क्रांतिपुत्र अमर शहीद मंगल पाण्डे : मे सौ जन्मों तक भारतमाता के लिये अपना बलिदान करता रहूं

 

 Mangal Pandey 193rd Birth Anniversary Today Know More Interesting Facts  About Him - मंगल पांडेय की 193वीं जयंती, वो महानायक जिसे फांसी देने के लिए  जल्लाद भी तैयार नहीं थे - Amar

 क्रांतिपुत्र अमर शहीद मंगल पाण्डे : 

मे सौ जन्मों तक भारतमाता के लिये अपना बलिदान करता रहूं

 अमर शहीद मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा में एक ब्रह्मण परिवार में हुआ. इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी था. हालांकि कई इतिहासकार ने बताया है कि उनका जन्म फैजाबाद जिले की अकबरपुर तहसील के सुरहुरपुर गांव में हुआ. आज (19 जुलाई 2022 ) मंगल पांडे 195वीं जयंती है. 

 अंग्रेजों के खिलाफ सिर उठाने वाले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले क्रांतिकारी के तौर पर विख्यात मंगल पांडे ने पहली बार 'मारो फिरंगी को' का नारा देकर भारतीयों का हौसला बढ़ाया था. उनके विद्रोह से ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई थी.


अमर शहीद मंगल पांडे की 195वीं जयंती 


अमर शहीद मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा में एक ब्रह्मण परिवार में हुआ. इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी था. हालांकि कई इतिहासकार ने बताया है कि उनका जन्म फैजाबाद जिले की अकबरपुर तहसील के सुरहुरपुर गांव में हुआ.
आज (19 जुलाई) मंगल पांडे 195वीं जयंती है. अंग्रेजों के खिलाफ सिर उठाने वाले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले क्रांतिकारी के तौर पर विख्यात मंगल पांडे ने पहली बार 'मारो फिरंगी को' का नारा देकर भारतीयों का हौसला बढ़ाया था. उनके विद्रोह से ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई थी.

29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ खोला मोर्चा
29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला था. उन्होंने कलकत्ता के पास बैरकपुर परेड मैदान में रेजीमेंड के अफसर पर हमला कर उसे घायल किया था. वे ईस्ट इंडिया कंपनी में सैनिक के तौर पर भर्ती हुए थे. लेकिन बाद में उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों के भारतीयों के ऊपर अत्याचार को देखकर अंग्रेजों के खिलाफ सिर उठाया था. 6 अप्रैल 1557 को मंगल पांडेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गई.
 

 प्रथम क्रांतिपुरुष : क्रांतिकारी मंगल पांडे
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आज़ादी की पहली जंग छेड़ने वाले अमर शहीद मंगल पांडे की कहानी
अमर शहीद मंगल पांडे की आज जयंती है। सन 1857 में, भारत एक विद्रोह का गवाह बना, जिसके बाद देश ने नई करवट ली। सिपाही विद्रोह ने पूरे देश को जैसे नींद से जगा दिया और इसके बाद घटनाओं का एक सिलसिला बना जो आने वाले समय में ब्रिटिश साम्राज्य से भारत की संपूर्ण आजादी पर खत्म होने वाला था इस विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था? ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में तैनात सिपाहियों के बीच यह अफवाह फैल गई थी कि नई एनफील्ड राइफल्स के कारतूस बनाने में सुअर और गाय की चर्बी का भी इस्तेमाल किया जाता है।

साल 1857 के मार्च महीने की 29 तारीख थी। मंगल पांडेय 34वीं बंगाल नेटिव इंफेन्टरी के साथ बैरकपुर में तैनात थे। सिपाहियों में जबरन ईसाई बनाए जाने से लेकर कई तरह की अफवाहें फैल रही थीं। इनमें से एक अफवाह ये भी थी कि बड़ी संख्या में यूरोपीय सैनिक हिंदुस्तानी सैनिकों को मारने आ रहे हैं।
 
मंगल पांडेय को 8 अप्रैल, 1857 को फांसी दी गई थी। स्थानीय जल्लादों ने मंगल पांडेय को फांसी देने से मना कर दिया था। इसके बाद कोलकाता से चार जल्लादों को बुलाकर इस फौजी को फाँसी दी गई। लेकिन ये शायद कम लोगों को ही पता है कि 19 जुलाई 1827 को जन्मे मंगल पांडेय ने फांसी से कई दिन पहले खुद की जान लेने की कोशिश की थी। और, इस कोशिश में वह गंभीर रूप से ज़ख्मी भी हुए थे।

इतिहासकार किम ए वैगनर ने अपनी क़िताब ‘द ग्रेट फियर ऑफ 1857 – रयूमर्स, कॉन्सपिरेसीज़ एंड मेकिंग ऑफ द इंडियन अपराइज़िंग’ में 29 मार्च की घटना को सिलसिलेवार अंदाज़ में बयां किया है। हिअरसी ने यूरोपीय सैनिकों के हिंदुस्तानी सिपाहियों पर हमला बोलने की बात को अफवाह करार दिया, लेकिन ये संभव है कि हिअरसी ने सिपाहियों तक पहुंच चुकी इन अफवाहों की पुष्टि करते हुए स्थिति को बिगाड़ दिया। मेजर जनरल के इस भाषण से आतंकित होने वाले सिपाही 34वीं बंगाल नेटिव इंफेन्टरी के मंगल पांडे भी थे।”

खून से रंगी थी 29 मार्च की शाम
मंगल पांडेय 29 मार्च की शाम 4 बजे अपने तंबू में बंदूक साफ कर रहे थे। वैगनर लिखते हैं, “शाम के 4 बजे थे। मंगल पांडे अपने तंबू में बंदूक साफ कर रहे थे। थोड़ी देर बाद उन्हें यूरोपीय सैनिकों के बारे में पता चला। सिपाहियों के बीच बेचैनी और भांग के नशे से प्रभावित मंगल पांडेय को घबराहट ने जकड़ लिया। अपनी आधिकारिक जैकेट, टोपी और धोती पहने मंगल पांडेय अपनी तलवार और बंदूक लेकर क्वार्टर गार्ड बिल्डिंग के करीब परेड ग्राउंड की ओर दौड़ पड़े।”

ब्रितानी इतिहासकार रोज़ी लिलवेलन जोन्स ने अपनी किताब “द ग्रेट अपराइजिंग इन इंडिया, 1857 – 58 अनटोल्ड स्टोरीज, इंडियन एंड ब्रिटिश में मंगल पांडेय के दो ब्रितानी सैन्य अधिकारियों पर हमला बोलने की घटना को बयां किया है।

जोन्स लिखती हैं, “तलवार और अपनी बंदूक से लैस मंगल पांडेय ने क्वार्टर गार्ड (बिल्डिंग) के सामने घूमते हुए अपनी रेजिमेंट को भड़काना शुरू कर दिया। वह रेजिमेंट के सैनिकों को यूरोपीय सैनिकों द्वारा उनके खात्मे की बात कहकर भड़का रहे थे। सार्जेन्ट मेजर जेम्स ह्वीसन इस सबके बारे में जानने के लिए पैदल ही बाहर निकले। और, इस पूरी घटना के चश्मदीद गवाह हवलदार शेख पल्टू के मुताबिक पांडेय ने ह्वीसन पर गोली चलाई। लेकिन ये गोली ह्वीसन को नहीं लगी।”

जोन्स लिखती हैं, “जब अडज्यूटेंट लेफ्टिनेंट बेंपदे बाग को इस बारे में बताया गया तो वह अपने घोड़े पर सवार होकर वहां पहुंचे और पांडेय को अपनी बंदूक लोड करते हुए देखा। मंगल पांडेय ने फिर एक बार गोली चलाई और फिर एक बार निशाना चूक गया, बाग ने भी अपनी पिस्तौल से पांडेय पर निशाना साधा, लेकिन गोली निशाने पर नहीं लगी।” “लेकिन इसके बाद जब पल्टू ने जमादार ईश्वरी पांडेय को मंगल पांडेय को पकड़ने के लिए चार सैनिकों को भेजने को कहा तो ईश्वरी प्रसाद ने पल्टू को बंदूक दिखाते हुए कहा कि अगर मंगल पांडेय को भागने नहीं देंगे तो वह गोली चला देगा। पल्टू ने बताया, “घायल होने के कारण मैंने उसे जाने दिया”।

फिर मंगल पांडेय ने चलाई अपनी आख़िरी गोली

जोन्स लिखती हैं, “इसके बाद मंगल पांडेय ने अपने साथियों को गालियां देते हुए कहा, “तुम लोगों ने मुझे भड़का दिया और अब तुम मेरे साथ नहीं हो” “घुड़सवार और कई पैदल सैनिकों ने मंगल पांडेय की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और ये देखकर मंगल पांडेय ने बंदूक की नाल को अपने सीने में लगाया, पैर के अंगूठे से ट्रिगर दबाया। गोली से उनकी जैकेट और कपड़े जलने लगे और वह घायल होकर जमीन पर गिर पड़े।”

अपनी हिम्मत और हौसले के दम पर समूची अंग्रेजी हुकूमत के सामने पहली चुनौती पेश करने वाले मंगल पांडे का नाम नाम ‘भारतीय स्वाधीनता संग्राम’ में अग्रणी योद्धाओं के रूप में लिया जाता है, जिनके द्वारा भड़काई गई क्रांति की ज्वाला से अंग्रेज़ ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन बुरी तरह हिल गया था। मंगल पांडे की शहादत ने भारत में पहली क्रांति के बीज बोए थे।

 
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क्रान्तिवीर मंगल पाण्डे


विश्व का सिर मौर, वसुन्धरा का गौरव भारत माता की यह गोद जहां देवता भी जन्म पाने के लिये तरसते है। उस पावन भूमि मे जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी की पुनीत अभिलाषा होती है कि मेरे देश की यह पावन भूमि स्वर्ग से भी सुन्दर वन कर विश्व मे सर्व श्रेष्ट हो। विश्व बन्धुत्व की हमारी संस्कृति भौतिक वादी दृष्टि कोण से परे हटकर आत्म ज्ञान से ओत प्रोत विश्व मानव के विकास का मार्ग युगो -युगो से प्रशस्त करने से अग्रणि रहा है। यही यहां के ऋषि मुनियो की सार्थक मीमांसा थी
सत्य अहिंसा करूणा क्षमा दया परोपकार एवं विश्वबन्धुत्व की भावना के अलोक से जगमगाता भारत देश पश्चात प्रहार से आधतितहोकर करूणा की उत्ताल हिलोरे ले रहा था अपनी स्वतंत्रता के लिये चिन्तन नव योजना वा उर्जा के संचार मे प्रयुक्त थी।
स्वतन्त्रता संग्राम 1857 का आयोजन प्रास्तवित किया जा रहा था। कमल एवं रोटी के माध्यम से अपदस्थ पेशवा नाना साहब के प्रतीकात्मक नेतृत्व मे आन्दोलन भूमिका बनाई जा रही थी क्रान्तकारी विभिन्न भेश धारण कर सौनिक छावनी मे भारतीय सिपाहियो को गुप्त संदेशों के द्वारा आन्दोलन की सूचना प्रेषित कर रहे थे ।
बाटिलियन एन्फ्रेन्टी रेजीमेन्ट 34वीं प्लाटून के सिपाही मंगलपाण्डे जिनका सिपाही न0 1446 था स्वधर्म एवं स्वराज्य की स्थापना हेतु क्रान्ति कि मशाल उनके मजबूत हाथो मे पकडा दी गयी। प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास पृष्ठ बनकर चिरस्मरणीय अपूर्व नायक हुतात्म मंगल पाण्डे का जन्म अवध क्षेत्र के पुण्य पावन सुरसरि क्षेत्र मे इस पुन्यात्मा का अवतरण 19 जुलाई 1827 को अषाण शुक्ल पक्ष द्वितीय शुक्रवार विक्रम संवत 1884 मे हुआ था। इनकी माता श्री मती अभयरानी देवी ने अभयप्रवृति के पुत्र का नामकरण सम्बोधन देवसेना नायक मंगल के नाम पर मंगल दिया। इनके पिता का नाम दिवाकर पाण्डे था इनके पिता पैतृक निवास अयोघ्या के समीप दुगुवा गांव मे था। मंगल पाण्डेय के उपरान्त इनके पिता अपने ननिहाल मे प्राप्त सम्पत्ति की देख रेख करने हेतु फैजाबाद के ग्राम सुरहुरपुर में रहने लगे। जहां उपरोक्त दिनांक को भारत के इस प्रथम स्वतंत्रता युद्ध के प्रथम बलिदानी का जन्म हुआ।

पेशवा नाना साहब के प्रधान मंत्री अजीमुल्ला के आहवान पर सैनिक छावनियों मे स्वतंत्र चेतना जागृत हो रही थी किन्तु इसके पूर्व ही मंगल पाण्डे के मनोमस्तिक मे विद्रोही भावनाएं पनप चुकी थी। क्योकि बाल काल मे ही मंगल पाण्डेय ने अंगे्रजी सेनाओ के द्वारा अपने गांव मे आग लगाने की घटना को अपनी आखो से देखा था तब से सदैव यह प्रश्न अपनी मां से करता रहता था कि मां हमारे घर मे आग किसने लगायी थी हम आर्य है अर्थात श्रेष्ठ है। फिर पराधीन क्यो मै उन्हे मार डालूगा जिन्होने गांव मे आग लगाई व लूट पाट की उन्ही से प्रतिशोध का भाव उस समय ज्वालामुखी की तरह फटकर बाहर आ गया। जब पेशवा ने स्वतंत्रता युद्ध का आवाहन किया था
बाल्य काल से ही मन मे ज्वालायें प्रज्वलित किये हुए वही बालक 22 वर्ष का तरूण हो चुका था। इनकी लम्बाई अब 8 फुट ढाई इंच थी। इनकी शरीर की बनावट वा लम्बाई ताकत वा शक्ति के बारे मे महान लेखक श्री अमृतलाल नागर की गादर के फूल नामक किताब मे वर्णीत है। घुटनो के नीचे तक लटकती हुई बाहुओं दीदीप्त सौर्य का प्रतीक उन्नतभाल उभर लिये हुये चैडा सीना वीरो की समस्त उपमाओं से सुसोभायमान यह बालक वीर तरूण बनकर बचपन की उस कल्पना की चित्कार को नही भूल पाया था।
एक समयमंगल पाण्डेय अपने ग्राम सुरहुरपुर से सहयोगीलाल सिंह जिन्हे वो प्यार से दादूका सम्बोधन करता था के साथ अकबर पुर आये थे। इनके स्वास्थ को देखकर जी0टी0 रोड से मार्च पास्ट करती हुई सेना जा रही थी उस सेना के एक अफसर की नजर इस 22 वर्षीय तरूण पर पडी जो उसके देह दृष्टि से प्रभावित होकर सेना मे भर्ती हो जनो का अनुरोध किया परन्तु आत्म अभिमानी मंगल पाण्डे ने उस अस्विकार कर दिया परन्तु दादू के समझाने के बाद 10 मई 1849 को कम्पनी सेना मे भर्ती हो गये जिनका यही से सौनिक जीवन प्रारम्भ हुआ।
क्रांति दूत ने 1857 की क्रान्ति हेतु हाथो मे शस्त्र धारण कर लिये। स्वधर्म की स्थापना हेतु समग्र क्रान्ति हिन्दुस्तान मे प्रभावी होने लगी इसकी गोपनीयता का पूर्ण रूपेण निर्वहन किया जा रहा था ऐसे मे इस क्रान्ति मही नायक क्रान्ति का अग्रणी क्रान्ति के समारंगण मे हिन्दू और मुसलमानो का पुनीत प्रणेता बन कर कूद पडा।

कारतूसो मे चर्बी केवल क्रान्ति का कारण बनी थी क्रान्ति की अवधारणा जिस गोपनीयता के साथ फैजाबाद मे बनायी गई बिठूर मे योजना बद्ध किया गया जिसकी गुंज समग्र हिन्दूस्तान मे फैल गई। बैरकपुर की 34 वीं बटालियन के स्वाभिमानी सिपाही मंगल पाण्डे अपने देशबन्धुओ का अपमान न सहन कर किमकर्तव्यविमूढ़ बने रहना ना स्वीकारा वीरवर सैनिक मंगल पाण्डे अंग्रेजो द्वारा बलात् थोपी जाने वाली आज्ञा का उल्लंघन कर म्यांन मे बंदी अपनी तलवार को बाहर निकल लेना चाहते थे। जमादार ईश्वरी प्रसाद एवं अन्य राजनितिक साथियो की सुलह पर इस बगावत को 31 मई 1857 तक टाल देना चाहते थे परन्तु मंगल पाण्डेय द्वारा 34 रेजी मेन्ट के सैनिको को भडकाने की सूचना एक गददार भारतीय सिपाही द्वारा सार्जेन्ट हूसन को दे दी गई सार्जेन्ट हूसन एवं लेफिटनेंट बाग ओनो मौके पर पहुच गये एवं मंगल पाण्डेय को खबरदार कर मृत्यु की चेतावनी दे डाली । परन्तु बेखौफ मंगल पाण्डे ने अपने सैनिक साथियो से दहाड कर कहा तुम सभी मेरा साथ दो मै इन गोरे अफसरो को धराशायी कर दूगा। सैनिको मे उत्तेजना का समुद्र तो था परन्तु अंग्रजो के कोप का भाजन नही बनना चाहते थे मि0 बाग ने पहला वार किया जिसे बचाते हुये मंगल पाण्डे ने एक वार मे धराशयी कर दिया। सार्जेन्ट हूसन के पहुचने पर मंगल पाण्डे की बन्दूक की पहली गोली चली। बन्दूक मे एक गोली बचने पर तथा साथियो के द्वारा साथ ना दिये जाने पर वह गोली मंगल पाण्डे ने स्वयं अपने सीने मे दाब दी परंतु दुर्भाग्यवश गोली सीने मे लगकर कंधे को चीरते हुये निकल गयी थोडे उपरांत के बाद वह ठीक हो गये उन पर विद्रोहात्मक कार्यवाही का मुकदमा सैनिक न्यायालय पर चलाया गया तथा मृत्यु दंड निर्धरित किया गया। 8 अप्रैल 1857 को फांसी की तारीख निर्धारित कि गयी अभियोग के निस्तारण के साथ इस वीर अग्रणी पुरूष से पूछा गया था कि इस विद्रोह मे और कौन-कौन व्यक्ति सामिल थे भांति -भांति के भय का प्रलोभन दिये गये परन्तु इस धैर्यवान पुरूष मुख से किसी का भी नाम नही निकला उसने स्पष्ट शब्दो मे घोषणा की जिन अधिकारीयो की मेरी गोली लगने से मृत्यु हुई हैं उनसे मेरी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नही थी यदि मैने किसी की हत्या व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण की होती तो क्रूर हत्यारो की श्रेणी मे किन्तु मंगल पाण्डेय ने यह कृत्व तत्व निष्ठा व देश प्रेम, व स्वके रक्षार्थ किया है। जिसके लिये श्री कृष्ण ने गीता मे कहा हे-सुखो दुखो समे कृत्वा का अनुशरण करते हुये किया हैं अस्तु स्वदेश व स्वधर्म का अपमान होते हुये देखने के बजाय मृत्यु का वरण कर अनपा नाम हुतात्माओ की पावन श्रेणी मे लिखना श्रेयष्कर है।
स्वदेश व स्वधर्म की रक्षा हेतु प्राणों की आहुति देना मै अपना नैतिक कर्तव्य मानता हूं। जियो भी शान से मरो भी शान से तुम्हे शर्म आनी चाहिये मुठ्ठी भर गोरे तुम पर हुकुमत कर रहे है। मेरा साथ दो बन्दूक उठा लो इन्हे मार दो कोई भी जिन्दा बच कर भागने ना पाये मूर्खो हम पर औरते बच्चांे हसेगे गुलामी मे जिनकी अपेक्षा हसते-हसते देश के लिये बलिदान होना श्रेष्यकर है। तुम अपना खून दो खून की होली खेलो राष्ट्रहित सर्वोपरि है। ये गोरे फिरंगी जायेगे देश आजाद होगा हमे अजादी मिलेगी मुझे पूरा विश्वास है। मै बडा भाग्यशाली हूं कि भारत माता की सेवा मे मुझे अपने प्राणो की आहुति देने का अवसर सर्व प्रथम कुछ ही समय पश्चात प्राप्त होने जा रहा है। मै भारत माता से प्रार्थना करता हू कि मेरा जन्म भारत मे हि हो मै सौ जन्मो तक राष्ट्र के लिये हसते हसते फांसी के फन्दे बालिदान होउ यही मेरी अन्तिम इच्छा वा ईश्वर से प्रार्थना है। ये मक्कार फिरगींओ झूठे दगाबाजो एक मंगल पाण्डे को फांसी पर चढाकर भारत का स्वतंत्रता संग्राम अब नही रूकेगा भारत माता के पास आज के बाद स्वतंत्रता संग्राम के लिये लाखो मंगल पाण्डे शहीद हो ने को तैयार हो जायेगे।

द टू स्टोरी आफ एन इंण्डियन रिवोल्यूशनरी 5 अप्रैल 1857 को कोर्ट मार्शल मे चल रही बहस के द्वारान तत्कालीन अंग्रेज न्यायधीश के समाने के विचार 8 अप्रैल 1857 को प्राची मे सूर्य की आभा को आलोकित होने सं पूर्व ही मंगल पाण्डे को वध स्थल पर ले जाकर कलकत्ता से बुलाये गये जल्लादो द्वारा फांसी दे दी गई । इस बलिदानी की दिव्य आत्मा अपने नश्वर कलेवर को त्यागकर 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बीज रोपित कर उसके अंकुरण को सिंचित करने हेतु आपने पावन रक्तांजलि भेट कर दी।

चाल्र्सवल के आनुसार-‘‘पाण्डेय, यह नाम स्वतंत्रता आन्दोलन के सक्रिय भगीदार रत् सभी विदोही सिपाहियो का उपनाम बना कर प्रतिष्ठित हुआ।’’

‘‘ सिपाहियो को पाण्डे कह कर सम्बोधित किये जाने का उद्गम स्थाल यह नाम है।’’ स्वधर्म स्वराज्य एवं स्वाभिमानी के हुतु आत्मोत्सर्ग करने वाले मंगल पाण्डे 1857 समरागंण मे अपनी अंजली देकर जिस स्वतंत्रता के बीज का रोपण किया था आज वह बीज सशक्त वृक्ष बनकर कपोल युक्त शाखाओ से सुदृढ पुष्पित पल्लवित वृक्ष बन गया है। इस सघन वृक्ष की छाया मे हम स्वतंत्रता का प्राशय प्राप्त कर रहे है। आज भी इस वीर की हुतात्मा का साक्षात्कार करते हुये श्रद्धा की पुनीत मंदाकिनी के प्रवाह मे स्नान कर पवित्र हो जाती है।
आशीष सागर-प्रवास
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