उद्धव का, राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार का समर्थन सही निर्णय - अरविन्द सिसोदिया

उद्धव का, राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार का समर्थन सही निर्णय - अरविन्द सिसोदिया

" सुबह का भूला यदि शाम को आ जाता है तो उसे भूला नहीं माना जाता है "  ठीक इसी प्रकार से महाराष्ट्र में शिवसेना के उद्धव ठाकरे, वापिस अपनी विचारधारा की तरफ लौटते हुए दिख रहे हैं । 

बगावत के बाद उन्होंने पहले औरंगाबाद का नाम बदलकर उसको वास्तविक न्याय दिया। वहीं उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के प्रत्याशी को समर्थन करने का ऐलान किया है । निश्चित रूप से यह दोनों ही निर्णय उनके उनकी विचारधारा पर लौटने के संकेत देते हैं । 

सच यही है कि शिवसेना की पहचान सेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के कट्टर हिंदुत्ववाद से है, उन्हें जनसमर्थन भी हिंदुत्व के कारण ही मिलता है।  शिवसेना के रूप में जितने भी विधायक हैं, सांसद हैं , उन सब की पहचान प्रखर हिंदुत्व के कारण ही है । वे जहां से चुनाव लड़ते हैं, वहां उन्हें तथाकथित सेक्यूलर नहीं, बल्कि कट्टर हिन्दू के तौर पर ही जाना जाता है ।

 उद्धव , गत लोकसभा चुनाव के बाद आदित्य की सलाह पर जिस रास्ते पर चले गए थे वह रास्ता  उनको डबल जीरो पर ही पहुचानें वाला था। उस रास्ते पर शिवसेना को खोनें के अलावा कुछ भी नहीं था । क्योंकि उस रास्ते के असली मालिक कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस हैं । उस रास्ते का वोटबैंक भी इन्ही पार्टियों के साथ है।

 इसलिए समय रहते शिवसेना में जो विद्रोह हुआ, वह  पार्टी हित में सकारात्मक स्वरूप में ही था। विद्रोह अपने विचारों की तरफ ही पुनः लौटाने के लिए था  ।

 बगावत के बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री के रूपमें अंतिम निर्णय औरंगाबाद का नाम बदलने का लेकर , अपनी मूल विचारधारा पर लौटनें का संकेत दे दिया था और राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के प्रत्याशी श्रीमती द्रोपदी मरमु  को समर्थन देने का निर्णय कर उसे और आगे बढ़ाया है ।

 उद्धव ठाकरे का यह सही निर्णय है, शिवसेना के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए उचित निर्णय है । क्योंकि उन्हें अंततः  शरद पवार एवं कांग्रेसी एंड कंपनी से पीछा छुड़ाकर अपनी मूल विचारधारा पर लौटना ही होगा।

 अन्यथा उद्धव ठाकरे और उनसे जुड़े लोगों का भविष्य राजनीतिक दृष्टि से समाप्त हो जाएगा । यह दूसरी बात है कि किसी के पीछे रह कर राजनीति में बने तो रहें, मगर अभी जो स्वतंत्र अस्तित्व है , जो स्वतंत्र स्वाभिमान हैं , जो स्वतंत्र सम्मान है, सब कुछ समाप्त होने की तरफ जा रहा है। इसलिए जितना जल्दी हो सके उतनी जल्दी होने शरद पवार और कांग्रेस से पूरी तरह छुटकारा पाना चाहिए ।

 अजमेर में जो चादर चढ़ाने का प्रयोग उनके पुत्र आदित्य ठाकरे ने किया था, वह तब भी गलत था और अब भी गलत है। क्योंकि शिवसेना का मूल नेचर यह है ही नहीं।  उन्हें इस तरह के प्रयोगों से अलग हो जाना चाहिए , यही समय की मांग है और यही शिवसेना की आवश्यकता है ।

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