Sri Lanka crisis and silent UN,need a problem solving world order. Arvind Sisodia
श्रीलंका संकट और मौन संयुक्त राष्ट्र संघ, समस्या समाधानकारी विश्व व्यवस्था चाहिये . अरविन्द सिसौदिया
Sri Lanka crisis and silent United Nations, need a problem solving world order. Arvind Sisodia
श्रीलंका संकट और मौन संयुक्त राष्ट्र संघ,जाग्रत विश्व व्यवस्था चाहिये - अरविन्द सिसौदिया
Sri Lanka crisis and silent United Nations, need to wake up world order - Arvind Sisodia
पिछले कुछ वर्षों से यह देखनें को मिल रहा है कि पृथ्वी की राजनैतिक स्थिती अनुशासनहीन है और भगवान भरोषे चल रही है। कई अहम मसलों पर इसे विफल या असरहीन देखा जा रहा है। कोरोना संकट में, अफगानिस्तान के तालिबानीकरण में और रूस - यूक्रेन युद्ध सहित, हाल ही में श्रीलंका में महंगाई के कारण हुये जन विद्रोह में भी संयुक्त राष्ट्र संघ को मौन पा रहे हैं।
For the last few years it is being seen that the political situation on earth is undisciplined and God trust is running. It is being seen as failure or ineffective on many important issues. In the Corona crisis, including the Talibanization of Afghanistan and the Russia-Ukraine war,The United Nations is also finding silence in the recent public uprising due to inflation in Sri Lanka.
इस समय विश्व में जो विस्तारवाद, बाजारवाद,शस्त्रशक्ति का अहंकारवाद, अव्यवस्था और आराजकता के कांरण असन्तुलन की स्थिती है । इस स्थिती में विश्व को संभालनें एवं दिशा देनें के लिये गंभीर एवं शक्तिशाली संगठन व्यवस्था की आवश्यकता है। जिसकी पूर्ती संयुक्त राष्ट्र संघ से पूरी होती नहीं दिख रही है। न ही भविष्य के लिये ही इसे सक्षम पाया जा रहा है।
At present, there is a situation of imbalance in the world due to expansionism, marketism, arrogance of weapon power, disorder and anarchy. In this situation, there is a need for a serious and powerful organization system to handle and give direction to the world. The fulfillment of which does not seem to be fulfilled by the United Nations. Nor is it being found capable for the future only.
अमेरिका में जब से जो बाईडन राष्ट्रपति चुने गये हैं तब से विश्व में आतकंवाद बेखौफ हो गया है। चीन की विस्तारवादी महत्वाकांक्षा विश्व शांती को समस्यायें ही खडी कर रही है और आगे भी विश्व शांती को सबसे बडा खतारा चीन ही होने वाला है।
Ever since Joe Biden was elected president in America, terrorism in the world has become fearless. China's expansionist ambition is only creating problems for world peace and in future also China is going to be the biggest threat to world peace.
रूस चीन को कभी विश्व का सर्वेसर्वा नहीं देखना चाहता , क्यों कि चीन के बड़ते बर्चस्व से रूस को ही सर्वाधिक खतरा है। जबकी तमाम शत्रुताओं के बावजूद चीन अमेरिका का कुछ भी नहीं बिगाड सकता है।
Russia never wants to see China as the sovereign of the world, because Russia is the biggest threat from China's growing supremacy. Whereas despite all the hostility, China can not spoil anything for America.
नाटो देश भी सीधे स्वयं अपने आपको दाव पर नहीं लगाना चाहते । वे स्वयं को बचाते हुये चल रहे है। इन परस्थितियों में विश्व में जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत सच हो रही है।
NATO countries also do not want to put themselves directly at risk. They are running to save themselves. In these circumstances, in the world, the proverb of the buffalo whose stick is coming true.
विश्व के सभी प्रभावशाली देशों को मिल कर संयुक्त राष्ट्र संघ को मजबूत बनाना चाहिये। इसमें कुछ बदलाव कर, इसकी प्रभाव क्षमता एवं संवेदनशीलता में वृद्धि करनी चाहिये।
All the influential countries of the world should work together to strengthen the United Nations. By making some changes in it, its effectiveness and sensitivity should be increased.
इस समय सम्पूर्ण विश्व में जो प्रमुख समस्या है वह है भुखमरी, वस्तुओं का अभाव, धन का अभाव और मंहगाई। कोरोना संकट के बाद विश्व में भयानक असन्तुलन आया है। मजबूत से मजबूत देश भी चिन्ताग्रस्त है। बेरोजगारी एवं उत्पादन पर प्रभाव पडे हैं । धन अर्जन के लिये आम सामान्य नागरिकों के अवसरों में भयंकर कमी आई है।
At present the main problem in the whole world is hunger, lack of goods, lack of money and inflation. There has been a terrible imbalance in the world after the Corona crisis. Even the strongest country is worried. Unemployment and production have been affected. There has been a severe reduction in the opportunities of ordinary citizens for earning money.
अन्न के भरपूर उत्पादन,उर्वरकों की सप्लाई चैन टूटनें से प्रभावित हुई है। अन्य क्षैत्रों में भी उत्पादन एवं वितरण में असमानता चल रही है। धन का अभाव बडा कारण बनता जा रहा है। रोजमर्रा की जीवन व्यवस्था प्रभावित हुई है।
The abundant production of food grains, the supply chain of fertilizers has been affected. In other areas also there is a disparity in production and distribution. Lack of money is becoming a big reason. Everyday living arrangements have been affected.
जरूरतमंद देशों को भुखमरी से कैसे बचाया जाये, यह गंभीर विषय है। धन के अभाव या कर्ज में डूबे देशों की सामान्य जीवन व्यवस्थाओं को कैसे पटरी पर लाया जाये । कौन सहायता करेगा । क्या संयुक्त राष्ट्र संघ कोई फंड जुटा कर मानव जीवन की रक्षा कर सकता है। इन अहम मसलों पर गंभीर विचार विमर्श एवं व्यवस्था का मोर्चा अभी पूरी तरह खाली है।
How to save needy countries from starvation is a serious matter. How to bring back the normal life systems of countries which are lacking money or in debt. Who will help? Can the United Nations Organization save human life by raising any funds? The front for serious discussion and arrangement on these important issues is still completely empty.
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