सुनिश्चित हो कि राज्यों में पुलिस सहित प्रशासन व्यवस्था, संवैधानिक निष्पक्षता से चलें - अरविन्द सिसौदिया
सुनिश्चित हो कि राज्यों में पुलिस सहित प्रशासन व्यवस्था, संवैधानिक निष्पक्षता से चलें - अरविन्द सिसौदिया
It should be ensured that the administrative system, including the police in the states, runs in constitutional impartiality - Arvind Sisodia
कहा जाता है कि देश संविधान से चलेगा अर्थात कानून तय प्रक्रिया से चलेगा, मगर येशा नहीं होता, राज्यों में जिस दल की सरकार होती है, उस दल के नेताओं को खुश करने के हिसाब से पुलिस सहित प्रशासन चलता है। इसका उदाहरण बंगाल , केरल और राजस्थान बना हुआ है। विश्लेषण करनें पर हजारों उदाहरण मिल जाते हैं।
It is said that the country will run according to the constitution, that is, the law will follow the due process, but it does not happen, the administration, including the police, runs on the basis of pleasing the leaders of the party in which the government is in the states. Examples of this are Bengal, Kerala and Rajasthan. Thousands of examples are found on analysis.
सबसे बडी बात यह है कि राजस्थान के अजमेर में भडकाऊ नारे बाजी करवानें वाला गिरफतार नहीं होता, गिरफतार होनें की नौबत आती है तो फरार करवा दिया जाता है। एक व्यक्ति जान से मारे जानें की धमकी के बाद जान बचानें राजस्थान पुलिस के पास पहुंचा, उसे हत्यारों के लिये निहत्था छोड दिया जाता है। फिर उसकी वे बहुत आराम से हत्या कर देते है। महाराष्ट्र में भी वारदात छुपा ली जाती है, मगर क्षैत्रीय सांसद की जागरूकता एवं राज्य की सत्ता बदलने से अपराधी पकडे जाते हैं। बंगाल में तो पुलिस का कहर कई कई महीनों तक चला।
The biggest thing is that in Ajmer, Rajasthan, the person who raises provoking slogans is not arrested, in the event of being arrested, he is made to abscond. A man approaches Rajasthan Police to save his life after he is threatened with death, he is left unarmed for the killers. Then they kill him very easily. Even in Maharashtra, the crime is hidden, but due to the awareness of the Kshatriya MP and changing the power of the state, criminals are caught. In Bengal, the havoc of the police lasted for many months.
अभी हाल ही में सबसे ज्यादा जोर से धमकी देनें वाला बूंदी का अपराधी पूरे देश में विरोध के बाद तो गिरतार किया गया और केस इतना कमजोर बनाया गया कि दूसरे दिन ही उसे जमानत मिल गई । इसी तरह अजमेर से पकडा गया सर तन से जुदा करने का आव्हान करने वाले को पुलिस ही बचनें का रास्ता बता रही है। इनके वीडियो सोसल मीडिया पर आ चुके हैं। फिर भी कानून के साथ दोहरे माप दण्ड क्यों ।
Recently, the criminal of Bundi, who gave the loudest threat, was arrested after protests in the whole country and the case was made so weak that he got bail on the second day itself. Similarly, the police is showing the way to escape the person who has been caught from Ajmer, calling for separation from the body. Their videos have come on social media. Still why double standards with the law ?
कुल मिला कर पुलिस सहित प्रशासन निष्पक्षता से काम करे , यह संविधान की अपेक्षा है। इसके लिये वह राज्यपाल मनोनीत करती है। सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय बनाती है। मगर अभी तो सभी व्यवस्थायें पंगु प्रतीत होती हैं। पुलिस सहित प्रशासन को राज्य के राजनैतिक दल के एजेण्डे पर काम करना होता है। उसे मजअूर किया जाता है। इसलिये कोई सुप्रीम व्यवस्था इस तरह की हो कि राज्यों में पुलिस सहित प्रशासन संवैधानिक निष्पक्षता से चले इस हेतु कोई ठोस कानून अथवा व्यवस्था बननी चाहिये।
Overall, the administration including the police should work fairly, it is the expectation of the constitution. For this she nominates the governor. Supreme and High Courts. But now all the systems seem to be paralyzed. The administration, including the police, has to work on the agenda of the political party of the state. He is forced. Therefore, there should be a supreme system in such a way that a solid law or order should be made in the states so that the administration, including the police, should be run in constitutional impartiality.
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