प्रथम क्रांतिपुरुष : शहीद मंगल पांडे Mangal Pandey,
- अरविन्द सिसोदिया 9414180151
जीवन पुष्प चढा चरणों पर,माँगे मातृभूमि से यह वर,
तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें ।
बहुत कम लोगों का अब ध्यान होगा कि भारत की प्रथम क्रांतीकारी मंगल पाण्डे का जन्म दिवस 19 जुलाई व बलिदान दिवस 8 अप्रेल है ।
तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें ।
बहुत कम लोगों का अब ध्यान होगा कि भारत की प्रथम क्रांतीकारी मंगल पाण्डे का जन्म दिवस 19 जुलाई व बलिदान दिवस 8 अप्रेल है ।
1857 में इसी दिन उन्हे ब्रिटिश हकूमत ने फांसी दी थी और इसी बलिदान दिवस पर महान क्रांतिकारी भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त नें भारत की असेम्बली में बम फेंक कर सोये भारत को आजादी के लिये पुनः जगाया था। वीरों का बलिदान तो होता है मगर वह दुश्मन के ताबूत की अंतिम कील बन कर शत्रु का अंत करता है। मंगल पाण्डे, रानी लक्ष्मी बाई, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ही नहीं हजारों क्रांन्तिकारियों का बलिदान व्यर्थ नहीं गया बल्कि उनकी महान शहादत ने भारत माता को अंग्रेजों की बेडियों से आजाद करवा कर, पुनः स्वतंत्रता के सिंहासन पर विराजमान किया है। उन सभी बलिदानियों को कोटि कोटि नमन ।
क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमति अभय रानी था | वे , कोलकाता के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में ३४ वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की पैदल सेना के 1446 नम्बर के सिपाही थे। भारत की आजादी की पहली लड़ाई अर्थात 1857 के विद्रोह की शुरुआत उन्हीं के विद्रोह से हुई।
जागरण में प्रकाशित समाचार में .मंगल पाण्डेय का जन्म नगवा में 30 जनवरी 1831 को सुदृष्टि पाण्डेय एवं जानकी देवी के पुत्र के रूप में हुआ। http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_7552454.html
*उत्तर प्रदेश में बलिया जिले की एक अदालत ने आज एक फैसले में कहा कि प्रथम स्वाधीनता संग्राम के नायक शहीद मंगल पांडे बलिया जिले के नगवा गाँव के ही रहने वाले थे।मुकदमे के वादी संतोष पांडे ने स्वयं को शहीद मंगल पांडे का प्रपौत्र बताते हुए फिल्म में उनकी जीवनी को गलत तरीके से प्रस्तुत करने का आरोप लगाया था।
२० मार्च १८५७ को सैनिकों को एक नए प्रकार के कारतूस दिए गए .., इन कारतूसों को मुंह में दांतों में दवा कर खोला जाता था , ये गाय और सूअर की चरवी से चिक्नें किये गए थे , ताकि हिदू और मुस्लिम सैनिक धर्म के प्रति अनुराग छोड़ कर, धर्म विमुख हों ..!
२९ मार्च सन १८५७ को नए कारतूस के प्रयोग करवाया गया , मंगल पण्डे ने आगया मानाने से मना कर दिया , और धोके से धर्म भ्रष्ट करने की कोशिस के खिलाफ उन्हें भला बुरा कहा , इस पर अंग्रेज अफसर ने सेना को हुकम दिया की उसे गिरफतार किया जाये , सेना ने हुकम नहीं मना ..! पलटन के सार्जेंट हडसन स्वंय मंगल पांडे को पकड़ने आगे बड़ा तो , पांडे ने उसे गोली मार दी ., तब लेफ्टीनेंट बल आगे बड़ा तो उसे भी पांडे ने गोली मार दी ..! मौजूद अन्य अंग्रेज सिपाहियों नें मंगल पांडे को घायल कर पकड़ लिया | उन्होने अपने अन्य साथियों से उनका साथ देने का आह्वान किया। किन्तु उन्होने उनका साथ नहीं दिया । उन पर मुकदमा (कोर्ट मार्शल) चलाकर ६ अप्रैल १८५७ को मौत की सजा सुना दी गई। १८ अप्रैल१८५७ को उन्हें फांसी की सजा मिलनी थी। किंतु इस निर्णय की प्रतिक्रिया विकराल रूप न ले सके, इस रणनीति के तहत ब्रिटिस सरकार ने मंगल पांडे को दस दिन पूर्व ही ८ अप्रैल सन १८५७ को फांसी दे दी।
मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी चिनगारी बुझी नहीं। एक महीने बाद ही १० मई सन १८५७ को मेरठ की छावनी में विप्लव (बगावत) हो गया । यह विपलव देखते ही देखते पूरे उत्तरी भारत में छा गया और अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि अब भारत पर राज्य करना आसान नहीं है।--------
मुख्य कारण एनफ़ील्ड बंदूक
विद्रोह का प्रारम्भ एक बंदूक की वजह से हुआ। सिपाहियों को पैटऱ्न १८५३ एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कि ०.५७७ कैलीबर की बंदूक थी तथा पुरानी और कई दशकों से उपयोग मे लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले मे शक्तिशाली और अचूक थी। नयी बंदूक मे गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पडता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पडता था। कारतूस का बाहरी आवरण मे चर्बी होती थी जो कि उसे नमी अर्थात पानी की सीलन से बचाती थी।
सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस मे लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है। यह हिन्दू और मुसलमान सिपाहियों दोनो की धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध था। ब्रितानी अफ़सरों ने इसे अफ़वाह बताया और सुझाव दिया कि सिपाही नये कारतूस बनाये जिसमे बकरे या मधुमक्क्खी की चर्बी प्रयोग की जाये। इस सुझाव ने सिपाहियों के बीच फ़ैली इस अफ़वाह को और पुख्ता कर दिया। दूसरा सुझाव यह दिया गया कि सिपाही कारतूस को दांतों से काटने की बजाय हाथों से खोलें। परंतु सिपाहियों ने इसे ये कहते हुए अस्विकार कर दिया कि वे कभी भी नयी कवायद को भूल सकते हैं और दांतों से कारतूस को काट सकते हैं।
तत्कालीन ब्रितानी सेना प्रमुख (भारत) जार्ज एनसन ने अपने अफ़सरों की सलाह को दरकिनार हुए इस कवायद और नयी बंदूक से उत्पन्न हुई समस्या को सुलझाने से मना कर दिया।
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२९ मार्च, १८५७ को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय ने रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया। जनरल जान हेएरसेये के अनुसार मंगल पाण्डेय किसी प्रकार के धार्मिक पागलपन मे थे जनरल ने ज़मीदार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया। सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया। मंगल पाण्डेय ने अपने साथीयों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास करी। परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुये। ज़मीदार ईश्वरी प्रसाद को भी मृत्यु दंड दे दिया गया और उसे भी २२ अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी। सारी रेजीमेण्ट को समाप्त कर दिया गया और सिपाहियों को निकाल दिया गया। सिपाही शेख पलटु की पदोन्नति कर बंगाल सेना में ज़मीदार बना दिया गया।अन्य रेजीमेण्ट के सिपाहियों को यह दंड बहुत ही कठोर लगा। कई ईतिहासकारों के अनुसार रेजीमेण्ट को समाप्त करने और सिपाहियों को बाहर निकालने ने विद्रोह के प्रारम्भ होने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, असंतुष्ट सिपाही बदला लेने की इच्छा के साथ अवध लौटे और विद्रोह ने उने यह अवसर दे दिया। अप्रैल के महीने में आगरा, इलाहाबाद और अंबाला शहरों मे भी आगजनी की घटनायें हुयीं।
२९ मार्च, १८५७ को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय ने रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया। जनरल जान हेएरसेये के अनुसार मंगल पाण्डेय किसी प्रकार के धार्मिक पागलपन मे थे जनरल ने ज़मीदार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया। सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया। मंगल पाण्डेय ने अपने साथीयों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास करी। परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुये। ज़मीदार ईश्वरी प्रसाद को भी मृत्यु दंड दे दिया गया और उसे भी २२ अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी। सारी रेजीमेण्ट को समाप्त कर दिया गया और सिपाहियों को निकाल दिया गया। सिपाही शेख पलटु की पदोन्नति कर बंगाल सेना में ज़मीदार बना दिया गया।अन्य रेजीमेण्ट के सिपाहियों को यह दंड बहुत ही कठोर लगा। कई ईतिहासकारों के अनुसार रेजीमेण्ट को समाप्त करने और सिपाहियों को बाहर निकालने ने विद्रोह के प्रारम्भ होने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, असंतुष्ट सिपाही बदला लेने की इच्छा के साथ अवध लौटे और विद्रोह ने उने यह अवसर दे दिया। अप्रैल के महीने में आगरा, इलाहाबाद और अंबाला शहरों मे भी आगजनी की घटनायें हुयीं।
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बैरकपुर
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मंगल पांडे के बलिदान दिवस पर ,
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली (मौजूदा लोकसभा )में बम फोड़े थे
मंगल पांडे के बलिदान दिवस पर ,भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली में बम फोड़े थे
On the martyrdom day of Mangal Pandey,Bhagat Singh and Batukeshwar Dutt exploded the bombs in the Central Assembly .
ब्रिटिश सरकार की ओर से की जाने वाली लूट और उसे जगाने के लिए आज ही के दिन शहीद ए आजम भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली (मौजूदा लोकसभा )में बम फोड़े थे। पब्लिक सेफ्टी बिल और इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट को जबरन पास करने के खिलाफ क्रांतिकारियों ने यह कदम उठाया था। इसके बाद पूरे देश में ऐसी आंधी चली की ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिल गई थी।
देश में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन ने जिस तरह पूरे देश जगा दिया है उसी तरह आठ अप्रैल को 1929 को असेंबली में बम फोड़कर और उसके बाद 1931 तक मुकदमे के दौरान ब्रिटिश हुकूमत की ओर से मचाई जा रही लूट की परतें उखाड़ कर पूरे देश को जगा दिया था। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को लाहौर षडयंत्र केस में फांसी में लटका दिया था और रात को ही लाशों को बोरे में डाल कर हुसैनी वाला में सतलुज दरिया के किनारे जला दिया था।
बम फोडऩे से पहले भगत सिंह को रसगुल्ले
On the martyrdom day of Mangal Pandey,Bhagat Singh and Batukeshwar Dutt exploded the bombs in the Central Assembly .
ब्रिटिश सरकार की ओर से की जाने वाली लूट और उसे जगाने के लिए आज ही के दिन शहीद ए आजम भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली (मौजूदा लोकसभा )में बम फोड़े थे। पब्लिक सेफ्टी बिल और इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट को जबरन पास करने के खिलाफ क्रांतिकारियों ने यह कदम उठाया था। इसके बाद पूरे देश में ऐसी आंधी चली की ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिल गई थी।
देश में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन ने जिस तरह पूरे देश जगा दिया है उसी तरह आठ अप्रैल को 1929 को असेंबली में बम फोड़कर और उसके बाद 1931 तक मुकदमे के दौरान ब्रिटिश हुकूमत की ओर से मचाई जा रही लूट की परतें उखाड़ कर पूरे देश को जगा दिया था। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को लाहौर षडयंत्र केस में फांसी में लटका दिया था और रात को ही लाशों को बोरे में डाल कर हुसैनी वाला में सतलुज दरिया के किनारे जला दिया था।
बम फोडऩे से पहले भगत सिंह को रसगुल्ले
आठ अप्रैल 1929 को असेंबली में बम फोडऩे से पहले सुबह ही दिल्ली के कुदसिया गार्डन में सुखदेव थापर अपने साथ क्रंातिकारिणी दुर्गा भाभी और सुशीला दीदी को लेकर आए थे और भगतसिंह को रसगुल्ले खिलाए थे। इसके बाद सुशीला दीदी ने अपने खून से भगत सिंह के माथे पर टीका लगाया था।
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत आज ही के दिन साढ़े दस बजे के करीब असेंबली में पहुंचे और साढ़े बारह बजे असेंबली में ऐसे धमाके कर डाले कि उनकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी।
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत ने असेंबली मं जब ये धमाके किए थे तो भगत सिंह की उम्र 21-22 साल और बटुकेश्वर दत की उम्र 19 साल के करीब थी। आठ अप्रैल के दिन इन दोनों क्रांतिकारियों ने इतिहास के पन्नों पर अमर बना दिया था।
आठ अप्रैल का दिन भूल गए,इस महत्वपूर्ण दिन को देश लगभग आज पूरी तरह से भूला चुका हैं।
भगतसिंह,सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस 23 मार्च को हुसैनी वाला में राजनीतिक दलों ने राजनीति का जरिया बना दिया है। सुखदेव थापर की लुधियाना स्थित जन्मस्थली नौ घरां वीराने में है। बटुकेश्वर दत को कितने लोग याद करते हैं सब जानते हैं।
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