रामराज के सिद्धांत को जिला प्रशासन को अपनाना ही चाहिए - अरविन्द सिसोदिया

राजा राम को क्या जरूरत थी जो वे वेश बदल कर जनमत जानने, जनता के बीच पहुंचे.... जनमत जानना ही असली राजधर्म है.... 

रामराज के सिद्धांत को जिला प्रशासन को अपनाना ही चाहिए - अरविन्द सिसोदिया 

भारत में सबसे बड़ी समस्या न्याय है और जिन कार्यालयों में न्याय की रक्षा होनी चाहिए, वे अन्याय के भ्रष्टाचार के शिथिलता के और अयोग्यता के अड्डे बने हुये हैँ। जनता वास्तव में परेशान सरकारी दफ्तरों से है। मगर इस और कोई ध्यान नहीं देता। मेरा मानना है कि पूरे देश में युद्धस्तर पर जनप्रतिनिधियों को वेश बदल कर सरकारी कार्यालयों की व्यवस्था सुधारना चाहिए।

राजा अर्थात प्रशासन का कर्तव्य जनता के पास जाना, उसके कष्टों को अन्याय को समझना और दूर करना ही है। यही कर्तव्य केंद्र सरकार, राज्यों की सरकारों, स्थानीय स्वायत्त शासन, ग्रामीण राज्य सहित मुख्यरूप से जिला कलक्टर और पुलिस अधीक्षक को ध्यान में रखना चाहिए।
*राम राज्य के न्याय की परिकल्पना: जनता के सुखदुःख जानना समझना*

राम राज्य की अवधारणा हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में एक आदर्श राज्य की परिकल्पना है, जिसमें न्याय, समानता, और सुख-शांति का समावेश होता है। राम राज्य के न्याय की परिकल्पना का मूल आधार जनता के सुखदुःख जानना और समझना है, जिसमें शासक जनता की समस्याओं और आवश्यकताओं को समझकर उनके लिए काम करता है।

*राम राज्य के न्याय की विशेषताएं*

राम राज्य के न्याय की परिकल्पना में निम्नलिखित विशेषताएं शामिल हैं:-

- *जनता के सुखदुःख की समझ*: राम राज्य में शासक जनता के सुखदुःख को समझने और उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए काम करता है।

- *न्याय और समानता*: राम राज्य में न्याय और समानता का पालन किया जाता है, जहां सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर प्राप्त होते हैं।

- *सुख-शांति और समृद्धि*: राम राज्य में सुख-शांति और समृद्धि का वातावरण होता है, जहां जनता अपने जीवन को सुख और शांति से जीने में सक्षम होती है।

*राम राज्य के न्याय की प्रासंगिकता*

राम राज्य के न्याय की परिकल्पना आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह हमें एक आदर्श राज्य की कल्पना करने और उसके लिए काम करने के लिए प्रेरित करती है। राम राज्य के न्याय की परिकल्पना हमें यह याद दिलाती है कि एक शासक का कर्तव्य जनता के सुखदुःख को समझना और उनकी समस्याओं का समाधान करना है।

*निष्कर्ष*

राम राज्य के न्याय की परिकल्पना एक आदर्श राज्य की कल्पना है, जिसमें न्याय, समानता, और सुख-शांति का समावेश होता है। इस परिकल्पना का मूल आधार जनता के सुखदुःख जानना और समझना है, जिसमें शासक जनता की समस्याओं और आवश्यकताओं को समझकर उनके लिए काम करता है। राम राज्य के न्याय की परिकल्पना आज भी प्रासंगिक है और हमें एक आदर्श राज्य की कल्पना करने और उसके लिए काम करने के लिए प्रेरित करती है।
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अयोध्या के दशरथ नंदन राम की वन यात्रा को भी जनता के निकट पहुंचने की , जनता को निकटता से जानने के उपक्रम में भी देखा जा सकता है। जो "लोकतंत्रीकरण" का एक महत्वपूर्ण तत्व है। 

श्रीराम देश के गरीब , लाचार और उन लोगों के पास पहुंचते हैँ, जो राजकाज की छाया तक भी नहीं पहुंच सकते। वे उनके मन को समझते हैँ । उन्होंने लोगों के बीच रहना चुना और उनकी कठिनाइयों को स्वयं अनुभव किया। यही लोकतंत्र है।

रामराज्य में शासक की भूमिका के लोकतंत्र संबंधी स्वाध्याय में जनता की आवाज बहुत महत्वपूर्ण है। शासक को जनता की बात सुननी चाहिए और उनकी इच्छा के अनुसार कार्य करना चाहिए।

जनता की आवाज़ के महत्व को 
रामराज्य की सार्थकता को, लोकतांत्रिक सिद्धांतों में न्याय, समानता, स्वतंत्रता और भाईचारा शामिल करता हैं। 

रामराज में लोकतांत्रिक सिद्धांत में शासक जनता का सेवक होता है। वह कानून से ऊपर नहीं है बल्कि न्याय और समानता के सिद्धांतों से बंधा हुआ है।

जनता की आवाज़ का महत्व
रामराज्य का सपना एक ऐसे समाज का है निर्माण जहां सभी के साथ सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार किया जाता है। यह एक ऐसा समाज जहाँ गरीबी, अन्याय या असमानता नहीं हो ।

रामराज में लोकतंत्र संबंधी परिकल्पना में जनता की आवाज सबसे महत्वपूर्ण है। शासक को जनता की बात सुननी चाहिए और उनकी इच्छा के अनुसार कार्य करना चाहिए।

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