महापौर का सीधा चुनाव मतलब सास बहू का झगडा - अरविन्द सिसौदिया

महापौर का सीधा चुनाव मतलब सास बहू का झगडा 

 - अरविन्द सिसौदिया
Direct election of mayor means fight between mother-in-law and daughter-in-law 

- Arvind Sisodia

हाल ही में ग्वालियर एवं जबलपुर में नगर निगम चुनाव के परिणाम परेशान करने वाले सामनें आये है। परेशान करने वाले से मतलब कि महापौर जनता ने कांग्रेस का बना दिया और उसी जनता ने वार्ड पार्षदों का बहूमत भाजपा को दे दिया है।
Recently, the results of municipal elections in Gwalior and Jabalpur have come to the fore. The troublemaker means that the mayor was made by the people of the Congress and the same people have given the majority of the ward councilors to the BJP.

अर्थात में सास बहू का झगडा खडा हो गया है। महापौर कहेगा मुझे जनता ने चुना है में बडा हूं। वार्ड पार्षदों की परिषद कहेगी कि हमें जनता ने बहूमत दिया है। हर छोटी बडी बात पर तू तू में में होगी। सवाल दो विपरीत पार्टियों के कारण ही नहीं एक पार्टी की स्थिती में भी यह परेशानी बनीं रहती है। क्यों कि जनता द्वारा चुना गया महापौर पार्षदों के प्रति जबावदेह नहीं होता है।
That is, a quarrel between mother-in-law and daughter-in-law has arisen. The mayor will say that the people have chosen me, I am a grown-up. The council of ward councilors will say that the people have given us a majority. You will be in me on every little thing. This problem persists not only because of two opposite parties but also in the situation of one party. Because the mayor elected by the people is not accountable to the councillors.

 ग्वालियर नगर निगम में कुल 66 वार्ड हैं जिनमें से 34 पर भाजपा , 25 पर कांग्रेस एवं 7 अन्य है। इस प्रकार नगर निगम बोर्ड भाजपा ही चलायेगी। ठीक इसी तरह से जबलपुर में 79 वार्ड है। जिनमें से 44 पर भाजपा, 25 पर कांग्रेस एवं 9 अन्य के पास है। अर्थात जबलपुर में भी नगर निगम बोर्ड भाजपा ही चलायेगी।
There are total 66 wards in Gwalior Municipal Corporation out of which BJP is on 34, Congress on 25 and 7 others. In this way the municipal board will be run by the BJP. Similarly, there are 79 wards in Jabalpur. Out of which BJP has 44, Congress on 25 and 9 others. That is, in Jabalpur also the municipal board will be run by the BJP.

राजस्थान में भी इसी तरह का प्रयोग पूर्व में कांग्रेस शासन में हुआ था। तब जयपुर में महापौर पद पर कांग्रेस जीती थी और पार्षद दो तिहाई भाजपा के थे। इसके कारण पूरे पांच साल सदन में काम काज ठीक से नहीं चला , हमेशा तनातनी बनीं रही। इसी अनुभव को देखते हुये कांग्रेस ने स्वयं इस वार यह नियम बदल दिया और पार्षदों के द्वारा ही महापौर का निर्वाचन करवाया गया।
A similar experiment was done in Rajasthan also during the Congress rule in the past. Then the Congress won the post of mayor in Jaipur and two-thirds of the councilors were from the BJP. Due to this, the work in the house did not go well for the whole five years, there was always tension. Seeing this experience, the Congress itself changed this rule this time and the mayor was elected by the councilors only.

व्यवहारिक दृष्टिकोंण यही कहता है कि जिस पद्यती से सदन के बहूमत के आधार पर प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री का चयन होता है।  वही आधार पंचायतीराज और पालिका राज चुनावों में होना चाहिये।

From a practical point of view, it is said that the method by which the Prime Minister and the Chief Minister are selected on the basis of the majority of the House. The same basis should be there in Panchayati Raj and Palika Raj elections.



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