हल्दीघाटी युद्ध के परम योद्धा राजा रामशाह तोमर (तँवर ) Haldi Ghati War
हल्दीघाटी युद्ध के परम योद्धा राजा रामशाह तोमर (तँवर )
- डाँ. महेन्द्रसिंह तँवर
मध्यभारत के प्रमुख राज्य ग्वालियर पर तोमरों ने 130 वर्ष तक राज किया था । राजा वीरसिंह देव से लेकर राजा विक्रमादित्य तक 9 पीढ़ियों ने ग्वालियर पर एक छत्र शासन किया । उनके गौरव मय इतिहास की कीर्ति पताका आज भी क़िले मे बने उनके स्मारक ओर रचित ग्रन्थों से जानी जा सकती हैं । राजा मानसिंह जी तो भारतीय इतिहास के विरले राजा थे जिन्होंने ग्वालियरी संगीत घराने को जन्म दिया जिस कारण महान संगीतज्ञ बिरजु ओर तानसेन निकले ।
राजा मानसिंह के योग्य पुत्र राजा विक्रमादित्य ने सात वर्षों तक लोदियों का मुक़ाबला किया एवं भारतमाता की रक्षा करते हुए पानीपत के युद्ध में बाबर से मुक़ाबला करते हुए रणक्षेत्र में वीरगति पाई।
राजा विक्रमादित्य के युवराज राजा रामशाह हुए । इन्होंने अपने जीवन काल मे हिंदुस्थान के 9 से अधिक बादशाह देखे ओर तीन मेवाड़ के महाराणा । अपने जीवन में सात वर्ष की अवस्था में पिता के वीरगति प्राप्त करने के पश्चात 1526 से 1558 तक चम्बल के बीहड़ में ऐसाहगढ़ में रहकर अपने खोए राज्य की प्राप्ति में लगे रहे । अंत में जब अकबर की सेना ने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया तब अपने पाँच सौ योद्धाओ के साथ महाराणा उदयसिंह जी के पास मेवाड़ पहुँचे ।
मेवाड़ के अधिपति ने राजा रामशाह का भव्य स्वागत किया । मेवाड़ में रहते इन्हें बारीदासोंर ओर भेंसरोड़गढ़ की जागीर , प्रति दिवस 801 रुपए नित्य ख़र्च के देने का आदेश दिया ।
चितोड़ के 1567 के युद्ध में राजा रामशाह भी थे लेकिन उनके भाग्य में हल्दीघाटी में वीरगति पाना लिखा था , इसलिये महाराणा उदयसिंह जी अपने साथ इन्हें भी वहाँ से साथ लेकर निकल गये ।
महाराणा प्रताप के राज्यारोहण में इनकी विशेस भूमिका थी । जब हल्दीघाटी के युद्ध का बिगुल बजा तब सबसे पहले राणा प्रताप ओर सभी सामन्त गण इनके डेरे पर ही बैठक करने एकत्रित हुए थे । महाराणा इनका बहुत आदर करते थे जब इन्होंने पहाड़ों मे युद्ध करने क सलाह दी तब मेवाड़ के वीरो ने इनका उपहास किया । युद्ध खुले मैदान में करने का निर्णय हुवा ।
मेवाड़ की फोज के हरावल पंक्ति में महाराणा स्वम ओर दक्षिणी पंक्ति में राजा रामशाह अपने तीनो पुत्रों व पाँच सौ वीरों के साथ लड़े । युद्ध का विकराल स्वरुप ओर उसमें लड़ने वाले वीरों की अदम्य शूरवीरता के किसे आज सभी के समुख हैं ।
राजा रामशाह अपने तीनो पुत्रों व तीन सो वीरों के साथ रक्त तलाई में मेवाड़ की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये।
मेरा शोभाग्य हैं की में उनकी वंश परम्परा में 17 वें वंशधर होने का गौरव रखता हु । मेने इन पर शोध पूर्ण पुस्तक भी लिखने का प्रयास किया हैं ।
मेवाड़ के प्रसिद्ध इतिहासविद समाजसेवी सेवनिवृत्ति आई. ए. एस . श्री सज्जन सिंह जी राणावत साहेब का में ऋणी हु जिन्होंने मेरे शोध के समय मेरे पत्र के जवाब में लिखा था " हम सब मेवाड़ वासी राजा रामशाह के नमक के चुकारे के अहसानमंद हैं " मेने इस पत्र को पढ़ने के बाद इन भावो को समझा तब मुजे अपने पूर्वजों पर असीम गर्व हुवा । राजा रामशाह ओर उनको पुत्रों की वीरता पर लिखने से तो अल्बदायु भी अपनी लेखनी को रोक नहीं सका ।
हल्दीघाटी के युद्ध में दोनो ही पक्ष के योद्धाओं को अपने जीवन ओर प्राणो से बढ़कर मान- प्रतिष्ठा की चिन्ता थी ( Price of life was low , but the honour was high )
राजारामशाह के ज्येष्ठ पुत्र युवराज शालिवाहन की राजकुमारी से महाराणा अमरसिंह जी का विवाह हुवा था जिनके गर्भ से महाराणा करण सिंह जी का जन्म हुवा । हल्दीघाटी युद्ध के अनेक वर्षों के बाद महाराणा करणसिंह जी ने अपने नाना के ऊपर खमनोर गाँव में छतरियाँ बनवाई जो राजा रामशाह के बलिदान की वीर गाथा का गुणगान करती हैं । वैसे मेवाड़ के लोग मान समान तो बहुत करते हैं लेकिन मेवाड़ के राजघराने ने अब ग्वालियर के तोमर परिवार को लगभग भुला दिया हैं ।
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