की रक्षा के लिये जागृत और चैतन्य करे.
जब कश्मीर के हिन्दू पंडितों पर संकट आया और इस्लाम के आक्रमणकारियों ने उन्हें घाटी से बाहर खदेड़ दिया तो कश्मीर से 11 पंडित गुरु तेग बहादुर साहिब के पास आये. उनकी व्यथा सुनकर गुरु तेग बहादुर साहिब बहुत पीडि़त हुये. उनके मुंह से शब्द निकले कि आपकी रक्षा के लिये तो किसी महापुरुष को बलिदान देना होगा. उस समय नन्हें बालक गोविंद राय, जो कालांतर में गुरु गोविंद कहलाये, हाथ जोड़कर बोले, हे सच्चे पातशाह, आपसे बढ़कर महापुरुष कौन हो सकता है? गुरु तेग बहादुर साहिब ने गोविंद राय को आशीर्वाद दिया और कश्मीरी पंडितों की रक्षा की. यह गुरु तेग बहादुर साहिब का बलिदान ही था कि उन्हें हिन्द की चादर कहा गया. गुरु तेग बहादुर के बलिदान के बाद गुरु गोविंद सिंह जी के दोनों साहिबजादे, जोरावर सिंह और फतेह सिंह सरहिंद के किले में काजी के द्वारा जिंदा दीवार में चिनवा दिये गये. वीर हकीकत राय ने धर्म के लिये प्राण दे दिये लेकिन धर्म नहीं छोड़ा. यह कौन सी शक्ति थी जो उनके पीछे काम कर रही थी? वह कौन सा ज्ञान धन था कि जिसने इन वीरों के हृदय में राष्ट्रधर्म की रक्षा के लिये आत्मोत्सर्ग करने की हिम्मत भर दी?
आचार्य बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने अपनी अमरकृति आनंद मठ में उन्हीं महान आचार्यों की खड्गधारी परम्परा का अद्भुत और आग्नेय वर्णन किया है जो भवानी भारती की रक्षा के लिये शत्रु दल का वैसे ही संहार करते गये जैसे महिषासुर मर्दिनी शत्रुओं का दलन करती है. वंदेमातरम् के जयघोष के साथ जब संन्यासी योद्धा अश्व पर सवार होकर शत्रुओं पर वार करते थे तो अरिदल संख्या में अधिक होते हुए भी काई की तरह फटता जाता था. वंदेमातरम् से विजयी आकाश नादित हो उठता था.
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