हिन्दूहित के लिए शिंदे की बगावत,हिंदुत्व की रक्षा की प्रेरणा बनेगी - अरविन्द सिसोदिया

शिंदे की हिन्दूहित के लिए बगावत,हिंदुत्व की रक्षा की प्रेरणा बनेगी - अरविन्द सिसोदिया

हिन्दूहित के लिए शिंदे की बगावत,हिंदुत्व की रक्षा की प्रेरणा बनेगी - अरविन्द सिसोदिया


शिंदे की हिन्दूहित के लिए बगावत,हिंदुत्व की रक्षा की प्रेरणा बनेगी - अरविन्द सिसोदिया
Shinde's rebellion for Hindu interest will become an inspiration to protect Hindutva - Arvind Sisodia


एकनाथ शिंदे की हिन्दूहित के लिए बगावत की घटना,हिंदुत्व  की रक्षा की प्रेरणा बनेगी - अरविन्द सिसोदिया
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शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने जब शिवसेना की स्थापना की थी तब उन्होंने बहुत ही स्पष्टता एवं मजबूती से कहा था  कि जिस दिन शिवसेना का कल्चर कांग्रेस का कल्चर हो जाएगा, उस दिन में दुकान बंद कर दूंगा । अर्थात शिवसेना को भंग कर दूंगा।

शिवसेना की स्थापना के बाद जो विस्तार हुआ उसका कारण, मुस्लिम गुंडागर्दी और मुंबई में उनके बर्चस्व के कारण हुआ ।

जब तक बाल ठाकरे जिंदा रहे तब तक सेना प्रखर हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व करती रही, उनके "सामना" अखबार बिना किसी डर और भय के हिंदू के पक्ष में, पुरुषार्थ पूर्ण - वीरता पूर्ण अपने आलेखों को दर्ज करता रहा ।

जब बाबरी ढांचा जब ढहा तब सिर्फ शिवसेना के बाल ठाकरे थे जिन्होंने  बिना डरे, बड़ी स्पष्टता से कहा जी हां बाबरी ढांचा हम ने गिराया।

 बाल ठाकरे ही थे जिन्होनें कहा कि मुसलमानों को वे मस्जिदें खाली करनी चाहिए जो हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाई गईं और इससे आगे भी उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम समाज को आगे आकर उन मंदिरों को पुनः हिंदुओं को बना कर देना चाहिए ।

जो सत्य है जो न्याय की अपेक्षा है उसके साथ कोई हिन्दू खड़ा हुआ था उस व्यक्तित्व का नाम बाल ठाकरे था, किंतु राजनीति में जैसे ही आदित्य ठाकरे का पदार्पण हुआ और सरकार बनाने , उसमें मंत्री पद पाने और भाजपा को पटकी देने तक की जो सोच बनी । उसका परिणाम था कि आदित्य नें अजमेर में चादर चढ़ाने मुंबई से पहुंच गए । जब यह घटना हो रही थी तब यह मन को लगा था कि कहीं ना कहीं कुछ बड़ा लालच, कुछ बड़ा लोभ पनप रहा है ।

और वह बाद में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद को लेकर सामनें आया और उससे बाद में  भारतीय जनता पार्टी को रोकने के लिए, उसे संकुचित करने के लिए ,उसके विकास को अवरुद्ध कर देने के लिए, भाजपा को पटकी देने के रूप में सामने आया ।

यह बहुत महंगा सौदा था , क्यों कि इसके लिए जो वैसाखी लीं गईं वे शुद्ध हिन्दू विरोधी थीं। अर्थात मुख्यमंत्री बनने के लिये शिवसेना को अपनी मूल अवधारणा छोड़नी पड़ी ।  क्योंकि उसने जो दो वैशाखीयां ली, जिन दो पार्टियों का समर्थन दिया, वे दोनों पार्टियां दिखनें में तथाकथित सेकुलर और मूलतः मुस्लिम तुष्टीकरण की अवधारणा पर चलने वाली थीं । यह पार्टियां हिंदू सपोर्ट तो लेती हैं, मगर मुस्लिम एजेंडा को , मुस्लिम मांगों को पूरा करती है।

कुल मिलाकर भारत में मुस्लिम गुंडागर्दी के द्वारा जो अपना वर्चस्व प्राप्त करने की सोची समझी रणनीति के अंतर्गत बहुत सारी गतिविधियां चल रही है । उनको समर्थन करना, सहयोग करना और उनके आगे अपना आत्मसमर्पण करना कांग्रेस और एनसीपी की नियति रही है।

बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री का पद तो ले लिया मगर असली राज शरद पवार और दाऊद इब्राहिम का चला । दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में बैठकर दोबारा से मुंबई पर शासन करने लगा, तो शरद पवार सैंकड़ों करोड़ प्रति माह की वसूली करने लग गए । दोनों बातें बहुत स्पष्टता से शिवसेना के विधायकों के सामने आ रही थी और जनता के सामने भी आ रही थीं। इससे भी अधिक मुख्य बात यह थी कि शिव सेना जिस एजेंडे पर चलती थी, जिस विचारधारा पर चलती थी, जिन नीतियों पर चलती थी , जिन लक्ष्यों को लेकर उससे बनाया गया था, जिन लक्ष्यों को उसे प्राप्त करना था , उन सब को भूलकर के उद्धव ठाकरे , शरद पवार और सोनिया गांधी की जय जय कार में व्यस्त हो गए ।

शिवसेना के विधायकों को यह बड़ी स्पष्टता से लगने लगा कि अगले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी उनको पराजित करेंगे, क्योंकि कांग्रेस का असर तो अगले चुनाव में रहना नहीं है , शरद पंवार भी कम ही होनें हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में अकेले दम पर ढाई सौ सीटों तक पहुंचने की क्षमता रखती दिख रही है । यह चिंता शिवसेना विधायकों को सता रही थी ।

यह इसलिए हो रहा था कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने लक्ष्यों , अपने सिद्धांतों , अपनी नीतियों के लिए जो कुछ कार्य राजनीतिक क्षेत्र में किए जाने थे, वह सारे कार्य करके दिखाए । उनके द्वारा जनता के मन की आकांक्षाओं को , इस देश के असली मालिक हिंदुओं को भाजपा नें संतुष्ट किया ।


 सच यही है कि हिन्दू को ही इस देश का मालिकाना हक है , जो लोक पाकिस्तान बनवा चुके वे फिर से भारत को पाकिस्तान बनाने में लगे हुये है। उनके पास तयसुदा एजेण्डा है। जिसे कोई रोक पा रहा है तो वह भाजपा है। शिवसेना का भी यही कर्त्तव्य बाला साहेब ठाकरे ने तय किया था, मगर वह गठबंधन सरकार के रूप में आत्म समर्पण कर चुकी थी । अर्थात छत्रपति शिवाजी महाराज की वीर भूमि पर तो हिन्दू आकांक्षाओं को पूरा करने वाला दल मात्र भाजपा ही बचा था।
 
यही बात शिवसेना के विधायकों को भी समझ में आ गई थी कि उद्धव के नेतृत्व में शिवसेना भटक गई है। वे सत्ता मद में सही को सही नहीं समझ पा रहे हैं । यह शिवसेना के विधायकों के भविष्य का भी विषय था उनके राजनैतिक जीवन का भी विषय था। सो उनकी चिन्ता वाजिव थी। इसी कारण से एकनाथ शिंदे सहित 40 विधायक जो सामने आए यह सब उस विचारधारा के लोग थे जिसको बाल ठाकरे ने , अपने जीवन में स्थापित किया था। जिसके साथ चलते हुये इनका जीवन भी खप गया था।

बाल ठाकरे ने जिस विचारधारा एवं कृतित्व से मुंबई की मुस्लिम गुंडागर्दी बंद की और हिंदू मान सम्मान और स्वाभिमान स्थापित किया था । वह अब अपने आपको ठगा हुआ और उपेक्षित तथा संकुचित महसूस कर रहा था। उस विचार के विधायक कुछ ना कर पाने की स्थिति में अपने आप को पा रहे थे। इसी से शिवसेना विधायकों ने विद्रोह का ध्वज उठाना ही ठीक समझा और उन्होंने शिवाजी महाराज की तरह जागो तो एक बार हिंदू जागो की स्थिति में बागावत कर, वास्तविक विचार की शिवसेना का अलग गुट खडा किया।


इस बगावत का परिणाम भारत की राजनीति में आने वाले कई वर्षों तक रहेगा। हिंदू हित की राजनीति करने वाली पार्टियों पर इस घटना का गहरा असर होगा । क्योंकि यह घटना सिर्फ शिवसेना को ही नहीं बल्कि शिवसेना के अलावा भी कई पार्टियां हैं जो हिंदुओं का वोट लेती है, उन्हे विचार के प्रति दृड रखेगी । जो पार्टियां हिंदुओं हित की नीतियों पर चलती है और लक्ष्य तय करती है , उन्हे भटकने से रोकेगी। यदि आगे चलकर उनमें भटकाव आया तो, एकनाथ शिंदे की तरह समानांतर एवं वास्तविक विचारों का गुट  बनाया जा सकता है । यह प्रेरणा वर्तमान की यह बगावत देती है। इस से हिन्दू वादी दल हिन्दुत्व से भटकनें के प्रति सावचेत रहेगे।

हिंदू हित से हटनें पर बगावत भी होती है यह संदेश यह घटना देती है यह एक ऐसी प्रेरणा है जो आगे चलकर के हिंदूवादी दलों को अनुशासित रखेगी , ब्रेक का काम करेगी और इसके लिए एकनाथ शिंदे के साहस को और उनको साथ देने वाले विधायकों को भारतीय संस्कृति और उसके लोग लंबे समय तक याद भी रखेंगे । उनका सम्मान भी करेंगे और उनको आदरणीय मानते रहेंगे और उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते रहेंगे । एकनाथ शिंदे सिर्फ एक नए मुख्यमंत्री नहीं बने हैं बल्कि वे एक हिंदुत्व से छोड़ने वाले लोगों को किस तरह पटकी दी जाती है इसका एक उदाहरण बने हैं, मार्गदर्शन बने हैं और एक ऐसा घटनाक्रम उन्होंने स्थापित किया है । जो भविष्य में हिंदुत्व को छोड़ने का सहास अन्य दलों को भी नहीं करने देगा अन्यथा उसमें भी इसी तरह की बगावत हो जाएगी ।

यदी कोई दल संगठन अपने हिन्दुत्व को छोडे तो , उसे सबक सिखाया जा सकता है। उसे तोड कर समानांतर संगठन बनाया जा सकता है। इसका संदेश उन्होंने दे दिया है । जिससे हिंदुत्व का भला होगा, हिन्दू नीतियों का भला होगा ।

अंततः हम सभी आशा करते हैं कि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के माध्यम जो पुनः हिंदू विचार स्थापित हुआ, जिसकी परिकल्पना कभी बाल ठाकरे जी ने की थी। वह दीर्घआयु हो।




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